भाजपा और मुसलमान

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– तनवीर जाफरी –

muslims-and-bjpमुस्लिम समुदाय के लोग भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान नहीं करते। हमारे देश में वैसे तो यही आम धारणा बनी हुई है। और यह केवल धारणा ही नहीं बल्कि सत्य भी है कि देश का अधिकांश मुस्लिम समुदाय भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में न तो मतदान करता है न ही भाजपा को अपना हितैषी राजनैतिक दल समझता है। यही दर्द पिछले दिनों केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद द्वारा कुछ इन शब्दों में व्यक्त किया गया कि-‘मुसलमान वोट नहीं देते इसके बावजूद हम उनको पूरी  सुरक्षा देते हैं,उन्हें सम्मान देते हैं तथा उनके विकास के लिए बिना किसी भेदभाव के कार्यक्रम व योजनाएं चलाते हैं’। आगे प्रसाद ने यह भी कहा कि ‘प्रत्येक भाारतीय चाहे वह हिंदू हो,मुसलमान हो,ईसाई अथवा किसी भी वंचित समुदाय का हो सबका विकास हमारी प्राथमिकता है। हम लोगों के विकास को वोट बैंक के पैमाने से नहीं मापते।’कानून मंत्री का यह बयान आने के बाद देश में इस बयान के अलग-अलग अर्थ निकाले जाने लगे तथा इसकी अलग-अलग तरीके से व्याख्या की जाने लगी। ज़ाहिर है भाजपा विरोधी दलों ने रविशंकर प्रसाद के उपरोक्त वक्तव्य के इस भाग को कि-‘मुसलमान हमको वोट नहीं देते इसके बावजूद हम उनको पूरी सुरक्षा देते हैं’अपने मतलब का समझते हुए इसी की आलोचना करनी शुरु कर दी कि भाजपा मुसलमानों को सम्मान या सुरक्षा देकर कोई एहसान नहीं कर रही बल्कि किसी भी राजनैतिक दल को वोट देना या न देना यह प्रत्येक भारतीय नागरिकों की ही तरह भारतीय मुसलमानों का भी अधिकार है और यह अधिकार उन्हें भारतीय संविधान ने दिया है।

हालांकि कानून मंत्री के बयान में थोड़ा सा अंतर्विरोध भी नज़र आता है। वह इस लिहाज़ से कि यदि उनके अनुसार मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देते तो भाजपा में सिकंदर बख्त,आरिफ बेग,मुख्तार अब्बास नकवी,शाहनवाज़ हुसैन,नजमा हैपतुल्ला तथा एम जे अकबर जैसे और भी कई मुस्लिम नेता मुस्लिम मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में मतदान करने हेतु प्रेरित क्यों नहीं कर पाते? दूसरा प्रश्र यह है कि भाजपा में जब आरिफ मोहम्मद खां जैसे नेता पार्टी की सदस्यता ग्रहण करते हैं तथा मुसलमानों को भाजपा के पक्ष में करने की कोशिश करते हैं तो ऐसे ज़मीनी नेता को पार्टी  अपने साथ जोडक़र क्यों नहीं रख पाती? एक सवाल यह भी कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की देख-रेख में 2002 में गठित किया गया मुस्लिम राष्ट्रीय मंच तथा भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा देश के मुसलमानों को अपने साथ जोड़ पाने में क्यों नाकाम रहा है? कानून मंत्री को इन विषयों पर भी सोचना चाहिए तथा इनपर भी अपनी खुली राय इसी प्रकार देनी चाहिए। ज़ाहिर है भाजपा में शामिल मुस्लिम नेता या तो मुस्लिम समुदाय में अपना कोई जनाधार नहीं रखते या फिर वह मुस्लिम मतदातओं को यह समझा पाने में असफल रहते हैं कि मुसलमानों को भाजपा के पक्ष में मतदान क्यों करना चाहिए?

