पारुल रस्तोगी की पांच कविताएँ

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पारुल रस्तोगी की पांच कविताएँ

 शिव कुमार झा टिल्लू की टिप्पणी : सुश्री पारुल रस्तोगी प्रकृतिवादी कवयित्री हैं परन्तु अतिवादी नहीं . इनकी रचनाओं में प्रवाह सुगम हैं, अर्थात क्रांति की अनायास हिलकोरें दर्शित नहीं होती.  जीवन श्वेत पत्र और स्याही का सम्यक सम्मिलन होता  है जहाँ रहस्यों के साथ सद्गमनीय वातावरण में शनैः -शनैः प्रवाह होनी चाहिए . यथार्थ ही है शीघ्र जाज्वल्यमान होने वाले भौतिक या जैविक तत्वों की गति उस रसायन की तरह होती है , जिसका तत्क्षण अस्तित्व ही विलीन हो जाता है.इन्ही दर्शन पर आधारित  इनकी काव्यों में काफी सम्भावनाएँ हैं .कारणतः यहाँ   परिपक्वता की अलख परम्परावादी तो है , परन्तु वर्तमान लेखन में थोड़ा अनोखा भी . अतिउत्साहित सबल और सम्बल से युक्त मानव को   लक्ष्मण रेखा नहीं लांघने का ये हिमायत करती हैं , जो इनकी सर्वश्रेष्ठ काव्य अभिव्यंजना मानी जाय …
.लहरें सागर को चिढ़ाते हुए भागती हैं
पर सागर रूठता नहीं
उसे पता है
लहर का अस्तित्व
उसके बिना कुछ है ही नहीं……निष्कर्षतः यदि ये देशकाल की वर्तमान दशा पर तल्लीन होकर अपनी लेखनी को निर्बाध गति प्रदान करें तो ऐसा विश्वास किया जा सकता है की इनकी रचनाएं भविष्य में कालजयी प्रमाणित होंगी ..शेष अस्तु ….

( टिप्पणीकार , शिव कुमार झा टिल्लू , जमशेदपुर )

1- ‘जीवन…एक कथा’

श्वेत पत्र
और
श्याम सी स्याही,
एक अद्भुत अलौकिक मिलन।
कुछ बूँदें आँसुओं की
घुलती, महकती
हँसाती, रुलाती
कोरे पन्नों पर इठलाती
कभी चाहे-अनचाहे लम्हों से
चेहरे की लकीरें बढ़ाती।
आँसुओं की चादर
और आशाओं की लोरी
इन्हीं कुछ शब्दों पर निर्भर हो जाती।
यद्यपि, ये शब्द अमर हैं सदियों से
परंतु,
हर मोड़ पर एक नया अहसास कराती।
यूँ तो असंभव है इन शब्दों का बदलना
पर हर पल एक चमत्कार का
भ्रम ह्रदय में फैलाती।
हर पृष्ठ, हर अक्षर,
न जानें कितनों की परछाईं खुद में दिखलाती
अनसुलझी, अनसुनी, अनमनी सी व्यथा है।
ये जीवन कुछ नहीं
एक कथा है…

2- ‘होना…न होना’

कभी लगता है
तुम्हारा होना
क्या सच में था?
या मात्र एक जादुई स्वप्न!
बंद आँखों में
तुम इतने पास थे
मानों सागर की लहरें
और लहरों का सागर…
लहरें सागर को चिढ़ाते हुए भागती हैं
पर सागर रूठता नहीं
उसे पता है
लहर का अस्तित्व
उसके बिना कुछ है ही नहीं
वो आएगी
वो वापस आएगी
प्रेम में आलिंगनबद्ध होकर
फिर से लाड़ जताएगी।
तुम भी तो सागर थे
और मैं एक शरारती लहर…
फिर क्यों मेरे वापस आने से पहले ही
तुम मुँह फेर चुके थे?
एक नयी लहर
तुमसे अठखेलियाँ कर रही थी
और मैं?
छटपटाती हुई
कराहती हुई
खुद को किनारों पर पटक कर
ख़ुदकुशी कर रही थी
मेरे पास दूसरा सागर जो नहीं था…

