आज के दलित लेखक व् अन्य दो कविताएँ

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suraj-baditya

 

 

सूरज बडत्या की कविताएँ 

आज के दलित लेखक !!!!

दलित लेखको की कलम …
खो गयी है आज …
कठिन दौर के इस बवंडर में …
जब पुराण हुंकार रहा है …
मनु नयी संहिता लिख रहा है …
और कवि कालिदास…..
मेघदुतम की पांडुलिपियों को..
आग के हवाले कर …
रघुपति राघव राजा राम ….गा रहा है मंदिरों में …
ऐसे दौर में …. तेरी कलम कैसे खो सकती है भाई रे ….
आओ मेरी नीली नसों वाली साथिन आओ
तुम भी आ जाओ साथिया ……
ढूंढते हैं अपनों की उस कलम को …
जो बैठ के कहीं पे …
पाखाना कर रही होगी …
या कहीं किसी रंगीन प्याले में डूब …
तर जाने को बेताब होगी ……
और ये मरदूद कबीर आज भी…
चैन से सोने नहीं दे रहा है हमको ….
बेसुधी में आधी रात…..
गाये चले जा रहा …..
माया महा ठगनी हम जानी ……!!!!!!

बच्चे और इतिहास !!!!

सब नदियाँ जब आकाश होंगी
और हवा  पहाड़
तब हम बड़े ही नहीं
बहुत बड़े हो जायेंगे ….
बच्चे तब तितलियाँ नहीं
उल्लुओं पकड़ कर रहें होंगे बच्चों संग
और चमगादड़ नचा रहे होंगे ….
फिर “सा रे गामा पा धा नि सा” छोड
गोबर गंगाजल गोमूत्र का लेप बना  …
बीमारी पे मल रहे होंगे सब  …
तब हम
सभ्यता की उन  मंजिलों पे खड़े होंगे …
जहां सीढियां नहीं होंगी …
कंकाल ही बचे होंगे और बचे होंगे कंकाली सिर ..
पैर रख  जिन पे हम …
जाया करेंगे इस पार से उस पार ….
मनु उस समय राधे-श्याम , हरे-राम में …
पक्के से बदल चुका होगा
और ….
पुरोहित संसद में बैठ अधिनियम बनाया करेंगे …
बस कुछ ही दिन बचे रह गए हैं इतिहास होने में ….
इतिहास बनने का सफ़र, समय दोहरा रहा है …..
दो दुनी चार नहीं अब …..
आठ दुनी सोला भी नहीं होगा उस  हमारे दौर मैं ….
अब
सब नदियाँ आकाश बन रही हैं
और हवा  पहाड़
तब हम बड़े ही नहीं
बहुत बड़े हो गए हैं , अमरीका की इमारतों और ….
और चीन की रफ़्तार की तरह
बच्चे अब  तितलियाँ की नहीं
उल्लुओं की बातें कर रहें हैं आज  बच्चो संग ….
और चमगादड़ की आकृति बना रहे हैं …..

करेंसी !!!          

हमारे यहाँ करेंसी
कुछ इस तरह से  है..
जैसे दिल्ली के दिल में ..
लाल किले के ठीक एकदम सामने वाले
चाँदनी चौक चौराहे पे …
कुत्ते पूंछ हिलाते हैं …
और उनकी टाँग …
कोई दूसरा उठाता…
पास ही के मंदिर में अजान शुरू हो जाती है
बड़ी वाली मस्जिद रामा कृष्णा पुकारती है …
गुरुद्वारा निर्गुनिया भज रहा है ……
और हमारे वक्त के ATM ….
गर्म होके जन विरोधी साजिशे बुनने लगे हैं ….
करेंसी पे छपे गांधी मुस्कुरा रहे हैं …
और नयी सड़क के किनारे रेहड़ी वाला हांक लगा रहा है …
बिरयानी तीन रुपे किलो …
मेरी जेब में चवन्नी भी नहीं है और बड़ा रुपया …
कागज़ के टुकड़े बने हैं अच्छे हुक्मरानी आदेश से
चीजे सस्ती हो गयी…. पर दिमाग खाली है
तिरंगा दीख रहा है लाल किले के माथे पे …
उसे मैं जोर से सल्युट मारता हूँ ….
पास से गुजरते रिक्शे वाले को देखता हूँ …..
अपने बच्चे के चेहरा याद कर खाली जेब में हाथ घुसेड लेता हूँ …..
जोर से जय हिन्द चिल्लाता हूँ ….
लोग मेरी और दया से देखते हैं …
और मैं उनकी हया से …  दबे -थमे पाँव घुमाता हूँ  ..
और घर की और लौट आता हूँ निराश पाँव लिए चुपके से ….

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aaaaपरिचय – :

सूरज बडत्या

शिक्षक , लेखक व्  आन्दोलनकर्मी

समसामयिक मुद्दों पे सूरज बडत्या की तीन कवितायें | सूरज बडत्या दलित साहित्य में एक बेहद जरुरी नाम है जो अपने परिदृश्य की आँख में आँख डाल सवाल करते हैं | कलम की बैखौफ रवानगी और शब्दों की जिंदादिली इनके रचनाकर्म ( कहानी-कविता-आलोचना ) की विशेष पहचान हैं |

डॉ सूरज बडत्या पेशे से ए. प्रोफेसर हैं, लिखाड़-लेखक और आन्दोलनकर्मी | इनकी कहानी की पुस्तक ” कामरेड का बक्सा ” वाणी प्रकाशन नयी दिल्ली से प्रकाशित , बेहद चर्चित रही | आलोचना की पुस्तक – ” सत्ता संस्कृति और दलित सौन्दर्यशास्त्र” भारतीय साहित्य के पारंपरिक सौन्दर्यशास्त्रीय मापदंडों का समर्थ-सार्थक मूल्यांकन करती है | बारह भाषाओं की दलित कविताओं का – “भारतीय दलित साहित्य का विद्रोही स्वर ” नाम से विमल थोरात के साथ संपादन | अब तक सात पुस्तके प्रकाशित | ” किलाडिया ” उपन्यास एवं कहानी-कविता -आलोचना की पुस्तक शीघ्र प्रकाशित होने वाली  हैं |

पत्रिका संपादन – :

संघर्ष त्रैमासिक पत्रिका का नयी दिल्ली से  संपादन ,2004 -2008 | युद्धरत्त आम आदमी का एक वर्षतक नयी दिल्ली से 2008 में संपादन | 2008 से दलित अस्मिता त्रैमासिक पत्रिका में फिलहाल सहायक संपादन, नयी दिल्ली से |

पुरस्कार- :
मैथिलीशरण गुप्ता पुरस्कार 1999, (नयी दिल्ली) | लोकसूर्या  साहित्य सम्मान- 2009, (महाराष्ट्र) |    वाणी विचार मंच, साहित्य सम्मान (पंजाब) -2009 |

संपर्क – :
Email- : badtiya.suraj@gmail.com , Mobile – : 9891438166

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