2015-16 के बजट से अपेक्षायें – जीवन बीमा के नजरिये से

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Budget expectations  from a life insurance perspective– विग्नेश शहाणे-

स्थिर सरकार, नरम पड़ चुके मुद्रास्फीति दबाव और निवेश परिदृश्य में आये सुधार के बीच आम बजट 2015 को पेश किया जायेगा। भले ही गत वर्ष पहली बजट घोषणा थी, पर इस वर्ष के बजट में प्रमुख पॉलिसी घोषणाओं पर सतर्कतापूर्वक नजर रखनी चाहिये तथा सरकार का दृष्टिकोण वित्तीय समेकन की ओर होना चाहिये। इस वर्ष के बजट में जीवन बीमा क्षेत्र के लिए हमारे द्वारा पेश किये गये कुछ निरीक्षण एवं सुझाव नीचे दिये गये हैं:

प्रत्यक्ष कर

पॉलिसी अवधि: वित्त कानून, 2012 में सरकार ने उल्लेख किया है कि धारा 80 सी और धारा 10 (10डी) के अंतर्गत कर लाभ उठाने के लिए पेंशन प्लान को छोड़कर सभी बीमा पॉलिसी द्वारा वार्षिक प्रीमियम का कम से कम 10 गुणा अधिक कवर पेश किये जाने की जरूरत है। जीवन बीमा उद्योग ने पहले सुझाव दिया था कि कर राहत को सम एश्योर्ड के बजाय पॉलिसी की अवधि से जोड़ा जाना चाहिये। हमें उम्मीद है कि 10 से अधिक वर्ष की पॉलिसी की अवधि वाले प्रस्ताव को कर राहत प्रदान की जानी चाहिये। इससे दीर्घकालिक बचत की आदत को बढ़ावा मिलेगा और साथ ही साथ जीवन बीमा कंपनियों के दृढ़ता अनुपात को भी लाभ मिलेगा। हमने यह भी सुझाया था कि बीमा नियामक आइआरडीएआइ द्वारा उल्लिखत न्यूनतम आश्वस्त मृत्यु लाभ दिशानिर्देशों के अनुरूप धारा 10 (10 डी) प्रावधान में उपयुक्त ढंग से संशोधन किया जाना चाहिये। इससे न्यूनतम मृत्यु लाभ परिस्थिति से संबंधित असमानता में कमी आयेगी तथा परिपक्वता प्रक्रिया के कराधान के संबंध में गुमराह करने वाली बिक्री शिकायतों को भी कम करने में मदद मिलेगी।

दीर्घकालिक बचत उत्पादों के लिए पृथक सीमा: वर्तमान में, म्यूचुअल फंड, पीपीएफ, पेंशन उत्पादों इत्यादि समेत बचत इंस्ट्रूमेंट में निवेश और ट्यूशन फीस, हाउसिंग लोन के पुनर्भुगतान सहित अन्य खर्च में 1.5 लाख रूपये तक की सकल छूट मिलती है। इस सीमा में बढ़ोतरी सही दिशा में उठाया गया कदम था, हमें उम्मीद है कि दीर्घकालिक बचत इंस्ट्रूमेंट जैसे कि जीवन बीमा और पेंशन उत्पादों के लिए  लाइफ इंश्येारेंस हेतु पृथक सीमा तय की जानी चाहिये। सरकार को अलग से दीर्घकालिक बचत इंस्ट्रूमेंट के लिए विशेष कर रियायत पर विचार करना चाहिये। इसे मौजूद कर सीमा से नहीं जोड़ा जाना चाहिये। इससे व्यवस्थित एवं निरंतर दीर्घकालिक बचत की आदत को बढ़ावा मिलेगा, जो कि उपभोक्ता के साथ-साथ आर्थिक दोनों स्तर पर समय की जरूरत है।

