सांप्रदायिक विद्वेष भड़काने के ‘शासकीय’ प्रयास

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nirmalrani– निर्मल रानी –

वैसे तो 1947 में हुए भारत-पाक विभाजन के समय से ही यह बात लगभग प्रमाणित हो चुकी है कि धर्म तथा संाप्रदायिकता का राजनीति में, खासतौर पर सत्ता की राजनीति करने में अपना अमूल्य योगदान है। 1947 से लेकर अब तक देश में सक्रिय अधिकांश धर्मनिरपेक्ष दल तथा दक्षिणपंथी राजनैतिक संगठन धर्म विशेष को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तथा विभिन्न संप्रदायों व समुदायों के मध्य नफरत फैलाने में कोई भी हथकंडा शेष नहीं छोडऩा चाहते। देश में अब तक हो चुके हज़ारों सांप्रदायिक दंगे विभिन्न धर्मों के बीच सांप्रदायिक दुर्भावना फैलाने के विभिन्न राजनैतिक दलों के तरह-तरह के प्रयास,किसी धर्म विशेष को नीचा दिखाने तथा किसी अन्य धर्म को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु की जाने वाली नाना प्रकार की कोशिशें तथा विभिन्न धर्मों व संप्रदायों से जुड़े प्रतीकों को जानबूझ कर अपमानित किए जाने के प्रयास ऐसे ही राजनैतिक दुष्प्रयासों का परिणाम कहे जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर देश में सक्रिय दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग मुसलमानों को बदनाम करने के लिए टोपी,दाढ़ी तथा इस्लामी नारों का सहारा लेते देखे जा रहे हैं तो वहीं स्वयं को धर्मनिरपेक्ष बताने वाली राजनैतिक शक्तियां भगवा ध्वज व केसरिया रंग को अपने निशाने पर लेने से बाज़ नहीं आतीं।

पिछले दिनों देश में कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जिन्हें देखकर साफतौर पर यह ज़ाहिर हो रहा था कि शासन द्वारा जानबूझ कर धर्म विशेष को बदनाम करने के लिए तथा उनकी भावनाओं को आहत करने के लिए इस प्रकार के गैरज़रूरी प्रदर्शन किए गए। गुजरात में इसी वर्ष 7 से 9 जनवरी के मध्य प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन किया गया था। इसी के साथ-साथ 11 से 13 जनवरी तक राज्य में वाईब्रैंट गुजरात सम्मेलन भी आयोजित किया गया। इन आयोजनों में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अतिरिक्त संयुक्त राज्य अमेरिका के सैक्रटरी ऑफ स्टेट जॉन कैरी ने भी शिरकत की थी। इस आयोजन से पूर्व गुजरात की राज्य पुलिस द्वारा प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखने के लिए कुछ बनावटी अभ्यास अर्थात् मॉक ड्रिल की गई। एक जनवरी को ऐसा पहला अभ्यास राज्य के नर्मदा जि़ले के केवडिय़ा क्षेत्र में नर्मदा डैम के समीप किया गया। इसमें दिखाया गया कि सिर पर इस्लाम धर्म का प्रतीक समझे जाने वाली टोपी धारण किए कुछ नवयुवक पुलिस के भय से बचाओ-बचाओ चिल्ला रहे हैं तथा साथ-साथ इस्लाम जि़ंदाबाद के नारे भी लगा रहे हैं। ज़ाहिर है अपने इस बनावटी अभ्यास अथवा मॉक ड्रिल में गुरजरात पुलिस ने सीधेतौर पर मुसलमानों को आतंकवाद से जोडऩे की कोशिश की थी। जब मीडिया द्वारा इस मॉक ड्रिल का यह वीडियो प्रसारित किया गया उस समय देश में राजनैतिक कोहराम मच गया। तत्कालीन नर्मदा पुलिस अधीक्षक जयपाल राठौर यह कहकर स्वयं को मामले से अलग करने की कोशिश में देखे गए-‘कि मुझे यह सब मीडिया के द्वारा पता चला। हम इसकी जांच करेंगे। और जि़म्मेदार लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करेंगे’। बात केवल नर्मदा तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उन्हीं दिनों में गुजरात के औद्योगिक नगर सूरत में भी ऐसी ही एक मॉक ड्रिल होती देखी गई। इस बनावटी अभ्यास में पांच पुलिसकर्मी तीन ऐसे युवकों को जोकि सिर पर इस्लामी प्रतीक वाली टोपी पहने हुए थे, को एक जीप में ठूंसकर ले जा रहे हैं। स्थानीय लोगों द्वारा इस मॉक ड्रिल का वीडियो बनाकर मीडिया में चला दिया गया। इसका विरोध सूरत के स्थानीय भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने किया। इस संगठन ने मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल से मामले में हस्तक्षेप करने को कहा। मुख्यमंत्री को इस विषय पर अपना बयान भी देना पड़ा। उन्होंने कहा कि धर्म को आतंक के साथ जोडऩा गलत है।

