महिला शोषण का नया हथियार – सास-ससुर की प्रोपर्टी से माहिलाओं को वंचित करना

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sonali-bosearticle-of-sonali-bose-sonali-bose-sub-editor-invc-news-sub-editor-invc-new-सोनाली बोस –

महिलाओं के हित और अहित में बहुत सारी दलीलें आती रहती हैं और न्यायपालिका भी आये दिन कोई ना कोई  फैसले करते ही रहती हैं | जब देश में महिलाओं पर अत्याचार की अति हो जाती है और जब महिलाएं अपने हक़ के लिये सड़क से लेकर संसद तक हिला देती हैं, तब सरकार कोई आर्डिनेंस पास करके महिलाओं के लिये कोई नया क़ानून बना कर कुछ वक़्त के लिए सब शांत कर देती है और फिर सभी अपने पुराने रूटीन ढर्रे वाले काम पर सरकार से लेकर आम इंसान तक लौट आते हैं |

जब सड़क से लेकर संसद तक महिला हित के लिये क़ानून बना कर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की तैयारी कर रहा होता है तब किसी कोर्ट में किसी महिला के हक़ को कानूनी दाँव पेच में फंसा कर कोई क़ानून का जानकार महिलाओं के हक़ पर एक नया फैसला सुना कर क़ानून की किताबो में आने वक़्त के लिए महिलाओं के शोषण के लिये एक नया फैसला दर्ज करवा रहा होता है |

अभी हाल ही में दिल्ली में एक कोर्ट ने सास ससुर की सम्पत्ति पर बहु के हक़ पर हमेशा – हमेशा के लिये सवालिया निशान लगा दिया हैं “  दिल्ली की एक अदालत ने एक महिला को अपने सास-ससुर के मकान में रहने के अधिकार से वंचित कर दिया है। sonali-bosearticle-of-sonali-bose-sonali-bose-sub-editor-invc-news-sub-editor-invc-newअदालत ने कहा कि उसका अपने ससुर की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है।  मजिस्ट्रेट अदालत का आदेश निरस्त करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने महिला के ससुर की आेर से दायर अपील स्वीकार कर ली। अदालत ने कहा कि वह उस मकान में आवास के अधिकार का दावा करने की तभी  हकदार है जब यह संपत्ति उसके पति की हो या उसमें उसका हिस्सा हो। न्यायाधीश ने कहा कि इस तरह के निर्विवाद तथ्यों और आवेदक (महिला) के पति के पहले ही किराए पर मकान ले लेने, जिसमें वह आवास का अधिकार मांग सकती है, निचली अदालत का आदेश टिकने लायक नहीं है। उच्चतम न्यायालय के फैसले के आधार पर न्यायाधीश ने कहा कि पुत्रवधू का उस संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है जो उसके सास-ससुर की है और इस तरह की संपत्ति को साझा आवास नहीं माना जा सकता है। अदालत ने महिला के आवास के अधिकार के दावे पर नए सिरे से विचार करने के लिए मामला वापस मजिस्ट्रेट अदालत के पास भेज दिया और महिला और उसके सास-ससुर को निर्देश दिया कि वे मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष उपस्थित हों। अपील घरेलू हिंसा के मामले में निचली अदालत के आदेश के खिलाफ महिला के सास-ससुर ने दायर की थी। इसमें उन्हें निर्देश दिया गया था कि वे साझा आवास मानते हुए पुत्रबधु को मकान में फिर से आने की अनुमति दें  ”| अब आज इस देश में महिलाओं की स्तिथी कैसी है और किस दौर से गुजर रही है यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है |

एक लड़की जब शादी करके ,अपना घर ,माँ बाप ,भाई बहन सब कुछ छोड़ कर किसी अंजान आदमी का घर बसाने के लिए ,उसके लिये बच्चे पैदा करने , उससे बुरा –भला सुनने ,उसके और उसके माँ – बाप के तमाम काम करने के लिये आती है, तब ऐसा कैसा हो सकता है कि उसी एक बहु का अपने सास सुसर की किसी भी प्रोपर्टी पर कोई हक़ नहीं रहता है ? न्यायपालिका ने इस फैसले को देते वक़्त इस बात का जरा सा भी ख्याल नहीं रखा कि एक बहु सेवा तो सास सुसुर की करेगी ,बच्चे पैदा करके सास सुसर के खानदान को आगे बढ़ायेगी ,काम करेगी ,घर साफ़ करेगी, अगर नौकरी करती है तो कमाई भी लाकर सास –ससुर और पति के हाथ में थमायेगी पर जब अगर कल को सास ससुर का दिमाग बदल जाए तो प्रोपर्टी  के साथ साथ एक ही झटके में हर हक़ से एक दम से बेदखल हो जायेगी ?

