मुद्दों पर नहीं,भावनाओं व लांछन पर हो रहे चुनाव

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– तनवीर जाफरी –

इन दिनों पूरे देश की नहीं बल्कि विश्व मीडिया की निगाहें भी गुजरात राज्य में हो रहे विधानसभा के चुनाव परिणामों पर टिकी हुई हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि जो नरेंद्र मोदी अपनी व अपनी सरकार की बढ़ती लोकप्रियता के पक्ष में तरह-तरह के सर्वे व रिपोर्टस का हवाला देते रहते हैं वही अपने ही गृह राज्य गुजरात में हो रहे विधानसभा चुनावों के लिए असहज दिखाई दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि अब तक भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने एक ही राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में इतनी जनसभाएं नहीं कीं और केंद्रीय मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों की इतनी बड़ी फौज कभी नहीं उतारी जितनी गुजरात के चुनाव को जीतने के मद्देनज़र भाजपा द्वारा उतारी गई है। साफतौर पर नज़र आ रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ‘युद्धस्तर’ पर चुनाव लडऩे की कहावत को चरितार्थ कर रही है। सवाल यह है कि आिखर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने ही गृह राज्य में वोट मांगने के लिए इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ रही है? मुझे याद है शरद पवार जैसे नेता अपने संसदीय चुनाव क्षेत्र बारामती जोकि गुजरात के करीब ही है,से लोकसभा का पर्चा दािखल करने के बाद चुनाव तक अपने चुनाव क्षेत्र में वोट मांगने के लिए जाया ही नहीं करते थे। उनका अपने मतदाताओं को साफ संदेश था कि यदि उन्होंने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ किया है तो मतदाता बिना मांगे ही उन्हें वोट देंगे। और ऐसा ही होता भी था। क्या आज प्रधानमंत्री गुजरात की जनता से ऐसी ही अपील करने का साहस रखते हैं?

ठीक इसके विपरीत गुजरात में सत्ता विरोधी हवा का रुख भांपकर इन चुनावों को मुख्य मुद्दों से भटका कर भावनाओं तथा लांछन की राजनीति की जाने लगी है। आज जब विपक्ष की ओर से राहुल गांधी यह सवाल पूछ रहे हैं कि राज्य में पचास लाख मकान गरीबों को बनाकर देने का जो वादा किया गया था वह अब तक क्यों नहीं पूरा हुआ तो इसके जवाब में राज्य की जनता से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री फरमा रहे हैं कि-‘मैं इस मिट्टी में जन्मा हूं आप गुजराती मेरी खूबियों व खामियों को जानते हैं। गुजराती उन लोगों को नहीं बख्शें गे जो उसके बच्चे पर हमले बोल रहे हैं। आपने मुझे बेटे के रूप में आगे बढऩे,आकार देने,मज़बूती देने में मदद की है’। और अपने इस संबोधन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने सामने खड़े मतदाताओं से अपने चिरपरिचित अंदाज़ व शैली में पूछने लगते हैं कि क्या गुजरात अपने बेटे का अपमान बर्दाश्त करेगा? ज़ाहिर है सामने से यही जवाब मिलता है नहीं-नहीं। प्रधानमंत्री ने चाय बेची या नहीं बेची इस बात को लेकर अभी तक संशय बरकरार है परंतु वे स्वयं तथा उनकी पार्टी के नेतागण बड़ी शान से अपनी छाती ठोक-ठोक कर यह बताते रहते हैं कि उन्होंने चाय बेची है। परंतु यदि विपक्ष का कोई नेता या सोशल मीडिया पर कोई मोदी विरोधी उन्हें चाय वाला कह दे तो उसे गरीब विरोधी कहकर प्रचारित किया जाता है। गोया वे स्वयं को चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री तो कह सकते हैं और जनता को भावनाओं में बहाकर और अपने को गरीब साबित कर उसका राजनैतिक लाभ उठा सकते हैं परंतु किसी दूसरे को यह अधिकार हरगिज़ नहीं?

पिछले दिनों राहुल गांधी ने अपने गुजरात के चुनावी दौरे के बीच सोमनाथ मंदिर के दर्शन किए। उनका मंदिर जाना भी भाजपाईयों को रास नहीं आया। गुजरात में मौजूद न केवल पूरा मोदी मांत्रिमंडल राहुल गांधी के पीछे पड़ गया और उनके सोमनाथ मंदिर के दौरे का तरह-तरह से मज़ाक उड़ाने लगा बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राहुल गांधी को एक जनसभा में याद दिलाने की कोशिश की कि यदि सरदार पटेल न होते तो सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कभी संभव नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि आपके नाना पंडित नेहरू इस काम से खुश नहीं थे। दूसरी ओर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं भारत के नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी देश में यात्रा पर जाते हैं तो उनकी कोशिश होती है कि वहां के मंदिरों में ज़रूर जाया जाए। इतना ही नहीं वे अक्सर अपने माथे पर तिलक चंदन का लेप लगाए तथा गले में मोटी-मोटी मालाएं डाले एक संपूर्ण पुजारी या धर्माधिकारी के रूप में नज़र आते हें। निश्चित रूप से वे अपनी इस वेशभूषा से जनता को एक संदेश देने की कोशिश तो करते हैं परंतु आज तक किसी भी विरोधी दल द्वारा उनके इस प्रकार के व्यक्तित्व व उनके वेश पर सवाल नहीं खड़ा किया गया। वे कभी केदारनाथ में जाकर स्वयं को भोले बाबा का बेटा बता कर ‘केदार नाथ का उद्धार’ की बात करने लगते हैं तो कभी वाराणसी में गंगा मैया के गोद लिए बेटे बन जाते हैं।

