कंचन पाठक की कविताएँ

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कंचन पाठक की कविताएँ 

” मौन “

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सीमित है शब्दों की सीमाएँ …
असीमित है मौन, सदैव मुखरित !
रहस्यमय है मौन
पर सुन्दर है मौन
मौन हो चटखती हैं कलियाँ
खिलते हैं पुष्प … और
मौन हीं बढ़तीं तरुवल्लरियाँ
मौन हीं गति करते नक्षत्र
सुनो मौन की भाषा सहस्त्र
शब्दों का सौन्दर्य –
सजे संवरे कृत्रिम उद्यान का
रेखा-गणितिक सौन्दर्य …
और मौन
जैसे पावस में पर्वत प्रदेश पर
झरते निर्झर का निर्दोष किल्लोल …
तुम्हारे मौन में समाए
सारे अनुनय,
प्रश्न, अनुभूतियाँ, स्नेहालाप …
स्पष्ट उच्चरित होते हैं
मेरी चेतना में
तुम , मैं और तुम्हारा मौन
तुम्हारा मौन
मधुमास में
खिले गुलाब-सा
मादक … सम्मोहक …
तुम्हारा मौन
अगरूगंध की
रहस्यमय कुहासे की भांति
मेरे मन को
घेर कर लिपटा हुआ
श्श्शss …
कुछ ना कहो ,
शब्दों की
पदचाप सुनकर
कहीं ये मोहक स्वप्निल धुँध
बिखर ना जाये … !!

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“ मुक्ति की सुन्दर असीमता का गुप्त भेद “

गहरा समन्दर … हलके हरे रंग का
और तलहटी में झक्क सफ़ेद प्रस्तर
गोल गोल … रोटियों के जैसे
ना ना … मोतियों के जैसे
भीतर से कहीं खोखले
उस अथाह जलराशि
निखिल उदधि मेखला
के बीच … झलमल झिलमिल
वह मधुनिधि-सा
ख़ूबसूरत द्वीप
जिसके चारों ओर पसरा हुआ
सहस्त्रों सुकोमला हरितामयी पाद्पावलियों
का कुन्तल जाल
मलयानिल का आंत संचरण
जैसे-जैसे समुद्री ज्वार
बढ़ता जाता है …
छोटी और भी छोटी होती जाती है परिधि
उस द्वीप की …
और आत्मा में गहरे तक धंसा डर
अलग होता जाता है
तत्पश्चात धीरे-धीरे डर का
सम्पूर्ण अस्तित्व हीं हो जाता है विलीन …
सच  ! मानो कि मेरी अंतरात्मा भी
छिटक कर बाहर आ गई हो
हाँ खुला हुआ है मेरे सम्मुख वह पृष्ठ
जिसपर अंकित है कालगति का एक भेद
गुप्त भेद … मुक्ति की सुन्दर असीमता का !!
और वह प्रकट होता है
उस अमर दिशा से
सौम्य शाश्वत सत्य दिव्य ज्योति …
वह सनातन स्वर्गदूत …
सर झुका कर गहन भाव से सुनता है
मोती के रहस्यमय खालीपन को
अंतःकरण की विकराल वेदना को
जीवन के निविड़ निशा में पुनः
जलेगी नवजीवन ज्योति क्या …
हाँ , मुझे अब जाना होगा
आह ! सुदूर प्रदेश में अनुपमेय अनंत कण
मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं … !!!!

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” कुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं होते “