उपरोक्त घटनाक्रम निश्चित रूप से शर्मनाक तथा धर्मविशेष की भावनाओं को आहतnirmalraniinvcnews करने वाला था। इस संबंध में भले ही पुलिस प्रशासन माफी मांगे, इसे विभागीय भूल-चूक बताए अथवा उच्चाधिकारियों अथवा शासन के जि़म्मेदार लोगों द्वारा इसकी जांच किए जाने की बात कही जाए या कार्रवाई करने के आश्वासन दिए जाएं परंतु यह बात तो निश्चित रूप से कही जा सकती है कि इस मॉक ड्रिल के बहाने धर्म विशेष को या धर्म विशेष के लोगों को आतंकवाद से जोडऩे की कोशिश किसी छोटे-मोटे पुलिस कर्मचारी अथवा मॉक ड्रिल के योजनाकार की कोशिश मात्र नहीं थी बल्कि इसके पीछे एक ऐसी सुनियोजित साजि़श काम कर रही थी जो समाज को धर्म के नाम पर विभाजित करने तथा धार्मिक व सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने में अपनी पूरी महारत रखती है। दूसरी बात यह कि इस मॉक ड्रिल के चर्चा में आने के बाद स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली शक्तियों ने भी धर्म विशेष के पक्ष में खड़े होकर अपनी आवाज़ पूरी ताकत के साथ बुलंद करने की कोशिश की। ज़ाहिर है जब गुजरात में इस प्रकार की शर्मनाक घटना घट चुकी थी तथा मीडिया द्वारा ऐसी विद्वेषपूर्ण कोशिशों की भरपूर निंदा भी की जा चुकी थी उसके पश्चात देश के किसी भी अन्य राज्य में ऐसी विद्वेषपूर्ण मॉक ड्रिल की पुनरावृति कतई नहीं होनी चाहिए थी। परंतु ऐसा नहीं हुआ।

अभी कुछ ही दिनों पूर्व धर्मनिरपेक्षता तथा अल्पसंख्यक हितैषी होने का दंभ भरने वाली समाजवादी पार्टी द्वारा शासित देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर इलाहाबाद में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा इसी तरह की दंगा विरोधी मॉक ड्रिल की गई। इस अभ्यास में पुलिस को nirmalrani,invcदंगाईयों पर नियंत्रण हासिल करते हुए दिखाया गया। अफसोस की बात तो यह है कि इस बनावटी अभ्यास में दंगाईयों की भीड़ के हाथों में भगवा ध्वज लहराता दिखाई दिया। भगवा ध्वज अथवा केसरिया रंग को भले ही कुछ स्वार्थपूर्ण राजनीति करने वाले लोग अपनी निजी मिलकियत क्यों न समझने लगे हों पंरतु अनादिकाल से ही यह रंग हिंदू धर्म व संस्कृति से जुड़ा हुआ एक रंग है। लिहाज़ा दंगाईयों के हाथों में केसरिया अथवा भगवा झंडा थमाने का मकसद यही है कि दंगाईयों को धर्म विशेष की भीड़ के रूप में चिह्नित किये जाने की कोशिश की गई। इस अभ्यास को सीधे तौर पर गुजरात में जनवरी में हुए अभ्यास का जवाब कहना गलत नहीं होगा। ज़ाहिर है यदि एक निष्पक्ष सोच रखने वाला तथा धार्मिक विद्वेष को बढ़ावा न देने की सोच रखने वाला कोई धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति गुजरात में हुए पुलिस अभ्यास को उचित नहीं कह सकता तो वही व्यक्ति इलाहाबाद में हुए पुलिसिया अभ्यास को भी कतई सही नहीं ठहरा सकता।

इलाहाबाद में हुए बनावटी पुलिसिया अभ्यास के विषय पर जब मीडिया ने अधिकारियों से सवाल किया तो उन्हें अपने जवाब में यह दलील पेश करनी पड़ी कि हाथों में भगवा ध्वज धारण करने वाला व्यक्ति उनकी मॉक ड्रिल का हिस्सा नहीं था, बल्कि कोई बाहरी व्यक्ति हाथों में भगवा झंडा लेकर अभ्यास के बीच में घुस आया था। यह दलील पुलिस की चौकसी पर खुद ही सवाल खड़ा करती है कि सैकड़ों पुलिस कर्मियों की मौजूदगी में किसी अनजान व्यक्ति का अभ्यास में भगवा ध्वज लेकर घुस आना पुलिस के लिए खुद ही शर्म की बात है। मॉक ड्रिल अथवा बनावटी अभ्यास पुलिस,अर्धसैनिक बल तथा सेना द्वारा किए जाने वाले ऐसे अभ्यास हैं जो जहां सैन्य बलों की आंतरिक क्षमता तथा उनकी मुस्तैदी को परखने के लिए विभागीय स्तर पर किए जाते हैं वहीं यह अभ्यास देश व राज्य के लोगों में सैन्य बलों की सुरक्षा क्षमताओं के प्रति जनता के विश्वास व उनकी भावनाओं को जागृत किए जाने हेतु भी किए जाते हैं। लिहाज़ा सैन्य बलों के अभ्यासों को इन्हीं पुनीत व ईमानदाराना मकसदों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। न कि घृणित शासकीय प्रयासों द्वारा समाज में धार्मिक व सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने के मकसद के लिए। बेहतर होगा कि देश के सुरक्षा बलों को भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का प्रहरी ही रहने दिया जाए न कि शासकों द्वारा उन्हें अपने सत्ता स्वार्थसिद्धि के लिए सांप्रदायिक जामा पहनाने की नापाक कोशिश की जाए।

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nirmal-rani1-निर्मल-रानीपरिचय :-

निर्मल रानी

लेखिका व् राजनितिक विचारिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क : -Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana
Email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS .

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