अल्पसंख्यक समुदाय की दयनीय स्थिति और बहुसंख्यकों का दायित्व

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– तनवीर जाफरी –

Tanveer-Jafriहालांकि धर्म,नीति तथा समाज शास्त्रों द्वारा पूरे विश्व को यही सीख दी जाती है कि छोटे,कमज़ोर,आश्रित तथा असहाय लोगों का आदर किया जाए, उन्हें सुरक्षा व संरक्षण प्रदान किया जाए तथा उनके धर्म तथा विश्वास की रक्षा करते हुए उन्हें अपने रीति-रिवाजों व परंपराओं पर चलने में उनका सहयोग करते हुए उन्हें इस पर चलने की पूरी आज़ादी दी जाए। निश्चित रूप से दुनिया के अधिकांश देशों में इस नीति का पालन भी किया जाता है। परंतु यह भी सच है कि दुनिया के कई देश व राज्य ऐसे भी हैं जहां बहुसंख्यकों द्वारा स्थानीय अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किए जाते हैं। और कहीं-कहीं तो बहुसंख्यकों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों की सीमा इस हद तक पहुंच जाती है कि अल्पसंख्यकों की हत्याएं तक की जाती हैं,उनके घर उजाड़ दिए जाते हैं,उनकी बहू-बेटियां असुरक्षित हो जाती हैं तथा ऐसे हालात से तंग आकर पीडि़त वर्ग या समुदाय के लोग अपनी जान बचाकर सुरक्षित स्थानों की ओर कूच करने लग जाते हैं। यदि दुनिया के किसी भी देश या राज्य में ऐसी शर्मनाक स्थिति पैदा होती है तो इसके लिए वहां की सरकार तथा स्थानीय प्रशासन तो जि़म्मेदार है ही साथ-साथ ऐसे हालात के लिए सबसे बड़ी जि़म्मेदारी उस बहुसंख्यक समाज की भी है जिसके आतंक तथा भय के परिणामस्वरूप अल्प समाज पलायन करने के लिए मजबूर हो जाता है तथा बहुसंख्य समाज के लोग उसकी सुरक्षा तथा सहयोग के लिए उसके साथ खड़े दिखाई नहीं देते।

आज शायद ही दुनिया का कोई देश ऐसा हो जहां लगभग सभी धर्मों व वर्गों व समुदायों के लोग न रहते हों। चाहे वह स्वयं को इस्लामी कहलाने वाले देश हों या ईसाई बहुसंख्य आबादी वाले देश अथवा कुछ समय पूर्व तक हिंदू राष्ट्र कहा जाने वाला नेपाल या बुद्ध विश्वास के मानने वाले अनेक देश। परंतु इन्हीं में अनेक देश ऐसे हैं जहां प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता हासिल है जबकि कई देशों में वहां के स्थानीय बहुसंख्य लोगों के अतिरिक्त दूसरे धर्म तथा विश्वास के लोगों को नफरत की नज़रों से देखा जाता है। मिसाल के तौर पर सऊदी अरब में आप सार्वजनिक रूप से अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का इस्तेमाल नहीं कर सकते। हिंदू,ईसाई,सिख अथवा बौद्ध धर्म के लोगों को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता पर अमल करना तो दूर स्वयं मुस्लिम समुदाय के सभी ग़ैर वहाबी तब्के के लोग वहां अपनी धार्मिक स्वतंत्रता,परंपरा व रीति-रिवाज के मुताबिक कोई भी धार्मिक आयोजन नहीं कर सकते। सऊदी अरब की न्याय प्रणाली हंबली इस्लामिक शिक्षा पर आधारित है। इसके विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करने वालों को ईश निंदा के जुर्म में या धर्म का अपमान करने के आरोप में फांसी तक दे दी जाती है। सऊदी अरब में लगभग 90 प्रतिशत आबादी सुन्नी मुसलमानों की है जबकि लगभग पंद्रह प्रतिशत शिया मुसलमान यहां रहते हैं। सऊदी अरब में आए दिन शिया मुसलमानों पर ज़ुल्म करने यहां तक कि कई शिया धर्मगुरुओं को फांसी पर लटका दिए जाने जैसी खबरें आती रहती हैं। इसी प्रकार ईरान जोकि एक शिया बाहुल्य देश है वहां से भी सुन्नी उल्लेमाओं पर ज़ुल्म ढाने यहां तक कि उन्हें सज़ा-ए-मौत दिए जाने जैसी खबरें मिल चुकी हैं। जबकि ईरानी धार्मिक नेतृत्व वैश्विक स्तर पर शिया-सुन्नी एकता का भी बहुत मुखर पक्षधर है।

