राष्ट्रीय युवा-दिवस : स्वामी विवेकानंद जयंती पर लेख

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राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर, स्वामी जी के सपनों का भारत पुनर्स्थापित करने के लिए राष्ट्र के युवा आगे आएं!

– के. कृष्णमूर्ति  – 


के. कृष्णमूर्ति सामाजिक व आध्यात्मिक चिन्तक


स्वामी जी द्वारा आह्वान किए गए स्वदेश-मन्त्र से यह प्रतीत होता है कि – यदि इस संसार में ऐसा कोई देश है, जिसे हम पुण्यभूमि कह सकते है। जहां मनुष्य जाति में क्षमा, दया, प्रेम, त्याग, तपस्या, पवित्रता जैसे सद्गुणों का सर्वाधिक विकास हुआ है। यदि ऐसा कोई देश है जहां सबसे अधिक आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि का विकास हुआ है, तो मैं गर्व से कह सकता हूँ कि वह भूमि हमारी मातृभूमि भारतवर्ष ही है।

देश का मान-सम्मान व गौरव बढ़ाने में अनंत महापुरुषों ने अपना सर्वस्व समर्पण किया है, इस सूचि में विश्वभर के युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानन्द का नाम आज भी अग्रणी श्रेणी में शामिल है। स्वामी जी के ओजस्वी वचन और विचार मात्र सुनकरव पढ़कर आज भी आत्मविश्वास, भारतीय संस्कृति-सभ्यता की अद्भुत विरासत, आध्यात्म, जीवन में उचित व अनुचित का बोध एवं राष्ट्र-प्रेम जैसे श्रेष्ठ व पावन विचारों का संचार स्वतः ह्रदय में होने लगता है। लेकिन आज की दूषित शिक्षा-व्यवस्था के माध्यम से प्रशिक्षित व प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे आज के भारतीय युवा पीढ़ी को अपने माता-पिता, परिवार, समाज एवं अपनी ऐतिहासिक गौरवमयी भारतीय संस्कृति-सभ्यता से घृणा करने के लिए सिखाया जाता है।आज की युवाविना वेद, उपनिषद, रामचरितमानस एवं मोक्षविद्यादायिनी परम पावन भगवद्गीता जैसे महान ग्रन्थ जिसमें दर्शन और आध्यात्मएवं जीवन निर्वाण का सम्पूर्ण मार्गदर्शन उपलब्ध है, शायद ही ऐसी ग्रन्थ दुनिया में अन्यंत्र उपलब्धहै। उनका बिना अध्ययनव आत्मचिंतन किए हुए ही इसे झूठा समझने लगतेहैं।जो समाज अपनी संस्कृति-सभ्यता के बुनियाद पर आधारित शिक्षा-व्यवस्था के अनुकूल तैयार नहीं होता।उस समाज की नई पीढ़ी अपनी संस्कृति-सभ्यता पर गौरव करने के बजाय उससे घृणा करने लगता है और पश्चात-सभ्यता की नकल कर खुद को गौरवान्वित महसूस करता है। आज समाज में इस तरह की प्रचलन व्यावहारिक रुप से देखा व महसूस किया जा सकता है।ऐसी गंभीर समस्याओं के कारण ही आज भारत की गौरवमयी इतिहास, धर्म-आध्यात्म,संस्कृति-सभ्यता के प्रति लोगों में आत्मसम्मान व आत्म-विश्वास का तेजी से क्षरण हो रहा है।

दुर्भाग्यवश आज की विकसित ऐसी ही शिक्षा-व्यवस्था के कारण आजकल भारत के युवाओं में ‘अभिव्यक्ति की आजादी’  जैसी एक गंभीर बीमारी संक्रमण रोग की तरह काफी तेजी से फल-फूल रही है। इस मुहिम में देश के पढ़े-लिखे युवा वर्ग भारी संख्या में देश-द्रोह के नारे लगा रहें हैं, और अभिव्यक्ति की आजादी माँग रहे हैं।क्या आज राष्ट्र निर्माण के सकारात्मक मुद्दें नदारत हो गई है? उदारहण स्वरूप: गरीबी से आजादी,बेरोजगारी से आजादी, जाति-धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर तुष्टिकरण राजनीती से आजादी,वंशवाद राजनीति से आजादी, भ्रष्टाचार से आजादी,कुशासन से आजादी एवं अनगिनत समाज में फैले कुरीतियों से आजादी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे जिससे राष्ट्रनिर्माण कर भारत को समृद्ध व शक्तिशाली बनाया जा सकता था। ऐसे गंभीर मुद्दें उन युवाओं को क्यों नजर नहीं आ रहे। ऐसी विकट परिस्थिति में यह सवाल उठता है कि गुलामी के जंजीर से जब देश जकड़ा हुआ था तब देश आजाद कराने के लिए राष्ट्र-प्रेमी युवा फांसी पर लटककर, गोलियां खाकर एवं अनगिनत दरिन्दे,अंग्रेजी व मुग़ल आक्रान्ताओं द्वारा यातनाएं सहकर अपनी प्राण देश के लिए मुस्कुराते-मुस्कराते न्योछावर करने वाले युवामहानायकों से प्रेरित नहीं होकरआखिर आज के युवाओं केप्रेरणा स्रोत महानायक कौन है?जिनसे प्रेरित होकर देश-द्रोह का नारा लगा रहें है, देश-विरोधी गतिविधियों का अंजाम दे रहे हैं। इस गंभीर विषय पर आज देश के युवाओं को आत्ममंथन व आत्म-चिंतन गंभीरतापूर्वक करने की जरूरत है।