हाँ शायद
इस संसार में हर सम्बन्ध
स्वार्थ के धागे से गुंथा हुआ होता है
पर सूक्ष्मता में हीं सही
ऐसे सम्बन्धों का अस्तित्व भी
तो होना चाहिए ना
जो पूर्णरूपेण निःस्वार्थ निश्छल हो
तो चलो
आज कुछ अलग-सा किया जाए
पूर्णरूपेण निःस्वार्थ निश्छलता से
एक दूजे को
ह्रदय में अधिष्ठित किया जाए
उर की अधित्यका पर
नन्हा नेहपादप रोपा जाए
भावनाओं के ओसबूँदों से सींचकर
दुलार के कुनकुने धूप से पोसा जाए
प्रेम की तीव्रता
चाहे कितनी भी विस्तृत हो
किन्तु लेशमात्र भी दूषित ना होने पाए
मेरी मानो …
कुछ अलग हीं आह्लादित करती
अनुभूति होगी
अभिलाषाओं की क्रोड में लेटी
जंगली कनकचम्पा से लदी अनोखी मादकता की
हाँ …. कुछ और भी शब्दातीत अनुभूतियाँ
हर एक अनुभूति को
व्यक्त करने के लिए
शब्द यथेष्ट नहीं होते !
सुगंध को पूर्णरूपेण शब्दों में
बाँधा जा सकता है क्या ?
नहीं ना !!
***
उर, मन, चेतना के भी
कुछ ऐसे उद्गार, अनुभूतियाँ होती हैं
जिन्हें ज्यों का त्यों व्यक्त करने वाले
शब्दों का सृजन अबतक नहीं हुआ !!

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” प्रेम विहग “

ललित मद्गंध, सुन्दर सुकोमल,
अत्यंत सुचिक्कन, मोहक, मनहर
रंगबिरंगे सुपर्णों वाला ….
अलौकिक विहग है … ” प्रेम विहग ” … !!
निःस्वार्थ समर्पण, त्याग … और
सम्पूर्ण विश्वास के सच्चे मोती
यही है इनकी खुराक !
हाँ ”विश्वास” – बौद्धिक समझ का नहीं ,
उर की गहन भावना का …
अगर ये ना मिले, तो कुछ और खाकर
कहाँ जीवित रह पाता है यह शकुन्त
भूखा-प्यासा हीं मृत्यु का वरण कर लेता है !
सम्पूर्ण संसृति में ऐसा कौन होगा
जिसने इस अद्भुत सौन्दर्यशाली विहग को
अपने जीवन-काल में कभी भी ना देखा हो ?
किन्तु जब भी किसी ने इसे बलपूर्वक
जबरदस्ती पकड़ने की कोशिश की
अपने सुन्दर रेशमी पंखों को
पसारकर यह तत्क्षण उड़ चला और
देखते हीं देखते ना जाने कहाँ अंतर्ध्यान हो गया !
कभी जब किसी ने बड़े प्रयत्न से पकड़कर
पिंजड़े में कैद कर इसपर विजय प्राप्त करनी चाही
इसने दुःखित, क्रंदनमय हो दम तोड़ दिया
कहो कौन हो तुम ?
हे ! स्वर्गिक सुन्दर निर्मल
अनुराग विलक्षण द्वासुपर्ण
क्या केवल मृगतृष्णा हो तुम ?
शापित प्रारब्ध हो ?
या कि रोदनमय स्वप्न
अथवा कुछ और … ??

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kanchan pathak copyपरिचय :-

कंचन पाठक

कवियित्री व्  लेखिका

शिक्षा – प्राणी विज्ञान से स्नातकोत्तर (M.Sc. in Zoology)

प्रयाग संगीत समिति से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रभाकर (M.A.)

सहसंपादिका ‘आगमन’

एक कहानी संग्रह “सिर्फ़ तुम” प्रकाशित, दो संयुक्त काव्यसंग्रह “सिर्फ़ तुम” और”काव्यशाला” प्रकाशित एवं तीन अन्य प्रकाशनाधीन ।
आगमन साहित्य सम्मान २०१३ ।

लेखन विधा – कविताएँ (छंदबद्ध, छंदमुक्त), आलेख, कहानियाँ, लघुकथाएँ, व्यंग्य ।

कादम्बिनी, अट्टहास, गर्भनाल पत्रिका, राजभाषा भारती (गृहमंत्रालय की पत्रिका), समाज कल्याण (महिला एवं बाल विकास मंत्रालय), रुपायन (अमर उजाला की पत्रिका) समेत देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित ।
इन्टरनेट पर विभिन्न वेब पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित ।

हमारा मेट्रो (दिल्ली) एवं कृषिगोल्डलाइन में हर सप्ताह कॉलम प्रकाशित ।

मेल आईडी – pathakkanchan239@gmail.com

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