– संजय शर्मा –
भारतीय सेना अपनी जान देकर हमें रक्षा करती है l .हमलोग रोजमरा की भाती अपने अपने कार्यो में लगे रहतें है l लेकिन हमारी सेना का एक ही कार्य है वतन की रक्षा करना l इस कार्य में देश आज़ाद होने के बाद अबतक हजारों सैनिक शहीद हो चुके हैं l लेकिन कभी- कभी सरकार हमारे सैनिको का मनोबल तोड़ने का कार्य करती है l चाहे उसका कारण राजनैतिक हो या कुछ और मनोबल सेना का ही टूटता आया है l कारगिल युध्य को ही प्रमाण के तौर पे ले लीजिये हमारी ख़ुफ़िया तंत्र कमजोर हो गई और पाकिस्तानी सेना के मदद से मुजाहिदीन आकर हमारे क्षेत्रों पे कब्ज़ा कर लिया तो हमारी सेना ने जिस बहादुरी के साथ दुश्मनों का मुकाबला किया ओ अपने आप में एक मिशाल है l इसमे सैकड़ों सैनिक वीर गति को प्राप्त हुए l और दुश्मनों को घेर लिया l लेकिन तत्कालीन सरकार ने एक हुक्म जारी कर मुजाहिदीन को वापस जाने का रास्ता दे दिया l क्या इस कार्य से भारतीय सेना का मनोबल नहीं टूटता ?हमारे समझ से तो उन मुजाहिदीनो को सेना के विवेक पर छोड़ देना चाहिए था या भारतियों जेलों में बंद कर देना चाहिय था l
कुछ और घटनाओं की ओर धयान आकृस्ट करना चाहूँगा जिसमे एक शांति प्रक्रिया भी है l इस शांति प्रक्रिया से आतंकवाद को ही मजबूती मिली है l आज महबूबा मुक्ति की कश्मीर में सरकार है इसे आग से खेलने का शौक है ये बचकाना बयान देने से अभी भी परहेज नहीं करती l इनकी बहन रुबिया के लिय भी हमलोगों ने आतंकवादी रिहा किये थे ये शांति प्रक्रिया का पहला कदम था l इसके बाद १९९९ में आतंकवादी हमारे जहाज को अगवा कर कंधार ले गए इसके बाद जैस ए मोहमद के मसूर अजहर सहित तिन बड़े आंकवादी हमने रिहा किये थे l .फिर दिसंबर २००१ में हमारे संसद पे हमला हुआ था l इसका मुख्य साजिसकर्ता मसूद अजहर ही था l इस शांति प्रक्रिया में सिर्फ आतंकवादियों के हौसले बुलंद हुए है l .और हमारी सेना का मनोबल ही टुटा है l
हाल फिलहाल में पत्थरवाजों ने हमारे सेना पर हमला किया जबाब में हमारी सेना ने पेलेट गन का प्रयोग किया इस पेलेट गन से एक की मृत्यु हुई और बहुत सारे घायल हुए .लेकिन सरकार ने ईद के मौके पर सैकड़ों पथरवाजों को जेल से रिहा किया और पेलेट गन पे रोक लगा दिया l क्या ये सेना का मनोबल तोड़ने के लिए काफी नहीं है ?प्रश्न उठता है की सेना ने क्या पहली बार पेलेट गनो का प्रयोग किया है ?याद दिला दूँ की सेना ने २०१० में पहली बार पेलेट गन का प्रयोग किया था जिसमे ६ लोग मारे गए थे और ९८ घायल हुए थे l बिपक्ष ने उस समय भी हो हल्ला मचाया था लेकिन सरकार ने इसके प्रयोग पर रोक नहीं लगायी थी l आतंकबाद पर काबू पाने के लिए सेना को इतनी आज़ादी तो दी जानी चाहिए कि जो लोग इसको हवा देने की कोशिश कर रहें है उन्हें इस बात का अहशास हो की अब मनमानी चलने वाला नहीं है l इस कारवाई के दौरान कुछ लोगों की जाने तो जायगी ही l लेकिन इसके अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं l
सरकार को सेना के किसी भी कारवाई का समर्थन करना चाहिए परन्तु बदकिस्मती से ऐसा हो नहीं रहा है जमीनी हकीकत कुछ और ही है l उदाहरण के लिए नवम्बर २०१४ में बलगाम में एक कार सेना के बैरियर तोड़कर निकली तो डिउटी पर तैनात सैनिको ने कार पर गोलियाँ चला दी l जो उनकी डिउटी थी .तो सेना के एक अधिकारी ने सियासी दवाव में आकर ८ सैनिको को कोर्ट मार्शल कर जेल भेज दिया l यह तो सेना प्रमुख और उतरी सेना के कमांडर का फर्ज बनता था की वह सियासी दवाव को दर किनार करते हुए घाटी के अस्थिर हालात में डिउटी कर रहे अपने साथियों के साथ खड़े हो l काजीगुंड क्षेत्र में गस्त कर रहे सैनिकों से भीड़ में शामिल कुछ युवकों ने हथियार छिनने की कोशिस की तो सेना द्वारा जबाबी कारवाई में चलायी गई गोली से दो महिलाओं समेत तिन लोग मारे गए l सेना ने इस सारे घटनाक्रम पर दुःख जताते हुए घटना की जांच करवाने का आदेश जारी कर दिए l यह विचित्र कदम है क्या किसी ने इस बात पर विचार किया कि यदि भीड़ गस्त कर रही टुकड़ी से हथियार छिनने में कामयाब हो जाती तो टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे सैनिकों का क्या होता ?क्या इससे सेना का मनोबल नहीं गिरता ?
बात कुछ पुराणी है १९५० के आखिर में सेना की बटालियन नागालैंड में थी ऊपर से हुक्म था की कोई भी नागा न तो खाकी बर्दी पहनेगा और न ही हथियार लेकर चलेगा l एक दिन कोहरे की चादर में लिपटी एक अधिकारी के नेत्रित्व वाली गस्ती टुकड़ी को एक नागा खाकी वर्दी डाले हुए मिल गया l साथ ही इस टुकड़ी को उस नागा के हाथ में कोई हथियार नुमा चीज़ दिखलाई दिया l गस्ती टुकड़ी ने उसे ललकारा वह डर गया और भाग खड़ा हुआ l लेकिन टुकड़ी ने उसे गोलियों का निशाना बनाकर मार गिराया l जब यह हादसा हुआ उस समय नागा की बेटी पि एम् ओ में काम करती थी l बाद में इस घटना को लेकर काफी हंगामा हुआ और प्रधानमंत्री ने उस बटालियन को बर्खास्त करने का हुक्म जारी कर दिया l सेना प्रमुख जनरल थिमैया ने प्रधानमंत्री का ये हुक्म मानने से इंकार कर दिया वो अपनी बटालियन के साथ खड़े थे l मौजूदा हालात में सेना अपने प्रमुख और कमांडर से कुछ ऐसी ही उमीद करती है l
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