जन-धन से ‘स्व प्रशंसा’ के बजट की इंतेहा ?

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– तनवीर जाफरी –

narendra-modiभारत सरकार,समस्त राज्यों की सरकारों तथा सरकार के सभी कार्यालयों के पास एक ऐसा सरकारी बजट होता है जिसका इस्तेमाल सरकार द्वारा बनाई गई विभिन्न नई योजनाओं तथा उनसे होने वाले फायदों को विभिन्न प्रकार के विज्ञापनों के माध्यम से जनता तक पहुंचाना होता है। यह ज़रूरी भी है कि जनता को पता लग सके कि सरकार ने कौन-कौन सी लोकहितकारी योजनाएं उसके लिए शुरु की हैं। इसी प्रकार का एक सरकारी बजट विभिन्न प्रकार की निविदाओं,सरकारी विभागों में होने वाली भर्तियों,नीलामी,सरकारी खरीद-फरोख्त, किसी प्रकार की अन्य सार्वजनिक सूचना आदि से संबंधित भी होता है। परंतु हमारे देश की राजनीति के बदनुमा होते जा रहे चेहरे ने जनता के खून-पसीने की कमाई से अदा किए गए टैक्स के पैसों से किए जाने वाले इन विज्ञापनों को जनता तक किसी योजना के संबंध में जानकारी पहुंचाने का माध्यम बनाने के बजाए अपनी पीठ थपथपाने का माध्यम बना लिया है। जनता के पैसे का दुरुपयोग किसी एक विशेष राजनैतिक दल द्वारा नहीं किया जा रहा है बल्कि इसमें देश के सभी राष्ट्रीय व राजनैतिक दल की सत्तारुढ़ सरकारें शामिल हैं। इस विषय पर लगभग सभी पार्टियां एक-दूसरे पर विज्ञापनों की आड़ में जनता के पैसों का दुरुपयोग किए जाने का आरोप तो ज़रूर लगाती हैं परंतु नि:संदेह सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार और भाजपा की ही विभिन्न राज्य सरकारों ने भी विज्ञापन के बजट को पानी की तरह बहाने का काम ज़रूर किया है और करती आ रही हैं

पिछले दिनों भाजपा ने मोदी सरकार के तीन वर्ष पूरे होने के अवसर पर पूरे देश में विज्ञापन के मद पर लगभग दो हज़ार करोड़ रुपये सरकारी फंड से खर्च किए। केंद्र सरकार के इस विज्ञापन रूपी तीन वर्षीेय जश्र मनाने में भाजपा की ही उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,झारखंड,राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ की सरकारों ने भी केंद्र सरकार के जश्र में अपनी सहभागिता निभाते हुए ‘विज्ञापन युद्ध’ में अपने-आप को भी पीछे नहीं रखा। क्या इन राज्य सरकारों को अपने राज्य की जनता के टैक्स के पैसे केंद्र सरकार के तीन वर्ष पूरे करने के जश्र में खर्च करने का अधिकार है? और यदि है भी तो क्या भाजपा शासित उक्त राज्यों के मुखिया यह बता सकते हैं कि उनके अपने राज्यों में सडक़,बिजली,पानी,शिक्षा व स्वास्थय जैसी जनता की प्राथमिक समस्याओं से छुटकारा मिल चुका है? क्या जनता की सभी बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो चुकी हैं? यदि इन राज्यों में ‘रामराज्य’ स्थापित हो चुका है फिर तो जनता के टैक्स के पैसे केंद्र सरकार की तीन वर्ष की उपलब्धियेां का बखान करने में खर्च करना कोई बड़ा अपराध नहीं माना जा सकता। परंतु यदि इन राज्यों की आर्थिक दशा पतली है और जनता की प्राथमिक मूलभूत ज़रूरतें भी पूरी नहीं हुई हैं तो नि:संदेह इन राज्यों का पैसा मोदी सरकार के गुणगान के लिए खर्च करना जनता के समक्ष एक बड़ा अपराध है।

पिछले दिनों भाजपा नेताओं द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद्र केजरीवाल पर यह आरोप लगाया गया कि वे विज्ञापनों पर दिल्ली की जनता का पैसा फुज़ूल में खर्च कर अपना व अपनी पार्टी का प्रचार-प्रसार करते हैं। यह सही भी है कि दिल्ली की पिछली राज्य सरकारों ने अपनी योजनाओं के गुणगान करने पर उतना पैसा नहीं खर्च किया जितना कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के समय किया गया है। परंतु इसके जवाब में आप नेता यह कहते सुने जाते हैं कि पिछली सरकारों ने जब कोई काम ही नहीं किया तो वे विज्ञापन किस बात का करतीं? यही स्थिति बिहार में भी देखी जा सकती है।  बिहार में भी सैकड़ों करोड़ रुपये के विज्ञापन राज्य की नितीश सरकार जनता में अपना गुणगान करने में खर्च कर देती है। दिल्ली सरकार हो या किसी अन्य राज्य की सरकारें अथवा केंद्र सरकार,सभी विज्ञापनों में इनके मुखिया के चित्र तो ऐसे प्रकाशित किए जाते हैं गोया इस योजना का पूरा खर्च इन्हीं महाशय ने उठाया हो? यहां तक कि कई राज्यों में राज्य परिवहन निगम की बसों में,सरकारी एंबुलेंस में यहां तक कि सरकारी राशनकार्ड व विभिन्न योजनाओं के आवेदन पत्रों तक में कहीं नेताओं के चित्र तो कहीं-कहीं तो सत्ताधारी पार्टी के चुनाव चिन्ह तक प्रकाशित कर दिए जाते हैं।

