पंखुरी सिन्हा की कविताएँ

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पंखुरी सिन्हा की कविताएँ

 1.हरश्रृंगार

कथा तो उतनी ही, हरश्रृंगार जितनी ही थी
यानि दिन के घंटो की
यानि तबसे
जब सुबह एक दम दिव्य थी
हर कुछ की शुरुआत का सन्देश लिए
पूरा खिलकर अभी अभी झर ही रहा था
हरश्रृंगार
सेज लेकिन बिछ चुकी थी
सूख चुकी थी घास पर की ओस
पर घास में ठंढक थी
रात की बात थी अब भी हवा की ठंढक में
रात की नमी
सूरज अभी गरमाता ही था
इतनी तपिश थी
उनकी बातों में
इतनी खराश
जो दिख रही थी
हर कहीं पेड़ों के लुप्त होने में
इतनी खराश
कि उसने सोख ली थी
मेरी आँखों की मुस्कराहट
दिन भर के लिए
जो लौटी थी केवल
शाम ही की नमी के साथ
दिन के तमाम घंटों का बही खाता खोले
जिसमे लिखा नहीं था
हर श्रृंगार के फूलने का हिसाब
न कोई राज़ उसके
न माप न तोल
न मिजाज़ उसके
बस घंटे दिखें
कि पुष्ट हो गयी हैं
कलियाँ उसकी
मांसल
यौवन उनका
क्या जादू रहा
इन घंटो में
हवा पानी धूप का
कैसे संचित करती है मिटटी
सारा प्यार
सारी नमी
हमारे लिए
जो ख़त्म हो जायेगा आज रात
ये न वो माजरा है
न नज़ारा……………..

2.राजनीति  का केंद्र और पेड़

पेड़ तो हमेशा से राजनीती का केंद्र रहे हैं
बगीचों में तो हत्याएं तक होती रही हैं
और भी कुकर्म
घर के पास का भी
एक भी फल का पेड़
राजनीती का केंद्र रहा है
घर के भीतर का तेज़पत्ता
आँगन की तुलसी भी
राजनीती का केंद्र रही है
और फलों पर बवाल के बाद
अब फूल के पेड़ भी राजनैतिक अखाड़े हैं
और पूजा के लिए फूल चुनना, चुराना
लगभग एक बात
न उसकी मर्ज़ी का इंतज़ार करते हैं लोग
न प्रकृति की मर्ज़ी का……………….

3.पुरवैया पछया जैसी हवा

वह पुरवैया, पछया जैसी हवा नहीं थी
जो उडा ले गयी आज हरश्रृंगार की बिछी हुई सेज को
उसके नीचे के ज़रा से
पर जघन्य घमासान के बाद
और यो तो आँधी में उड़ते हैं हज़ार पत्ते
फूलों का उड़ना और ठीक इस वक़्त की आंधी
क्योंकि फूलों के पेड़ों में अकेला है हरश्रृंगार
जो अपने पूरे यौवन में झड़ता है
मुरझाकर नहीं
मानो ईश्वर की सज्जा को प्रकृति दत्त
पर जो उडा ले गयी
उसे हवा आज
वह जानी चीन्हि नहीं थी…………

4.पितृ सत्ता–1

जैसे बहुत उम्र दर महिलाएं
बहुत खेली खायी महिलाएं
बताएं
रिश्ते जुड़वाने
निभवाने के किस्से
उनकी स्थितियाँ और शर्तें
कुछ उन्हें बनाने के भी किस्से
और किस्से उन महिलाओं के
जिनके पतियों ने उन्हें छोड़ दिया हो
और इन छोड़ दी गयी महिलाओं की बातें कहते
उनकी जिह्वा घूम जाये कुछ इस तरह
मानो आसमान का सारा लाल भी
सिन्दूर ही का हो
मानो कुछ चमत्कारी अदृश्य शक्तियाँ
आ गयी हों
सिन्दूर में
और वो बताएं उसके किस्से
उस लड़की को
जिसकी पहचान ही बन गयी है
शादी की बीतती उम्र
बस यों ही कहा जाता है
चलती भाषा में
और कोई भी पर्याय नहीं हो इसका
और चलता नहीं किया जा सकता हो
इस बात को
जबकि रिश्तों और ज़िन्दगी ही के
चलने के तमाम नियम बना  रही हों
सिन्दूर धारी महिलाएं………….

पितृसत्ता —2

अब मत जाना, वहां विदेश
कहना उनका ऐसे
जैसे लोग पहले कहते थे
ससुराल में सताई गई अपनी बेटियों से
कि लाख फूल सी हो तुम
क्या किया उन्होंने तुम्हारे साथ
कैसा बेरंग भेजा
कैसा बेदम भेजा
खासकर बहुत खूबसूरत
और गुणी लड़कियों के साथ
कई बार ऐसा हो जाता है
कहते, कि लाख  खूबसूरत हो तुम
पर हमें उससे क्या?
लाख गुणवान भी
पर हमें उससे क्या?
फिर इस जवाब तलब में
और मुमकिन है
बिना इस कुछ के प्रत्यक्षतः कहे ही
बिना आरोपों के आदान प्रदान के
बिना नाराज़गियों की अभिव्यक्ति के
बिना उन सब बातों के फरिऔते के
जो असल बातें थीं
या मुमकिन है
बेकार की बातें हों
लोगों की बनाई हुईं
पति पत्नी का कोई झड़गा न हो
झगड़े सब आपसी हों
बाहरी भी
पर बस ये कह देना
कि न बसती हो
तो न बसे ज़िन्दगी उसकी
पर बिटिया हमारी लाड़ली है
नाज़ों से पाली है
और हमारी अपनी आन बान शान निराली है
बिटिया को अब हम नहीं भेजेंगे
मत जाना
और ये ठीक उसका विलोम है
कि चाहे जितनी भी परेशानी हो झेलो
सहो, वहीँ रहो
आखिर क्यों है
लड़कियों के रहने, सहने, रहन सहन पर
आदेश, निर्देश की ऐसी राजनीती?

