टिकाऊ समाधान की बाट जोहता भारत का पहला नदी द्वीप

0
21

– अरुण तिवारी –

arun-tiwari.-article-by-aruब्रह्यपुत्र – एक नद्य है, बु्रहीदिहिंग – एक नदी। एक नर और एक नारी; दोनो ने मीलों समानान्तर यात्रा की। अतंतः लखू में आकर सहमति बनी। लखू में आकर दोनो एकाकार हो गये। एकाकार होने से पूर्व एक नदी द्वीप बनाया। असमिया लोगों को मिलन और मिलन से पूर्व की रचा यह नदी द्वीप इतना पसंद आया कि उन्होने इसे अपना आशियाना ही बना लिया। असमिया भाषा भी क्योंकर पीछे रहती। वह भी कुहूक उठी – ‘माजुली’। बस, यही नाम मशहूर हो गया। 1661 से 1669 के बीच माजुली में कई भूकम्प आये। लगातार आये इन भूकम्पों के बाद 15 दिन लंबी बाढ़ आई। वर्ष था – 1750। इस लंबी बाढ़ के बाद ब्रह्मपुत्र नदी दो उपशाखाओं में बंट गई – लुइत खूटी और ब्रुही खूटी। ब्रह्यपुत्र की ओर की उपशाखा को लुइत खूटी, तो ब्रुहीदिहिंग की ओर की ओर उपशाखा को ब्रुही खूटी कहा गया। द्वीप और छोटा हो गया। कालांतर में ब्रुही खूटी का प्रवाह घटा, तो लोगों ने इसका नाम भी बदल दिया। ब्रुही खूटी को खेरकुटिया खूटी कहा जाने लगा। दूसरी ओर कटान बढ़ने से लुइत खूटी का कुछ यूं विस्तार हुआ कि यह प्रवाह पुनः ब्रह्यपुत्र हो गया। भारतीय लोकव्यवहार की यही खूबी है कि यह जड़ नहीं है। बदलाव के साथ, संबोधन तक बदल देता है।

माजुली के कीर्तिमान

बनानाल, अमेज़न, माराजो….दुनिया में कई बड़े द्वीप हैं, किंतु इनके एक सिरे पर
अटलांटिक महासागर होने के कारण इन्हे नदी द्वीप नहीं कहा जा सकता। मौजूदा क्षेत्रफल के आधार पर बांग्ला देश का हटिया नदी द्वीप भी दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप नहीं है। सितम्बर, 2016 में गिन्नीज वल्र्ड बुक आॅफ रिकाॅर्डस ने असम राज्य स्थित माजुली को सबसे बड़े नदी द्वीप का दर्जा दिया है। ईस्ट इण्डिया कंपनी ने 1853 में एक सर्वेक्षण कराया था। उसके अनुसार दर्ज रिकाॅर्ड के मुताबिक, माजुली का क्षेत्रफल उस समय 1246 वर्ग किलोमीटर था। दहाड़ती-काटती जलधाराओं के कारण इसका क्षेत्रफल लगातार घटता गया। माजुली का मौजूदा क्षेत्रफल 421.5 वर्ग कि.मी. है। आठ सितम्बर, 2016 को जिला घोषित होने के साथ ही माजुली, अब भारत का सबसे पहला नदी द्वीप जिला भी हो गया है। जनसंख्या – 1,67,304; आबादी घनत्व – 300 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.; कुल गांव – 144; जातीय समूह – मीसिंग, देओरी और सोनोवाल। माजुली – असम की राजधानी से करीब 350 किलोमीटर दूर स्थित है। जोरहाट से जाने वाले स्टीमर आपको माजुली पहुंचा देंगे।

_____________

माजुली का महत्व

माजुली का महत्व सिर्फ इसका बड़ा होना नहीं है; असमिया सभ्यता का मूल स्थान होने के साथ-साथ माजुली पिछले 500 वर्षों से असम की सांस्कृतिक राजधानी भी है। वैष्णव संस्कृति के धनी माजुली का अपना धार्मिक व राजशाही इतिहास है। माजुली, असम मुख्यमंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल का विधानसभा क्षेत्र भी है। मिसिंग और असमिया यहां की मुख्य बोलियां हैं। माजुली, एक नमभूमि क्षेत्र है। इस खूबी के कारण माजुली में उपलब्ध जैव विविधता विशेष है; माजुली में खेती है, जीवन है और जीवन जीने की एक खास संस्कृति है। माजुलीवासी अच्छे किसान, नाविक, गोताखोर व हस्तशिल्पी हैं। बिना किसी रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के तैयार होने वाले धान की 100 से अधिक किस्मों को माजुली के किसानों से संजो रखा है। मछली पालन, डेयरी, मुर्गीपालन और नाव निर्माण इन्हे अतिरिक्त रोजगार देते हैं। हथकरघे और कलात्मक बुनाई इनके लिए कमाई से ज्यादा वयस्त रखने के पारम्परिक जरिया हैं। फरवरी के दूसरे बुधवार से पांच दिन तक चलने वाला अलीआय लिगांग यहां का सबसे खास त्यौहार है। कृष्ण के जीवन से जुड़े तीन दिवसीय रास में हर माजुलीवासी शरीक होता है। नामघर – हर गांव का सबसे महत्वपूर्ण जनस्थान है। गाना-बजाना, प्रार्थना, उत्सव, निर्णय आदि सामूहिक कार्य नामघर में ही होते हैं।

