वैश्विक मित्रता की ओर बढ़ती मोदी की उदारता

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– घनश्याम भारतीय –

Prime Minister,  Narendra Modi ,Prime Minister of Pakistan, Nawaz Sharif, at Lahore, Pakistanभारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक लाहौर क्या पहुंच गए विपक्ष ने आसमान सिर पर उठा लिया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के जन्मदिन पर आयोजित समारोह में मोदी के शामिल होने के सिर्फ नकारात्मक पहलू प्रस्तुत करने वाले लोग शायद इस मुलाकात के सकारात्मक और दूरगामी परिणाम को नजरअंदाज कर रहे हैं। जो किसी भी राष्ट्र की मजबूती और उसके विकास के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। वास्तव में इस मुलाकात के आगे पीछे के सत्य को निगलने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। हो सकता है इसके माध्यम से सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करने और अनुबंधों में आई खटास की खाई को पाटने की नीव रखी गई हो। यदि ऐसा हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब दहशतगर्दों के कई आकाओं की गर्दन कानून के शिकंजे में होगी। इसी के साथ यह भी कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी की उदारता वैश्विक मित्रता की ओर बढ़ चली है।

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देशों से संबंधों की मधुरता कायम रखने अथवा उसे और बढ़ाने के उद्देश्य से नेपाल, चीन, जापान, बांगलादेश, अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, दुबई और अफगानिस्तान आदि देशों का दौरा कर उनके साथ कई समझौते भी किए। अपने देश में बढ़ती बेरोजगारी दूर करने के लिए उद्योगपतियों को पूजी निवेश के लिए आमंत्रित भी किया। विपक्ष तब भी हाय तौबा करता रहा और अब जब वे काबुल से लौटते समय लाहौर पहुंचे तो फिर विपक्षियों ने उन्हें निशाने पर ही ले लिया। इन सबसे हटकर भारत और पाकिस्तान की मीडिया और बुद्धिजीवियों ने भारतीय प्रधानमंत्री के साहस व और उनकी दिलेरी की सराहना की। बाड़ झुक गई और बर्फ पिघल गई जैसे वाक्यों के साथ टीवी चैनलों ने समीक्षा की।

वास्तव में जिसके व्यक्तित्व में विराटता होती है वही पीड़ित मानवता के दर्द का एहसास कर पाता है। और ईर्ष्या,कटुता व् घृणा जैसी बीमारियों को अपने पास फटकने भी नहीं देता। वह किसी को दुश्मन भी नहीं मानता। जो उसे अपना दुश्मन समझते हैं वह उन्हें भी प्रेम दे कर प्रभावित करने की सोच रखता है। कुछ ऐसा ही अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी है। वे मानते हैं कि कोई भी परिवार समाज व राष्ट्र अपने पड़ोसी से दुश्मनी कर के विकास नहीं कर सकता। ऐसा सिर्फ भारत के साथ ही नहीं अपितु पाकिस्तान के साथ भी लागू होता है। जिनके बीच वर्षों से चली आ रही कटुता कई बार खतरनाक मोड़ तक पहुंची है। बस इसी नाते भारत पाक के बीच कटुता भरे रिश्तो में मधुरता के साथ सुधार की आवश्यकता है। इस दृष्टिकोण से मोदी की लाहौर यात्रा काफी हद तक सार्थक सिद्ध हो सकती है।

