इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन एप्लीकेशंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानव सभ्यता व् उसके रोजगार को चुनौती देना शुरू कर चुका है

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कोरोना काल के बाद इंडस्ट्री 4.0 के नवीन युग में मानव के लिए चुनौतियों से लड़ने के लिए खुद को रिइन्वेंट करना होगा – डॉ शर्मा 

आई एन वी सी न्यूज़
जियामिन चीन ,

“इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन इंटेलिजेंट कंट्रोल एंड कंप्यूटिंग” (आईसीआईसी 2021)” का आयोजन चीन के शहर जियामिन में 22-23 जनवरी 2021 तक किया गया । कांफ्रेंस का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और शोधकर्ताओं को एक मंच पर इंटेलिजेंट कंप्यूटिंग एंड कंट्रोल सिस्टम एवं ऑटोमेशन के क्षेत्रों में इंडस्ट्रियल एप्लीकेशंस और अनुप्रयोगों के प्रबंधन पर चर्चा करना था । कांफ्रेंस में विश्व प्रसिद्ध विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और प्रोफेसरों को प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया।

विश्व के अग्रणी आईटी वैज्ञानिक और आईएलओ, यूनाइटेड नेशंस के अंतर्राष्ट्रीय सूचना तकनीकी सलाहकार,  प्रो डीपी शर्मा ने ” अपने कीनोट स्पीच– “डिस्क्रिप्टिव इनसाइट्स आफ कंप्यूटेशनल कन्वर्जेंस एंड इंटेलीजेंट सिस्टम्स” टॉपिक पर बोलते हुए  टेक्नोलॉजिकल कन्वर्जेंस, मल्टीफोल्ड डिस्सरप्सन्स एंड ह्यूमन सर्वाइवल मॉडल” विषय पर बोलते हुए कहा कि दुनिया के द्रुतगामी विकास एवं इंडस्ट्री 4 रिवॉल्यूशन के मॉडल ने मानवता को 360 डिग्री वाले भूमंडलीकृत चुनौतियों के चक्र में पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है कि हमारा विकास किस तरह का होना चाहिए और आने वाले युग में रोजगार का स्वरूप और स्किल्स सेट कैसे होने चाहिए। आज हम केवल 180-डिग्री फ्रॉंटेंड यानी सिर्फ भविष्य की तरफ देख रहे हैं । हम इस बात से बेखबर हैं कि विज्ञान के विकास में हमने 180 डिग्री वाले भूतकाल  मैं हमने विज्ञान एवं तकनीक के विकास में क्या-क्या गलतियां की हैं इस पर अभी कोई ध्यान नहीं है। विकास के मॉडल पर चाइना की धरती पर चाइना की आलोचना करते हुए डॉ शर्मा ने कहा कि ऐसा क्यों हुआ और कैसे हुआ कि फॉक्सकॉन कंपनी ने एक शाम 60000 लोगों को नौकरी से निकाल दिया और उनकी जगह पर रोबोट लगा दिए। कंपनी ने स्वयं यह भी दावा किया कि उसकी कुछ महीनों में प्रोडक्टिव रेट दो सौ परसेंट बढ़ गई और डिफेक्ट रेट प्रोडक्ट्स की 78% कम हो गई। किसी ने भी इस पर विचार नहीं किया कि कहीं हम विज्ञान एवं तकनीक के विकास में गलत रास्ते पर तो नहीं आ गए।

विकास के ये अतार्किक, अतिवादी तिलिस्म आने वाले वक्त में अनियंत्रित होकर कहीं ऐसा ना हो कि संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए रोजगार की बड़ी चुनौती पैदा कर दें? अभी हाल में अभी हम कोरोना महामारी से निपट भी नहीं पाए हैं कि हमें इंडस्ट्री 4 ने एक नई चुनौती पैदा कर दी है। विज्ञान एवं तकनीक के विकास में हम पीछे नहीं जा सकते मगर हमें सोचना होगा कि हमारे यह तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास हमारे लिए अवसर प्रदान करें ना कि चुनौतियां । यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि विज्ञान एवं तकनीकी के जो बच्चे हमने पैदा किए हैं वह हमें चुनौती कैसे दे सकते हैं परंतु यह चीज सत्यापित करने के लिए हमें अपनी तैयारी, रोजगार के स्वरूप ज्ञान और स्किल्स के स्वरूप को बदलना होगा।
डॉ शर्मा ने अपनी केस स्टडी एवं रिसर्च के माध्यम से बताया कि कैसे इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन एप्लीकेशंस एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास का यह मॉडल मानव सभ्यता एवं उसके रोजगार को चुनौती देना शुरू कर चुका है मगर घबराने की आवश्यकता नहीं है। सावधानीपूर्वक अवसरों को तलाशने एवं चुनौतियों को चुनौती देने का वक्त है और वैज्ञानिक, शिक्षाविद, तकनीकी इस दिशा में अपनी-अपनी तैयारी में जुट गए हैं।
उन्होंने कहा कि ईश्वर ने हमें सुंदर जीवन उपयोगी, सार्थक, और उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए दिया है, लेकिन हमने अपने स्वयं के द्वारा बनाए गए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अतार्किक कुचक्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया ।  

आज हम काफी आगे निकल कर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रणाली के युग में खड़े हैं जहां से वापस लौटना संभव नहीं मगर इसके दूरगामी और द्रुतगामी दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं, रोक सकते हैं।

डॉ शर्मा ने “प्राकृतिक न्याय” के सिद्धांत को “विज्ञान के न्याय” के सिद्धांत से जोड़कर कहा कि- ईश्वर ने हमें अपार बौद्धिक क्षमताएँ दी हैं जैसे – सुनना, देखना, सोचना और संवाद करना।यह सभी क्षमताएं एक साथ मनुष्य के अलावा किसी अन्य प्राणी के पास उपलब्ध नहीं है लेकिन क्या हम प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार चल पा रहे हैं? यहां प्राकृतिक न्याय अर्थात हमें हमारे कर्तव्य पहले और अधिकार दूसरे नंबर पर रखने चाहिए मगर हकीकत में हम इसके ठीक उल्टी दिशा में चल रहे हैं ।

विज्ञान एवं तकनीक ने पूरी दुनिया को एक बाजार बना दिया है जहां बाजार में सिर्फ वस्तुएं हैं और व्यापार है मगर मानवता स्वयं मानवता को ढूंढ रही है।

हम प्रौद्योगिकी और विज्ञान के बाजार को विकसित कर रहे हैं जहां पर हमारा मूल मकसद केवल उच्च लाभ और उत्पादकता बन गया है। प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत हमारा मार्गदर्शन कर सकता है, हमें निर्देशित कर सकता है, हमें प्रेरित कर सकता है, और सही और न्यायपूर्ण मार्ग दिखा सकता है परंतु हम इसे अनदेखा कर रहे हैं।

प्रोफेसर शर्मा ने कहा; आज हमें विज्ञान और प्रौद्योगिकियों की हमारी मौजूदा प्रणालियों को पुनर्व्यवस्थित, पुनर्डिज़ाइन, पुनर्मूल्यांकन और पुनर्गठित करने की आवश्यकता है।

 

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