ऐसों पर तो खुदा की लानत…

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– तनवीर जाफरी   –

unnamed (1)कुख्यात आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस)को इराक तथा सीरिया के बड़े इलाके पर नियंत्रण किए हुए एक वर्ष बीत चुका है। इस दौरान स्वयं को मुसलमान बताने वाले आईएस के लड़ाकों ने अपने कथित स्वयंभू खलीफा अबु बकर अल बगदादी के नेतृत्व में आतंक,क्रूरता तथा वहशीपन का वह इतिहास रचा है जिसने दुनिया के अब तक के आतंकवाद के सभी कीर्तिमानों को ध्वस्त कर दिया है। स्वयं को मुसलमान बताने वाले तथा अपनी विचारधारा के अतिरिक्त अन्य समस्त विचारधारा के लोगों को जहन्नुमी या नर्क भोगने का अधिकारी बताने वाले इन राक्षसों ने कत्लोगारत,अपहरण,फिरौती,बलात्कार तथा सामूहिक बलात्कार जैसे कई ऐसे घिनौने कार्य अंजाम दिए हैं व देते जा रहे हैं जिनका इस्लाम अथवा इंसानियत से दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं है। परंतु एक सोची-समझी अंतर्राष्ट्रीय साजि़श के तहत आईएस के आतंकी अपनी ताकत व पैसे के बल पर न केवल आए दिन आतंक का नया से नया घिनौना अपराध करते जा रहे हैं बल्कि भय व दहशत फैलाने की रणनीति को अपनी सफलता का मुख्य हथियार समझते हुए ऐसी कई दहशतनाक घटनाओं के वीडियो अथवा उनके चित्र भी विभिन्न माध्यमों के द्वारा सार्वजनिक कर रहे हैं।

इस्लाम में रमज़ान के महीने को इस्लामी कैलेंडर के अन्य सभी महीनों की तुलना में सबसे पवित्र महीना माना जाता है। रमज़ान माह की पवित्रता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस्लाम का सबसे पवित्र व प्रमुख ग्रंथ अर्थात् कुरान शरीफ इसी रमज़ान के महीने में अवतरित हुआ था। परंतु मानवता के दुश्मन इन स्वयंभू मुसलमानों ने इस पवित्र महीने को भी अपनी वहशियाना सोच का शिकार बनाने से नहीं बख्शा। आईएस के लड़ाकों ने उत्तरी सीरिया के हंसाका क्षेत्र में पोस्टर तथा अन्य विज्ञापनों के माध्यम से यह अपील जारी की है कि रमज़ान के महीने में पूरा कुरान शरीफ याद करने वाले व्यक्ति को संभोग करने के लिए एक-एक यज़ीदी लडक़ी तोहफे के तौर पर दी जाएगी। इन चरमपंथियों ने कुरान शरीफ की तिलावत करने हेतु एक सात दिवसीय प्रतियोगिता आयोजित की जिसका समापन गत् 27 जून को हुआ। इसके अतिरिक्त कुरान की कुछ आयतों को कंठस्थ करने के बदले में एक लाख सीरियाई मुद्रा इनाम में देने की भी घोषणा की गई। अपने विज्ञापन में आईएस के लिए लडऩे वाले लड़ाकों को कथित ‘जेहाद’ में शामिल होने के लिए बधाई भी दी गई। गौरतलब है कि आई एस ने इराक के अल्पसंख्यक यज़ीदी समुदाय की सैकड़ों लड़कियों का अपहरण कर उन्हें अपनी कैद में रखा हुआ है। सोचने का विषय है कि जिस इस्लाम में महिलाओं को बेपर्दा देखने तक की मर्दों को इजाज़त न हो उस इस्लाम के स्वयं को पैरोकार कहने वाले आतंकी, मज़लूम व निहत्थी लड़कियों का अपहरण कर उन्हें बलात्कार करने हेतु कुरान के हािफज़ों को देने की घोषणा करें, इसे आिखर कौन सा इस्लाम अथवा इन्हें कैसा मुसलमान कहा जा सकता है? निश्चित रूप से ऐसे जहन्नुमी स्वयंभू मुसलमानों पर तो खुदा की लानत बरसनी चाहिए।

आईएस तथा आईएस की विचारधारा का समर्थन करने वाले ऐसी ही राक्षसी प्रवृति के चरमपंथियों ने इसी रमज़ान के महीने में फ्रांस,टयूनिशिया तथा कुवैत में हुए अलग-अलग हमलों में 70 बेगुनाह लोगों की हत्या कर डाली। कुवैत में शिया समुदाय की एक मस्जिद में एक आत्मघाती हमलावर द्वारा स्वयं को विस्फोट से उड़ा लिया गया जिसके परिणामस्वरूप मस्जिद में मौजूद शिया समुदाय के 25 रोज़दार शहीद हो गए। क्या रमज़ान जैसे पवित्र महीने में मस्जिद जैसे पवित्र स्थल में रोज़ा रखकर नमाज़ अदा करने वालों को इस प्रकार आत्मघाती हमलों में मारना किसी इस्लामी शिक्षा का अंग माना जा सकता है? रमज़ान के महीने में मुसलमानों को हिंसा से दूर रहने की ही नहीं बल्कि अपने मन में हिंसक विचार लाने से भी तौबा करने की हिदायत दी गई है। परंतु यह चरमपंथी कदम-कदम पर इस्लामी शिक्षाओं की अवहेलना व निरादर करते हुए स्वयं को सच्चा मुसलमान बता कर दुनिया में इस्लाम व मुसलमानों की छवि को चौपट करने पर तुले हुए हैं। आतंक व क्रूरता का पर्याय बन चुके यह चरमपंथी इस्लाम धर्म के पैगंबरों,इमामों तथा कई सम्मानित पीरों व फकीरों के ऐतिहासिक स्मारक व उनसे संबद्ध मकबरों व दरगाहों को भी ध्वस्त करने जैसा दु:स्साहस कर चुके हैं। उनके ऐसे गैर इस्लामी दु:स्साहसिक कार्यों से हालांकि यह पता चल जाता है कि वास्तव में यह लोग इस्लाम के किस वर्ग और किस विचारधारा से संबंध रखते हैं?