माजुली का संकट

माजुली में वर्षा काफी होती है और प्रदूषक औद्योगिक इकाइया हैं नहीं। इस कारण माजुली में  प्रदूषण का संकट तो नहीं है, लेकिन जीवन की असुरक्षा और अनिश्चितता यहां एक बड़ा संकट है। एक आकलन के मुताबिक, बीसवीं सदी के अंत तक माजुली की 33 प्रतिशत भूमि ब्रह्यपुत्र के प्रवाह में समा चुकी थी। ब्रह्यपुत्र, हर वर्ष माजुली का बड़ा टुकड़ा निगल जाता है। 1991 से लेकर अब तक 35 गावों का नामोनिशां मिट चुका है। 15वीं शताब्दी के विद्वान संत श्रीमंत शंकरदेव के वैष्णव अनुयायियों ने यहां करीब 60 सतारा बनाये। सतारा, एक तरह से उपासना स्थल थे। कालांतंर में ये सतारा आस्था, कला, संस्कृति और शिक्षा के केन्द्र के रूप में विकसित हुए। नदी कटान रोकने की कोई ठोस कोशिश न होने के कारण इनमें से आधे सतारा अब तक ब्रह्मपुत्र में विलीन हो चुके हैं। यदि कटान की वर्तमान गति जारी रही, तो अगले 15 से 20 वर्ष बाद न माजुली रहेगा और न उसका वर्तमान दर्जा। इस नाते माजुली को संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व विरासत की श्रेणी में शामिल कराने की सिफारिश की गई है। जरूरी है कि माजुली बचे और इसके जरिए भारत की एक शानदार विरासत भी। किंतु यह हो कैसे ?

विपरीत उपाय

कहा जा रहा है कि माजुली को विनाश से बचाने के लिए ब्रह्यपुत्र बोर्ड और जलसंसाधन विभाग पिछले तीन दशक से संघर्ष कर रहे हैं। भारत सरकार ने 250 करोड़ की धनराशि भी मंजूर की। लेकिन कोई विशेष सफलता नहीं मिली। आखिर क्यांे ? आइये समझें।

सब जानते हैं कि बांधने से नदियां उफन जाती हैं। सरकार खुद जानती है कि माजुली में हो रहे विध्वंस के कारण तटबंध ही है। ऊपरी ब्रह्यपुत्र के नगरों को बाढ़ से बचाने के लिए तटबंध बनाये हैं। इन तटबंधों के कारण वर्षा ऋतु में  ब्रह्यपुत्र का वेग इतना बढ़ जाता है कि माजुली आते-आते ब्रह्यपुत्र भूमिखोर हो जाता है। अब सरकार माजुली को बचाने के लिए तटबंध बनाने की सोच रही है। कह रही है कि माजुली को बचाने का यही एकमेव तरीका है। बताया जा रहा है कि यह तटबंध चार लेन हाइवे के रूप में होगा। इसमें दो बाढ़ गेट भी होंगे, जो ब्रह्यपुत्र की बाढ़ को खेरकुटिया में ले जायेगी। मेरी राय में यह विपरीत उपाय है।

असम सरकार को भी समझना चाहिए कि बांधा, तो नदियां उफनेंगी ही; माजुली में  बांधेगे, तो कोप कहीं आगे बरपेगा। कोई और आबादी डूबेगी। नदी किनारे इमारत सड़क जैसे भौतिक निर्माण जैसे-जैसे बढेंगे, जल निकासी मार्ग वैसे-वैसे और अवरुद्ध होता जायेगा। धारायें अपना मार्ग बदलेंगी; रुद्ररूप धारण करेंगी। ब्रह्यपुत्र पहले ही एक वेगवान नद्य है। तटबंध बनाते जाना इसके वेग को बढ़ाते जाना है। कितने और कहां-कहां तटबंध बनाओगे ? कोसी, गंगा समेत तमाम नदियों पर बने तटबंध व बैराज के नतीजे भोगने वाले वाले बिहार की नीतीश सरकार ने कुछ समय पूर्व गंगा पर नये बैराज का विरोध किया था। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भागलपुर से पटना के बीच लगातार बढ़ती गाद संकट के समाधान के रूप में फरक्का बैराज को तोड़ने की मांग कर रहे हैं। असम सरकार को भी समझना होगा।