सवाल यह है कि क्या अब देश के चुनाव विकास,जनसमस्याओं,सडक़-बिजली-पानी जैसी मूलभूत,सुविधाओं,स्वास्थय,शिक्षा व बेरोज़ागरी जैसे विषयों से हटकर अब इन्हीं निरर्थक,भावनात्मक तथा लोगों को वरगलाने व गुमराह करने वाली बातों पर ही हुआ करेंगे? आज यदि गुजरात की जनता के बीच विपक्ष के लोग जाकर यह सवाल पूछ रहे हैं कि गुजरात में धरातल पर,ग्रामीण इलाकों में,आदिवासी क्षेत्रों में अथवा राजमार्गों से हटकर विकास कहां हुआ है तो इसका जवाब सत्ताधारी भाजपा को विकास की सूची पेश कर देना चाहिए। आज यदि विपक्षी दल गुजरात पर बढ़े बेतहाशा कजऱ् के बोझ की बात कर रहे हैं तो राज्य की सरकार को इसका खंडन करने वाले आंकड़े व सुबूत पेश करने चाहिए। बजाए इसके इन चुनावों को एक बार फिर सांप्रदायिकता के रास्ते पर ले जाने की कोशिश की जा रही है। गुजरात में इन दिनों भाजपा द्वारा एक चुनावी पोस्टर लगाया गया है तथा सोशल मीडिया पर भी उनके सक्रिय तंत्र इसे खूब ज़ोर-शोर से प्रचारित कर रहे हैं। इस अंग्रेज़ी के इस पोस्टर में रूपाणी +अमिशाह+मोदी=राम दर्शाया गया है तथा राम के साथ ही अयोध्या के मंदिर का प्रस्तावित मॉडल व भगवान राम की तीर चलाते हुए फोटो व भाजपा का चुनाव चिन्ह कमल का फूल प्रकाशित किया गया है। और इसी पोस्टर के नीचे हार्दिक+अल्पेश+जिग्वाणी= हज लिखा गया है। हज के साथ मक्का-मदीना की फोटो लगाई गई हैं और कांग्रेस का चुनाव निशान हाथ भी छापा गया है।

बड़े अफसोस की बात है कि राज्य में 22 वर्षों तक शासन करने के बावजूद यहां तक कि राज्य में सफलतापूर्वक सांप्रदायिक धु्रवीकरण करा देने के बाद भी आज भाजपा को न केवल अपनी पूरी ताकत व सामथ्र्य के साथ गुजरात का चुनाव लडऩा पड़ रहा है बल्कि इन चुनावों को मुख्य मुद्दों से हटाकर भावनाओं तथा लांछन की राजनीति को परवान चढ़ाया जा रहा है। हैरानगी की बात है कि नरेंद्र मोदी व उनकी पूरी सेना आज भी कांग्रेस के साठ वर्ष के शासन को कोसने का ढोल पीट रही है और उसमें कमियां निकाल रही है। जबकि अब उन्हें अपने साढ़े तीन वर्ष की केंद्र सरकार की उपलब्धियेां तथा 22 वर्ष के गुजरात राज्य के शासनकाल का हिसाब देना चाहिए। जनता को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए नरेंद्र मोदी के शब्द कोष में जो-जो शब्द हैं वह राहुल गांधी क्या विपक्ष का कोई भी नेता शायद ही निकाल सके। जैसेकि वे गुजरात में कहते फिर रहे हैं कि-‘कांग्रेस को विकास से नफरत है, कांग्रेस को विकास से नफरत है, उन्हें मोदी से नफरत है और अब उन्हें हमारे पसीने से भी नफरत है। गरीबों के प्रति ऐसा गुस्सा शर्मनाक है’। ऐसी बातें प्रधानमंत्री के स्तर की हैं या नहीं यह सोचने का विषय है। बावजूद इसके कि राज्य के चुनाव मुद्दों के बजाए भावनाओं तथा लांछन पर लड़े जा रहे हैं। परंतु यदि भाजपा गुजरात में चुनाव जीत जाती है तो बाद में वह इसे विकास नोटबंदी तथा जीएसटी की जीत ही प्रचारित करेगी।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

  He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

 Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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