आईएनवीसी इंटरनेशनल अवॉर्डी भारतीय पाराशर के जन्मदिन पर सेवादान एक संकल्प

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भारती पाराशर
भारती पाराशर

आई एन वी सी न्यूज़
नई दिल्ली ,

एक सामान्य परिवार में जन्मी और गरीबी की दुनिया से निकल कर एक कर्मयोगी व्यक्तित्व भारती पाराशर ने कैसे स्कूली शिक्षा से विश्वविद्यालय शिक्षा के मंदिरों की स्थापना की यह महज एक इत्तेफाक नहीं वल्कि कर्म योग की अवधारणा का जीता जागता उदाहरण है। यूं तो कहते हैं कि मां किसी भी व्यक्ति के लिए जीवन रचना का सबसे बड़ा माध्यम होती है परंतु यदि किन्हीं ऐसे व्यक्तियों के शब्दों में कहा जाए जिनको उस मां ने स्वयं तो जन्म ना दिया हो परंतु उसके व्यक्तित्व की रचना उसने की हो तो कुछ और बात होती है। यही तो वह बात है जहां पर हजारों बच्चे उनको मातुश्री बुलाते हैं।

8 अगस्त को महर्षि अरविन्द संस्थान समूह एवं महर्षि अरविंद विश्वविद्यालय रक्तदान शिविर का आयोजन पिछले एक दशक से ज्यादा समय से करते आ रहे हैं।

श्रीमती भारती पाराशर वर्ष 2020 के लिए INVC लाइफ टाइम अचीवमेंट्स इंटरनेशनल अवार्ड के लिए चयनित

हजारों विद्यार्थी प्रतिवर्ष उनके जन्मदिवस पर पौधारोपण एवं रक्तदान में भाग लेकर उनके जन्मदिन को एक यादगार बनाने की कोशिश करते हैं।

अभी हाल में जी 20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत पहुंचे डॉ शर्मा ने बताया कि श्रीमती भारती पराशर को सन 2019 का लाइफ टाइम अचीवमेंट इंटरनेशनल आईएनसी अवार्ड प्रदान किया गया था। शिक्षा सेवा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को न केवल राजस्थान वल्कि देश और दुनिया के लोग एक विशेष दृष्टि से न केवल जानते हैं बल्कि महसूस करते हैं कि किस प्रकार एक महिला ने स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक की स्थापना अपने एक जीवन काल में की।

मैडम भारती पाराशर – A Brief Biography

श्रीमती भारती पाराशर का जीवन एक ऐसी किताब की तरह है जिसमें सेवा और संकल्प के अनेकों आयाम छुपे हुए हैं।

श्रीमती पाराशर ने 1975 में अपना शिक्षा मिशन एवं सेवा प्रकल्प शुरू किया था जो आज बढ़ते बढ़ते अनेकों कॉलेज एवं विश्वविद्यालय में स्थापित हो चुका है परंतु उनके जीवन मैं अहंकार के लिए कोई स्थान नहीं है। वह कहतीं हैं कि मैंने ना कोई विश्वविद्यालय बनाया और ना ही कोई कॉलेज एवं स्कूल। मेरे लिए यह सभी तो शिक्षा के मंदिर हैं।

मां के लिए तो एक शायर ने ठीक ही कहा है-
नर्म मां की दुआओं का यह असर निकला,
यह कामयाबी मेरे जीवन का सफर निकला।

जमाने भर की निगाहों ने उसे थाम लिया, जो मां के कदम चूम के घर से निकला।

सख्त राहों में भी आसान सफर लगता है,

यह मेरी मां की दुआओं का असर लगता है।

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