3- ‘ठहराव’

ठहरा पानी
ठहरा बादल
ठहरी धरती
ठहरा मौसम
ठहरा मन
ठहरी पवन
ठहरा सूरज
ठहरी लहरें
ठहरा पतझड़
ठहरा बसंत
ठहरा बचपन
ठहरा यौवन
ठहरी ज़िन्दगी
ठहरी किस्मत
किसी के काम नहीं आती।
बहने दो
ज़िन्दगी, शब्द
और आँसुओं को भी…

4- ‘यादें’

यादों का मोल नहीं लगाया जा सकता
अक्सर यही सुना था।
फिर क्यों
स्त्री के मरणोपरांत
घर में बची उसकी आखिरी निशानियाँ,
वो लाल चुनरी,
सहेज कर रखी गयी यादों की पोटलियाँ,
उनकी प्रिय बूटे वाली साड़ी,
उनके बिस्तर,
हर नए वर्ष के साथ बढ़ता
किसी बक्से में रखा सामान
बाहर फेंकने में हाथ नहीं काँपते?
और वो सोने के कुण्डल?
वो चाँदी की पायलें?
वो गले का हार?
वो भी क्यों नहीं फेंक देते?
कँहीँ सुना था, कि
यादें अनमोल होती हैं।
पर क्या सच में होती हैं ?

5- ‘मीरा’

मनन करूँ अविकल होकर
हे श्याम मेरे कब आओगे!
कान्हा तुमसे क्या है छुपा
कब तक मुझको तड़पाओगे?
ये विरह की बेला है मुश्किल
है अधीर ह्रदय इस आस में
चौखट पर लगे ये चक्षु मेरे
बोलो अब तुम कब आओगे?
हूँ विरह वेदना की मारी
हूँ तेरे जग की दुखियारी
हे कृष्ण सुनो मेरी भी व्यथा!
मुझे दुःख देकर क्या पाओगे?
तानों का क्या, मैं सुन लूँगी
काँटों का क्या, मैं चुन लूँगी
दिन रात तुम्हें मैं गुन लूँगी
कान्हा बस कह दो आओगे।

parul rastogi,poem of parul rastogi ,poet parul rastogiपरिचय- :
पारुल रस्तोगी
कवियित्री, लेखिका, अनुवादिका, समीक्षक व् गायिका

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले की 23 वर्षीय एक उभरती हुई कवियित्री, लेखिका, अनुवादिका, समीक्षक व् गायिका हैं। इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक, संगीत में प्रभाकर व् अनुवाद में डिप्लोमा प्राप्त किया है।

इन्होंने लगभग 2 वर्ष पहले लेखन कार्य शुरू किया और अभी तक 14 अंतर्राष्ट्रीय काव्य-संग्रहों में इनकी हिन्दी व् अंग्रेजी कवितायेँ प्रकाशित हो चुकी हैं

 2 उपन्यासों का अनुवाद व् 1 हिन्दी काव्य-संग्रह का सम्पादन भी इनके द्वारा किया गया है। आगमन संस्था द्वारा इन्हें ‘आगमन युवा प्रतिभा सम्मान2014’ से भी अलंकृत किया गया है। इनकी कविताएं अधिकाँशतः मानव जीवन व् प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों पर आधारित होती हैं।

संपर्क- : parul.rastogi10@gmail.com

6 COMMENTS

  1. बहुत सुंदर, सभी कविताएँ भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी हैं। कविता”होना न होना” हृदय को स्पर्श कर गयी।

  2. शानदार कविताएँ हैं सभी ,किसी एक तारीफ मुश्किल हैं पर फिर भी मीरा सबसे उम्दा हैं !

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