pankhudi sinha, poet pankhudi sinha ,poem of pankhudi sinhaपरिचय
पंखुरी सिन्हा
शिक्षा – : एम ए, इतिहास, सनी बफैलो, 2008 ,पी जी डिप्लोमा, पत्रकारिता, S.I.J.C. पुणे, 1998,  बी ए, हानर्स, इतिहास, इन्द्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, 1996

अध्यवसाय–: BITV, और ‘The Pioneer’ में इंटर्नशिप, 1997-98 ,FTII में समाचार वाचन की ट्रेनिंग, 1997-98 ,राष्ट्रीय सहारा टीवी में पत्रकारिता, 1998—2000

प्रकाशन– : हंस, वागर्थ, पहल, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कथाक्रम, वसुधा, साक्षात्कार, बया, मंतव्य, आउटलुक, अकार, अभिव्यक्ति, जनज्वार, अक्षरौटी, युग ज़माना, बेला, समयमान, अनुनाद, सिताब दियारा, पहली बार, पुरवाई, लन्दन, पुरवाई भारत, लोकतंत्र दर्पण, सृजनगाथा, विचार मीमांसा, रविवार, सादर ब्लोगस्ते, हस्तक्षेप, दिव्य नर्मदा, शिक्षा व धरम संस्कृति, उत्तर केसरी, इनफार्मेशन2 मीडिया, रंगकृति, हमज़बान, अपनी माटी, लिखो यहाँ वहां, बाबूजी का भारत मित्र, जयकृष्णराय तुषार. ब्लागस्पाट. कॉम, चिंगारी ग्रामीण विकास केंद्र, हिंदी चेतना, नई इबारत, सारा सच, साहित्य रागिनी, साहित्य दर्पण आदि पत्र पत्रिकाओं में, रचनायें प्रकाशित, दैनिक भास्कर पटना में कवितायेँ एवं निबंध, हिंदुस्तान पटना में कविता एवं निबंध,
हिंदिनी, हाशिये पर, हहाकार, कलम की शान, समास, गुफ्तगू, पत्रिका आदि ब्लौग्स व वेब पत्रिकाओं में, कवितायेँ तथा कहानियां, प्रतीक्षित
किताबें – ‘कोई भी दिन’ , कहानी संग्रह, ज्ञानपीठ, 2006
‘क़िस्सा-ए-कोहिनूर’, कहानी संग्रह, ज्ञानपीठ, 2008
‘प्रिजन टॉकीज़’, अंग्रेज़ी में पहला कविता संग्रह, एक्सिलीब्रीस, इंडियाना, 2013
‘डिअर सुज़ाना’ अंग्रेज़ी में दूसरा कविता संग्रह, एक्सिलीब्रीस, इंडियाना, 2014
श्री पवन जैन द्वारा सम्पादित शीघ्र प्रकाश्य काव्य संग्रह ‘काव्य शाला’ में कवितायेँ सम्मिलित
श्री हिमांशु जोशी द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘प्रतिनिधि आप्रवासी कहानियाँ’, संकलन में कहानी सम्मिलित

पुरस्कार- :   राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड 2013

पहले कहानी संग्रह, ‘कोई भी दिन’ , को 2007 का चित्रा कुमार शैलेश मटियानी सम्मान ,’कोबरा: गॉड ऐट मर्सी’, डाक्यूमेंट्री का स्क्रिप्ट लेखन, जिसे 1998-99 के यू जी सी, फिल्म महोत्सव में, सर्व श्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला

—‘एक नया मौन, एक नया उद्घोष’, कविता पर,1995 का गिरिजा कुमार माथुर स्मृति पुरस्कार,
—–1993 में, CBSE बोर्ड, कक्षा बारहवीं में, हिंदी में सर्वोच्च अंक पाने के लिए, भारत गौरव सम्मान

अनुवाद– : कवितायेँ मराठी में अनूदित, कहानी संग्रह के मराठी अनुवाद का कार्य आरम्भ, उदयन वाजपेयी द्वारा रतन थियम के साक्षात्कार का अनुवाद,

सम्प्रति- : 
पत्रकारिता सम्बन्धी कई किताबों पर काम, माइग्रेशन और स्टूडेंट पॉलिटिक्स को लेकर, ‘ऑन एस्पियोनाज़’,
एक किताब एक लाटरी स्कैम को लेकर, कैनाडा में स्पेनिश नाइजीरियन लाटरी स्कैम,
और एक किताब एकेडेमिया की इमीग्रेशन राजनीती को लेकर, ‘एकेडेमियाज़ वार ऑफ़ इमीग्रेशन’

संपर्क- : A-204, Prakriti Apartments, Sector 6, Plot no 26, Dwarka, New Delhi 110075 , ईमेल—-nilirag18@gmail.com

4 COMMENTS

  1. sorry, I meant empathize with, others don’t empathize with an individual’s trial, even as many others are going through it. As poets, we have to speak of such moments, situations and ordeals. Its very common.

  2. Dear Pankhuri ji

    Thanks for inviting me to read yours, beautiful poems, i have nothing to say about yoru writing as you are already a famous personality in the field of writing!

    that’s it!

    • Thanks Alok ji, but if you are telling me that the poems are not good, I will not buy that argument, sometimes we have to go solo. Sometimes we go through a very intense experience, which others do not emphasize with, and do not like what we have to say. A poet must persevere. That’s me, what about the other millions of women who are tortured by patriarchy and patriarchal thoughts?

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