नेताजी के प्रकरण और भारत सरकारे

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subhash chandra bose,– देवसिंह रावत –

नेताजी के प्रकरण पर जो नेहरू की सरकार ने किया वही मोदी सहित हर भारत सरकार को भी करना पड़ता, युद्ध अपराधी के रूप में नेताजी को नहीं सोंपने के लिए उडाई गयी हवाई दुर्घटना की खबरें, नेताजी गुमनामी में जीने के लिए हुए मजबूर

देश की आजादी व सम्मान के लिए आजाद हिंद फौज बना कर अंग्रेजों से सीधे जंग लड़ने वाले महानायक नेताजी सुभाष चंद बोस के प्रति भारतीय जनमानस की अपार श्रद्धा है। इसीलिए वे नेताजी की शान के खिलाफ एक शब्द भी सुनना सहन नहीं कर सकते। इन दिनों भारतीय खुफिया ब्यूरो यानी आईबी की अब तक गोपनीय फाइलों में से दो फाइलो को गोपनीय बंधन से हटा कर इन्हें दिल्ली के राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखा गया। इन दो फाइलों में अब तक दफन हुए रहस्य को जब एक पत्रिका ने उजागर किया तो लोगों में गहरा आक्रोश फैल गया। इसमें छन कर यह आयी कि भारत की तत्कालीन नेहरू सरकार , नेताजी व उनके परिजनों की हर गतिविधी पर नजर रखती थी। इसको यह प्रचारित किया गया कि नेता जी व उनके परिजनों की जासूसी नेहरू के कहने पर की गयी।
इन लोगों को इतिहास के उस कालखण्ड का भान नहीं रहा। दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति पर विजेता मित्र राष्ट्रों ने एक फरमान पूरे विश्व के लिए जारी किया था कि मित्र राष्ट्रों के खिलाफ जिन्होंने जंग लड़ी, वे संसार में कहीं भी मिले उनको गिरफ्तार करके उन पर अंतरराष्ट्रीय युद्ध अपराधी अदालत में विशेष मामला चलाया जायेगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी विजेता मित्र राष्ट्रों के अग्रणी देश यानी ब्रिट्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ा था और उनको जर्मन, जापान आदि शत्रु राष्ट्र का साथ देने का आरोप था। इस फरमान को मानने के लिए संसार के सभी देश मजबूर थे। कोई भी देश मित्र राष्ट्रों से दुश्मनी लेने की हिम्मत नहीं कर सकता था। मित्र राष्ट्रों ने अपने पराजित हुए विरोधी जर्मन व भविष्य में विरोधी हो सकने वाले उपनिवेशों भारत को स्वतंत्र करने से पहले टूकडों में विभक्त करके मित्र राष्ट्रों के समक्ष सर न उठाने के लिए देश को दो टूकडे करके यह कील ठोकी थी। मित्र राष्ट्रों के इस कुटिल षडयंत्र से अनजान लोग ही नेहरू व जिन्ना जैसे मोहरों को विभाजन के लिए जिम्मेदार मानते है। असल में यह विभाजन मित्र राष्ट्रों की यह रणनीति का ही हिस्सा था। अपनी इस रणनीति पर अमल करने के लिए मित्र राष्ट्रों के पास मोहरों के साथ सामरिक ताकत थी।

इसीलिए मित्र राष्ट्रों की विजय के बाद नेताजी को भूमिगत होना पडा। नेताजी को मित्र राष्ट्रों को एक युद्ध अपराधी के रूप में न सौंपना पडे इसलिए देश के तत्कालीन नेताओं ने बहुत ही सोच समझकर नेताजी की हवाई दुर्घटना में मौत की खबर उड़ाई। स्थिति को भांपते हुए व देश के सम्मान की रक्षा करने के लिए नेताजी ने भी भूमिगत हो कर गुमनामी में जीने को नियति मान कर स्वीकार किया। इसके साथ नेहरू जी सहित देश के तमाम प्रधानमंत्री को नेताजी प्रकरण की असलियत का भान है। परन्तु सभी देश के सम्मान के लिए यानी विश्व संधि से बंधे होने के कारण इस राज को अपने सीने में दफन करने के लिए मजबूर है। इस राज को उजागर करके राष्ट्र को विश्व समुदाय के आगे गुनाहगार नहीं बनाना चाहता।

जहां तक यह पूरा प्रकरण नेहरू सरकार ने देशहित में किया। अगर नेहरू के बजाय मोदी या कोई भी देशभक्त सरकार रहती तो वह यही करती जो नेहरू की सरकार ने किया। आईबी की गोपनीय फाइलों से उजागर हुए तथ्यों को नासमझी से नेहरू द्वारा नेताजी व उनके परिवार की जासूसी कराने का विवाद खड़ा करने वालों को इस बात का भान होना चाहिए कि नेताजी देश के हृदय सम्राट है। वह व उनका परिवार राष्ट्र के गौरव है। उनकी सुध रखना प्रत्येक सरकार का प्रथम दायित्व बनता है। अगर सीआईए, ब्रिट्रेन आदि मित्र राष्ट्रों की खूंखार ऐजेन्सियां उनको अपहरण करती या हानि पंहुचाने का प्रयास करती तो उसको कौन विफल करता। यह तथ्य भले ही सार्वजनिक ना भी हो या सरकारें इस बात को ना भी स्वीकार करें तो भी यह समझा जाता है कि नेताजी देश की सरकार की उच्च गोपनीय सुरक्षा के बीच गुमनामी जीवन जी रहे थे। नेहरू जी के अंतिम संस्कार के समय नेताजी के होने व गुमनामी बाबा के रूप में नेताजी के रहने की जो चर्चायें हैं वे सब इसी सच्चाई की तरफ ही इशारा करती है।

इसलिए भले ही नेहरू व नेताजी के बीच कांग्रेस में मतभेद हों परन्तु देश के सम्मान के लिए दोनों के समर्पण पर प्रश्न उठाने वाले नासमझ ही हो सकते है। इसलिए यह चर्चायें जो गोपनीय फाइलों के रहस्य उजागर होने के बाद आरोप प्रत्यारोप के रूप में सुनाई दे रहे हैं वह सब नासमझी के कारण ही उठ रहे है।
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Dilip Mandalपरिचय :
देवसिंह रावत

यू-203 विकास मार्ग शकरपुर दिल्ली 92

संपर्क : मोबाइल 9910145367

##**लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी  का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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