उसका नाम है औरत व् अन्य चार कविताएँ

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– सचिन ओम गुप्ता – 

1. उसका नाम है “औरत”

रत्यात्मक और सुधीरस है,

उसका नाम है औरत |

जो जन्म से अवगुणों के साथ गुणों का मिश्रण है,

उसका नाम है औरत |

जो जन्म से कठोर और बहुत ही सुकुमार है,

उसका नाम है औरत |

भावुकता से धनी और सब कुछ जीतने वाली है,

उसका नाम है औरत |

आप उसको पीड़ा दे सकते हो,लेकिन उस पीड़ा को आराम देने वाली है,

उसका नाम है औरत |

रहस्य को बढ़ाने वाली और रहस्य को हल करने वाली है,

उसका नाम है औरत |

आपको इस संसार से परिचय कराने वाली है,

उसका नाम है औरत |

किसी की बेटी,बहन,पत्नी,बहु और माँ है,

उसका नाम है औरत |

2.  बस वही यादें 

यादें एक सरल शब्द है,

केवल जहन की बातें या तकलीफें हैं यादें,

कुछ बातें, कुछ मुलाकातें और फिर यादें |

मिलना और मिल के बिछड़ना ,

तस्वीरें देख के आँसू का फिसलना

और रह जानी हैं तो बस क्या, यादें

बस वही यादें…!!!

बस वही यादें …!!!


3.  जिन्दगी की पहेली बड़ी उलझी सी है 

जिंदगी की पहेली बड़ी उलझी सी है,

सोचता हूँ…

सुबह उठूँ ,मस्ती करूँ

नदियाँ और झरने देखूँ

कुछ मन की उलझनों को पन्नों पर लिख सकूँ,

इस खुलें आसमान को छू सकूँ

इस दुनिया की खूबसूरती को महसूस कर सकूँ

नई ऊँचाइयों की डगर को छू सकूँ,

कुछ सपनें बुनूँ और उन्हें जी सकूँ

पर जीवन की उलझनों के आगे किसकी चलती है,

जिंदगी की पहेली बड़ी उलझी सी है |

जिंदगी की पहेली बड़ी उलझी सी है |

4. तुम आए कुछ यूँ  

तुम आए कुछ यूँ…

आज मौसम भी सोच में,

और बादल भी मौज में

हवाओं की हसीन गुफ्तगू

कब से थे दूर, क्यूँ थे मजबूर ,

तुम आए कुछ यूँ…

जरा सहमें से, खड़े हम थे,

क्यूँ छलक आए आसूं |

चले हम साथ ,ले हाथों में हाथ

कहीं दूर चले जा रहें क्यूँ ,

देख रहा था मैं,सोच रहा था मैं

कि आँखे हुई नम क्यूँ |

रुक ही गया मैं, थम ही गया मैं

शर्माएं जब तुम यूँ |

ख़तम हुआ जब पल ये हसीं तो,

आधे हुए हम क्यूँ |

कि टूटे से है, अधूरें से हैं,

पर पास नहीं तू क्यूँ |

है इंतजार तुम्हारा,ये प्यार तुम्हारा,

एक बस मैं ही हूँ |

ये बातें,ये यादें, ये मुलाकातें,

तुम आए कुछ यूँ …तुम आए कुछ यूँ …

 5. मन

कितना सुन्दर , कितना चंचल ,तू कितना अच्छा है

रे मन फिर क्यों तू इतना घबराया है …

तू हँसता है , सब हँसते हैं ,

तेरे पापा, तेरी मम्मी तूझको कितना दुलराया है

रे मन फिर क्यों तू इतना घबराया है …

जब कल तू नाराज था तेरे भइया न तुझको हँसाया है

रे मन फिर क्यों तू इतना घबराया है …

तू माँ की जान है, पापा का अभिमान है

तू जब-जब आंगन में खेला,

सब चेहरे में खुशियोँ का मेला

कितना सुन्दर , कितना चंचल ,तू कितना अच्छा है

रे मन फिर क्यों तू इतना घबराया है …

रे मन फिर क्यों तू इतना घबराया है …

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परिचय

सचिन ओम गुप्ता

युवा लेखक व् कवि

मेरा नाम सचिन ओम गुप्ता है| पिता – श्री ओम प्रकाश गुप्ता , माता- उर्मिला गुप्ता | मैं एक छोटे से शहर चित्रकूट धाम (उत्तर प्रदेश) का निवासी हूँ| जन्मतिथि- 10-11-1991, शिक्षा- स्नातक इंजीनियरिंग- ‘संगणक विज्ञान, उत्तीर्ण- प्रथम श्रेणी, सत्र-2014, कालेज- टेक्नोक्रेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, भोपाल (मध्य प्रदेश)

लेखक ने विप्रो लिमिटेड कंपनी से अपने करियर की शुरुआत की थी, अब इस समय संघ लोक सेवा परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हुए हैं| कविता ,लेखन और नई-नई जगहों में घूमने की रूचि रखते हैं
“मेरे जीवन के जितने पन्ने पलटते जा रहें हैं, उन पन्नो के उतार- चढ़ाव को मैं अपने शब्दों में परिवर्तित कर लिखता हूँ |

“चित्रकूट का वासी हूँ, सबके मन का साथी हूँ”

 संपर्क -: – 07869306218 ,  ईमेल- sachingupta10nov@gmail.com

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