पेंशन फंड के लिए योगदान – 1 लाख रूपये की सीमा को समाप्त करना चाहिये और पेंशन के लिए सम्पूर्ण योगदान को कर मुक्त किया जाना चाहिये। मौजूदा समय में लागू कर के कारण कर्मचारी अपने दीर्घकालिक निवेश हितों की पूर्ति के लिए पेंशन फंड को आकर्षक निवेश मार्ग के रूप में नहीं देखते। पेंशन स्कीम के अधिकांश कर्मचारी/सदस्य पेंशन स्कीम के लिए 1 लाख रूपये से अधिक के योगदान पर विचार करना पसंद करेंगे, क्योंकि इससे उन्हें अधिकतम अंतिम एन्युटी भुगतान मिलेगा और उनकी सेवानिवृत्ति संबंधित जरूरतें भी पूरी हो पायेंगी।

पेंशन/वार्षिक भत्ते: मौजूदा समय में पॉलिसीधारक से पेंशन/वार्षिक भत्ते पर कर लिया जाता है। स्व-वित्त पोषण से निर्मित पेंशन का लाभ उठाने और सीमित सार्वजनिक सुरक्षा लाभों की उपलब्धता पर विचार करें तथा इस तथ्य को ध्यान में रखें कि वार्षिक वेतन अमूमन वरिष्ठ नागरिकों के लिए होते हैं, हम उम्मीद कर सकते हैं कि इस बजट में जीवन बीमा के तहत पेंशन की छूट के लिए नई धारा की पेशकश की जा सकती है। एनपीएस के मामले में उपलब्ध कर छूट के लिए भी एक प्रावधान लाना चाहिये अथवा यह स्पष्टीकरण देना चाहिये कि पेंशन/एन्युटी प्लान के तहत प्राप्त किसी भी राशि जिसका इस्तेमाल एन्युटी प्लान खरीदने में किया जा सकता है, उस पर कोई कर नहीं लगेगा।

सरकार को जीवन बीमा कंपनियों पर प्रशासनिक बोझ कम करने के लिए कुछ और प्रक्रियागत बदलाव करने की जरूरत है। इन बदलावों का उल्लेख नीचे किया गया है:

अ) सीबीडीटी द्वारा कुछ निश्चित बीमा उत्पादों पर 194डीए लागू करने पर स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिये। यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिये कि पेंशन पॉलिसी, एन्युटी पॉलिसी, हेल्थ इंश्येारेंस पॉलिसी अथवा सुपरएन्युएशन पॉलिसी के तहत भुगतान के मामले में धारा 194डीए का प्रावधान लागू नहीं होना चाहिये। एक वित्त वर्ष में 1 लाख रूपये की सीमा को बढ़ाया जाना चाहिये और इसे मौलिक छूट सीमा से जोड़ा जाना चाहिये। धारा 206एए को लागू करने की छूट प्रदान की जानी चाहिये। टीडीएस की कटौती के उद्देश्य के लिए फॉर्म 60 को पैन के समान महत्व दिया जाये।

ब) बीमा कमीशन पर टीडीएस काटने के लिए थ्रेशोल्ड सीमा में वृद्धि की जाये और इसे 20,000 रूपये के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 50,000 रूपये किया जाये।

स) धारा 194सी, 194डी, 194आइ और 194जे के अंतर्गत टीडीएस प्रमाणपत्र को त्रैमासिक आधार पर जारी किया जाये। वैकल्पिक रूप से, इसे धारा 192 के अनुसार वार्षिक आधार पर भी जारी करने की अनुमति देनी चाहिये। टीडीएस सिस्टम के ऑटोमेशन को देखते हुये सभी टीडीएस की विस्तृत जानकारी फॉर्म 26एएस पर उपलब्ध है।