पैसों की इस प्रकार की बरबादी पहले चुनाव के समय देखी जाया करती थी। परंतु चुनाव आयोग द्वारा इस फुज़ूल खर्ची पर नियंत्रण लगाए जाने के बाद अब सत्ताधारी दलों ने यह नई तरकीब ढूंढ निकाली है कि सत्ता में रहते हुए ही जनता के टैक्स के पैसों से सरकारी बजट के माध्यम से अपनी पीठ थपथपाने वाले विज्ञापनों को इस कद्र प्रकाशित,प्रसारित कर दिया जाए कि चुनाव आते-आते उन्हें अपनी जेब से या पार्टी फ़ंड से पैसे कम से कम खर्च करने पड़ें या बिल्कुल ही खर्च करने की ज़रूरत न हो। एक आंकड़े के अनुसार यूपीए सरकार ने अपने प्रथम पांच वर्ष के कार्यकाल में लगभग 312 करोड़ रुपये विज्ञापन के मद पर खर्च किए थे जबकि यूपीए के दूसरे कार्यकाल में पांच वर्षो में 696 करोड़ रुपये खर्च किए गए। परंतु भाजपा ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद 2014-15 के अपने मात्र एक वर्ष के कार्यकाल में ही 993 करोड़ रुपये विज्ञापनों पर खर्च कर दिए थे। गौरतलब है कि विज्ञापन युद्ध पर विश्वास करने वाली भाजपा ने अपने 2014 के चुनाव प्रचार पर भी लगभग दस हज़ार करोड़ रुपये मीडिया प्रचार के मद में उड़ा दिए थे। सूत्रों के अनुसार आमतौर पर सामान्य दिनों में भी केंद्र सरकार अनुमानत: 1.4 करोड़ रुपये प्रतिदिन विज्ञापनों पर खर्च करती है।

विभिन्न निजी टीवी चैनल्स,रेडियो,वीडियो-ऑडियो,समाचार पत्र-पत्रिकाओं,इश्तिहारी बोर्ड आदि के अतिरिक्त सरकार द्वारा दूरदर्शन का भी इस्तेमाल सरकार की योजनाओं का गुणगान करने के लिए किया जा रहा है। गत् दिनों सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने इन योजनाओं से संबंधित कई लघु िफल्में जारी कीं। यह फि़ल्में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना,मिशन इंद्रधनुष,सबका साथ-सबका विकास,वृद्धा स्वास्थय कार्ड,बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री कृषि-सिंचाई योजना,प्रधानमंत्री जन-धन योजना,कुशल भारत, राष्ट्रीय सौर मिशन व उज्जवल भारत योजना आदि से संबंधित हैं। भारत सरकार द्वारा अपने तीन वर्ष की तथाकथित सफलता के गुणगान हेतु एक ‘मोदी उत्सव’ का वृहद् आयोजन भी राष्ट्रीय स्तर पर किया गया। इसमें प्रधानमंत्री व लगभग सभी केंद्रीय मंत्रियों सहित समस्त भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों,मंत्रियों व सांसदों की एक विशाल टीम देशभर में सरकारी खर्चे पर घूम-घूम कर जनता को यह समझाया गया कि किस प्रकार तीन वर्षों में यह देश बदला है और आगे विकास की मंजि़लें तेज़ी से कैसे तय कर रहा है। परंतु विज्ञापनों के मद पर जनता के हज़ारों करोड़ रुपये बर्बाद कर अपनी वाहवाही स्वयं करने के इस तरीके को सरकार का जनता से इकतरफा संवाद ही माना जाएगा। जैसेकि प्रधानमंत्री अपने मन की बात तो रेडियो-टीवी प्रसारण के माध्यम से व्यक्त कर देते हैं परंतु जनता को अपनी बात व्यक्त करने का कोई मौका नहीं देते। कितना अच्छा व पारदर्शी हो यदि विज्ञापन युद्ध पर विश्वास करने वाली केंद्र सरकार के मुखिया प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी कम से कम वर्ष में एक बार देश के मीडिया से भी रूबरू होकर जनता के दिलों में उठने वाले सवालों का भी जवाब दे देते?

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Tanveer JafriAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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