विभाजन की लकीरें

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anis-javedjaved-anis,writeranisjaved,INVCNEWS– जावेद अनीस –

सआदत हसन मंटो ने अपनी मशहूर रचना ‘टोबा टेक सिंह’ में एक मेंटल हॉस्पिटल का जिक्र करते हुए बताया गया कि सन 47 में सिर्फ हिन्दुस्तान के लोग और ज़मीन नहीं बटें थे बल्कि मानसिक रोगियों का भी विभाजन हुआ था, दरअसल कहानी में ये मानसिक रोगी तथाकथित होशमंदों के प्रतीक थे.भारतीय उपमहाद्वीप के उस विभाजन को 66 साल हो रहे हैं जिसके नतीजे में भारत और पाकिस्तान नाम के दो  राष्ट्र अस्तित्व में आए। यह 2015 है जब विभाजन के दौर की संतानें अपने उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं ,लेकिन ऐसा लग रहा है कि समय तीन सौ साठ डिग्री घूम कर फिर वहीँ पहुच गया है जहाँ हम उसे 1947 में छोड़ कर आगे बढ़ आये थे और ‘टोबा टेक सिंह” के मेंटल भूतों की वापसी हो गयी है। विभाजन का सोया हुआ जिन्न जाग गया लगता है, हिन्दूओं और मुस्लिमों के नाम पर बनीं सियासी जमातों की राजनीति की मुख्यधारा में वापसी के संकेत बन रहे हैं और पंथनिरपेक्ष, बहुलतावादी और सहअस्तित्व के विचार हाशिये पर पंहुचा दिए गए लगते हैं।

वर्ष 2014 लोकसभा चुवाव ने मुस्लिम वोट बैंक, अल्पसंख्यक समुदाय के समर्थन के बिना भारत में कोई सरकार नहीं बना सकता है जैसे कई मिथ तोड़ दिए थे और देश में पहली बार एक बहुसंख्यकवादी मुकम्मल दक्षिणपंथी सरकार वजूद में आयी थी, जिसके मुखिया ने अपने चुनाव प्रचार के शुरुआत में मुम्बई की गलियों में पड़े पैमाने पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगवाये थे जिसमें बड़े -बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था ‘मैं हिंदू राष्ट्रवादी हूं’। अब जहाँ एक तरफ मुल्क के राजनीतिक पटल पर एक ऐसी राजनीतिक विचार सबसे बड़ी ताकत बन चुकी है जो बहुसंख्यकवाद की पैरोकार है और ऐसे दृष्टिकोण को बढ़ावा दे रही है जिससे राष्ट्र की एकता खतरे में पड़ सकती है, वहीँ दूसरी ओर एक ऐसी सियासी जामत भी पटल पर प्रवेश कर चुकी है जो चारमीनार के परछाईयों को दूर छोड़ते हुए पूरे देश के मुसलमानों के राजनीतिक  गोलबंदी की दिशा में आगे बढ़ रही है। एक तरफ जहाँ आये दिन लव जिहाद, धर्मांतरण और हिन्दू राष्ट्र का शोर उठाया जा रहा है तो दूसरी तरफ यह ऐलान किया जा रहा है कि “इस्लाम सभी धर्मों का वास्तविक घर है और जब सभी धर्मों के लोग इसे अपनाएंगे, तब यह वास्तविक ‘घर वापसी’ होगी।“

