रामनवमी विशेष : मंदाकिनी रूठी, तो क्या रूठ नहीं जायेंगे श्रीराम ?

0
20

 – अरुण तिवारी –

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देंय रघुवीर।।

ram-in-chitrakootएक जमाने तक यह चौपाई सुनाकर रामचरितमानस के वाचक रामभक्त तुलसी के महत्व बखान किया करते थे। किंतु अब वाचक तो वाचक, पूर्णिमा.अमावस्या स्नान दर्शन के लिए पैदल ही खिंचे चले आने वाले भी शायद भूल चुके हैं कि उनकी जिंदगी में मानिकपुर, मैहर और चित्रकूट का क्या महत्व है। यदि आस्थावानों की आस्था सच्ची होती, तो इनका हाल-बेहाल न होता।

उल्लेखनीय है कि ये तीनों स्थल, बुंदेलखण्ड में आस्था के बड़े केंद्र हैं। यहां के पहाड़, जंगल और नदियां ही इन स्थलों की शक्ति रहे हैं। वनवास के दौरान श्रीराम, लक्ष्मण और देवी सीता ने इन्हीं शक्तियों से शक्ति पाई। किंतु बीते कुछ वर्षों से यह शक्ति लगातार क्षीण हो रही है। केन, बेतवा, धसान जैसी महत्वपूर्ण नदियां थक रही हैं। स्रोत से शुरू हुई जलधारा अब नदियों के अंतिम छोर तक नहीं पहुंच रही है। चित्रकूट का मनप्राण मंदाकिनी का प्रवाह भी अब मंद पड़ गया है। मंदाकिनी नदी की 30 किमी तक सूख गई है। मंदाकिनी की आकर्षित करने वाली नीलिमा अब कालिमा में बदल चुकी है। मंदाकिनी के घाट हर आने-जाने वाले से सवाल करते नजर आते हैं। यहां अभी राम का मंदिर भी है; आने-जाने वालों की भीड भी है;  लेकिन राम की पंचवटी नहीं है। पर्यावरण कुम्हला रहा है। ऐसा क्यों हैं ?chitrakoot-mandakini

ऐसा इसलिए है चूंकि पर्यावरण और ग्राम विकास का काम करने वालों संस्थानों ने ही नदी के प्रवाह मार्ग पर कब्जा कर लिया है। बाड़ ही खेत को खाने लगी है। अपनी मनशुद्धि

के लिए मंदाकिनी किनारे आने वाले भक्तों द्वारा छोड़े गये कचरे ने मंदाकिनी की ही शुचिता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। मंदाकिनी में

मिलने वाली छोटी धारायें व झरने सूख गये हैं। ये धारायें खुद नहीं सूखी। इनके जल को नियमित रखने वाले पहाड़ व जंगल पर आये संकट ने इन्हे संकटग्रस्त बना दिया है। पहले बांदा, हमीरपुर और महोबा ही धरती का सीना चाक करने के लिए बदनाम थे, अब चित्रकूट भी बदनामी के इसी रास्ते पर तेजी से चल पड़ा है।

chitrakoot-mandakini,mandakमंदाकिनी के एक ओर शिवरामपुर व पुरवा तरौहा और दूसरी ओर लोढवारा तथा छिपनी के पहाड़ों का जंगल पिछले 50 वर्षों में नष्ट हो गया है। पहाडों के बगल में लगे बड़े-बड़े क्रेशरों की कतारें अपना काम बेरोक-टोक कर रही हैं। दिलचस्प है कि लोढवारा-छिपनी के एक पहाड़ पर एक ओर तो नाबार्ड पिछले 03 साल से वाटरशेड की परियोजना चला रहा है, दूसरी ओर जिलाधिकारी ने उसी पहाड़ का खनन पट्टा आवंटित कर पानी सोखने का लाइसेंस दे दिया है। यह विरोधाभास प्रमाण है कि प्रशासनिक स्तर पर आपसी तालमेल का अभाव किस तरह बर्बादी का कारण बन रहा है। सूर्यकुण्ड की पहाड़ी का भी यही हाल है।

पहले बुंदेलखण्ड के जंगलों पे डकैतों ने डाका डाला। अब ठेकेदार डाल रहे हैं। मंदाकिनी किनारे के कई दशक पुराने हरे-भरे पेड़ लकड़ी माफिया और प्रशासनिक भ्रष्टाचार व प्रकृति के प्रति संवेदनहीनता की भेंट चढ चुके हैं। पंचायतें भी इसमें शामिल हैं। इलाहाबाद से कर्वी जाने के रास्ते पर पड़ने वाले बरगढ़ फॉरेस्ट रेंज मे दो दशक पहले तक प्रति वर्ष 7500 बोरे तेंदू पत्ता निकलता था। आज इसकी मात्रा तीन से चार हजार बोरे प्रति वर्ष हो गई है। मानिकपुर फॉरेस्ट रेंज में 40 हजार घनमीटर लकड़ी, 35 लाख बांस, 20 हजार बल्लियां और 20 से 25 हजार क्विंटल खैर मिला करता था। यह आंकड़ा 1983 के वन विभाग द्वारा दी जाने वाली लकड़ी का है। अब जंगल की बदहाली इसी से समझी जा सकती है कि वन विभाग ने यहां अपना लकड़ी डिपो ही खत्म कर दिया है।

