आधुनिक परशुराम ब्रम्हेश्वर मुखिया

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– संजय शर्मा –

unnamedआरा [ बिहार] के एक छोटे से कस्बे[ खोपीरा ]में १३ मार्च १९४७ को  जन्मे स्व ० रामबालक सिंह [मुखिया ] के बड़े पुत्र ऋषि कुल भूषण ब्रम्हेश्वर नाथ सिंह उर्फ़ ब्रम्हेश्वर मुखिया इतने लोकप्रिय हुए की स्नातक की पढाई करते -करते २४ वर्ष की आयु में  लोगों ने इन्हें निर्विरोध मुखिया बना दिया .जब कभी देश में आतकंवादी या उग्रवादी घटनाएँ होती है तो हर लोगों की जुबान पर एक ही शब्द होता  है की अगर ब्रम्हेश्वर मुखिया कि  सरकार  सेवा ली होती तो इस देश में आतंकवादी  या उग्रवादी  घटनाएँ कब का समाप्त हो गई होती .यानि जो काम सरकार नहीं कर सकी वो काम ये चंद दिनों में ही कर  दिखलाये थे यानि बिहार से उग्रवादियों का सफाया ..ऐसे मृदुभाषी स्वभाव के चलते सभी जातियों में इनकी पैठ अच्छी थी सभी लोग इनका बहुत क़द्र करते थे .

सन ८० के बाद आई ० पी०  एफ० [ बर्तमान भाकपा माले ]का जन्म हुआ .आज जिस तरह पाकिस्तान में कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसे भारत के खिलाफ नफरत का बिज बोया जाता है .उसी तरह आई०  पी० एफ०  का जन्म की जन्म ही सवर्णों के खिलाफ हुआ.  ये लोग खासकर मध्यमवर्गीय किसानो [ जिसमे सवर्णों की संख्या ९० %थी ] को अपना निशाना बनाना  लगे .उनकी बंदूके छीन लेते थे .और उनसे ५०००० -१००००० रुपया रंगदारी मांगते थे .जिनके पास बन्दुक और पैसे नहीं थे यानि वो लेवी देने में असमर्थ थे तो उनको ये लोग अपनी जन अदालत लगाकर पिटाई करते थे एवं इनके खेतों पर आर्थिक नाकेबंदी लगा दी जाती थी .धीरे दिये पुरे शाहाबाद और मगध में उग्रवादियों की सरकार स्थापित हो गई .८५ % स्वर्ण किसानो पर आर्थिक नाकेबंदी लगा दी गई .किशानों की बहु बेटियों की शादी की तो दूर उनकी इज्जत का ठिकाना न रहा .बहुतों ने तो  आत्महत्या  कर लिया .आई० पी० एफo ने अपना नाम बदलकर भाकपा माले कर  लिया .और भिन्न -भिन्न जगहों पर एम् ० सी o सी o ,संग्राम समिति ,पीपुल्स वार जैसे खूंखार संगठन अपने अपने क्षेत्रो में किसानो पर अत्याचार करने लगे .किसानों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई .इन नंग धड़ंग लोगों ने किसानों को तंगोतवाह कर दिया.भोजपुर के किसानों ने मिलकर लोकप्रिय शिक्षा विद एवं मुखिया ब्रम्हेश्वर सिंह को अपना नेता चुन लिया .फिर मुखिया के नेतृत्व में युवाओं की टीम ने खेती का कार्य प्रारम्भ किया .उग्रवादी इसका विरोध करने लगे .रोकने लगे .इतना ही नहीं भोजपुर के कई किसानो की उन्होंने हत्या भी कर दी .फिर क्या था युवाओं की टीम ने जबाब देना शुरू कर दिया .दोनों ओर से बंदूके गरजने लगी .बिहार में कोलाहल सा मच गया

धीरे धीरे धीरे ये आग .पटना ,गया सम्पूर्ण मगध तक फ़ैल गई .सभी जगह किसान और नक्सली आमने सामने हो गए .भीषण रक्तपात हुआ .उस समय तत्कालीन सरकार भी उग्रवादियों के पक्ष में खड़ा हो गई .लेकिन बाढ़ के पानी को कोई कैसे रोक सकता है ……मुखिया को माताएँ अपना पुत्र ,बहन अपना भाई और पत्नी अपने पति को इस पुनीत कार्य में भेजने लगी .बहादुरों की एक फ़ौज जमा हो गई .नाक्स्सलियों के ठिकानो पर आक्रमण होने लगे .तभी मुखिया ने एक प्रेस बिज्ञप्ति जारी कर कहा की हमारी लड़ाई किसी जाती एवं संप्रदाय से नहीं है .हमारी लड़ाई तुम नक्सलियों से है और तुम लोग महिलाओं एवं बच्चों को ढाल बना रहे हो जिससे उन मासूमों की जान जा रही है जो कहीं से भी उचित नहीं है .ऐसा करो कि तुम सभी नक्सली एक हो जाओ और बिहार या झारखण्ड में कहीं भी जगह का निर्धारण तुम करो हम वहां आते है और वही तुम्हारी और हमारी आखिरी लड़ाई होगी .अगर तुम जित गए तो तो हम अपना पूरा हथियार तुम्हारे कदमो में डालकर तुम्हारी पराधीनता स्वविकार कर लेंगे .अगर तुम हार गए तो इसका फैसला भी तुम्ही पर छोड़ते है की तुम्हारे साथ क्या सलूक किया जाय .

इनकी बातों पर पहल करते हुए संग्राम समिति पीपुल्स वार में विलय हो गई .और एम o सी o सी o के साथ मिलकर भाकपा माओवादी बनाया .फिर बिहार झारखण्ड एरिया कमिटी  भाकपा माओवादी का बयान आया  कि हम सेना प्रमुख की बातों पर विचार कर रहे है .लेकिन फिर मैंने अखवार में किसी तरह का इनका बयान नहीं पढ़ा चुकी ये कायर होते है .जिस तरह सिपाही विद्रोह के समय  गौ माताओं को अंग्रेज आगे कर देते थे उसी तरह माओवादी भी मजदूरों को दहल बनाकर आगे कर देते थे .धीरे -धीरे मजदूर इस बात को समझ गए .और माओवादियों को पनाह देना बंद कर दिया तो माओवादियों की  जमीन ही खिसक गई .और शांति का माहौल कायम होने लगा .उसी समय मुखिया को गिरफ्तार कर  पुलिस जेल में बंद कर दिया .और उनपर बहुत से फर्जी मुक़दमे ठोक दिए गए लेकिन फर्जी आखिर फर्जी ही होते हैं .इन्हें १६ मुक़दमे में माo उच्च न्यायलय ने वरी कर दिया .शेष १० मामलों में वे जेल से बाहर आए.मजदूर इस बात को समझ चुके थे की वास्तव में मुखिया ही हमलोगों का हितैसी है .मुखिया ने राष्टवादी किसान संगठन जो पहले बनाया था उसे पुनर्जीवित  कर फिर से मजदूर किसान एकता पर बल देने लगे ये बात आततायियों को गले नहीं उतरी और और १ जून १९१२ को इन्हें गोली मारकर हत्या कर दिया गया ..लेकिन मरने के बाद स्वतः स्फूर्त जो लाखों की भीड़ जमा हुई उसे देखकर ये समझते देर नहीं लगी की ये वास्तव में था सबका मुखिया .

इस वीर योद्धा के ४ थी पूण्यतिथि पर सत सत नमन ….

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K-R-Sudhamanलेखक  संजय शर्मा

जहानाबाद

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