इसी खेल को जारी रखते हुए केंद्र और महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार के सहयोगी पार्टी के नेता और भारतीय संसद के सदस्य संजय राउत ने मुख्यपत्र “सामना” में मुसलमानों से वोट देने का अधिकार छीनने की मांग करते हुए लिखते हैं कि ‘‘अगर मुसलमानों का इस्तेमाल केवल राजनीति करने के लिए इस तरह किया जा रहा है तो उनका कभी विकास नहीं हो सकता। जब तक मुस्लिमों का इस्तेमाल वोट बैंक की राजनीति के लिए होता रहेगा, उनका कोई भविष्य नहीं होगा और इसलिए बालासाहब ने एक बार कहा था कि मुस्लिमों का मताधिकार वापस लिया जाए। उन्होंने सही कहा था।’’ उन्होंने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल-मुस्लिमीन (एमआईएम) और उसके नेताओं ओवैसी बंधुओं की तुलना भी ऐसे जहरीले सांपों से की जो अल्पसंख्यक समुदाय का शोषण करने के लिए जहर उगलते रहते हैं।अब बारी इस खेल के दूसरे खिलाडी एमआईएम के नेता असादुद्दीन ओवैसी की थी जिन्होंने “पलटवार’ करते हुए कहाकि “कोई माई का लाल मुसलमानों मताधिकार नहीं छीन सकता है”।

दरअसल यह दोनों विचारधारायें परजीवी हैं और एक दूसरे को फलने-फूलने के लिए खाद-पानी सप्लाई करने का काम करती हैं, इसीलिए हम देखते हैं कि यह एक दूसरे को जवाब देने में देर नहीं करते हैं।

उस वक्त बंटवारे से पहले भी कुछ ऐसा ही खेल खेला गया था, जब आजादी की लडाई  के दौरान हिन्दू और मुस्लिम कट्टरवादियों ने स्वतंत्रता संग्राम का यह कहकर विरोध किया था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग राष्ट्र हैं। जहाँ एक तरफ मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने 1940 में भारत के मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र पाकिस्तान की माँग का प्रस्ताव पारित किया गया था जिसके पीछे तर्क था कि “हिन्दुओं और मुसलमानों के धर्म, विचारधाराएँ, रीति-रिवाज़ और साहित्य बिलकुल अलग-अलग है। एक राष्ट्र बहुमत में और दूसरा अल्पमत में, ऐसे दो राष्ट्रों को साथ बाँध कर रखने से असंतोष बढ़ कर रहेगा और अंत में ऐसे राज्य की बनावट का विनाश हो कर रहेगा”, वहीँ दूसरी ओर सावरकर ने 1937 में अहमदाबाद में हुए  हिंदू महासभा के 19वें अधिवेशन के अध्यक्षीय भाषण में कहा था कि “हिंदू और मुसलमान दो अलग राष्ट्र हैं”।

हमारे समय में भगवा  खेमे जे  सबसे बड़ी आवाज मोहन भगवत कहते हैं कि “भारत एक हिंदू राष्ट्र है और संघ राष्ट्र निर्माण करने वाला संगठन है,वह देश के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना भर रहा है, हमें अनुकूल परिस्थितियों का फायदा उठाना है”। आज आरएसएस के लोग देश और कई राज्यों की सरकारों को चला रहा हैं और बहुत की करीने और योजनाबद्ध तरीके से संघ की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं।   इसके बरअक्स ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन(एआईएमआईएम) जैसे सियासी जमात सामने आ रहे हैं, जैसा की इसके नाम से ही जाहिर है एआईएमआईएम मुस्लिम समुदाय के इत्तेहाद की बात करती है यह मुस्लिम समुदाय में साम्प्रदायिक चेतना जागते हुए इसे एक धार्मिक समुदाय से एक ऐसे राजनैतिक समुदाय में परिवर्तित करना चाहती है जिसका वह राजनैतिक प्रतिनिधि कर सके। गौरतलब है कि इसके बरअक्स शिवसेना, संघ और यहाँ तक की बीजेपी के कई नेता यह एलान कहते हुए पाए जा सकते हैं कि उन्हें मुसलमानों के वोट की कोई जरूरत हैं उन्हें तो सिर्फ हिन्दुओं के वोट की ही जरूरत है।

