व्यंग्य वाली चुटकी : सेल्फी वाला पत्रकार नहीं हूं

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– अशोक मिश्र –

NARENDRAMODI,SELFI JOURNALISTघर पहुंचते ही मैंने अपने कपड़े उतारे और पैंट की जेब से मोबाइल निकालकर चारपाई पर पटक दिया। मोबाइल देखते ही घरैतिन की आंखों में चमक आ गई। दूसरे कमरे से बच्चे भी सिमट आए थे। घरैतिन ने मोबाइल फोन झपटकर उठा लिया और उसमें कुछ देखने लगीं। मोबाइल को इस तरह झपटता देखकर मेरा माथा ठनका। मैं समझ गया कि घरैतिन का सर्च अभियान चालू हो गया है। जिस तरह बच्चों ने मुझे घेर लिया था, उससे लग रहा था कि मैं जैसे कोई आतंकवादी होऊं, घरैतिन और बच्चे सुरक्षा कर्मी, जो मुझे घेरे में लेने का प्रयास कर रहे हों। इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई। मैंने उनके हाथ से लगभग मोबाइल फोन  छीन ही लिया।

मोबाइल फोन अपने हाथ से जाते ही घरैतिन मनुहार करते हुए बोलीं, ‘दिखा दीजिए न! अब छिपा क्यों रहे हैं?’  ‘क्या..? मैं क्या छिपा रहा हूं?’ घरैतिन की बात सुनकर मैं सतर्क हो गया। उसने जिस तरह झपटकर सोफे पर रखा गया मोबाइल उठाया था, मैं समझ गया कि दाल में कुछ काला जरूर है। अगर पूरी दाल ही काली हो, तो कोई ताज्जुब नहीं। मेरे इतना कहते ही घरैतिन ने अपना सुर बदल लिया, ‘चलिए..अब जल्दी से सेल्फी वाली तस्वीर दिखा दीजिए। ज्यादा इठलाइए मत। मैंने तो मोहल्ले की सभी औरतों को बता भी दिया है कि गॉटर के पापा सेल्फी वाली तस्वीर लेकर आने वाले हैं।’

मैं कुछ बोलता, इससे इससे पहले मेरा बेटा गॉटर बोल उठा, ‘हां पापा! मैंने भी अपने स्कूल के दोस्तों को बता दिया है कि मेरे पापा पीएम तक से हाथ मिलाते हैं। उनके साथ फोटो खिंचवाते हैं। पापा..जल्दी से व्हाट्सएप से सेल्फी वाली तस्वीर मुझे दीजिए, मैं अपने दोस्तों को शेयर करूं।’ बेटे गॉटर की बात सुनते ही मैंने उसे घुड़क दिया, ‘मेरे पास कोई सेल्फी-वेल्फी नहीं है, समझे तुम लोग। मैं सेल्फी वाला पत्रकार नहीं हूं।’

मेरी बात सुनते ही घरैतिन गुर्राईं, ‘फिर कैसे पत्रकार हैं आप? जिंदगी भर कलम ही घसीटते रहिएगा आप। आप पीएम के साथ एक सेल्फी नहीं ले पाए, तो कौन सा पहाड़ तोड़ लेेंगे आप अपनी पत्रकारिता के बल-बूते पर।’ मैंने घरैतिन और बच्चों को समझाने का प्रयास किया, ‘देखो..पीएम के साथ सेल्फी लेना और बात है, पत्रकारिता करना और बात। फिर उतनी भीड़ में घुसने की मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ी। जानती ही हो, भीड़ देखकर मेरा बीपी हाई हो जाता है?’
घरैतिन ने मुंह बिचकाते हुए कहा, ‘हुंह..भीड़ देखकर मेरा बीपी हाई हो जाता है। और जब वर्माइन, शुक्लाइन, चौधराइन आ जाती हैं, तो आपका बीपी नहीं उबाल खाता है, तब तो औरतों को टुकुर-टुकुर निहारते रहते हैं। जब से सुना था कि प्रधानमंत्री जी पत्रकारों से मिलेंगे, तब से एक उमंग थी कि चलो गॉटर के पापा भी पीएम साहब से मिलकर सेल्फी लेंगे। वर्माइन जब भी किटी पार्टी में आती है, तो बताती है कि उसके हब्बी  फलां मंत्री से मिले, अलां सांसद से मिले, इस विधायक से गलबहियां डाली। सोचा था, मैं भी अपने हब्बी की तस्वीर दिखाकर उसकी बोलती बंद कर दूंगी, लेकिन आपने तो सारे मनसूबे पर पानी फेर दिया।’

हां पापा..अगर आप बस एक..एक सेल्फी ले लेते तो क्या बिगड़ जाता। आप सोचिए, वह सेल्फी मेरा कितना रुतबा बढ़ा देती। जब मैं स्कूल जाती, तो सारी सहेलियां अदब से पेश आतीं। टीचर्स भी मुझे मेरी गलती पर डांट से पहले सौ बार सोचतीं कि इसके पापा की पीएम तक पहुंच है, कहीं मेरी शिकायत न करें। सोचिए..पापा..सोचिए, आपने सेल्फी न लेकर कितना कुछ खोया है।’ मेरी बेटी ने तमतमाते हुए कहा। अपने पर हो रहे हमलों से मेरा बीपी हाई हो गया, मैं चिल्लाया, ‘बस..बहुत हो चुका..मुझे अब कोई ज्ञान न दे। मुझे जो उचित लगा, मैंने किया। समझे आप लोग।’ मेरी बात सुनकर घरैतिन मुंह बनाती हुई किचन में चली गईं। बच्चे भी उदास मन से बैठकर पढ़ाई करने लगे।

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Ashok Mishra Resident Editor daily new bright star ,Ashok Mishraपरिचय -:

अशोक मिश्र

वरिष्ठ पत्रकार व् लेखक

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