भारतीय महिलाएं : दर्पण झूठ न बोले

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–   निर्मल रानी –

Indian women and their rights ,political dramaटीवी सीरियल अभिनेत्री से राजनीति में आने वाली स्मृति ईरानी जहां अपनी वाकपटुता के लिए जानी जाती हैं वहीं उनकी गिनती विवादित बयान देने वाले नेताओं में भी होने लगी है। अमेठी में राहुल  गांधी से लोकसभा का चुनाव हारने के बावजूद उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत केंद्र में मंत्री का पद दे दिया। और वह भी ऐसे महत्वपूर्ण विभाग का मंत्री बनाया जिसपर मुरली मनोहर जोशी,कपिल सिब्बल,अर्जुन सिंह तथा नरसिंहाराव जैसे अति शिक्षित व बुद्धिजीवी राजनेता मंत्री आसीन रह चुके हैं। गौरतलब है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत् देश की शिक्षा नीति, तमाम महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय और कई प्रमुख शिक्षण संस्थान आते हैं। स्मृति ईरानी की औपचारिक शिक्षा को लेकर भी विवाद है। उनके आलोचक उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय की अब तक की सबसे अशिक्षित महिला मंत्री बताते हैं। बहरहाल इन सब के बावजूद वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कृपा से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एजेंडे को लागू करने के उद्देश्य से इस अत्यंत प्रमुख मंत्रालय में मंत्री बनाई गई हैं। ज़ाहिर है अपने ऊपर किए गए इस उपकार का हक वे समय-समय पर सरकार की उपलब्धियों का बढ़ा-चढ़ा कर बखान करने में करती रहती है। परंतु उनके मुंह से कभी-कभी संभवत: अज्ञानवश या अति उत्साहवश ऐसी बातें भी निकल जाती हैं जो स्वयं उन्हें कठघरे में खड़ा कर देती हैं।

उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित वूमैन एंड वल्र्ड सम्मेलन में अमेरिकी पत्रकार टीना ब्राऊन के साथ भारतीय महिलाओं की स्थिति पर रौशनी डालते हुए यह फरमाया कि-‘मुझे नहीं लगता कि भारत में महिलाओं को कोई यह कहता है कि उन्हें किस तरह का कपड़ा पहनना है,कैसे पहनना है, किससे मिलना है या कहां मिलना है। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि भारत में महिलाओं पर कोई हुक्म चलाता है’। जैसे ही स्मृति ईरानी ने अपनी बात समाप्त की तुरंत कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने विशेषकर महिलाओं ने आंखों में धूल झोंकने वाले स्मृति ईरानी के इस वक्त्व्य पर रोष व्यक्त करते हुए अपनी असहमति दर्ज कराई। यहां तक कि स्वयं पत्रकार टीना ब्राऊन ने भी मंत्री महोदया की इस टिप्पणी पर असहमति ज़ाहिर की। स्मृति ईरानी की टिप्पणी पर विरोध स्वरूप इतना शोर-शराबा हुआ व इतनी मुखर प्रतिक्रिया सामने आई कि स्वयं पत्रकार टीना को दखलअंदाज़ी करनी पड़ी। खिसियाहट में स्मृति ईरानी उनके बयान का विरोध करने वाली महिलाओं से यह कहते सुनी गईं कि-‘क्या आपसे कहा गया है’? यहां भी उन्होंने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपना ही उदाहरण पेश करते हुए कहा कि वे किसी बड़े परिवार से नहीं बल्कि एक निम्र मध्यम वर्ग से आती हैं जहां उन्हें स्वयं अपना भविष्य तय करने की सीख दी गई। इसके पूर्व अल्पसंख्यकों के विषय पर टिप्पणी करते हुए भी स्मृति ईरानी यह कह चुकी हैं कि वे स्वयं अति अल्पसंख्यक समुदाय से आती हैं और उन्हें कभी उपेक्षा का सामना नहीं करना पड़ा। गोया वह बार-बार विभिन्न विषयों पर अपना ही उदाहरण प्रस्तुत कर यह बताना चाहती हैं कि चूंकि उनके साथ सबकुछ ठीक-ठाक है और वे आज़ाद, संपन्न,संतुष्ट तथा तृप्त हैं तो गोया देश की सभी महिलाएं,देश का पूरा का पूरा अल्पसंख्यक समाज यहां तक कि पूरा देश उन्हीें की तरह खुश,स्वतंत्र तथा संतुष्ट है।