एमआईएम का इतिहास करीब 80 साल पुराना है, आजादी के बाद एमआईएम ने हैदराबाद को हिन्दुस्तान का हिस्सा बनाने का विरोध करते हुए अलग मुस्लिम राज्य का समर्थन किया था, हैदराबाद का भारत में विलय के बाद सरकार ने इस पर बैन लगा दिया था जिसे 1957 में हटाया गया। बैन हटने के बाद से  इस संगठन की बागडोर ओवैसी परिवार के हाथ में है, जिनपर यह आरोप लगते रहे हैं कि वे अपने भड़काऊ भाषणों से हैदराबाद में साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते रहे हैं। लेकिन मजलिस के समर्थक उसे भारतीय जनता पार्टी और दूसरे हिन्दू संगठनों का जवाब देने वाली ताकत के रूप में देखते हैं। एआईएमआईएम अब केवल हैदराबाद में असर रखने वाली पार्टी नहीं रह गई है, यह धीरे- धीरे महाराष्ट्र में भी अपनी पैठ जमाती जा रही है हाल में सम्पन्न हुए औरंगाबाद नगर निगम के चुनाव में एआईएमआईएम ने 53 सीटों पर चुनाव लड़ा और 25  सीटों पर पर सफलता हासिल करते हुए वह शिवसेना के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है,  कुल 113 सीटों में से शिवसेना को 29 सीटें मिली और भाजपा को 22 सीटें मिली हैं । इससे पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने दो सीटें जीती थी. यहाँ उसने 31 उम्मीदवार खड़े करते हुए मुंबई में भायखला सीट एवं औरंगाबाद मध्य की सीटों पर जीत दर्ज की थीं । यही नहीं कई सीटों पर उसने कांग्रेस, राकांपा और समाजवादी पार्टी जैसे दलों को नुकसान भी पहुंचाया था, अगले सालों में ओवैसी की पार्टी मगरिबी बंगाल,यूपी, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में अपने विस्तार को लेकर काम कर रही है। एमआईएम की राजनीतिक शैली हिंदूत्ववादी राजनीति की तरह ही है फर्क सिर्फ इतना है यह विपरीत ध्रुव में काम कर रही है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से संघ परिवार के नेताओं द्वारा जिस तरह से हिन्दुतत्व और बहुसंख्यकवाद के पक्ष में खुलकर बयानबाजी की जा रही है उससे  मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना स्वभाविक है, ऐसे में एमआईएम को अपने विस्तार में आसानी होगी और वह मुस्लिम समुदाय की भावना को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर सकती है।  एमआईएम के विस्तार से हिंदू और मुस्लिम वोटों को ध्रूवीकरण होगा और इससे दोनों को ही फायदा होगा।

1947 में भारत विभाजन के बाद के बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक संघर्षों और देश भर में रक्तपात को देखा गया था। लेकिन पाकिस्तान के विपरीत भारत ने धर्मनिरपेक्ष रास्ते को चुना, जिसकी मिसाल भी दी जाती है, हालांकि इस बीच दोनों समुदायों के बीच तनाव को उभारने की कोशिश भी जारी रहीं और चौरासी दंगे,बाबरी विध्वंस, गोधरा और उसके बाद की घटनायें सामने आयीं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि विभाजन भी हमारे मजहबी मतभेदों को कम नहीं कर पायी है। आज नफरत की राजनीति अपने उफान पर है,हमारे धर्मनिरपेक्ष और समावेशी होने का दावा फीका पड़ने लगा है, हिंदू और मुसलामान बसाहटों के  मिश्रित क्षेत्र खत्म हो रहे हैं, यह सब आने वाले गंभीर चुनौती की तरफ इशारा हैं।

