कविताएँ
इस कठिन समय में
जब यहाँ समाज के शब्दकोश से
विश्वास, रिश्ते, संवेदनाएँ
और प्रेम नाम के तमाम शब्दों को
मिटा दिये जाने की मुहिम जोरों पर है
तुम्हारे प्रति
मैं बड़े संदेह की स्थिति में हूँ
कि आखिर तुम अपनी हर बात
अपना हर पक्ष
मेरे सामने इतनी सरलता
और सहजता के साथ कैसे रखती हो
हर रिश्ते को निश्छलता के साथ जीती
इतनी संवेदनाएँ कहाँ से लाती हो तुम
बार-बार उठता है यह प्रश्न मन में
क्या और भी तुम्हारे जैसे लोग
अब भी शेष हैं इस दुनिया में
देखकर तुम्हें
थोड़ा आशान्वित होता हूँ
खिलाफ मौसम के बावजूद
तुम्हारे प्रेम में
कभी उदास नहीं होता हूँ!
●इस दौर में!
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खोखले होते जा रहें
सभी रिश्तों के बीच
भरी जा रही है
कृत्रिम संवेदनाएँ०
वक्त के
इस कठिन दौर में
आसान नहीं है करना
पहचान अपनों की०
अपने ही
रच रहें है
अपनों की हत्या
कि तमाम साजिशें०
वक्त के
इस कठिन दौर में
मुश्किल है
दो कदम साथ चलना
दो रातें साथ गुजारना
दो बातें प्रेम की करना०
●नास्तिक!
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जनता के लिए
जनता की तरफ से
जनता के पक्ष में०
जब मैनें लिखा
ईश्वर एक मिथ्या है
धर्म एक साजिश
खारिज किया
आडम्बरों को
वाहयात नियमों को
खंडित किया
वेद,पुराण और ग्रंथों के
अनर्गल आदर्शों को०
भयभीत हुए
धर्म के तमाम ठेकेदार
डगमगायी सत्ता
बुद्धिजीवियों ने कहा
मुझे नास्तिक०
और फिर
सत्ता की कलम से
रचा गया
मेरी हत्या का एक
धार्मिक षड्यंत्र०
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परिचयः
परितोष कुमार ‘पीयूष’
कवि व् लेखक
रचनाएँ-
विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं,ब्लागों,ई-पत्रिकाओं एवं साझा काव्य-संकलनों में कविताएँ प्रकाशित।
संप्रति- अध्ययन एवं स्वतंत्र लेखन।
संपर्क -: मो०-7870786842,7310941575 , ईमेल- piyuparitosh@gmail.com , पता- 【s/o स्व० डा० उमेश चन्द्र चौरसिया(अधिवक्ता) मुहल्ला- मुंगरौड़ा पोस्ट- जमालपुर पिन- 811214, जिला मुंगेर(बिहार)】