उचित समाधान

यदि ब्रह्यपुत्र का वेग नियंत्रित करना है, तो ब्रह्यपुत्र घाटी क्षेत्र में बरसने वाले पानी को ब्रह्यपुत्र में आने से पहले ज्यादा से ज्यादा संचित कर करना चाहिए। व्यापक पैमाने पर जल संचयन ढांचें बनाने चाहिए। पानी के साथ जाने वाली मिट्टी को रोकना भी इतना ही जरूरी है। सघन जंगल, छोटी वनस्पति तथा अन्य प्रकृति अनुकूल तरीकों से यह किया जा सकता है। असम के पर्यावरण कार्यकर्ता श्री जादव पयांग ने 550 एकड़ में जंगल लगाकर एक अनुपम उदाहरण पेश किया है। माजुली से ऊपरी ब्रह्यपुत्र क्षेत्र में ऐसे कार्य तत्काल प्रभाव से शुरु करने चाहिए; कारण कि चुनौतियां आगे और भी होंगी।

पूर्वोत्तर राज्यों को भारत की मुख्यधारा में लाने की वर्तमान केन्द्र सरकार की मुहिम का नतीजा असम में आबादी के फैलाव के रूप में सामने आयेगा। बिजली, पानी और निर्माण सामग्री की मांग भी बढे़गी ही। अतः यह सावधानी भी अभी से ज़रूरी होगी कि नदी भूमि, वन भूमि और जलनिकासी के परंपरागत मार्गों पर भौतिक निर्माण न होने पाये; बांध-बैराज से दूर रहा जाये; खनन नियंत्रित किया जाये; वर्ना नज़ीर के रूप में उत्तराखण्ड में हुआ वर्ष 2013 का विनाश हमारे सामने है ही। क्या असम सरकार विचार करेगी ?

_____________

arun tiwari. article by arun tiwari, story by arun tiwari, articles of arun tiwari, story of arun tiwariपरिचय -:

अरुण तिवारी

लेखक ,वरिष्ट पत्रकार व् सामजिक कार्यकर्ता

1989 में बतौर प्रशिक्षु पत्रकार दिल्ली प्रेस प्रकाशन में नौकरी के बाद चौथी दुनिया साप्ताहिक, दैनिक जागरण- दिल्ली, समय सूत्रधार पाक्षिक में क्रमशः उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक कार्य। जनसत्ता, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, नई दुनिया, सहारा समय, चौथी दुनिया, समय सूत्रधार, कुरुक्षेत्र और माया के अतिरिक्त कई सामाजिक पत्रिकाओं में रिपोर्ट लेख, फीचर आदि प्रकाशित।

1986 से आकाशवाणी, दिल्ली के युववाणी कार्यक्रम से स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता की शुरुआत। नाटक कलाकार के रूप में मान्य। 1988 से 1995 तक आकाशवाणी के विदेश प्रसारण प्रभाग, विविध भारती एवं राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से बतौर हिंदी उद्घोषक एवं प्रस्तोता जुड़ाव।

इस दौरान मनभावन, महफिल, इधर-उधर, विविधा, इस सप्ताह, भारतवाणी, भारत दर्शन तथा कई अन्य महत्वपूर्ण ओ बी व फीचर कार्यक्रमों की प्रस्तुति। श्रोता अनुसंधान एकांश हेतु रिकार्डिंग पर आधारित सर्वेक्षण। कालांतर में राष्ट्रीय वार्ता, सामयिकी, उद्योग पत्रिका के अलावा निजी निर्माता द्वारा निर्मित अग्निलहरी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के जरिए समय-समय पर आकाशवाणी से जुड़ाव।

1991 से 1992 दूरदर्शन, दिल्ली के समाचार प्रसारण प्रभाग में अस्थायी तौर संपादकीय सहायक कार्य। कई महत्वपूर्ण वृतचित्रों हेतु शोध एवं आलेख। 1993 से निजी निर्माताओं व चैनलों हेतु 500 से अधिक कार्यक्रमों में निर्माण/ निर्देशन/ शोध/ आलेख/ संवाद/ रिपोर्टिंग अथवा स्वर। परशेप्शन, यूथ पल्स, एचिवर्स, एक दुनी दो, जन गण मन, यह हुई न बात, स्वयंसिद्धा, परिवर्तन, एक कहानी पत्ता बोले तथा झूठा सच जैसे कई श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम। साक्षरता, महिला सबलता, ग्रामीण विकास, पानी, पर्यावरण, बागवानी, आदिवासी संस्कृति एवं विकास विषय आधारित फिल्मों के अलावा कई राजनैतिक अभियानों हेतु सघन लेखन। 1998 से मीडियामैन सर्विसेज नामक निजी प्रोडक्शन हाउस की स्थापना कर विविध कार्य।

संपर्क -:
ग्राम- पूरे सीताराम तिवारी, पो. महमदपुर, अमेठी,  जिला- सी एस एम नगर, उत्तर प्रदेश ,  डाक पताः 146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली- 92
Email:- amethiarun@gmail.com . फोन संपर्क: 09868793799/7376199844

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here