निकाह और तलाक़ : तीन लफ्जों की खुशी या ग़म का खेल ?

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– रोज़ी इब्राहिम – 

aaaaaमज़हब की गुलामी इंसान बरसो से कर रहा है और मज़हबी जकड़न इतनी मजबूत होती है कि इंसान हमेशा मजबूर और लाचार दिखाई देता है। जहाँ मज़हब की रस्मों-रिवाजों को पूरा करके लोगों में खुशी होती है तो वही दूसरी तरफ मज़हब की गुलामी में लोग परेशान और ग़मज़दा भी नज़र आते है। इस्लाम की एक ऐसी ही रस्म को लोगों ने मजाक बना दिया है। जब एक अनजाना शख्स किसी औरत से रिश्ता बनाना चाहता है तो इस्लाम उन दोनों लोगों को निकाह की इजाजत देता है लेकिन अगर दोनों लोग (औरत-मर्द) किसी वजह से साथ नहीं रहना चाहते है तो इस्लाम दोनों की सहूलियत के लिये तलाक का हुक्म भी देता है।

निकाह की रजामंदी तीन बार (क़बूल है, क़बूल है, क़बूल है) बोल कर और तलाक की तसदीक (तलाक, तलाक, तलाक) भी तीन मर्तबा से होती है ताज्जुब है कि तीन लफ्जों से ज़िन्दगी का आगाज़ और तीन लफ्जों से ही खात्मा। ये कैसा दस्तूरेबंया है जँहा पर चंद इस्लामी लोगों ने अपनी सहूलियत के लिये निकाह और तलाक के नियमों में फेर बदल कर डाली। जिसका नतीजा ये हुआ कि आज हम मजाक बन कर रह गये। कुरान की सूरा बकरा के मुताबिक-

औरत मर्द के लिये लिबास है और मर्द औरत का लिबास है।   

यानि औरत और मर्द एक दूसरे के बराबर है। तो फिर मर्द औरत के साथ हक़-तलफीं और नाइंसाफी क्यों करते है यहाँ सवाल ये भी है कि औरत को इस्लाम बराबरी का दर्जा दे रहा है मगर इस्लामी लोग औरतो के हकुक और बराबरी के दर्जे को खत्म करना चाहते है औरत की जो तस्वीर आज लोगो के सामने पेश है उसमें औरत का कोई वजुद ही नही है वो सिर्फ अय्याशी का एक खिलौना बन कर रह गई। और इसकी वजह औरतो की कम मामुलात है। कुछ कम पढ़े लिखे मुसलमान मर्दो की जुबानी ये है कि औरत केवल बच्चे पैदा करने के लिये होती है ये सरासर सोची समझी साजिश है

देश-दुनिया में रस्म रिवाजों का सैलाब है जँहा लोगों की दिलचस्पी और म़ज़बुरी दोनों नज़र आती है यहां तक इन्हीं रिवाजों की वजह से औरत को मज़लूम और बेसहारा माना गया है और मर्द को मजबूत और अक्लमंद। तीन लफ्जों की खुशी और खेल में सज़ा की हकदार सिर्फ दुनिया भर की इस्लामी औरत को ही माना जाता रहा है और मर्द सिर्फ इस्लाम के नाम पर तमाशबीन बना देखता रहता है। इस्लाम के बारे में दुनिया में अजीब गरीब अफवाहें भी फैलाई जा रही है यहाँ तक कि जिन लोगों ने कुरान पढ़ा ही नहीं है और ना समझने की कोशिश की है वो लोग इस्लाम की पीगें हांकते नजर आते है बिना पढ़ें कुरान के बारे में किसी भी बात को बताना बेईमानी होगी। कुरान में निकाह के बाद मर्द-औरत के हकुकों को बराबर बताया गया है। इस्लाम में निकाह ही एक रिश्ता है जिसमें मर्द-औरत एक दूसरे के ज्यादा करीब आ सकते है और अल्लाह ने भी मर्द-औरत निकाह को अजीजों-पाक रिश्ता बताया है। इस्लाम में निकाह और तलाक मसलों को बहुत ही खूबसूरती से बयान किया है मगर सिर्फ कुछ कठमुल्लाहों की वजह से आज इस्लाम की खिल्ली उड़ रही है इसलिये इस्लाम को लोगों के सामने सही पेश करने की जरूरत है।

