मायावती का त्यागपत्र और बहुजन समाज

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–   घनश्याम भारतीय  –

mayawati-invc-newsशोषित वर्ग की अगुआ और बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने व्यवस्था से क्षुब्ध हो देश के उच्च सदन की सदस्यता से त्यागपत्र देकर सियासी पंडितों को चौंका दिया है । इस त्यागपत्र को लेकर  उनको मानने और बाबा साहब के सिद्धांतों में आस्था रखने वालों में एक विश्वास जगा है वहीं दूसरे लोगों द्वारा इसके तमाम निहितार्थ निकाले जा रहे हैं । मुझे लगता है कि इससे दलितों वंचितों की एकजुटता को बल मिलेगा । ऐसा इसलिए क्योंकि संविधान की बदौलत जो दलित दूसरे दलों में रहकर उच्च पदों पर पहुंचे हैं उन्होंने कभी मुड़कर अपने भाइयों की ओर नहीं देखा। क्योंकि वह शोषकों की गोद में पले हैं और मायावती शोषकों से मुकाबला कर रही हैं।
थोड़ा पीछे झांके तो मिलेगा कि सदियों से शोषण के शिकार रहे दलित और पिछड़े समाज के पक्ष में समय-समय पर तमाम संतों और महापुरुषों ने आवाज उठाई है । तब या तो शोषकों ने उनकी आवाज दबा दी या फिर शोषित समाज ही उनकी बात मानने को तैयार नहीं हुआ । सदियों से चल रही इस जद्दोजहद में बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर को सर्वाधिक सफलता मिली, लेकिन शोषित समाज उनके साथ उस अनुपात में खड़ा न हो सका जिस अनुपात में होना चाहिए था। बाबा साहब ने जो सपना देखा था वह उनके जीते जी जब पूरा न हो सका तब दूसरे महापुरुष के रूप में कांसीराम का उदय हुआ। उन्होंने अपने लंबे संघर्षों के दौरान दलितों-पिछड़ों अल्पसंख्यकों यानी बहुजन समाज को जागरुक कर उनके हाथ में राजनीतिक शक्ति दी और शोषकों के मुकाबले मजबूती से खड़ा किया। अब जब वह भी नहीं हैं तो वहीं कमान मायावती के हाथ में है।
मायावती ने अपने सियासी जीवन में दलितों और पिछड़ों की मजबूती को ही आधार बनाया है। बस इसी के चलते शोषक वर्ग उन्हें पचा नहीं पा रहा है। गत दिनों राज्यसभा में दलितों के उत्पीड़न मुद्दे पर उन्हें न बोलने देने के पीछे शोषक सोच ही बाधा रही है। इससे खिन्न मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर एक नई चाल चली है। इसका लाभ निश्चित रुप से आने वाले चुनावों में उन्हें मिलेगा । क्योंकि त्यागपत्र देकर मायावती ने शोषितों के वृहद समूह (बहुजन समाज) की दुखती रग पर हाथ फेरा है।
इसमें कोई संशय नहीं कि आज देश का एक बड़ा समूह मायावती को अपना नेता मानता है। लेकिन उसी समूह और समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो शोषकों के बहकावे में आकर ऐन वक़्त पर मायावती से मुंह फेर लेते हैं । जिससे मुट्ठी भर शासकों के हौसले बढ़ते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में बहुजन समाज के साथ आपराधिक घटनाएं शायद इसी वजह से बढ़ रही है । एक बड़ी नेता को सदन में सिर्फ इसलिए बोलने नहीं दिया जाता है कि वह दलित है और दलित समस्या प्रमुख रुप से उठाने जा रही थी। मायावती जैसी सशक्त दलित महिला को जब हक के लिए बोलने से रोका जा सकता है तो साधारण लोगों के साथ शोषक सोच वाले भला कौन सा व्यवहार करते होंगे। ऐसे लोगों के सामने तब समझौते के सिवा और कोई विकल्प भी नहीं होता।
आज मायावती जो कुछ भी बोलती हैं वह सिर्फ उनकी आवाज नहीं होती अपितु उनके पीछे खड़े एक बड़े समूह की आवाज होती है। मायावती को बोलने से रोकने का मतलब बड़े समूह को बोलने से रोकने जैसा है। बकौल मायावती आज पूरे देश में दलितों वंचितों और पिछड़ों पर अत्याचार हो रहे हैं और उन्हें सदन में बोलने तक नहीं दिया जा रहा है। मतलब साफ है कि सिर्फ मायावती की ही आवाज नहीं दबाई जा रही है बल्कि समूचे बहुजन समाज का गला घोटने की साजिश हो रही है। यही तो मनुवाद है।
वैसे यह साजिश सैकड़ों वर्षो से होती आयी है। जो आज दलित वर्ग कहा जाता है उसे तब अस्पृश्य कहकर यातनाएं दी जाती थी। जो आज पिछड़ा वर्ग है उसे शूद्र कहकर अपमानित किया जाता था । दोनों में से किसी को भी शिक्षार्जन और धन संचय का अधिकार नहीं था। शोषकों की सेवा ही इनका धर्म कर्म सब कुछ बताया गया था। इनका जीवन स्वयं के लिए नहीं अपितु भारी तोद वाले शोषकों को समर्पित था। कालांतर में तमाम महापुरुषों, संतों, गुरुओं के संघर्षों ने जब मूर्त रूप लिया तब बाबा साहब जैसा विराट व्यक्तित्व सामने आया। जिनकी बदौलत आज जब दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को तमाम सारे अधिकार प्राप्त हो चुके हैं तब उनकी आवाज ही दवाई जा रही है । इनको आगे बढ़ते देख उनके पेट में मरोड़ हो रहा है । जो इनकी भाषा बोल रहा है उसे देशभक्ति का और जो अपने हक की बात कर रहा है उसे देशद्रोही का प्रमाण पत्र दिया जा रहा है।
दलितों वंचितों के हक की लड़ाई लड़ रही मायावती एक कुशल राजनीतिज्ञ हैं। जिन्हें सत्ता चलाने का अच्छा अनुभव है । राज्यसभा की सदस्यता का परित्याग कर उन्होंने यह साबित कर दिया है कि दलितों-पिछड़ों वंचितों के लिए वह कोई भी कुर्बानी दे सकती हैं । उनके इस फैसले को क्षणिक आवेश नहीं अपितु दलित वंचित बहुजन समाज की उपेक्षा शोषण व दुर्दशा से उपजी पीड़ा का आक्रोश माना जाना चाहिए।

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ghanshyam-bhartपरिचय -:

घनश्याम भारतीय

राजीव गांधी एक्सीलेंस एवार्ड प्राप्त पत्रकार

संपर्क – :
ग्राम व पोस्ट – दुलहूपुर ,जनपद-अम्बेडकरनगर 224139
मो -: 9450489946 – ई-मेल- :  ghanshyamreporter@gmail.com

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1 COMMENT

  1. सत्ता जाने के बाद एस सी, ओ बी सी याद आये, वरना मिश्रा के अलावा इनके पास कौन है,,,

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