परंतु महिलाओं के संबंध में स्मृति ईरानी द्वारा एक अत्यंत जि़म्मेदार मंत्री होने के बावजूद दिया गया इस प्रकार का आंखों में धूल झोंकने वाला बयान स्मृति ईरानी को मंहगा पड़ा। दिल्ली की छात्राओं ने सडक़ों पर उतरकर उनका विरोध करना शुरु कर दिया। सैकड़ों महिलाएं स्मृति ईरानी के कार्यालय के बाहर इक्_ा हुईं इनमें दिल्ली यूनिवर्सिटी के महिला छात्रावास की लड़कियां भी शामिल थीं।  इन छात्राओं के हाथों में दिल्ल्ी विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास में लागू किए गए कायदे-कानूनों को दर्शाती तिख्तयां थीं। यह निर्देशावली स्वयं अपने-आप में स्मृति ईरानी के बयानों का सिरे से खंडन कर रही थी। महिला छात्रावास की छात्राओं के हाथों में छात्रावास के नियम संबंधी जो पोस्टर दिखाई दे रहे हैं उनमें कुछ पर छात्रावास में लागू नियम लिखे हुए थे। छात्राओं का कहना था कि मंत्री महोदया के मंत्रालय के अंतर्गत् आने वाले कॉलेज के छात्रावासों में छात्राओं से प्रतिदिन यह पूछा जाता है कि उन्हें कहां,कब और किससे मिलना है? कहां ठहरना है, क्या खाना है, क्या पहनना है और किससे बात करनी है? छात्राओं ने कहा कि कोई छात्रा बिना लिखित अनुमति के अपने कमरे में एक पोस्टर भी नहीं चिपका सकती। ऐसी ही आज़ादी पसंद करने वाली महिलाओं ने दिल्ली में ‘पिंजरा तोड़ के नाम से एक संगठन बना रखा है। यह संगठन पुरुष मानसिकता के विरुद्ध संघर्ष कर रहा है जिसने महिला छात्रावास में रहने वाली महिलाओं पर पाबंदियां लगा रखी है। प्रदर्शनकारी छात्राओं ने स्मृति ईरानी की भारतीय महिलाओं से संबंधित ‘खुशफहमी’ दूर करने के लिए प्रदर्शन के बाद उनके कार्यालय में छात्रावास की नियमावली से संबंधित वह पुस्तक भी भेंट की जिसमें छात्राओं पर लगाए गए प्रतिबंधों व दिशानिर्देशों की लंबी सूची दर्ज है।

बड़े आश्चर्य की बात है कि एक महिला केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद स्मृति ईरानी देश में महिलाओं की वास्तविक स्थिति से निपटने की कोशिशें करने के बजाए उसपर यह कहकर पर्दा डालने की कोशिश करती हैं कि यहां ऐसा कुछ नहीं है,बल्कि सबकुछ ठीक-ठाक है? हमारे देश में वास्तविकता तो यही है कि लड़कियां पहले माता-पिता के अधीन रहकर उनके निर्देशों पर चलने को बाध्य रहती हैं उसके पश्चात पति तथा ससुराल के लोग उसपर नियंत्रण रखने की कोशिश करते हैं, यहां तक कि हॉस्टल वार्डन,रिश्तेदार,शिक्षक और तो और कई बार पड़ोसी भी लड़कियों व महिलाओं की गतिविधियों पर पूरी नज़र रखते हैं। हरेक व्यक्ति यह देखने की कोशिश करता है कि वह कैसे कपड़े पहन रही है और कहां जा रही है, कब जा रही है और किसके साथ जा रही है। जबकि मर्दों के साथ ऐसा कतई नहीं है। जहां तक वर्चस्व का प्रश्र है तो भी महिलाएं प्राय: पुरुषों के अधीन ही रखी जाती हैं। पंचायत से लेकर देश की संसद तक यह बात देखी जा सकती है। अभी कुछ ही दिनों पूर्व की बात है कि मध्यप्रदेश में एक निर्वाचित दलित महिला सरपंच को उसी के गांव के एक बाहुबली पूर्व सरपंच ने गांव से बाहर निकाल दिया। यह न केवल एक दलित व एक महिला का अपमान था बल्कि देश के लोकतंत्र के मुंह पर भी एक तमाचा था। परंतु पूरा गांव यह दृश्य देखता रहा और वह महिला सरपंच गांव छोडक़र चली गई। अभी निर्भया कांड की गंूज देश में गूंजती सुनाई दे रही है। उसके बाद से लेकर अब तक देश में और न जाने कितने निर्भया कांड हो चुके हैं। हमारे ही देश के कई मंत्री,मुख्यमंत्री व सांसद स्वयं महिलाओं को सलाह देते देखे गए हैं कि महिलाओं को देर रात घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए, उन्हें अपने पुरुष मित्रों से नहीं मिलना चाहिए। ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए आदि।