अल्पसंख्यक समुदाय की ऐसी ही दयनीय स्थिति पाकिस्तान तथा बंगला देश व म्यांंमार (बर्मा)जैसे देशों में भी है। पाकिस्तान व बंगला देश में हिंदुओं,शिया व अहमदिया समुदाय के लोगों तथा सिख व ईसाई धर्म के अनुयाईयों पर व उनके धर्मस्थलों पर हमला करने की ख़बरें अक्सर आती रहती हैं। पिछले दिनों ढाका ट्रिब्यून में ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा० अब्दुल बरकत के हवाले से उनके अध्ययन की एक शोध रिपोर्ट प्रकाशित की गई जो प्रो० बरकत ने अपनी एक पुस्तक ‘पॉलिटिकल इकॉनोमी ऑफ रिफार्मिंग एग्रिकल्चर लैंड वाटर बॉडीज़ इन बंगला देश’ में लिखी है। इसके अनुसार धार्मिक उत्पीडऩ तथा भेदभाव की वजह से प्रतिदिन औसतन 632 हिंदुओं द्वारा बंगला देश से पलायन किया जा रहा है। और यदि यही स्थिति बनी रही तो अगले तीस वर्षों में बंगला देश में एक भी हिंदू शेष नहीं बचेगा। जबकि आंकड़ों के मुताबिक इस समय बंगला देश में लगभग डेढ़ करोड़ हिंदू जनसंख्या है। हिंदुओं के साथ बरते जा रहे इस सौतेले व्यवहार के चलते बंगला देश के साठ प्रतिशत हिंदू भूमिहीन हो चुके हैं। बंगला देश के पूर्व जस्टिस काज़ी इबादुल हक का मानना है कि बंगला देश में अल्पसंख्यकों और गरीबों को उनके भूमि अधिकारों से वंचित किया गया है।

यही हालत पाकिस्तान की भी है। इस समय बंगला देश व पाकिस्तान से स्वयं को असुरक्षित महसूस करने वाले हिंदू समुदाय के लाखों बेसहारा लोग अपने-अपने देशों की सीमा पार कर या किसी दूसरे बहाने से भारत आकर यहां की नागरिकता मांगने के लिए मजबूर हैं। ज़ाहिर है जब पानी सिर से ऊंचा बहने लगे तभी पलायन अथवा अपना घर-द्वार छोडक़र अन्यत्र जा बसने जैसी स्थिति पैदा होती है। पाकिस्तान में भी कभी हिंदू कभी सिख कभी ईसाई तो कभी शिया,अहमदिया या बरेलवी वर्ग के लोगों की हत्याएं की जाती हैं, इनके धर्मस्थलों पर हमले किए जाते हें तथा इनके परिवार की बहन-बेटियों की आबरू रेज़ी की जाती है। ऐसी ही स्थिति बुद्ध बाहुल्य देश बर्मा में भी पैदा हो चुकी है। खबरों के मुताबिक म्यांमार अथवा बर्मा के स्थानीय मुसलमानों पर वहां के कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु समुदाय के एक वर्ग द्वारा ऐसा अत्याचार किया गया जो संभवत: दुनिया के किसी देश में अब तक नहीं किया गया। वहां 88 प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध समुदाय की है जबकि 4.3 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि स्वयं को राम-रहीम,ईसा-मूसा,मोहम्मद तथा बुद्ध जैसे शांतिप्रिय महापुरुषों का अनुयायी बताने वाले लोगों द्वारा मानवता विरोधी कदम उठाए जाते हों और वहां का बहुसंख्य समाज तमाशा देखता रहता हो, यह आिखर कैसा धर्म और कहां का न्याय है?

कहने को तो बंगला देश की सरकार अल्पसंख्यकों की हितैषी तथा उनकी रक्षा करने वाली सरकार है। इस समय भारत व बंगला देश की सरकारों के मध्य रिश्ते भी काफी मधुर हैं। पाकिस्तान में भी पिछले दिनों प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को हिंदू समुदाय के लोगों के साथ मिलजुल कर होली व दीवाली का त्यौहार मनाते देखा गया। बेनज़ीर भुट्टो के साहबज़ादे बिलावल का एक चित्र सोशल मीडिया में खूब प्रसारित हुआ जिसमें उन्हें हिंदू मंदिर में पूरी श्रद्धा के साथ बैठकर पूजा-पाठ करते देखा जा सकता है। हमारे देश में भी अनेक ऐसे आयोजन होते हैं जिसमें विभिन्न धर्मों के विशिष्ट लोग एक-दूसरे के धर्म से जुड़े आयोजनों में शरीक होते हैं। परंतु विशिष्ट लोगों का इस प्रकार दूसरे धर्मों या समुदायों के लोगों के कार्यक्रमों में शिरकत करना केवल प्रतीकात्मक नहीं होना चाहिए बल्कि समाज के सभी आम लोगों को इससे प्रेरणा भी लेनी चाहिए। इस प्रकार के मामलों में दूसरे देशों में बैठा कोई भी किसी समाज का स्वधर्मी वर्ग उसे नैतिक समर्थन देने के सिवा और कर भी क्या सकता है? लिहाज़ा सबसे पहली जि़म्मेदारी बहुसंख्यक वर्ग की ही है कि वे अपने धर्म के महापुरुषों की शिक्षा का अनुसरण करते हुए अपने-अपने देश व राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की न केवल सुरक्षा सुनिश्चित करंे बल्कि उन्हें उनके प्रत्येक धार्मिक,सामाजिक व पारिवारिक आयोजनों में उनकी सहायता व सहयोग कर उनमें अपनेपन का भाव पैदा करने का वातावरण तैयार करे। सभी धर्मों की धार्मिक शिक्षा सबसे पहले मानवता तथा प्रेम,सद्भाव व भाईचारे की सीख देती है न कि कट्टरपंथ या ज़ुल्म-ो-सितम व अत्याचार की?

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tanvir-jafri11About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – :
Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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