मोदी सरकार:संघम शरणम गच्छामि

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– तनवीर जाफरी –

narendramodiwithmohanbhagvat,narendramodi,mohanbhagwatपिछले दिनों नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी की तीन दिवसीय समन्वय बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष सहित कई केंद्रीय मंत्रियों ने भाग लिया। हालांकि यह बैठक संघ ने नई दिल्ली में बुलाई थी परंतु यदि प्रधानमंत्री सहित भारत सरकार के इन्हीं मंत्रियों व नेताओं को संघ अपने मुख्यालय नागपुर में भी उपस्थित होने का निर्देश देता तो यकीनन उन्हें वहां भी जाना पड़ता। इस बैठक को लेकर राजनैतिक विश£ेषकों द्वारा काफी हो-हल्ला किया जा रहा है। परंतु मुझे तो इसमें शोर-शराबा करने जैसी कोई बात नज़र नहीं आती। भले ही कुछ लोग इस गलतफहमी में क्यों न हों कि संघ उसके अपने कहने के अनुसार एक सामाजिक संगठन मात्र है। परंतु वास्तव में संघ स्वतंत्रता के समय से ही अपने विशेष हिंदुत्ववादी एजेंडे पर चलते हुए देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाता आ रहा है। जैसाकि संघ के संस्थापक गुरू गोलवरकर कह चुके हैं कि देश की दुश्मन ताकतों में मुसलमान,ईसाई तथा कम्युनिस्ट मुख्य हैं,वास्तव में संघ भले ही गोलवरकर के इस कथन को सार्वजनिक रूप से प्रचारित न भी करे तो भी वह अपने गुप्त एजेंडे में तथा अपनी गुप्त बैठकों में उनके इस कथन पर अमल करने व इसे आत्मसात करने की पूरी कोशिश करता है। नरेंद्र मोदी का लगभग 16 महीने का केंद्र सरकार का शासनकाल और गुजरात राज्य में 13 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहते उनकी विवादास्पद भूमिका इस बात का सुबूत है कि उनके शासनकाल में हर जगह बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण का खेल खेला गया है। लगभग दो दशकों से देश के मीडिया में भी यह बात चर्चा पकड़ चुकी थी कि गुजरात राज्य को संघ की प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सामाजिक कार्यों में भी दिलचस्पी लेता आ रहा है । परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि सामाजिक कार्यों की आड़ में धर्मविशेष को अन्य धर्मो व समुदायों के विरुद्ध लामबंद किया जाए। इसका अर्थ यह भी नहीं कि देश को धर्म के नाम पर तोडऩे और विभाजित करने की साजि़श रची जाए। कहने को तो संघ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति व सभ्यता की रक्षा की बात करता है। परंतु संघ के किसी भी आयोजन में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराता दिखाई नहीं देता। बड़े आश्चर्य की बात है कि प्रधानमंत्री सहित भारत सरकार के मंत्रीगण उस संगठन के बुलावे पर जाकर वहां नतमस्तक होते हैं जहां भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की कोई अहमियत ही नहीं समझी जाती। संघ के लोग राष्ट्रीय गान पढऩे से परहेज़ करते हें। संघ संस्कारित राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह राष्ट्रीय गान के कुछ शब्दों में अपनी आपत्ति दर्ज करा चुके हैं। उधर दूसरी ओर त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत राय जो कि संघ परिवार से ही संबंध रखते हैं ने पिछले दिनों कहा कि वे धर्मनिरपेक्ष नहीं बल्कि एक हिंदुत्ववादी व्यक्ति हैं। इसी प्रकार मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद संघ की विचारधारा में परवरिश पाने वाले तथा उसका अनुसरण करने वाले अनेक नेताओं द्वारा बार-बार सांप्रदायिक आधार पर ज़हर उगला जा रहा है। अल्पसंख्यकों के धर्मस्थलों पर हमलों में गत् 16 महीनों में काफी इज़ाफा हुआ है। अफसोस की बात तो यह है कि धर्म विशेष के विरुद्ध ज़हर उगलने वाले नेताओं तथा विभिन्न धर्मस्थलों पर आक्रमण करने वाले लोगों या दूसरे तरीकों से सांप्रदायिकता फैलाने वाले लोगों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। ज़ाहिर है इससे सांप्रदायिक शक्तियां और भी मज़बूत हो रही हैं और इससे उन्हें और बढ़ावा भी मिल रहा है। उधर राजस्थान से प्राप्त एक समाचार के अनुसार आगामी 24 सितंबर को अर्थात् ईद-उल-ज़ुहा के दिन राज्य के सभी सरकारी कालेज व स्कूल की छुट्टियां रद्द करने का निर्देश दिया है। राजस्थान में पहली बार बकरीद की छुट्टी रद्द करने का प्रयास किया जा रहा है। ज़ाहिर है यह सब भाजपा सरकारों  द्वारा संघ के एजेंडे को लागू करने का ही एक प्रयास है।