सरकारी तौर पर नदी-पानी बचाने की जो कुछ कोशिशें शुरु हुईं; वे इतनी अनियोजित व अनिश्चयात्मक रहीं कि नतीजा सिफर रहा। भारत सरकार की रेनफेड अथारिटी का आरोप गलत नहीं कि mandakini-river-chitrakootबुंदेलखण्ड पैकेज का पैसा सही समय पर खर्च नहीं किया गया। सरकार के पास तो नदियों की वस्तुस्थिति के नामवार रिकार्ड भी नहीं है। कई नदियां तो समाज के लिए भी बेनामी होती जा रही हैं। कर्वी के सर्वोदय सेवाश्रम ने छोटी नदियों के पुनरोद्धार की छोटी पहल शुरु की जरूर। स्थानीय आबादी गरीब गुरबा होने के बावजूद अपनी मेहनत व पसीना लगाने से पीछे नहीं हटी, लेकिन सफलता अभी अधूरी है। संभवतः मनरेगा के तहत नदी पुनर्रुद्धार की कोशिश का चित्रकूट पहला नमूना होता, किंतु प्रशासन को यह रास नहीं आया। ये कुछ ऐसे हालात हैं, जो मंदाकिनी के प्रवाह मार्ग पर विपन्नता का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

क्या कोई मंदाकिनी की पुकार सुनेगा ?
क्या मंदाकिनी के स्नानार्थी अपनी बंद आंखें खोलेंगे ?
यदि नहीं, तो उन्हे सोचना होगा कि रामनवमी का स्नान पर्व मनाने वे कहां जायेंगे ?
पूर्णिमा का मेला कहां लगेगा ?
क्या आप इसके लिए तैयार हैं ??
——————————————————————————————-

रामचरित

रचनाकार : अरुण तिवारी

भजियो, रामचरित मन भजियो
तजियो, जग की तृष्णा तजियो।
परहित सदा धर्म सम धरियो,
मरियो, मर्यादा पर मरियो।।
भजियो, रामचरित….

भाई संग सब स्वारथ तजियो
संगिनी बन दुख-सुख सम रहियोे।
मातु-पिता कुछ धीरज धरियो
सुत सदा आज्ञा-पालन करियो।।
भजियो, रामचरित…

सेवक सखा समझ मन भजियो
शरणागत की रक्षा करियो।
धोखा काहू संग मत धोखा करियो
पापी संग न्याय मन धरियो।।
भजियो, रामचरित…

दुश्मन के हर रंग समझियो
गुरुजन से सब ढंग समझियो।
लोकलाज ऊपर मन रखियो
लाभ-हानि-हिसाब मत करियो।।
भजियो, रामचरित….

घेरे मोह, तो राम मन भजियो
जनहित कारन सर्वस तजियो।।
जगियो, दुख आये मत डरियो
निडर मृत्यु का स्वागत करियो।
भजियो, रामचरित….

___________

arun-tiwari-story-by-arun-tiwariarticle-by-arun-tiwari21परिचय -:

अरुण तिवारी

लेखक ,वरिष्ट पत्रकार व् सामजिक कार्यकर्ता

1989 में बतौर प्रशिक्षु पत्रकार दिल्ली प्रेस प्रकाशन में नौकरी के बाद चौथी दुनिया साप्ताहिक, दैनिक जागरण- दिल्ली, समय सूत्रधार पाक्षिक में क्रमशः उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक कार्य। जनसत्ता, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, नई दुनिया, सहारा समय, चौथी दुनिया, समय सूत्रधार, कुरुक्षेत्र और माया के अतिरिक्त कई सामाजिक पत्रिकाओं में रिपोर्ट लेख, फीचर आदि प्रकाशित।

1986 से आकाशवाणी, दिल्ली के युववाणी कार्यक्रम से स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता की शुरुआत। नाटक कलाकार के रूप में मान्य। 1988 से 1995 तक आकाशवाणी के विदेश प्रसारण प्रभाग, विविध भारती एवं राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से बतौर हिंदी उद्घोषक एवं प्रस्तोता जुड़ाव।

इस दौरान मनभावन, महफिल, इधर-उधर, विविधा, इस सप्ताह, भारतवाणी, भारत दर्शन तथा कई अन्य महत्वपूर्ण ओ बी व फीचर कार्यक्रमों की प्रस्तुति। श्रोता अनुसंधान एकांश हेतु रिकार्डिंग पर आधारित सर्वेक्षण। कालांतर में राष्ट्रीय वार्ता, सामयिकी, उद्योग पत्रिका के अलावा निजी निर्माता द्वारा निर्मित अग्निलहरी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के जरिए समय-समय पर आकाशवाणी से जुड़ाव।

1991 से 1992 दूरदर्शन, दिल्ली के समाचार प्रसारण प्रभाग में अस्थायी तौर संपादकीय सहायक कार्य। कई महत्वपूर्ण वृतचित्रों हेतु शोध एवं आलेख। 1993 से निजी निर्माताओं व चैनलों हेतु 500 से अधिक कार्यक्रमों में निर्माण/ निर्देशन/ शोध/ आलेख/ संवाद/ रिपोर्टिंग अथवा स्वर। परशेप्शन, यूथ पल्स, एचिवर्स, एक दुनी दो, जन गण मन, यह हुई न बात, स्वयंसिद्धा, परिवर्तन, एक कहानी पत्ता बोले तथा झूठा सच जैसे कई श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम।
साक्षरता, महिला सबलता, ग्रामीण विकास, पानी, पर्यावरण, बागवानी, आदिवासी संस्कृति एवं विकास विषय आधारित फिल्मों के अलावा कई राजनैतिक अभियानों हेतु सघन लेखन। 1998 से मीडियामैन सर्विसेज नामक निजी प्रोडक्शन हाउस की स्थापना कर विविध कार्य।

संपर्क -:
ग्राम- पूरे सीताराम तिवारी, पो. महमदपुर, अमेठी,  जिला- सी एस एम नगर, उत्तर प्रदेश ,  डाक पताः 146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली- 92

Email:- amethiarun@gmail.com . फोन संपर्क: 09868793799/7376199844

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here