भारतीय संस्कृति और नारी

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष: 21वीं सदी की नारी स्वयं की शक्ति को आज पहचान लिया है 


 

आज की नारी ने  काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है।


– विनीता कुमारी –

भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जिस तरह के सामाजिक हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान, मान-मर्यादा, इज्जत, आवरू से खेला जा रहाहै।नारी को ‘भोग कीवस्तु’ समझकर पुरुष अपने तरीकेसे सिर्फइस्तेमालकर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी गौरवपूर्ण संस्कृति को बचाते हुए नारी का सम्मान कैसे किया जाए, इस पर सकारात्मक विचार करना अति आवश्यक है।इस संसार की शुरूआत ‘परा’ और ‘प्रकृति’ के अद्भुत संयोग से पल्लवित और पुष्पित होता हुआ अभी तकचला आ रहा है। कहा जाता है कि एक दूसरे के सहयोग के बिना पृथ्वी की रंगीन दुनिया की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जितना पुरूषों का सहयोग रहता है अपने खानदान के वंशकोआगे बढ़ाने में, उतना ही नारी की भी भूमिका होती है।परिवार के लोगों के बीच वैचारिक भिन्नता को पाटने में स्त्रियाँ अपना तन,मन औरधन सब कुछ दांव पर लगा देतीं हैं फिरभी परिवार और समाज में स्त्रियों को वह उचित सम्मान नहीं मिलती जिसकी वह हकदार होती है।उसेआजभी धिक्कार और जिल्लत की जिंदगी दी जाती है।

आधुनिक समय में जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।परिवार की धूरीस्त्री को माना जाता है।स्त्री ही मिट्टी,सीमेंट,ईंट से बनेदीवार और छत को’घर’बनाती है वहचाहे तो घर को स्वर्ग बना दे नहीं तोनर्क सब उसकेऊपर निर्भर करता है।यानि कब? किसे? क्या चाहिए? ये सब एक स्त्री से ज्यादा और कोई नहीं जान सकता है और न समझ सकता है।तभी तो आदिकाल और आदिकाल से पहलेविद्वानोंका भी यही मत  प्रचलित थी ‘यत्र नार्यास्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता’ यानि पुरूषों को पृथ्वी में लाने वाली स्त्री पूजने योग्य है  क्योंकि जहाँस्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वास होता है।इसी बात को सार्थक करते हुए स्वामी  विवेकानन्द जी की उक्ति आज के संदर्भ में उचित जान पड़तीहै।वे प्रत्येक भारतीय नारी को किसी महारानी से कम नही आंका है।

भारत में जितनी देवियोंकी पूजा की जाती है वह शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा, विकराल स्वरूपा माँ काली, चंडिका, सुमधुरभाषिकातथा भद्रकालिका रूप तो नारी की हीं है फिर आज सभ्य समाज कहे जाने वाले लोगों की भाषा, संस्कार सब कुछ कैसे बदल गया? इनकी विचारधारा कैसे परिवर्तित हो गई कि अपने ही माँ, बहन पत्नी और बेटी की खून से अपने हाथ रंगते उन्हे लज्जा नहीं आती।उनको मारते,पीटते, लूटते इनकी आत्मा नहीं कराहती? इनके खून का रंग बदल गया या फिर इनकी खून पानी में तब्दील हो गया? जिसे वह अमृत पिलाकर उच्च पोषण देती है उसे हीं विषपान कराया जाता है,उसे हीं रस्सियों पर लटकाया जाता है,उसे हीं अग्नि के हवाले किया जाता है,उसका ही गला घोंट दिया जाता है,ऐसाक्यूं? आज ये सवाल हमारा पीछा नहीं छोड़ती है।क्या हम सभ्य कहलाने के लायक हैं? ये डिग्रियों का पुलिंदा हमारे किस काम का? कबीरदास जी ने सही कहा है – ‘ढाई  आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए’ये  सभ्य पुरूषों को ढाई आखर समझ में आ जाए तो इन्हें’आदिमानव’ की संज्ञा से नवाजा नहीं जाता।

अब समय करवट ले रही है। आधी आबादी वालों की दुनिया में नित नए परिवर्तन हो रहे हैं,चाहे वह विदेशी महिलाहो, शहरी महिला हो या गाँव में निवास करने वाले ग्रामीण महिला हो,चहुंओर परिवर्तनकी सुगबुगाहट दिखाई दे रही है। उनके कर्म-योग से अर्थ-योग में काफी सहयोग भी मिल रही है।जो स्त्री पहले घरों की चहारदीवारी में  कैद रहती थी वह अब घर के खर्च में आर्थिक रूप से सहयोग कर रही है और अपना पैर भी मजबूती से जमाए हुए है।कोई भी क्षेत्र आज इनसे अछूता नहीं है।अपना परचम हर ओर लहरा रहीं हैं।चाहे वह किसी कंपनी में  अधिकारी का पद हो, सेना में उच्च अधिकारी के पद हों,चाँद में पांव रखने की बात हो,वैज्ञानिक-तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र हों या राजनीति के माध्यम से मंत्री का पद हो या लड़ाकू विमान या फाइटर प्लेन उड़ानें की बात हो।किसी भी कोण से ये कमजोर या लाचार नहीं हैं। जरूरत है इनके अन्दर छिपी प्रतिभा को निखारने की,उन्हे सम्मान एवं आदर की जीवन देने की, उन्हे भरपूर सहयोग देने की तभी’अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस’मनाना सही अर्थों में सार्थक होगा। इसकी शुरूआत अपनेघरोंमें विराजमान लक्ष्मी, सीता, सावित्री,दुर्गा, सरस्वती  को उचित सम्मान एवं सत्कार देकर करें।उनके दुखों को दूर करने की चेष्टा करें। उनकी खोयी आत्मसम्मान को वापस लाएं। उनके मलिन मुखारविन्द में मुस्कान की मोती बिखेरें। आज महिलाओं पर धिनौने अत्याचार हो रहे मानसिक व शारीरिक शोषण, मार-पीट आदि जैसे कुरीतियों से मुक्त कर उसे विकसित-परिष्कृत होने का वेहतर मौका प्रदान करें, ताकि नारी न केवल खुद को सशक्त कर सके बल्कि बेहतर समाज के निर्माण में भी भरपूर योगदान दे सके।ऐसी भावना अपने ह्रदय में लेकर अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का संकल्प लें।

जय हो अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस की!

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परिचय -:

विनीता कुमारी

समाजसेवी एवं लेखिका

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स्वामी विवेकानन्द मिशन गढ़गांव, राँची, झारखण्ड में कार्यरत

संपर्क -:  E: svmission12@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.


1 COMMENT

  1. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के सम्मान में लिखे गए लेख के लिए स्वामी विवेकानन्द मिशन परिवार की ओर से हार्दिक साधुवाद!

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