‘ तुम्हें एहसास नहीं ‘ व् अन्य चार कविताएँ

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– कवयित्री  हैं … जयति जैन (नूतन) –

कविताएँ

 1.  तुम्हें एहसास नहीं

तुम क्या जानो क्या होती है
तन्हाई, चीखती खामोशी
तुम्हे एहसास नहीं कराया मेने
बंद कमरे मे केद घुटन का
किसी की रूह से जुडकर
उसका वजूद लूटने वाले
खुद की तलाश मे मारा मारा फ़िर रहा
वो आवारा
वो चिलमिलाती धूप सी चुभती
तेरी यादे, आंखो में खून ला देती हैं
लेकिन
तुम तो ऐसे लोगों मे घिरी हो
जेसे पतंग कट कर हवा के साथ नाचती है
उस धागे को गौर से देख ए बेगेरत
तुझे नाज़ों से सम्भाला जिसने
अपने रुमानी अंदाज़ से लुभाया जिसने
रातो को सजाया जिसने
दूसरे से मोहब्बत जताता तेरे गुरूर
एक बारी ऐसा तोडना है
आ गिरे शाख से टूटे पत्ते की तरह
मेरी बाहों मे,
हवा का रुख ऐसा मोड़ना है
टूट कर बिखरेगी
आयेगी मेरी राह मे गिड़गिडाती हुई
करवाऊगा हर उस दर्दे जख्म का एहसास
जो हर रोज़ तू मुझे देती है
इक इक अश्क
दरपर्दा होकर जहन मे क्रांति ला रहा है
आंख से निकाल दर्द चार दीवारो मे कराहकर
छुपाया है मेने
हुस्न पे नाज़ बहुत है तुझे ए नाजनीन
गैरो को आशिक बनाती है
तड़फ़ेगी जब बिकेगी हुस्ना दो कोडी में
गैरो के बाज़ार मे
वक्त अभी है लौटकर आज़ा सितमगर
अभी जेहन में ऐतबार बाकि है
कल तुझे फरागत ना थी आज मुझे नहीं
कहने को तैयार
वर्ना साकी है !

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2.  एक आम लड़की
सपने बुनती
आसमान छूने के
ग़म में मुस्कुराती
एक आम लड़की
कुछ कहती कुछ सुनती
अपनों को खुश रखती
कभी सहम जाती तेज हवाओ से
कभी तूफ़ान से जूझती
एक आम लडकी
दुनिया की भीड़ में
असहाय, लड़खडाई-सी
उठकर गिरी, आन्सू छलकाती
गिरकर उठी, ज्वाला बनती
एक आम लड़की
अमीरो जेसी शान
दौलत नहीं चाहती
थोडा प्यार थोडा सम्मान
बस अपनी पहचान चाहती
मुझ जेसी एक आम लड़की !

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3. यादों के निशान
कुछ चली कुछ रुकी शायद
मुझसे कुछ कह रही थी
वो यादो की तेज़ हवा
मेरे लिये ही बह रही थी
मैं रोकती भी तो केसे उसे
वो लहर जो दिल में उठी थी
गहरी इतनी की सागर भी समा जाये
तूफ़ान ऐसा कि सब उडा ले जाये
मेरी आंखे जो अश्रू से भरी थी
बारिश के पानी सी तेज बरसी थीं
बस उज़डे गुलिस्तां के निशान बचे
जो तेज आन्धी के संग बहे थे
जो थे कल साथ आज वो हैं कहां
वह यार जो साथ रोये, साथ हंसे थे !!!

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4. वो मेरा नहीं
मैं आज भी वेसी ही हुं,
जेसी उसकी पसंद है,
लेकिन अब वो वेसा नहीं,
जेसा मुझे पसंद है !
वो मेरा पहला प्यार है,
लेकिन मैं उसका पहला प्यार नहीं !
मैं खुश होती हुं उसकी हसी देखकर,
वो खुश होता है, किसी और की हसी देखकर !
मैं तो आज भी उसकी हुं,
ये वो नहीं जानता,
वो किसी और का है, ये सब जानते हैं !

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 5. तेरी जरुरते मेरी चाहत
अगर मैं तुम्हे भूल जाऊ तो मुझे बेवफ़ा कहना,
तेरी वफ़ा ना सही बेवफ़ाई तो याद रखुगी मैं !
अब ना जख्म भरेगे, ना दिल हंसेगा,
ना अब पहले जेसी मोहब्बत होगी !
मैं भी यही हुं तू भी होगा,
ना अब दिदार की ख्वाहिश जगेगी !
तुम्हारे लिये तुम्हारी जरुरते पहले थी,
मेरे लिये मेरी चाहत
मुझे भी शोहरत पानी थी, आगे बडना था,
लेकिन तुम्हें साथ लेकर !
कल को तुम्हें फरागत ना थी,
आज मुझे नहीं है !!!
तुम्हें पाने के लिये क्या कुछ नहीं किया,
कितनी बेवकूफ़ियां की,
अब एहसास होता है !

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Jayti-jainपरिचय -:

जयति जैन (नूतन)

लेखिका ,कवयित्री व् शोधार्थी

शिक्षा – : D.Pharma, B.pharma, M.pharma (Pharmacology, researcher)

लोगों की भीड़ से निकली साधारण लड़की जिसकी पहचान बेबाक और स्वतंत्र लेखन है ! जैसे तरह-तरह के हज़ारों पंछी होते हैं, उनकी अलग चहकाहट “बोली-आवाज़”, रंग-ढंग होते हैं ! वेसे ही मेरा लेखन है जो तरह -तरह की भिन्नता से – विषयों से परिपूर्ण है ! मेरा लेखन स्वतंत्र है, बे-झिझक लेखन ही मेरी पहचान है !! लेखन ही सब कुछ है मेरे लिए ये मुझे हौसला देता है गिर कर उठने का , इसके अलावा मुझे घूमना , पेंटिंग , डांस , सिंगिंग पसंद है ! पेशे से तो में एक रिसर्चर , लेक्चरर हूँ (ऍम फार्मा, फार्माकोलॉजी ) लेकिन आज लोग मुझे स्वतंत्र लेखिका के रूप में जानते हैं  ! मैं हमेशा सीधा , सपाट और कड़वा बोलती हूँ जो अक्सर लोगो को पसंद नहीं आता और मुझे झूठ चापलूसी नहीं आती , इसीलिए दोस्त कम हैं लेकिन अच्छे हैं जो जानते हैं की जैसी हूँ वो सामने हूँ !

संपर्क -: Mail- Jayti.jainhindiarticles@gmail.com

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