सदियाँ लग गयी थीं जब इस देश के हिंदुओं और मुसलमानों ने एक साथ मिलकर मिश्रित सभ्यता बनायीं थीं, यह एक ऐसा खूबी थी जिसे दुनिया की दूसरी सभ्यतायें हम से सीख सकती थीं।लेकिन ब्रिटिश शासकों ने भारत में आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने के लिए दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ को पैदा करते हुए “फूट डालो और राज्य करो” की नीति पर अमल किया और योजनाबद्ध रूप से हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के प्रति शक को बढ़ावा दिया, अब आज हमारे अपने ही लोग ठीक वही काम कर रहे हैं और सांझेपन की इस बहुमूल्य पूँजी को तार–तार किये जा रहे हैं। ताजा मामला गुजरात के अहमदाबाद का है जहा स्कूल अपने यूनिफॉर्म के रंग धर्म के आधार पर तय कर रहे हैं, इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के शाहपुर पब्लिक स्कूल में हिंदू बच्चों की संख्या ज्यादा होने की वजह से वहां बच्चों को भगवा रंग की यूनिफॉर्म दी गई है जबकि दानी लिम्डा पब्लिक स्कूल जहाँ के ज्यादातर बच्चे मुस्लिम हैं उनके लिए हरे रंग का यूनिफॉर्म तय किया गया है।

पाकिस्‍तान के बनने के एक साल बाद मौलाना आज़ाद ने वहीँ की एक पत्रिका को इंटरव्‍यू देते हुए पाकिस्‍तान के लिए एक अंधकारमय समय की भविष्‍यवाणी की थी जो की आज सच साबित हो रही है। उन्होंने कहा था ‘‘सिर्फ इतिहास यह फैसला करेगा कि क्‍या हमने बुद्धिमानी और सही तरीके से बंटवारे का प्रस्‍ताव मंजूर किया था।’’ पकिस्तान का वर्तमान उनके इस भविष्‍यवाणी को सही साबित कर चूका है,  आज हम इससे सबक सीखने को राजी नहीं है और उसी आग से खेल रहे हैं जिनके लपटों में हम पहले भी झुलस चुके हैं, इस बार का जख्म ज्यादा गहरा हो सकता है क्योंकि आग लगाने वाले तो बहुत हैं लेकिन इस आंच को कम करने के लिए हमारे साथ कोई गाँधी, नेहरु और आजाद मौजूद नहीं है।
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anis-javedjaved-anis,writeranisjavedपरिचय – :

जावेद अनीस

लेखक ,रिसर्चस्कालर ,सामाजिक कार्यकर्ता

लेखक रिसर्चस्कालर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, रिसर्चस्कालर वे मदरसा आधुनिकरण पर काम कर रहे , उन्होंने अपनी पढाई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पूरी की है पिछले सात सालों से विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ जुड़  कर बच्चों, अल्पसंख्यकों शहरी गरीबों और और सामाजिक सौहार्द  के मुद्दों पर काम कर रहे हैं,  विकास और सामाजिक मुद्दों पर कई रिसर्च कर चुके हैं, और वर्तमान में भी यह सिलसिला जारी है !

जावेद नियमित रूप से सामाजिक , राजनैतिक और विकास  मुद्दों पर  विभन्न समाचारपत्रों , पत्रिकाओं, ब्लॉग और  वेबसाइट में  स्तंभकार के रूप में लेखन भी करते हैं !

Contact – 9424401459 –   anisjaved@gmail.com
C-16, Minal Enclave , Gulmohar clony 3,E-8, Arera Colony Bhopal Madhya Pradesh – 462039

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1 COMMENT

  1. Good article.Leaderships are working on politics of divide and rule.Muslims always were used as vote banks now Hindus too have been polarised.Muslims need to stop voting as vote banks and right wing leaders need to assimilate and win confidence of Muslims and all Indians. The progress should be all encompassing. Muslim leaders too had only personal gains in mind. They need to think beyond muslims and progress of all Indians as a whole. The more they only localise with their community more distrust abd divide developed.same goes for Bjp and it’s allies. It is time all parties think of India and Indians. Religion is personal and should not be allowed to spill on streets. State laws should rule supreme.
    Time for communities to work on unification with mutual trust.

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