भारतीय मुसलमान कितने राष्ट्रवादी?

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How many nationalist Indian Muslims–  तनवीर जाफरी –

भारतवर्ष में 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार जहां इस देश में हिंदू धर्मावलंबियों की संख्या 79.8 प्रतिशत है वहीं इस देश में रहने वाले मुसलमानों की जनसंख्या 14.2 प्रतिशत है। गोया भारत में अल्पसंख्यक समुदाय समझे जाने वाले धर्मों में मुस्लिम अल्पसंख्यक समाज की तादाद सबसे अधिक है। यही वजह है कि देश में विभिन्न राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दल भारतीय मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु तरह-तरह के राजनैतिक प्रयास करते रहते हैं। देश में लगभग सौ संसदीय निर्वाचन क्षेत्र भी ऐसे हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं द्वारा अपने मतदान के माध्यम से जीत व हार में निर्णायक भूमिका अदा की जाती है। परंतु देश में भारतीय जनता पार्टी तथा शिवसेना जैसे चंद राजनैतिक दल ऐसे भी हैं जो मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने का प्रयास करने के बजाए हिंदू बहुसंख्य मतदाताओं को किसी न किसी बहाने से अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिशों में लगे रहते हैं। देश में धर्म आधारित राजनीति करने का यह कोई नया सिलसिला नहीं है। अंग्रेज़ों ने अपने शासनकाल में भारत में हिंदू व मुसलमानों के बीच नफरत की जो खाई खोदी थी देश के सत्ताभोगी सियासतदानों ने उस खाई को पाटने के बजाए मात्र अपनी कुर्सी व सत्ताशक्ति जैसे स्वार्थ के चलते आज तक उसी खाई को और गहरी करने का काम किया है। चाहे वह मुस्लिम लीग के नेतृत्व में हुआ भारत का 1947 में विभाजन व पाकिस्तान के रूप में एक नए कथित इस्लामी राष्ट्र का उदय रहा हो अथवा भारत में राष्ट्रीय स्वयं संघ की विचारधारा के साथ हिंदू धर्म के लोगों को मुसलमानों व ईसाईयों के विरुद्ध वरगला कर देश में हिंदू धर्म आधारित राजनीति करने का प्रयास।

पंरतु जहां तक 1947 में भारत के कथित धर्म आधारित विभाजन का प्रश्र है तो यह अपनी जगह पर एक ऐतिहासिक सत्य है कि भारतवर्ष के अधिकांश मुसलमान देश का बंटवारा हरगिज़ नहीं चाहते थे। यहां तक कि स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक खान अब्दुल गफ्फार खां व अबुल कलाम आज़ाद जैसे कई बड़े मुस्लिम नेता ऐसे थे जो मुस्लिम लीग की सांप्रदयिकतापूर्ण राजनीति तथा उसकी अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाए जाने की मुहिम से सहमत नहीं थे। परंतु अंग्रेज़ों की बांटो और राज करो की सफल राजनीति परवान चढ़ी और लाखों बेगुनाह हिंदुओं व मुसलमानों की लाशों के ढेर पर पाकिस्तान जैसे तथाकथित मुस्लिम राष्ट्र का उदय हो गया। और अपने अस्तित्व में आने के मात्र 24 वर्ष के भीतर ही यही तथाकथित इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान भी दो भागों में विभाजित हो गया और 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और बंगलादेश नामक एक नए राष्ट्र का भी उदय हो गया। यहां यह सोचना बेहद ज़रूरी है कि यदि 1947 का विभाजन धर्म आधारित था तो पाकिस्तान को 1971 में दो हिस्सों में बंटने की ज़रूरत आिखर क्यों महसूस हुई? 1971 का पाकिस्तान विभाजन अपने-आप में इस बात का जीता-जागता सुबूत है कि क्षेत्रवाद के मुकाबले में धर्म या संप्रदाय की राजनीति कहीं नहीं ठहरती। निश्चित रूप से 1947 में जब भारत के अधिकांश मुसलमानों ने भारत में ही रहने का निर्णय लिया उस समय भी उनकी यही सोच थी। और हकीकत भी यही है कि बंटवारे में सबसे अधिक विस्थापन सीमावर्ती राज्यों अर्थात् पंजाब,दिल्ली व पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से ही हुआ। इन क्षेत्रों के मुसलमान बड़ी संख्या में इस्लामी राष्ट्र बनने के झांसे में या फिर सांप्रदायिक हिंसा की चली आंधियों के भय से विस्थापित होकर सीमा पार चले गए तथा उस पार के हिंदू बड़ी संख्या में भारतवर्ष आ गए। जबकि शेष भारत के अधिकांश मुसलमानों ने अपनी मातृभूमि में ही रहने और यहीं जीने-मरने का निर्णय लिया।