अप्रत्यक्ष कर

पॉलिसी पर सेवा कर: हम इस साल बजट में कर स्पष्टता और रियायत की उम्मीद कर रहे हैं। फंड प्रबंधन शुल्क, पॉलिसी प्रबंधन शुल्क और मृत्यु दर शुल्क समेत विभिन्न प्रकार की सेवाओं पर विभिन्न घटकों पर सेवा कर में छूट शामिल है। हमारे द्वारा सुझाव दिया गया है कि विभिन्न बीमा उत्पादों पर लागू सेवा कर की दरों पर दोबारा विचार करना चाहिये। खासतौर से पारंपरिक और सिंगल प्रीमियम उत्पादों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये, क्योंकि इन पर लगने वाला अप्रत्यक्ष कर बहुत अधिक होता है और यह पॉलिसीधारक के लिए काफी महंगे उत्पाद साबित होते हैं।
प्वाइंट ऑफ टैक्सेशन (पीओटी) से संबंधित नियमों को आसान बनाया जाये। प्वाइंट ऑफ टैक्सेशन (पीओटी) नियमों के अनुसार बीमा कंपनियों को पहले प्रीमियम के साथ-साथ किसी रिन्युअल प्रीमियम पर अग्रिम कर चुकाना पड़ता है। यदि पॉलिसी रद्द हो जाती है, तो ग्राहक को फौरन रिफंड करने के लिए बीमा कंपनी जिम्मेदार होगी। हालांकि, बीमा कंपनी को सरकार से रिफंड प्राप्त करने में थोड़ा समय लगता है। यह बीमा कंपनियों के लिए थोड़ा असुविधाजनक होता है, क्योंकि उन्हें इस राशि पर ब्याज में घाटा उठाना पड़ता है। कर प्रबंधन को सरल बनाने के लिए, सर्विस टैक्स लाएबिलिटी को लागू करने की सलाह दी जाती है: अ) नये व्यवसाय के मामले में ‘रिकगनिशन ऑफ प्रीमियम‘ पर और ब) पारंपरिक उत्पादों के लिए रिन्युअल प्रीमियम के मामले में ‘नकद का वास्तविक कलेक्शन‘, स) यूलिप सेवाओं के मामलों में ‘यूनिट का संचयन‘।

जीवन बीमा एजेंटों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाओं पर सेवा कर के भुगतान से छूट:
जीवन बीमा एजेंट भी मध्यवर्ती होते हैं जिनके कार्य म्यूचुअल फंड वितरकों के समान हैं। इसलिए, छूट अधिसूचना में म्यूचुअल फंड वितरकों के लिए उपलब्ध छूट को जीवन बीमा एजेंटों के लिए भी विस्तारित करना चाहिये।

बीमा कंपनियों के लिए सेनवैट क्रेडिट की योग्यता
कानूनी पचड़ों से बचने के लिए, यह सलाह दी जाती है कि कानून में उपयुक्त स्पष्टीकरण अथवा संशोधन की जरूरत है, ताकि निवेश घटक और परिणामी आय सेनवैट क्रेडिट के किसी भी परिवर्तन का समर्थन नहीं करती हो और बीमा कंपनियां 100 प्रतिशत सेनवैट क्रेडिट के लिए योग्य हों।

अन्य अपेक्षायें

सरकार ने पहले ही बीमा क्षेत्र में एफडीआइ सीमा बढ़ाने के लिए कदम उठाये हैं। विकास को बढ़ावा देने के लिए बीमा उद्योग को पूंजी की आवश्यकता है। देश में बीमा की पैठ 4 प्रतिशत से भी कम है, इसे देखते हुये यहां विकास के प्रचुर अवसर हैं। यह कदम सरकार की तरफ से उद्योग के विकास को बहाल करने में उनकी इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करेगा। हमें नीतियों का शीघ्र क्रियान्वयन होने का बेसब्री से इंतजार है।
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विग्नेश शहाणेपरिचय : –

विग्नेश शहाणे


विग्नेश शहाणे, मुख्य कार्यकारी अधिकारी और पूर्णकालिक निदेशक  आइडीबीआइ फेडरल लाइफ इंश्योरेंस

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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his  own and do not necessarily reflect the views of INVC 

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