जब के पुरे विश्व में अंतरष्ट्रीए दिवस मनाया जा रहा है, परिवार के कुछ सदस्यों ने मिल कर अपनी माँ द्वारा लिखित भावपूर्ण कविताओं का संग्रह छपा डाला।
आज चंडीगढ़ में सेक्टर ४५ के एक घर में एम सी एम डी ए वी कॉलेज की प्राध्यापिका श्रीमती अलका कंसरा ने अपनी ७८ वर्षीय माँ श्रीमती शकुंतला खिंदेरिअ द्वारा लिखित कविताओं को छपवा कर कुछ परिवार और दोस्तों की महफ़िल में इस का विमोचन किया.
“खुली रेत पर घरौंदे ” एक ऐसा सवेदनशील संग्रह है जो की एक औरत की इच्छाओं, उसके दुःख भरे छन, जीवन की विडंबनाओं को और अकेले गुज़ारे लम्हों की झलकिआं प्रस्तुत करता है और जीवन में मुश्किलों को पार करने की प्रेरणा भी देता है.
शंकुन्तला ने इन कविताओं को अपने जीवन के अनुभवों से सींचा है और यह कवितायेँ बस कहीं बंद बक्से में थी जो के उनकी बेटी ने देखीं और उन्हें अपनी मित्र और कॉलेज में साथ पड़ा रही श्रीमती गुरविंदर कौर की और अपने पति भरत कंसरा की मदद से छपवा दि. ११ वर्षीय कार्मेल कान्वेंट की सातवी क्लास की विद्यार्थी ने इस किताब के कवर को डिज़ाइन किया और एक किस्म से यह दोस्तों और परिवार की तरफ से शंकुतला के लिए एक प्यार भरी भेंट थी.
चंडीगढ़ लिटरेरी सोसाइटी के चरणजीत सिंह और श्री छटवाल ने इसका विमोचन किया और सश्रीमती शंकुन्तला ने कुछ चुनी हुई कविताओं को पड़ा।
आज चंडीगढ़ में सेक्टर ४५ के एक घर में एम सी एम डी ए वी कॉलेज की प्राध्यापिका श्रीमती अलका कंसरा ने अपनी ७८ वर्षीय माँ श्रीमती शकुंतला खिंदेरिअ द्वारा लिखित कविताओं को छपवा कर कुछ परिवार और दोस्तों की महफ़िल में इस का विमोचन किया.
“खुली रेत पर घरौंदे ” एक ऐसा सवेदनशील संग्रह है जो की एक औरत की इच्छाओं, उसके दुःख भरे छन, जीवन की विडंबनाओं को और अकेले गुज़ारे लम्हों की झलकिआं प्रस्तुत करता है और जीवन में मुश्किलों को पार करने की प्रेरणा भी देता है.
शंकुन्तला ने इन कविताओं को अपने जीवन के अनुभवों से सींचा है और यह कवितायेँ बस कहीं बंद बक्से में थी जो के उनकी बेटी ने देखीं और उन्हें अपनी मित्र और कॉलेज में साथ पड़ा रही श्रीमती गुरविंदर कौर की और अपने पति भरत कंसरा की मदद से छपवा दि. ११ वर्षीय कार्मेल कान्वेंट की सातवी क्लास की विद्यार्थी ने इस किताब के कवर को डिज़ाइन किया और एक किस्म से यह दोस्तों और परिवार की तरफ से शंकुतला के लिए एक प्यार भरी भेंट थी.
चंडीगढ़ लिटरेरी सोसाइटी के चरणजीत सिंह और श्री छटवाल ने इसका विमोचन किया और सश्रीमती शंकुन्तला ने कुछ चुनी हुई कविताओं को पड़ा।