एक अनुमान के मुताबिक़ आईएस के लड़ाकों की संख्या एक लाख के लगभग बताई जाunnamed रही है। इनमें 50 हज़ार से अधिक सीरियाई लड़ाके तथा 30 हज़ार से अधिक इराकी लड़ाके शामिल हैं। शेष लड़ाके दूसरे देशों के हैं। इराकी लड़ाकों में मुख्य रूप से सद्दाम हुसैन की बाथ पार्टी के वह सैनिक बताए जा रहे हैं जो सद्दाम हुसैन के शासन की समाप्ति के बाद बेरोज़गार हो गए थे। सूत्रों के अनुसार आईएस अपने लड़ाकों को 400 डॉलर प्रतिमाह दे रहा है। जबकि विवाह करने वाले अपने लड़ाकों को 150 डॉलर प्रतिदिन,विवाह के लिए अनुदान,एक मकान,फरनीचर तथा 1200 डॉलर प्रतिमाह तन्ख्वाह के रूप में देता है। आईएस की आय का मुख्य स्त्रोत सीरिया व इराक के अपने नियंत्रण के इलाकों के तेल स्त्रोतों से निकलने वाला तेल तथा इसे बेचकर हासिल होने वाला पैसा है। आईएस का मुख्य उद्देश्य यही है कि वह अपनी क्रूरता,भय व आतंक के बल पर पूरे मध्य पूर्व,उत्तरी अफ्रीका तथा पश्चिमी एशिया सहित यूरोप के कई क्षेत्रों में अपनी सत्ता का विस्तार करे तथा आगे चलकर पूरे विश्व में अपना नियंत्रण स्थापित कर सके। हालांकि आईएस के आतंक का स्थानीय स्तर पर विरोध भी शुरु हो चुका है। सीरिया में जैश-अल इस्लाम नामक एक अन्य आतंकी संगठन अपने 25000 लड़ाकों के साथ टैंकों व अन्य सैन्य हथियारों से लैसे होकर आईएस की हिंसा का जवाब उन्हीें की भाषा में देने लगा है। पिछले दिनों जैश-अल इस्लाम के लड़ाकों द्वारा आईएस के 13 लड़ाकों की सार्वजनिक रूप से हत्या किए जाने का वीडियो जारी किया गया।

परंतु एक आतंक को समाप्त करने के लिए दूसरे आतंक पर निर्भर करना भी मुनासिब नहीं है। यहां बात सिर्फ आईएस उसके सरगऩा बगदादी अथवा सीरिया या इराक की ही नहीं बल्कि बात इस्लाम,मुस्लिम जगत तथा मानवता की रक्षा से जुड़ी हुई है। विश्व का किसी भी मुस्लिम वर्ग से संबंध रखने वाला व्यक्ति जोकि आईएस की कू्ररतापूर्ण विचारधारा के प्रति अपनी कोई हमदर्दी या पूर्वाग्रह न रखता हो तथा हज़रत मोहम्मद व इस्लाम धर्म के अन्य नबियों व इमामों की शिक्षाओं को इस्लाम का स्तंभ अथवा इस्लाम के लिए प्रेरणा का स्त्रोत समझता हो वह कभी भी आईएस या इन जैसे दूसरे मानवता के दुश्मन चरमपंथी लोगों को मुसलमान अथवा इस्लामपरस्त तो क्या इंसान की श्रेणी में भी नहीं गिन सकता। इस्लाम धर्म के सभी वर्गों के सभी उलेमाओं को बिना समय गंवाए हुए एकजुट हो जाना चाहिए तथा ऐसी गैर इस्लामी व गैर इंसानी हरकतें करने वाले आतंकियों के विरुद्ध फतवे जारी कर उन्हें गैर मुस्लिम करार देना चाहिए। इतना ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी मुस्लिम देशों को अपने धन व बल के साथ एकजुट होकर इनकी सैन्य शक्ति का जवाब मुस्लिम जगत की संयुक्त सैन्य शक्ति के साथ देना चाहिए। इतना ही नहीं बल्कि यदि दुनिया का कोई इस्लामी देश इन राक्षसों की हमदर्दी में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खड़ा दिखाई दे तथा उसके प्रमाण मिल रहे हों तो उस देश को भी इस्लामी देशों के संगठन से बेइज़्ज़त कर बाहर का रास्ता दिखाए जाने की ज़रूरत है। यदि तत्काल ऐसे उपाय नहीं अपनाए गए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि इस्लाम विरोधी साजि़शें रचने वालों की मुंह मांगी मुरादें यह आतंकी लोग जल्द ही पूरी कर देंगे। और मुस्लिम जगत मजबूर व असहाय होकर अपने धर्म,विश्वास व आस्था को बदनाम व रुसवा होता देखता रह जाएगा। ज़रूरत है पूरी दुनिया के मुसलमानों द्वारा ऐसे चरमपंथियों पर सामूहिक रूप से खुदा की लानत भेजने की।

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Tanveer-Jafri-तनवीर-जाफरीAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

Email – : tanveerjafriamb@gmail.com –  phones :  098962-19228 0171-2535628
1622/11, Mahavir Nagar AmbalaCity. 134002 Haryana

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