इस देश में महिलाओं की अंक गणित के फेर को अगर बाहर कर दे, तो अभी भी अधिकतर मामलों में सास ससुर अपने मरने तक अपनी जायदाद अपने ही नाम रखते हैं ,बहुत सारे केसेस में तो हालत इससे भी बदतर हैं जब कोई पति अगर कोई बीमा पॉलिसी लेता है तो सबसे पहला नोमानी अपने माँ –बाप को बनाता है और उसके बाद अपनी औलाद को, यानी सास ससुर के साथ साथ पति भी बहुत सारे मामलो में पत्नी को बाहरी ही मानता है | अब सवाल यह उठता है कि अगर किसी बहु के पति का मन उससे भर जाए या सास ससुर का मन बहु को घर से निकालने का है तो सास – ससुर सबसे पहले अपनी जायदाद से महिला के पति यानी खुद के बेटे को बेदखल करेंगे फिर घर  से बाहर निकालने की प्लानिग करके महिला को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कोर्ट के उपरोक्त फैसले की एक कॉपी हाथ में थमा देंगे ताकि महिला किसी के पास किसी भी तरह की कानूनी मदद के लिये न जा सके |

किसी भी महिला के लिये यह समय सबसे मुश्किल होता है, तब न उसके सर पर उसके माँ बाप का साया होता है या अगर वो ज़िंदा हों तो महिला के माँ बाप अपनी उम्र के आखरी पड़ाव पर होते हैं बल्कि महिला के भाई बहन भी अपनी अपनी ज़िन्दगी में पूरी तरह से मसरूफ हो जाते हैं और साथ ही महिला की शारीरिक क्षमता भी ढलान पर होती है | अब जब  किसी महिला के पास खुद के परिवार की भी सपोर्ट नहीं है तब न्यायपालिका का यह फैसला महिलाओं के ऊपर एक और नई मुसीबत का सबब बन कर आया है |

हमारे देश में लगभग 70% महिलायें अपने पति और सास ससुर पर ही निर्भर रहती हैं | माँ – बाप ,भाई लड़की को विदा करते ही अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्ती का आभास कर बैठते हैं जिसका नतीजा यह होता है कि एक महिला को पति और सास ससुर अपने हिसाब से “ हांकते “  हैं , शादी के बाद एक महिला को अपने हिसाब से तोड़ते है मोड़ते हैं , और चलाते हैं | इन शब्दों को प्रमाणित करने के लिए मुझे या आपको किसी प्रमाण की कोई ज़रुरत नहीं , बस अपने आस – पास  के घरों के साथ – साथ खुद अपने घर में झाँकने मात्र की ज़रुरत हैं |

न्यायपालिका के किसी फैसले पर हमारे देश में किसी भी तरह की कोई राय रखने या चर्चा करने का कोई चलन नहीं हैं न ही खबरिया दुनिया के लोग इस तरह के फैसलों पर किसी भी तरह का कोई प्रोग्राम करने या लेख आदि लिखने के लिये आगे आते हैं | और अगर न्यायपालिका का कोई फैसला महिलाओं के खिलाफ हो तो फिर तो सवाल ही नहीं उठता है | महिलाओ पर  हज़ारो तरह की पाबंदियाँ लगाने के लिये सभी धर्म के आलाकमान और खाप पंचायते हमेशा किसी न किसी तरह की बयान बाज़ी ,भाषण बाज़ी और धरना प्रदर्शन तो करते नज़र आयेंगे पर इस तरह के फैसलों पर मौन धारण करके किसी कोने का रुख कर लेते हैं | क्या महिलाओं खिलाफ जो कुछ होता है उस पर आवाज़ उठाने के लिये इन सभी को खुल कर आगे नहीं आना चाहिये ? या फिर इन सभी के लिये बेटी और बहु में फर्क हैं ?

