जयश्री रॉय की लघु कथा अग्नि परीक्षा

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जयश्री रॉय लघु कथा अग्नि परीक्षा

Jayshree-Roy-writer-writer-Jayshree-Roypoet-Jayshree-RoyJayshree-Roy-poet-story-teller-Jayshree-Roy– अग्नि परीक्षा –
“क्या शादी से पहले दुल्हन की किसी के साथ आशनाई?” सुन कर दुल्हा तप करअंगार बन गया- “अभी ख़बर लेता हूं!”

देर रात खूब शराब पी कर दूल्हा सुहाग कक्ष में नाग की तरह झूमता हुआप्रवेश किया. घूंघट की ओट से किशोरी दुल्हन ने अपने शराबी पति का विकरालरुप देखा तो डर से उसका गुलमोहरी चेहरा पल भर में राख हो गया. नाक कीबड़ी-सी नथ भी एक बारगी थरथरा उठी.

“ओह! घूंघट के नीचे नचनी!” व्यंग्य और आक्रोश से सांप की तरह हिसहिसातेहुये दूल्हे ने उसका घूंघट नोंच कर फेंक दिया था. इसके दाथ ही झटके सेदुल्हन की कलाई भर चूड़ियां छनछना कर टूट गयी थीं. इतनी जल्दी अपने सुहागचिन्हों के टूट जाने से उस संस्कारी दुल्हन की काजल आंजी आंखें आंसुओं की नन्ही बूंदों से झिलमिला उठीं।

“चल उठ!” दूल्हे ने उसे उठा कर दुबारा बिस्तर पर धकेल दिया था. स्वामीस्वामित्व पर उतर आया था. दरवाज़ें के बाहर कुटुम्बियों के कान उत्सुकता में तने हुये थे. कमरे के भीतर से आती हुई एक-एक चीख और सिसकियां उन्हेंरोमांच से भर रही थीं.

अंदर बिस्तर की चिता पर एक बार फिर सीता को बैठा दिया गया था. हालात वही थे, मानसिकता भी वही, बस इस बार लकड़ियों की जगह उसकी चिता पर सुलगते हुये फूल बिछा दिये गये थे. अगर कहीं कुछ नहीं बदला था तो वह थी वह औरत जिसकीएक मात्र नियति शायद हर युग में, हर जन्म में सिर्फ चिता पर बैठना ही होती है!

कुछ देर बाद एक सामाजिक और पारम्परिक बलात्कार के बाद पूरी तरह संतुष्टहो कर दूल्हा नशे में घुट गहरी नींद सो गया था. मगर धर्षित और बुरी तरह आहत दुल्हन की काजल लिसरी आंखों में नींद की जगह सिर्फ दु:स्वप्न भरे थे.रह-रह कर वह इस ख्याल से कांप उठती थी कि चिता की आग़ में अपने चरित्र के कुंदन को खरा सिद्ध करने के बाद भी अगर उसे वनवास मिल गया तो…!

Jayshree-Roy-writer-writer-Jayshree-Roypoet-Jayshree-RoyJayshree-Roy-poet-story-teller-Jayshree-Royinvc-newsपरिचय :-
जयश्री रॉय
शिक्षा : एम. ए. हिन्दी (गोल्ड मेडलिस्ट), गोवाविश्वविद्यालय

प्रकाशन :  अनकही, …तुम्हें छू लूं जरा, खारा पानी (कहानी संग्रह), औरत जो नदी है, साथ चलते हुये,इक़बाल (उपन्यास)  तुम्हारे लिये (कविता संग्रह)
प्रसारण : आकाशवाणी से रचनाओं का नियमित प्रसारण
सम्मान  :  युवा कथा सम्मान (सोनभद्र), 2012
संप्रति :  कुछ वर्षों तक अध्यापन के बाद स्वतंत्र लेखन

संपर्क : तीन माड, मायना, शिवोली, गोवा – 403 517 – मोबाइल :  09822581137, ई-मेल  :  jaishreeroy@ymail.com

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  1. अंदर बिस्तर की चिता पर एक बार फिर सीता को बैठा दिया गया था. हालात वही थे, मानसिकता भी वही, बस इस बार लकड़ियों की जगह उसकी चिता पर सुलगते हुये फूल बिछा दिये गये थे. अगर कहीं कुछ नहीं बदला था तो वह थी वह औरत जिसकीएक मात्र नियति शायद हर युग में, हर जन्म में सिर्फ चिता पर बैठना ही होती है! wah, badee hee marmik laghukatha

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