अगर निकाह एक खुशनुमा अहसास तो तलाक दर्दनाक हादसा है। अल्लाह को हम सभी सिर्फ मुहब्बत से ही पहचानते है और शैतान को नफरत से। कुरान में साफ तौर से लिखा है कि सभी नेकियों में से सबसे बड़ा गुनाह सिर्फ तलाक है और तलाक को अल्लाह के नजदीक बेहद नापसंद भी माना गया है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर तलाक अल्लाह के नजदीक सबसे नापसंदीदा है तो फिर हम लोग इसे सबसे ज्यादा क्यों करते है और दुसरा सवाल ये है इस्लाम को मानने की गवाही सबसे ज्यादा जो देते है वो ही इस्लाम के नाम पर तलाक के खेल में ज्यादा मुब्तिला है। तलाक और निकाह के नाम पर जो लोग खेल या मज़ाक कर रहे है वो दुनिया में भी खामियाजा भुगतते है और आखिरत में भी सज़ा के हकदार होते है। एक हदीस के मुताबिक अल्लाह के रसूल ने कहा –

कोई मोमिन अपनी बीवी से नफरत ना करें। अगर उसे उसकी एक आदत नापसंद है तो दूसरी आदत पसंद कर सकते है।

यानि आप अपनी बीवीयो से सिर्फ मोहब्बत करे और अगर आपको अपनी बीवीयो की कोई बात पंसद ना आये तो आप अपनी बीवी की दुसरी बातो को पंसद करने की कोशिश करे। इस आयत से साफ जाहिर हो रहा है कि इस्लाम के ठेकेदारो ने अपने शौक के लिये आयतो का तर्ज्रुमा अलग ढंग से किया जिससे आज इस्लाम की रुसवाई हो रही है। यँहा अहम बात ये है कि अगर आप अपनी बीवीयो से सिर्फ मोहब्बत करेगे तो तलाक का ख्याल भी ज़हन में नही आयेगा।

कहते है कि जल्दबाजी शैतान का काम है और जल्दबाज़ी या गुस्से में किये गये काम सिर्फ शैतान ही करता है। तलाक के जितने भी मसहलो पर अगर हम गौर करे तो पायेगे कि तलाक जैसा कोई भी काम जल्दबाज़ी में ही अज़ांम होता है। इस्लाम में लोगो को आगह किया गया है कि जिंदगी का कोई भी फैसला जल्दबाज़ी में या जज़्बात में नहीं करना चाहिए बल्कि बहुत सोच समझ कर और ठंडे दिलो दिमाग से किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए ताकि काम आसानी से हो सके और अंज़ाम भी अच्छा पा सके। अफसोस है की मुसलमानों ने निकाह-तलाक के मसहले को खिलौना बना दिया है कुछ नासमझ शौहर ज़रा-ज़रा सी बात पर औरतो को तलाक की धमकी देते हैं और सिर्फ धमकी देते ही नहीं है बल्कि इस धमकी पर अमल भी कर बैठते हैं। जो सरासर इस्लाम में ग़लत बताया गया है। हालांकि अगर तलाक देना ही है तो पहले अहले इल्म से इसकी मुकम्मल जानकारी करें फिर तहकीकात करे यानि फायदे और नुकसान को समझे और इसके बाद तलाक का कदम उठाये। यकींनन कोई भी  मियां-बीवी तलाक के लिये कभी तैयार नही होगे। निकाह के मसले पर कुरान में साफ लिखा है-

और उसकी निशानियों में से ये भी है कि उसने तुम्हारे लिये तुम्हारी ही जिंस से बीवियां बनाई ताकि तुम उनसे सकुन हासिल करोऔर तुम्हारे दरम्यान मुहब्बत और रहमत ( हमदर्दी) पैदा कर दी।  

 

यानि औरत से मोहब्बत करे उनके साथ बदसलुकी ना करे  और जो आपको सकुन देती है उनके साथ नाइंसाफी क्यों। इन आयतो से पता चलता है कि अल्लाह ने सबको बराबरी का दर्जा दिया है मगर कुछ गलत लोगो ने अपने सकुन के लिये मुक़तलिफ़ बातो से इस्लाम को गुमराही से पेश किया है।

