नायक-खलनायक की छवि से जूझता ‘कलयुग का रावण’

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– तनवीर जाफरी –

भारतवर्ष में,खासतौर पर उत्तर भारत में जहां-जहां गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित राम चरित मानस अथवा तुलसी रामायण को हिंदू धर्म के एक सर्वप्रमुख धर्मग्रंथ के रूप में स्वीकार किया जाता है अथवा इस का पठन-पाठन किया जाता है वहां-वहां भगवान श्री राम को इसी रामायण की मान्यताओं के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में माना जाता है जबकि रावण को एक अहंकारी राक्षस के रूप में स्वीकार किया जाता है। परंतु श्रीलंका सहित दुनिया के कई देश यहां तक कि दक्षिण भारत के भी कई राज्य ऐसे हैं जहां विजयदशमी के अवसर पर या तो रावण दहन नहीं किया जाता या रावण की आराधना की जाती है या रामलीला के मंचन में तुलसी रामायण के बजाए बाल्मीकि रामायण का नाटकीकरण किया जाता है। गोया हम कह सकते हैं कि रावण का चरित्र कोई ऐसा राक्षस रूपी चरित्र नहीं था जिसे सर्वमान्य रूप से हमेशा से ही राक्षस ही स्वीकार किया जाता रहा हो। इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि रावण की आलोचना,उसकी निंदा या विरोध करने वालों के साथ-साथ उसके समर्थन में खड़े होने वाले लोगों की कभी कमी नहीं थी।

इस विषय को लेकर एक और बड़ी दिलचस्प बात यह सामने आती है कि देश में जहांं ब्राह्मण समाज से संबंध रखने वाले कई संगठन रावण को ब्राह्मण कुल का सदस्य बताते हुए उसके पक्ष में तरह-तरह की दलीलें देते आ रहे हैं उसे महान,ज्ञानी,तपस्वी तथा धर्मात्मा बताते हैं वहीं दूसरी ओर देश का दलित व आदिवासी समाज जो अक्सर यह कहता भी सुनाई देता है कि उसकी उपेक्षा व अवहेलना की जि़म्मेदार ब्राह्मणवादी मनुवादी व्यवसथा ही है, वह बाल्मीकि समाज भी रावण पर अपना अधिकार जमाता देखा जा रहा है। ब्राह्मण समाज के बहुत से लोग ब्राहमण होने के नाते रावण का दहन करने का विरोध करते तो सुने जाते हैं परंतु रावण का मंदिर स्थापित करने या उसकी आराधना करने में उनकी कोई रूचि दिखाई नहीं देती। जबकि वाल्मीकि समाज के लोग कई स्थानों पर रावण की मूर्ति स्थापित करवा रहे हैं तथा उसके नाम पर मंदिर भी बनवा रहे हैं। अब तो हमारे समाज में वह कहावत भी समाप्त हो चुकी है कि-बुराई या बुरे व्यक्ति से जोडक़र कोई अपने बच्चों के नाम नहीं रखता। आज हमारे समाज में राम-लक्ष्मण-सीता नाम के तो अनगिनत लोग मिल जाएंगे परंतु रावण,मंथरा,लंकेश या असुर व राक्षस जैसे नाम रखते हुए लोग नहीं दिखाई देते थे। परंतु अब इस प्रकार की धारणाएं लगता है पुरानी पड़ चुकी हैं। अब रावण को देवता अथवा महापुरुष के रूप में स्वीकार करने वाले लोग अपने बच्चों के नाम अछूत,असुर,राक्षस,एकलव्य,लंकेश तथा रावण आदि रखने लगे हैं।

हरियाणा-पंजाब,उत्तर प्रदेश से लेकर मध्यप्रदेश तक कई जगहों पर प्रत्येक वर्ष रावण दहन का विरोध किया जाता रहा है। इस वर्ष भी मध्यप्रदेश के बैतूल जि़ले में आदिवासी समाज के लोगों द्वारा रावण दहन के विरोध में जुलूस निकाले गए,प्रदर्शन किए गए तथा राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए ज्ञापन जि़ले के अधिकारियों को सौंपे गए। इस ज्ञापन में भी यही कहा गया कि चंूकि आदिवासी समाज रावण को देवतुल्य मानता है इसलिए रावण दहन की परंपरा को बंद किया जाना चाहिए। यहां बने रावण के एक मंदिर में विजयदशमी के दिन आदिवासी समाज के लोग इक_ा होते हैं तथा पूरे देश में हो रहे रावण दहन का शोक मनाते हैं। रावण की पैरवी करने वाले तथा उसके पक्ष में दलीलें पेश करने वाले लोगों का कहना है कि रावण ने सीता हरण कर कोई इतना बड़ा अपराध या पाप नहीं किया था कि जिसकी सज़ा उसे आज तक रावण दहन के रूप में दी जा रही है। तर्कशील लोगों द्वारा यह सवाल भी पूछा जाता है कि सीता हरण की घटना का कारण लक्ष्मण द्वारा रावण की बहन शुर्पनखा की नाक काटा जाना था। लिहाज़ा सीता हरण की पहली जि़म्मेदारी तो लक्ष्मण की ही होती है। वहीं रावण को नायक मानने वाले लोगों का कहना है कि हमारे समाज में यदि किसी की भी बहन के साथ शुर्पनखा जैसी घटना घटे तो उसे रावण जैसे भाई से ही प्रेरित होना चाहिए। एक सवाल यह भी पूछा जाता है कि जब रावण-राक्षस,अधर्मी तथा अहंकारी था तो रावण की मृत्यु के समय राम ने लक्ष्मण को रावण के पास क्यों भेज था?

