गंगोत्री के हरे पहरेदारों की पुकार सुनो

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– सुरेश भाई –

suresh-bhai,एक ओर ‘नमामि गंगे’  के तहत् 30 हजार  हेक्टेयर भूमि पर वनों के रोपण का लक्ष्य है तो दूसरी ओर गंगोत्री से हर्षिल के बीच हजारों हरे देवदार के पेडों की हजामत किए जाने का प्रस्ताव है। यहां जिन देवदार के हरे पेडों को कटान के लिये चिन्हित किया गया हैं, उनकी उम्र न तो छंटाई योग्य हैं, और न ही उनके कोई हिस्से सूखे हैं। कहा जा रहा है कि ऐसा ‘आॅल वेदर रोड’ यानी हर मौसम में ठीक रहने वाली 15 मीटर चौड़ी सड़क के नाम पर किया जायेगा। क्या ऊपरी हिमालय में सड़क की इतनी चौड़ाई उचित है ? क्या ग्लेशियरों के मलवों के ऊपर खडे पहाड़ों को थामने वाली इस वन संपदा का विनाश शुभ है ? कतई नहीं।

गौर कीजिए कि इस क्षेत्र में फैले 2300 वर्ग किमी क्षेत्र में गंगोत्री नेशनल पार्क भी है। गंगा उद्गम का यह क्षेत्र राई, कैल, मुरेंडा, देवदार, खर्सू, मौरू नैर, थुनेर, दालचीनी, बाॅज, बुराॅस आदि शंकुधारी एवं  चौड़ी पत्ती वाली दुर्लभ वन प्रजातियों का घर है। गंगोत्री के दर्शन से पहले देवदार के जंगल के बीच गुजरने का आनंद ही स्वर्ग की अनुभूति है। इनके बीच में उगने वाली जडी-बूटियों और यहां से बहकर आ रही जल धाराये हीं गंगाजल की गुणवतापूर्ण निर्मलता बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। यह ध्यान देने की जरूरत हैं कि यहां की वन प्रजातियां एक तरह से रेनफेड फाॅरेस्ट (वर्षा वाली प्रजाति) के नाम से भी जानी जाती हैं। इन्ही के कारण जहां हर समय बारिश की संभावना बनी रहती हैं। गंगोंत्री के आसपास गोमुख समेत सैकडों ग्लेशियर हैं। जब ग्लेशियर टूटते हैं, तब ये प्रजातियां ही उसके दुष्परिणाम से हमें बचाती हैं। देवदार प्रधान हमारे जंगल हिमालय और गंगा..दोनो के हरे पहरेदार हैं। ग्लेशियरों का तापमान नियंत्रित करने में रखने में भी इनकी हमारे इन हरे पहरेदारों की भूमिका बहुत अधिक है।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि इस तरह ग्लेशियरों की सुरक्षा के लिए हमे चाहिए कि हम इन हरे पहरेदारों की आवाज़ सुनें। इनकी इसी महत्ता को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार ने गंगोत्री क्षेत्र के चार हजार वर्ग किमी के दायरे को इको सेंसटिव ज़ोन’ यानी ’पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र’ घोषित किया था। ऐसा करने का एक लक्ष्य गंगा किनारे हरित क्षेत्र तथा कृषि क्षेत्र को बढ़ाना ही था। शासन को याद करना चाहिए कि इसी क्षेत्र में वर्ष 1994-98 के बीच भी देवदार के हजारों हरे पेडों को काटा गया था। उस समय हर्षिल, मुखवा गांव की महिलाओं ने पेडों पर रक्षासूत्र बांधकर विरोध किया था। केन्द्रीय वन एवम् पर्यावरण मंन्त्रालय ने ‘रक्षासूत्र आन्दोलन’ की मांग पर एक जांच टीम का गठन भी किया था। जिस जांच में वनकर्मी बड़ी संख्या में दोषी पाये गये थे। देवदार कटान की व्यापक कार्रवाई के समाचार से ’रक्षा सूत्र आंदोलन’ पुनः चिंतित है।

चिंता करने की बात है कि यह क्षेत्र पिछले वर्ष लगी भीषण आग से अभी भी पूरी तरह भी नहीं उभर पाया हैं। यहां की वनस्पतियां धीरे-धीरे पुनः सांस लेने की कोशिश में हैं। ऐसे में उनके ऊपर आरी-कुल्हाड़ी का वार करने की तैयारी अनुचित है। हम कैसे नजरअंदाज़ कर सकते हैं कि गंगा को निर्मल और अविरल रखने में वनों की महत्वपूर्ण भागीदारी हैं; बावजूद इस सत्य के पेड़ों के कटान पर रोक लगाने की कोई नीयत नजर नहीं आ रही है। सन् 1991 के भूकम्प के बाद यहां की धरती इतनी नाजुक हो चुकी है कि हर साल बाढ से जन-धन की हानि हो रही है। वनाग्नि और भूस्खलन से प्रभावित स्थानीय इलाकों में पेडों के कटान और लुढ़कान से मिट्टी कटाव की समस्या बढ़ जाती हैं। इस कारण गंगोत्री क्षेत्र की शेष बची हुई जैवविविधता के बीच में एक पेड़ का कटान का नतीजा बुरा होता हैं।

‘रक्षा सूत्र आंदोलन’ बार-बार सचेत कर रहा है कि बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प की दृष्टि सेे संवेदनशील ऊपरी हिमालयी क्षेत्रों में देहरादून और हरिद्धार जैसे निचले हिस्सों के मानकों के बराबर ही मार्ग को चौड़ा करने की योजना पर्यावरण के लिए आगे चलकर घातक सिद्व होगी। इस चेतावनी को सुन कई लोग गंगोत्री के इस इलाके में पहुंच रहे है। वे सभी हरे देवदार के देववृक्ष को बचाने की बचाने की गुहार लगा रहे है। कुछ ने देवदारों को रक्षासूत्र बांधकर अपना संकल्प जता दिया है। 30 किमी में फैले इस वनक्षेत्र को बचाने के लिये हम 15 मीटर के स्थान पर 07 मीटर चौड़ी सडक बनाने का सुझाव दे रहे है। इतनी चौड़ी सड़के पर दो बसें आसानी से एक साथ निकल सकती हैं। शासन-प्रशासन को चाहिए कि प्रकृति अनुकूल इस स्वर को सुने; ताकि आवागमन भी बाधित न हो और गंगा के हरे पहरेदारों के जीवन पर भी कोई संकट न आये।

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suresh-bhaiपरिचय -:

सुरेश भाई

लेखक व्  रक्षा सूत्र आंदोलन के प्रणेता

फोन संपर्क: 94120-77-896

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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