निकाह और तलाक मामलों की कम जानकारी होने की वज़ह से इस्लामी लोगो को भारी नुकसानात होते है और जिससे इस्लाम की तस्वीर लोगो के सामने गलत साबित होती है। बावज़ुद इसके इस्लामी लोग अपनी अंदरुनी खुशी के लिये औरतो से दो या तीन या फिर चार शादी करते को ज़ायज कर लेते है। जँहा एक ओर निकाह के वक्त गवाहो की मौजुदगी और बुज्रगों की दुवाओ के साथ औरतो की हिफाज़त का वायदा किया जाता है वही दुसरी ओर तलाक के वक्त औरतो के साथ ऐसा ब्रताव किया जाता है कि जैसे वही औरत गुनाहगार है जिसको तलाक मिली है। कुरान की सुरा अन निसा के मुताबिक-

 न्याय ना कर सकोगे तो उनमें से, जो तुम्हें पंसद हो, दो-दो  या तीन- तीन या चार-चार से विवाह कर लो । किन्तु यदि तुम्हे आंशका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार ना कर सकोगे, तो फिर एक ही पर बस करो, या उस स्त्री (लोंडी) पर जो तुम्हारे कब्ज़े में आई हो, उसी पर बस करो। इसमें तुम्हारे न्याय से ना हटने की अधिक सभांवना है।

यानि मुसलमान मर्द दो, तीन या चार शादीयां नही कर सकता है क्योंकिं वो अपनी औरतों के साथ एक जैसा वयवहार नही कर पायेगा और सबके साथ इंसाफ भी नही कर पायेगा। जब एक ही बीवी को हलाल किया है तो बाकी औरतो के साथ क्या।

आमतौर पर तलाक के लिये किसी भी औरत की रजामंदी नही होती है मगर इस्लाम में तलाक देने का अधिकार सिर्फ मर्द को ही दिया गया है और जिसका फायदा मर्द अपनी कुछ नाजायज ख्वाहीशो को पुरा करने के लिये करता है। आज की मौजुदा तस्वीर में लोगो ने निकाह और तलाक दोनो को ही अपने मिजाज की तरह बना लिया है। जब दिल करता है तो निकाह, और जब दिल कहता है तो तलाक। हद तो ये है कि सभी शर्मनाक बातो के लिये सिर्फ औरत को ही जिम्मेदार माना जाता है।

कुरान की कम जानकारी की वजह से दुनिया भर में इस्लाम की बदनामी हो रही है और जो चंद लोग कुरान को पढ़ते है वो भी कुरान की सही तस्वीर दिखाने में नाकामयाब साबित हुये है। नतीज़ा ये होता है कि लोग सही फैसला नही ले पाते है कुरान एक मुकद्दस किताब है और इसकी पुरी जानकारी को हासिल करने का अधिकार सारे जँहा की मख़लुक को है ताकि इस्लाम को सही समझा जाये। मुकम्मल जानकारी से ही लोग अपनी बुराईयों को मिटा सकेगे ताकि लोगो की जिंदगी में रोशनी फैल सके।

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Rozy IbrahimAbout the Author

Rozy Ibrahim

Broadcast Journalist and Writer

She is a broadcast Journalist. She began her career in journalism with Doordarshan as Production Assistant and later ended in IBN7. She is graduated with English literature and Psychology. During graduation, she got the chance to write an essay in Competition Success Review magazine. Beside it, she had worked in various TV channels like Sahara TV, IBN7, PIONEER and DD-News also. After education and experience, she then moved for the studies in journalism. She completed post graduation in Journalism from Jamia Millia Islamia, New Delhi. At this stage, she made tremendous assignment for Indian Eunuchs with ABC News in India and trying to write a book on it. Though, a difficult task for a fresher to present a marginalized community yet I am completing it shortly. She is self made women. In other way, she is the strongest personality of simple living and high thinking. She always believed in her life that a pen is mightier than a sword.

Contact  – :  Email ID- rozyibrahim@gmail.com ,  Address: – 173/ backside / IIIrd Floor/ SUKHDEV VIHAT, New Delhi-110025

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1 COMMENT

  1. Jis tarah Musalmano me talaq ka system jari hai woh Islam ke bhi khilaf hai aur usko khatam karne ki zarurat hai lekin hamare Ulema pta nahi kyu is traf dhyan nahoi dete !

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