परंतु लगभग पूरे विश्व में सत्ता की भूख मिटाने के लिए सियासतदानों द्वारा धर्म का मुखौटा लगाकर चलने की मानवता विरोधी प्रवृति ने भारतवर्ष को भी अछूता नहीं छोड़ा। आज हमारे देश में केंद्रीय सत्ता पर राज करने वाले दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी विचारधारा के समर्थक राजनैतिक दल के कई नेता भारतीय मुसलमानों के िखलाफ न केवल ज़हर उगलते रहते हैं बल्कि उनकी यह कोशिश भी रहती है कि किसी तरह से उनकी राष्ट्रभक्ति व उनकी राष्ट्रवादिता को संदिग्ध किया जाए। इसी विचारधारा के कुछ नेता भारतीय मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक भी बनाना चाहते हैं। सुब्रमण्यम स्वामी जैसे कई जि़म्मेदार भाजपाई नेता तो मुसलमानों के मताधिकार समाप्त किए जाने की बात भी करते रहे हैं। हद तो यह है कि इसी दक्षिणपंथी सोच के कई नेता समय-समय पर यह भी कहते रहते हैं कि जो उनकी हिंदुत्ववादी विचारधारा का विरोधी हो या उनसे राजनैतिक रूप से सहमत न हो उसे देश छोडक़र पाकिस्तान चले जाना चाहिए। ज़ाहिर है ऐसे में भारतीय मुसलमानों के मन में एक प्रकार का भय व संदेह उत्पन्न होने लगा है। और सत्ताधारी नेताओं यहां तक कि कई मंत्रियों व निर्वाचित जनप्रतिनिधियों द्वारा की जाने वाली मुस्लिम विरोधी ज़हरीली टिप्पणीयों से भारतीय मुसलमान स्वयं को अत्यंत आहत महसूस करने लगे हैं। और यदि इस भयपूर्ण वातावरण में मुस्लिम समुदाय का कोई विशिष्ट व्यक्ति कुछ बोल देता है तो यही हिंदुत्ववादी ताकतें हाथ धोकर उसके पीछे पड़ जाती हैं।

ऐसे में यह सवाल ज़रूरी है कि क्या भारतवर्ष पर हिंदुत्ववादी शक्तियों का ही अधिकार रह गया है और भारतीय मुसलमान यहां के दूसरे दर्जे के नागरिक होने चाहिए व उन्हें वास्तव में मताधिकार से वंचित कर दिया जाना चाहिए? दरअसल धर्म को हथियार बनाकर राजनीति करने का सिलसिला भारत में राष्ट्रीय स्वयं संघ या उसके सहयोगी दलों द्वारा ही शुरु नहीं किया गया बल्कि यह सिलसिला शताब्दियों पूर्व से चला आ रहा है। हमारे देश में भी आक्रांताओं द्वारा धर्म के नाम पर दर्जनों बड़े आक्रमण किए गए। तमाम धर्मस्थल तोड़े गए। जर्मन में हिटलर ने भी नस्लभेद को आधार बनाकर यहूदियों के विरुद्ध विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार किया और उन्हें जर्मन से भगा दिया। आज विश्व का सबसे खतरनाक कहा जाने वाला आतंकवादी संगठन आईएस भी उसी रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में सत्ता सुख भोगने के लिए  यदि भारत में भी हिंदुत्ववादी ताकतें कुछ वैसे ही प्रयोग करती आ रही हैं तो इसमें भी न तो कुछ नया है न ही यह प्रयास आश्चर्यचकित करने वाला है। परंतु भारतवर्ष जैसे दुनिया के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में जहां की वैश्विक पहचान ही यहां के सर्वधर्म संभाव व भारत में दिखाई देने वाले सांप्रदायिक सौहाद्र्र के कारण बनी हुई है ऐसे देश में इस प्रकार की कोशिशें स्वभाविक रूप से चिंता का विषय हैं।