इन परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा प्रधानमंत्री की कार्यशैली तथा उनके ज़ाहिरी व गुप्त एजेंडे के संदर्भ में कुछ बातें ज़रूर काबिल-ए-गौर हैं। एक ओर तो संघ के संस्थापक मुसलमानों को देश का दुश्मन मानते थे दूसरी ओर इसी संघ द्वारा अपने एक वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार की देख-रेख में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच नामक एक संगठन के माध्यम से मुसलमानों को अपने साथ जोडऩे का प्रयास अथवा दिखावा भी किया जा रहा है। आिखर यह कैसा विरोधाभास है? एक ओर तो संघ मुसलमानों को देश का दुश्मन समझता है। उसकी कथित रूप से बढ़ती जनसंख्या से इतना भयभीत नज़र आता है कि उसके सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद के नेता और कई भाजपाई सांसद हिंदुओं से पांच-पांच बच्च्ेा पैदा करने की अपील करते दिखाई देते हैं। वीएचपी नेता प्रवीण तोगडिय़ा द्वारा नि:संतान हिंदुओं की सहायता हेतु हेल्प लाईन शुरु किए जाने की घोषणा की गई है तो दूसरी ओर यही संघ कभी मुसलमानों को राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के बैनर तले रोज़ा-इफ्तार की दावत देता दिखाई देता है तो कभी मुख्तार अब्बास नकवी,शाहनवाज़ हुसैन और नजमा हैप्तुल्ला जैसे नेताओं को भाजपा में सक्रिय रखने हेतु अपनी मूक स्वीकृति भी प्रदान करता है। संघ की इस प्रकार की विरोधाभासी एवं दोहरी चालों से कम से कम एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि संघ केवल सत्ता में बने रहने के लिए जहां हिंदुत्ववाद के नाम पर तथा हिंदू मतों का  अपने पक्ष में धु्रवीकरण करने हेतु समाज में धर्म आधारित विभाजन के एजेंडे पर अमल करता है वहीं वह दुनिया को यह दिखाने से भी नहीं चूकता कि संघ का चेहरा दरअसल वह नहीं जो प्रचारित किया जा रहा है यानी संघ देश में सभी धर्मों को समान रूप से सम्मान देता है।

जहां तक संघ की सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी लेने की बात है तो पाकिस्तान में हािफज़ सईद के नेतृत्व वाली जमाअत-उद-दावा भी कमोबेश ऐसे ही काम करती है। हज़ारों मदरसे,स्कूल,अस्पताल,गरीबों व यतीमों के बीच रसद व कपड़े आदि बांटना,किसी दैवीय आपदा के समय जमाअत-उद-दावा के स्वयंसेवकों का मुसीबतज़दा लोगों के साथ खड़े होना जैसे कई काम जमात द्वारा किए जाते हैं। परंतु हािफज़ सईद के जनहित के उन सभी कार्यों पर उस समय पानी फिर जाता है जबकि वह आतंकियों की सरपरस्ती करता व उनके ट्रेनिंग कैंप संचालित करता अथवा उन्हें संरक्षण देता नज़र आता है। वह भारत तथा विभिन्न धर्मों के विरुद्ध भाषण देकर दुनिया की नज़रों में गिरता दिखाई देता है। उसकी समाज सेवा से भी यह ज़ाहिर होता है कि वह केवल धर्म विशेष के लोगों को अपने साथ जोडऩे के लिए तथा उनका व्यापक समर्थन हासिल करने के लिए ही उनकी सहायता करता है। लिहाज़ा ऐसी समाज सेवा या ऐसी सहायता से फायदा ही क्या जो वर्ग विशेष के लोगों को लाभ तो पहुंचाए परंतु साथ-साथ अन्य धर्मों या किसी दूसरे देश के विरुद्ध नफरत भी पैदा करे? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी अपनी ऐसी छवि बनाने से परहेज़ करना चाहिए। उसे भारतवर्ष में पैदा हुए सभी भारतवासियों को चाहे वे किसी भी धर्म व समुदाय के हों उन्हें एक राष्ट्रवादी ही समझना चाहिए। आज संघ के विरोध व उसकी आलोचना का कारण ही केवल यही है कि वह कट्टर हिंदुत्ववाद के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश करता रहता है। पथ संचालन और शस्त्र पूजा जैसे अपने आयोजनों को धार्मिक रूप देकर समाज में भय पैदा करने की कोशिश करता रहता है और राष्ट्रीय ध्वज को सलामी नहीं देता।

इसमें कोई संदेह नहीं कि एक सधी हुई रणनीति के तहत संघ ने गत् 6 दशकों में स्वयं को अपने अधीन चलने वाले दर्जनों अलग-अलग संगठनों के माध्यम से इतना मज़बूत कर लिया है कि भारतीय जनता पार्टी जैसा राजनीतिक संगठन कैडर व कार्यकर्ताओं की दृष्टि से संघ के सामने बहुत बौना हो गया है। गुजरात में चाहे नरेंद्र मोदी का लगातार 13 वर्षों तक मुख्यमंत्री बने रहना हो या मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने हेतु कुशल रणनीति तैयार करनी हो या चीन आस्ट्रेलिया तथा अमेरिका जैसे देशों में नरेंद्र मोदी की जय-जयकार कराने की योजना बनानी हो,संघ ने अपना किरदार हर जगह सामने आकर बखूबी निभाया है। इसलिए नरेंद्र मोदी,भारतीय जनता पार्टी व इसके सभी नेता यह बात भलीभांति जानते हैं कि हो न हो भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय स्वयं संघ द्वारा ही आक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है। लिहाज़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के अन्य नेताओं व प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों का संघ-भाजपा समन्वय के नाम पर संघ की शरण में जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। जो लोग संघ के कथनानुसार उसे महज़ एक सांस्कृतिक व सामाजिक संगठन माना करते थे उनकी आंखों से यह पर्दा अब हमेशा के लिए हट ही जाना चाहिए और संघ को एक शुद्ध राजनैतिक संगठन माना जाना चाहिए।

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Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

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