नोएडा,फरीदाबाद,हरियाणा तथा पंजाब में कई स्थानों से रावण के मंदिर बनाए जाने के समाचार मिल रहे हैं। रावण की मूर्तियों को अब पांरपरिक असुर जैसी डरावनी अथवा खौफनाक नहीं बल्कि सुंदर व आकर्षक बनाया जा रहा है। रावण की स्तुति करने वाली आरती लिखी जा चुकी है तथा रावण के नाम  के साथ अब महात्मा शब्द लगाकर उसे महात्मा रावण पुकारा जाने लगा है। बाल्मीकि समाज के लोगों का मानना है कि रावण भी बाल्मीकि को देवता तुल्य मानता था और उसकी पूरी आस्था ‘बाल्मीकि दयावान’ में थी। लिहाज़ा वे भी भगवान बाल्मीकि को परमात्मा तथा रावण को महापुरुष के रूप में स्वीकार करते हैं। रावण का प्रशंसक व हिमायती वर्ग राक्षस शब्द का अर्थ भी रक्षा करने वाले दल के रूप में परिभाषित कर रहा है न कि राक्षस यानी कोई दुष्ट,शैतान या ज़ालिम चरित्र। रावण के पैरोकारों के अनुसार राम-रावण युद्ध में चूंकि राम विजयी हुए थे इसलिए उस समय के समाज ने भी आज की ही तरह विजयी पक्ष का साथ देते हुए उसका महिमामंडन तो ज़रूर किया परंतु इंसाफ हरगिज़ नहीं किया। और यदि इंसाफ किया गया होता तो लक्ष्मण व रावण दोनों ही को बराबर का दोषी ठहराया जा सकता था। रावण के पक्षकार यह भी कहते हैं कि वह चूंकि पर्यावरण का बहुत बड़ा रखवाला था इसीलिए वह यज्ञ परंपरा के बेहद िखलाफ था और वृक्ष कटान को रोकने के लिए ऋषियों-मुनियों द्वारा कहीं भी हो रहे हवन-यज्ञ को खंडित कर दिया करता था।

तुलसीदास रचित रामायण के अनुसार रावण के भाई विभीषण ने राम का साथ देकर अपने भाई रावण के वध में राम का सहयोग किया। प्रथम दृष्ट्या तो यह ऐसा ही प्रतीत होता है कि विभीषण ने बुराई को समाप्त करने के लिए अच्छाई का या सत्य का साथ दिया। परंतु यह भी सच है कि आज विभीषण की न तो कोई प्रशंसा करता है न ही दूसरे प्रमुख राम भक्तों के रूप में विभीषण की गिनती होती है। हां इतना ज़रूर है कि भारत में हज़ारों सालों से विभीषण की ओर इशारा करती हुई ‘घर का भेदी लंका ढाए’ जैसी कहावत ज़रूर प्रचलित है। बहरहाल, चूंकि मेरा संबंध एक ऐसे क्लब से है जो विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले का दहन कर समाज से बुराईयों को समाप्त करने का संकल्प प्रत्येक वर्ष विजयदशमी के दिन दोहराता है लिहाज़ा मेरे लिए यह विषय कौतूहल का विषय है कि क्या समाज में रावण को लेकर प्रचलित मान्यताएं,उसकी स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता में कोई परिवर्तन आने वाला है? और यदि ऐसा हो रहा है तो क्या अब तक हम विजयदशमी जैसे जिस पावन पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व बताते व समझते आ रहे हैं वह हमारी भूल थी? परंतु इन सबसे अधिक दिलचस्प,मज़ेदार व सकारात्मक बात यह है कि एक-दूसरे के प्रति ऊंच-नीच का भाव रखने वाला ब्राह्मण व बाल्मीकि समाज रावण दहन के विरोध को लेकर कम से कम एक स्वर में बोलता दिखाई दे रहा है। यदि भारतीय समाज से रावण दहन की परंपरा समाप्त होने के साथ-साथ समाज से जातिगत भेदभाव भी जड़ से समाप्त हो सके तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है? परंतु िफलहाल तो रावण दहन के पक्ष और विरोध के बीच रावण का व्यक्तित्व नायक व खलनायक की छवि के मध्य ही जूझ रहा है।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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