भारतवर्ष वह देश है जहां 1857 से लेकर 1947 तक के स्वतंत्रता संग्राम में तथा 1947 के बाद के स्वतंत्र भारत में आज तक न केवल भारतीय मुसलमानों ने बल्कि यहां रहने वाले सभी गैर हिंदू समुदाय के लोगों ने मिलजुल कर राष्ट्र के निर्माण व इसकी रक्षा के लिए समान रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है। जहां तक भारतीय मुसलमानों का प्रश्र है तो जहां मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान निर्माण के पैरोकार नेताओं में थे वहीं देश के सबसे बड़े इस्लामी संगठन समझे जाने वाले जमात-ए-इस्लामी अथवा देवबद संस्था ने इस धर्म आधारित बंटवारे का खुलकर विरोध किया था। इसके अतिरिक्त अबुल कलाम आज़ाद,अब्दुल गफ्फार खां व बटुकेश्वर दत्त जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों का अंग्रेज़ों की अदालत में मुकद्दमा लडऩे वाले महान स्वतंत्रता सेनानी बैरिस्टर आसिफ अली, पंजाब के मुस्लिम राष्ट्रवादी नेता सैफुद्दीन किचलू,महान उर्दू कवि मगफूर अहमद एजाज़ी,बिहार में अपना गृहशासन संचालित करने वाले आंदोलन के नेता मौलाना मज़हरूल हक,शैखुल हिंद के नाम से प्रसिद्ध देवबंदी नेता महमूदउल हसन, क्रांतिकारी ग़दर पार्टी के संस्थापक अब्दुल हफीज़ मोहम्मद बरकतुल्लाह,िखलाफत आदोलन के नेता तथा समाज सुधारक रफी अहमद कि़दवई,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बदरूद्दीन तैय्यब जी, हकीम अजमल खां तथा सैयद हसन इमाम जैसे सैकड़ों मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी ऐसे थे जो भारतवर्ष को एकजुट रखना चाहते थे।

स्वतंत्र भारत में भी हमारे देश में वीर अब्दुल हमीद से लेकर एपीजे अब्दुल कलाम तक देश ने ऐसे सैकड़ों राष्ट्रवादी मुसलमानों को जन्म दिया है जिसपर देश गर्व करता है। परंतु यदि भारतीय मुसलमानों को मात्र अपने राजनैतिक सत्ता स्वार्थ के चलते दाऊद इब्राहिम,अबु सलेम या आईएस अथवा अलकायदा जैसे संगठनों से जोडक़र उनकी पहचान को दागदार बनाने की कोशिश की जा रही है तो ऐसी कोशिशें निश्चित रूप से भारतीय मुसलमानों के लिए चिंता का सबब हैं। इस्लाम धर्म व उसकी शिक्षाएं मुसलमानों को यही निर्देशित करती हैं कि मुसलमान दुनिया के जिस देश में भी रहें उस देश के प्रति पूरी निष्ठा तथा वफादारी के साथ रहते हुए राष्ट्रभक्ति का परिचय दें। और भारतीय मुसलमानों द्वारा निश्चित रूप से ऐसा ही किया जा रहा है। लिहाज़ा किसी को भारतीय मुसलमानों को उनकी राष्ट्रभक्ति या राष्ट्रवादिता के लिए किसी प्रकार के प्रमाणपत्र देने की न तो पहले कोई आवश्यकता थी न आज है और न ही भविष्य में कभी रहेगी।

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Author-Tanveer-Jafri-Tanveer-Jafri-writer-Tanveer-Jafriतनवीर-जाफरी1About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

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