नरेंद्र मोदी देश के चौथे ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने कटुता दूर करने के लिए पाकिस्तान जाकर सहिष्णुता दिखाई। इसके पूर्व पंडित जवाहरलाल नेहरु, राजीव गांधी और अटल बिहारी बाजपेई इस तरह का साहस दिखा चुके हैं। अटल बिहारी बाजपेई तो बाकायदा दोस्ती की बस लेकर लाहौर गए थे। तब भी नवाज शरीफ पाक के प्रधानमंत्री थे। वह भी 25 दिसंबर था और यह भी 25 दिसंबर । इसी दिन अटल बिहारी बाजपेयी और नवाज  शरीफ दोनों का जन्मदिन है। अटल बिहारी बाजपेई दोनों देशों के बीच सद्भाव बढ़ाने के उद्देश्य से दोस्ती की बस चलाना चाहते थे। जिसे लेकर वे लाहौर गए थे परंतु उस बस पर दहशतगर्दों की कुदृष्टि पड़ी और वह कारगिल की खाई में गिर गई। इसके बाद भी भारत की उदारता कायम रही। अब इस दिशा में पुनः प्रयास किया जाना आवश्यक था। ऐसा इसलिए भी क्योंकि हिंसक साजिशें और दहशतगर्दी का संरक्षक बना पाकिस्तान बार बार आतंकी भेजकर बड़ी बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हुए सीमा पार से अमानवीय हरकतों को हवा देता रहा है। नतीजा यह है कि मुंबई हमले के आरोपी उसके यहां खुलेआम घूम रहे हैं। शायद यही वजह है विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के गत दिनों पाकिस्तान से लौटने के बाद पाक में जहर उगलने वालों की जुबान मोदी के लौटने के बाद भी बंद नहीं हुई। जाहिर है आतंकी समझौतों और अनुबंधों को नहीं मानते। दूसरी तरफ पाकिस्तान को आतंकियों का गढ़ माना जाता है। खुद उसकी ही धरती पर कोई दिन शायद ऐसा गुजरता हो जब आतंकी वारदातें न होती हों।

भारत और पाक के बीच संबंध सुधार इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि दोनों देशों के बीच अत्यधिक कटुता का खामियाजा भोले भाले नागरिक भोग रहे हैं। दूसरी जो सबसे अहम बात है कि अपने जन्म के समय से पाक भारत के प्रति उद्दंड बना हुआ है और भारत उसके प्रति उदारता दिखा रहा है। 14 अगस्त 1947 को बटवारे के बाद पाक के अस्तित्व में आने के बाद भारत के साथ उसके वह मधुर संबंध नहीं रह पाए जो भाई-भाई के बीच होने चाहिए थे। नतीजा यह हुआ कि पाक ने कश्मीर के एक भू भाग पर कब्जा कर लिया और उसे आजाद कश्मीर का नाम दे डाला। इसके बाद तो बैचारिक कटुता की विकरालता में पनपा आतंकवाद समूची मानवता के लिए खतरा बन बैठा। जिसमें सुधार के लिए समय समय पर प्रयास होते रहे हैं।

दुश्मनी की इसी कड़ी में पाकिस्तान ने सन 1965 में जब भारत पर हमला किया तो भारतीय सेना ने मुंह तोड़ जवाब देते हुए लाहौर तक खदेड़ा। 1971 में जब दोबारा युद्ध हुआ तब पाकिस्तान से अलग होकर बांगला देश अस्तित्व में आया। फिर कारगिल युद्ध हुआ। उसमें भी पाक को ही मुंह की खानी पड़ी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने आगरा की शिखर वार्ता में वहां के शासक परवेज मुशर्रफ को बुलाया, ़़और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काबुल से 800 किलोमीटर दूर लाहौर पहुंचकर पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन की बधाई दी और उनकी मां के पैर छूकर उदारवादी होने का परिचय दिया। इससे पाकिस्तान को सीख लेनी चाहिए और संबंधों की प्रगाढ़ता को मजबूती देते हुए दहशतगर्दी रोकने की दिशा में भी कदम उठा कर स्वयं को विश्व पटल पर ले जाकर खड़ा करना चाहिए।

राजनीतिक विश्लेषको को नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ से काफी उम्मीदें हैं। क्योंकि सत्ता की बागडोर संभालने के बाद मोदी की शरीफ से चौथी मुलाकात है। 26 मई 2014 को अपने शपथ ग्रहण समारोह में शरीफ को बुलाने के बाद मोदी उनसे 27 नवंबर 2014 को नेपाल के सार्क सम्मेलन में मिले। कुछ महीने बाद 10 जुलाई 2015 को रुस में मिले। तीसरी मुलाकात 30 नवंबर 2015 को पेरिस में हुई। चौथी बार तो 25 दिसंबर को वे उनके घर ही पहुंच गए। इतने पर भी यदि पाक के दिल में भारत के प्रति प्रेम न जगा तो आखिर कब जगेगा।

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Ghanshyam-Bharti,घनश्याम भारतीयपरिचय :-

घनश्याम भारतीय

स्वतंत्र पत्रकार/स्तम्भकार

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