आज के युवा भारत के प्राचीन महान संस्कृति-सभ्यता एवं रामराज्य की परिकल्पना जैसे गौरवमयी इतिहास की धरोहर से प्रायः अपरचित हैं। आज के ज्यादतर युवा भारत की विकास में नहीं, बल्कि महंगे-महंगे गैजेट्स को इस्तेमाल करने में व्यस्त है। आज भारत के 75 फीसदी युवा गैजेट्स को अपनी जिंदगी का सबसे बहुमूल्य हिस्सा बना चुके हैं और अधिकतर युवा गैजेट्स की वर्चुअल दुनिया में खोए रहते हैं। उनमें देश के लिए कुछ बड़ा करने की कोई इच्छा, जज़्बात व जूनून नहीं दिखाई पड़ती है।आज कीयुवा अधिकतर नशे में, दोस्तों के साथ पार्टी करने में, मेहनत किए बिना ज्यादा पैसा कमाने के शॉर्टकट्स रास्ते ढूंढने में अपना समय वार्बाद कर रहेहैं। आज की युवाजिम जाकर अपनी बॉडी बनाने को अपनावस्तविक पुरुषार्थ समझता है। लेकिन, जबदेश की किसी बहन-बेटी के साथ छेड़छाड़ की घटना होती है तो, सामने खड़े होकर तमाशा देखना व विडियो बनाते रहते हैं। जिस वजह से आज की सामाजिक व्यवस्था काफी दूषित एवं भ्रष्ट हो गई है। नैतिकता की कसौटी पर खड़े होकर सामाजिक, आध्यात्मिक एवं राजनीतिक-सुधार एवं परिवर्तन के विचार मात्र सेही वेअपना कदम पीछे हटा लेते हैं। यह कहकर कि हमें क्या है? जिसको परेशानी है वह अपना समझ लेगा।

नहीं, नहीं… आज भी व्यापक रूप से दरिद्रता और बेरोजगारी के बोझ से दबा हुआ भारत,  हिंसा और अन्याय से झुलसता हुआ भारत, भय-भूख और आतंक से जूझता हुआ भारत कराह रही है। आज भी देश का एक बड़ा हिस्सा – करीब 20 करोड़ की आबादी – भूखे पेट सोने को मजबूर है। मेरे प्रिय देशवासियों यह अब टालने का समय नहीं है। आज जरूरत है,व्यक्तिगत व स्वार्थ-भरीभीरुता, निष्क्रिय नकारात्मक-भावनाओं को राष्ट्रीय-प्रेम की क्रांतिकारी सकरात्मक-भावना में तब्दील करने कीऔर यह तभी संभव होगा जब चरित्रवान, ईमानदार और राष्ट्रीय-भावना से प्रेरित लोग सत्य और न्याय के एक राष्ट्रव्यापी प्लेटफार्म पर आकर सकारात्मक पहल कर अपना पहला कदम बढ़ाएंगे… तो भारत सभी क्षेत्रों में मजबूती से विकास करेगा और एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा होगा, इसमें कोई संशय नहीं।

अब वह समय आ गया है – राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकरस्वामी जी के सपनों का भारत पुनर्स्थापित करने के लिए राष्ट्र के युवा-शक्ति जाग्रत हों और निस्वार्थ भाव से अपनी दक्षता, योग्यता का सकारात्मक प्रयोग करते हुए, भारत की प्राचीन महान सभ्यता-संस्कृति को आत्मसात करते हुए, समर्पित भाव सेयुवा अपने हाथों मेंदेश की बागडोर संभालें।स्वामी विवेकानन्द व्यक्तित्व-क्रांति का सूत्रपात करना चाहते थे। एक नए भारत का निर्माण करना चाहते थे। “एक नवीन भारत निकल पड़े – निकले हल पकड़ कर, किसानों की कुटी भेद कर, मछुआरों, मेहतरों की झोपडियों से, निकल पड़े बनिये की दुकानों से, भुजवा के भाड़ के पास से, कारखाने से, हाट से, बाजार से, निकले झाड़ियों, जंगलों-पहाड़ों, पर्वतों से हमारी भारत माता तैयार है- बस बाट जोह रही हैं उसे केवल तन्द्रा-भर आ गयी है उठो, जागो और देखो अपनी इस मातृभूमि को – वह किस प्रकार पुनः नवशक्तिसंपन्न हो, पहले से भी गौरवान्वित हो, अपने शाश्वत सिंहासन पर विराजमान हैस्वामी विवेकानन्द की ऊपर में अंकित आंदोलित शक्ति को जब-जब मैं ह्रदय से महसूस कर विचार करता हूँ, तब यह पाता हूँ की जिस समय युवा भारत के युवा जाग्रत होकर आज के सामाजिक परिवेश से ऊपर उठकर स्वामी जी के आदर्शों एवं उनके द्वारा दिए गए मार्गदर्शन को आत्मसात कर सच्चे हृदय से अपना विकास व सामाजिक परिवेश में बदलाव लाने के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण हेतु प्रतिबद्ध होकर अपनी भूमिका सुनिश्चित करने के लिए कमर कसेंगे तब … कहाँ ठहर पायेगी यह दरिद्रता की धुंध! अशिक्षा की धुंध! देशद्रोहियों की धुंध!… अन्धविश्वासियों की धुंध!… सिर्फ प्रकाश ही प्रकाश होगा और यही स्वामी जी के सपनों का भारत निर्माण के प्रति राष्ट्रीय युवा-दिवस के शुभ अवसर पर स्वामी जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

 



के. कृष्णमूर्ति

(सामाजिक व आध्यात्मिक चिन्तक)

कृष्णा 3-C/104, ओमेक्स इटर्निटी, वृन्दावन

उत्तर प्रदेश (भारत)

E: kkrishnamurti09@gmail.com


Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS. 



 

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