हद तो यह है कि देश की संसद में 33 प्रतिशत महिलाओं के आरक्षण का नाटक सभी राजनैतिक दलों द्वारा किया जाता रहा है। परंतु देश की पुरुष प्रधान संसद आज तक इस विषय पर आनाकानी तथा तरह-तरह की बहानेबाजि़यां तो ज़रूर करती रही है परंतु 33 प्रतिशत आरक्षण अब तक नहीं दे सकी। हमारे देश में आज भी तमाम मंदिर व दरगाहें ऐसी देखी जा सकती हैं जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। उन्हें कपड़े पहनने की आज़ादी तो दूर बुर्के और घंूघट में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। हां जहां भी महिलाओं को किसी शासन या नेता ने थोड़ी भी आज़ादी देने की कोशिश की है महिलाओं ने वहां पुरुषों को इस उपकार का बदला देने का भी प्रयास किया है। उदाहरण के तौर पर बिहार में नितीश कुमार ने छात्राओं को साईकलें बांटकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना की। बिहार की छात्राओं ने नितीश कुमार का धन्यवाद अदा करते हुए सत्ता में उनकी पुन: वापसी में अपना योगदान दिया। पिछले चुनाव घोषणा पत्र में बिहार की महिलाओं की ही आवाज़ पर महागठबंधन ने अपने चुनावी घोषणा पत्र मेंं शराब बंदी किए जाने का वादा किया था। और सत्ता में आते ही नितीश सरकार ने राज्य में पूर्ण शराब बंदी लागू करने जैसा सबसे बड़ा निर्णय लिया है। शराब के विषय पर भी यह स्पष्ट है कि महिलाएं अपने परिवार में शराबी पति या शराब पीने के वातावरण को केवल इसीलिए पसंद नहीं करती क्योंकि इससे परिवार के उजडऩे तथा परिवार के विकास के बाधित होने का भय रहता है। जबकि शराबी पति या पुरुष इस विषय पर नहीं सोचता। गोया परिवार के उत्थान की चिंता करने वाली महिलाएं उसी पुरुष समाज द्वारा नियंत्रित होती हैं जो स्वयं नियंत्रण से बाहर रहते हैं। आज यदि समाज में महिलाओं को भय भी होता है तो वह किससे? आिखर उन्हीं पुुरुषों से जो स्वयं महिलआों के लिए खतरा भी होते हैं और खुद ही महिलाओं को नियंत्रण में रखने हेतु उसके लिए तरह-तरह के प्रतिबंध व नियम भी बनाते हैं? इसमें कोई शक नहीं कि देश में महिलाओं की स्थिति में पहले से कुछ सुधार जुरूर हो रहा है परंतु देश में भारतीय महिलाओं की कुल मिलाकर जो स्थिति है वह स्वंय अपने-आप में एक ऐसा दर्पण है जो कभी झूठ नहीं बोलता।

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nirmalraninirmal-rani-invc-news,  निर्मल रानीपरिचय – :

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क : – Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana ,  Email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS .

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