न्यायपालिका के साथ – साथ इस देश की संसद को भी चाहिये कि महिलाओं के लिये एक ऐसा क़ानून बनाया जाय जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि किसी भी महिला का शादी के बाद भविष्य सुरक्षित है साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी महिला को कभी भी ऐसे क़ानून और या न्यायपालिका के किसी फैसले की एवज़ में किसी भी तरह की मानसिक प्रताड़ना से न गुज़रना पड़े , ताकि महिलाओं का शोषण करने वाले वर्ग के हाथो में महिलाओं के शोषण का एक और नया हथियार न लग जाए |

sonali-bosearticle-of-sonali-bose-sonali-bose-sub-editor-invc-news-sub-editor-invc-newसोनाली बोस
उप – सम्पादक
इंटरनेशनल न्यूज़ एंड वियुज़ डॉट कॉम
व्
अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम

Sonali Bose
Sub – Editor
international News and Views.Com
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International News and Views Corporation

संपर्क –: sonali@invc.info & sonalibose09@gmail.com

18 COMMENTS

  1. Mere Chote bhai ki wife ne mere maa baap ko sirf 2 mahino mein mere maa baap ko police thano ke chakkar katwa diye. ladki ladke ke saath shaadi karti hai apne saas sasur ke ghar se nahi

  2. Apne bilkul sahi kaha mam.mere sath bhi same hua..meri saas aur pati ne mujhe ghar se nikal dia aur jhoote aarop lgaye. Saas ne kaha bete bahu se koi matlab nhi hai.ajkal sabko property se hi matlab hai bas.meri zindagi barbad kar di dono maa bete ne mil kar.mere parents ne bhi sab shadi mein lga dia.ab ye law mujhe btaye ki mein kahn jaun.mera to kahin koi haq nhi hai.court mein jane ke lie bhi mere pass paise nahi hai

  3. Pehli baat ye ki Jo lady hai wo apne pati ki kamai apne haath me rakhne ko chahti hai… To wo apni kamai saas sasur ko kaise de degi…. Aur agar deti bhi hai to kya is swarth ke liye deti hai ki kal ko us property pe Apna hak jma ske… Tum swarthy auraton ke aise vichar hi unko barbaadi ki taraf le Ja rhe hai… Is ghatiya soch ko badlo warna tum aur kutiya me koi different nahi hoga…

    • Aj ye insan auraton ko kutiya se compare kar rha hai.isi se iski soch ka pta chalta hai ki kitni ghatiya soch hai aur is comment ko duniya dekh rhi hai par kisi mein itni himmat nahi ki iske upar legal action le aur isko ganda bolne se roke.pehle to bolenge ki sab kuch hai aur shadi ke bad kuch bhi nahi..kya ye dhoka aur fraud nahi hai.

  4. आलोचना करना कोई सोनाली जी आपसे सीखे !! आलोचना के साथ साथ मुद्दे को उठाना फिर समाधान रखना भी कोई आपसे सीखे !! आप महिलावादी आलोचक बन गई हैं इस लेख के बाद ! आपके सभी लेख सच में धरा पर ला पटकते हैं !

  5. सोनाली जी की सोच , कलम को सलाम ! आपने जो सवाल उठाएं है सभी हिला देने वाले हैं ! आपको आलोचना के साथ साढ़ समाधान भी बताना आता हैं ! ज़िन्दगी अजाब सी लगती हैं आपका लेख पढ़ने के बाद !!!!

  6. चिंता का विषय हैं !! अब बेटी के साथ साथ बहनों की भी चिंता सताने लगी हैं !! आप सच में एक महिलावादी आलोचक हैं !!

  7. आह्ह ….चिंता सताने लगी हैं अब !! सवाल तो बनता ही हैं ! आपका आलेख पर्ने के बाद एक दम अपने आपको एक दम अकेला खडा पाया !! कब तक हैं बेगानी ही रहेंगी ?

  8. आपका आलेख …बहुत देर तक कुर्सी पर टिकाये रखता हैं ! बहुत देर तक सोचा ,सोचने के बाद लगा हैं क्या हैं ? बेटी ,पत्नी बहु माँ या किसी कोर्ट का फैसला मात्र ?

  9. आपकी कलम को सलाम इन खाप पंचायतो और बिकाऊ मीडिया कभी इस तरहा के फैसलों पर कोई सवाल क्यूँ नहीं उठाता ?अब मुझे भी अपनी बहन – बेतिओ की चिंता सताने लगी हैं !

  10. हालात बहुत ही खराब हैं महिलाओं के ! जो महिलाएं कामकाजी नहीं हैं उनके हालत तो और बाद-से-बदतर हैं ! इस फैसले के बाद तो मुसीबत और भी बाद गई हैं ! आपकी सोच के साथ साथ आपकी कलम को भी सलाम !!

  11. आपके लिखने जो सवाल उठाएं ,वह सभी सही हैं ,मुझे भी अब अपनी बेटिओं की चिंता सताने लगी हैं !

  12. आपका लेख सच में हिला देने वाला हैं सुबह – सुबह पढ़ने के बाद कुछ देर कोमा में जाने को मजबूर कर दिया ! क्या हम औरतो का कोई वजूद मौजूद नहीं इस धरा पर ?

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