परंतु भारतीय मुसलमानों की भाजपा से दूरी का जो प्रमुख कारण है वह भाजपा व मुस्लिम समुदाय के मध्य का बुनियादी अंतर्विरोध है और इसकी शुरुआत उसी समय हो चुकी थी जब भारत में मुसलमानों को संगठित करने हेतु मुस्लिम लीग ने काम करना शुरु किया था। परंतु राष्ट्रीय स्तर पर उसका यह प्रयास पूरी तरह असफल रहा। नतीजनतन मुस्लिम लीग के बहकावे पर कुछ भारतीय मुसलमान तो 1947 में भारत छोडक़र पाकिस्तान ज़रूर चले गए लेकिन अधिकांश मुसलमानों ने भारत को ही अपनी मातृभूमि समझते हुए भारत में ही रहना और यहीं जीना-मरना पसंद किया। इसके पश्चात राष्ट्रीय स्वयं संघ के संस्थापकों में से  एक एवं संघ के द्वितीय सरसंघ चालक माधव सदाशिव गोलवरकर जिन्हें गुरु गोलवरकर के नाम से भी जाना जाता है, ने अपनी एक पुस्तक बंच आफ थॉट्स में स्पष्ट रूप से यह लिखा कि-‘भारत के असली दुश्मन अंग्रेज़ नहीं बल्कि मुसलमान,ईसाई तथा कम्युनिस्ट हैं’। ज़ाहिर है भारतीय जनता पार्टी का संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयं संघ ही है और आज पूरे देश में भाजपा संघ की ही विचारधारा को परवान चढ़ा रही है। मुझे नहीं मालूम कि किसी मुसलमान अथवा धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के समर्थक किसी लेखक ने किसी धर्म-जाति अथवा संगठन को भारत के वास्तविक दुश्मन के रूप में इस प्रकार चिन्हित किया हो जैसाकि गुरु गोलवरकर ने मुसलमानों,ईसाईयों तथा कम्युनिस्टों के लिए अपनी पुस्तक में किया है। यह सवाल आज भी भाजपा के बड़े नेताओं से जब पूछा जाता है तो वे इसका सही जवाब नहीं दे पाते और असहज महसूस करने लगते हैं।

भाजपा में राज्सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने जैसे ही यह बयान दिया कि भारतीय मुसलमानों को मताधिकार से वंचित कर दिया जाना चाहिए। उनके इस वक्तव्य की विश्व के कई नेताओं द्वारा निंदा की गई। इसे असंवैधानिक व गैरजि़म्मेदाराना बयान बताया गया। परंतु स्वामी के इस बयान के बाद ही भाजपा ने स्वामी के लिए अपने स्वागत द्वार खोल दिए तथा उन्हें राज्यसभा की सदस्यता से भी नवाज़ दिया गया। भाजपा के इस प्रकार के फैसलों से भारतीय मुसलमानों को आिखर क्या संदेश मिलता है? आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ शोभायमान हैं। अब यहां यह दोहराने की ज़रूरत नहीं कि योगी आदित्यनाथ की अपनी लोकप्रियता का कारण क्या हंै? और वे क्यों हिंदू मतदाताओं की आंखों का तारा बने हुए हैं? उन्होंने एक दो नहीं बल्कि दर्जनों बयान सार्वजनिक तौर पर ऐसे दिए हैं जो असंवैधानिक,गैरकानूनी तथा घोर मुस्लिम विरोधी होने के साथ-साथ समाज में विद्वेष तथा दुर्भावना फैलाने वाले भी हैं। आज भाजपा ने उनकी इसी योग्यता को सराहते हुए ही उन्हें देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री का पद नवाज़ा है। क्या योगी के इस चयन के बाद भी मुसलमानों से किसी सकारात्मक रुख की उम्मीद भाजपा को करनी चाहिए। हालांकि यह पार्टी का निजी मामला है कि वह जिसे चाहे उसे मुख्यमंत्री बना सकती है। 6 दिसंबर 1992 की अयोध्या घटना भी मुसलमानों के भाजपा से मुंह मोडऩे के कारणों में एक प्रमुख है।

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हों या गुजरात विधानसभा के चुनाव या फिर 2014 के लोकसभा के आम चुनाव। भारतीय जनता पार्टी ने देश की लगभग 15 प्रतिशत जनसंख्या तथा 18 करोड़ आबादी वाले मुस्लिम समुदाय में से किसी एक व्यक्ति को भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में अपना पार्टी प्रत्याशी बनाना मुनासिब नहीं समझा। महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में भी पार्टी प्राय: ऐसा ही करती रही है। क्या पार्टी के इन फैसलों से भारतीय मुसलमानों को यह संदेश नहीं जाता कि भाजपा विधानसभा या संसद में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की पक्षधर नहीं है? इन सबके अलावा आज पार्टी के ही दर्जनों नेता पूरे देश में घूम-घूम कर मुस्लिम समुदाय के लिए तरह-तरह की विवादित बातें करते रहते हैं। गौरक्षा के नाम पर मुस्लिम विरोध की एक ऐसी हवा चल रही है जिसकी भेंट कई मुसलमान चढ़ चुके हैं। परंतु उन भारतीय मुसलमानों को न तो ऐसे लोगों के विरुद्ध कोई सख्त कार्रवाई होती दिखाई दे रही है न ही भाजपा नेताओं की बदज़ुबानियों पर अंकुश लगता नज़र आ रहा है। उपरोक्त तथा इसी प्रकार के और भी कई वजहें हैं जो मुसलमानों को भारतीय जनता पार्टी से दूर रखे हुए हैं। भाजपा जिस दिन भारतीय मुसलमानों को उपरोक्त सवालों का माकूल व तर्कसंगत जवाब देने में सफल हो जाएगी संभवत: उसी दिन से भारतीय मुसलमान भाजपा के पक्ष में खुलकर मतदान करना भी शुरु कर देंगे।

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Tanveer JafriAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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