पुरुष प्रधान समाज की वीभत्स कल्पना है भूतनी या चुड़ैल

0
23

– निर्मल रानी –

 
पिछले दिनों भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने देश की अनेक हस्तियों को देश के सबसे बड़े एवं प्रमुख पदम् पुरस्कारों से नवाज़ा। इनमें सरकार द्वारा संस्तुति प्राप्त जहाँ कंगना रानावत जैसे कई नाम ऐसे थे जिन्हें सरकार ने ‘अपना समझकर ‘ पदम् पुरस्कार दिलवाये वहीँ निश्चित रूप से कई ऐसे लोगों को भी सम्मानित किया गया जिन्होंने समाज की मुख्य धारा में पसरी कुरीतियों के विरुद्ध अपनी अकेली परन्तु सशक्त आवाज़ बुलंद की। ऐसा ही एक नाम था झारखण्ड राज्य के सरायकेला ज़िले की रहने वाली छुटनी देवी का जिन्हें राष्ट्रपति महोदय ने पदमश्री पुरस्कार से नवाज़ा।
                                                                 ग़ौर तलब है कि हमारे देश में केवल दिखावे के लिये या महिलाओं के वोट बैंक पर क़ब्ज़ा जमाने की ग़रज़ से महिलाओं को ख़ुश करने के लिये तरह तरह की बातें सत्ता,सरकार,राजनेताओं व प्रशासन द्वारा की जाती है। कभी देवी तो कभी आधी आबादी कहकर ख़ुश किया जाता है। हद तो यह है कि जहाँ महिलायें महिलाओं हेतु आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ती हैं,आम तौर पर वहां भी उन प्रत्याशी महिलाओं के पतियों का ही वर्चस्व रहता है। महिलाओं को तो केवल हस्ताक्षर करने मात्र के लिये ही सीमित रखा जाता है। कन्या पूजन के नाम पर कंजकों को पूजा जाता है परन्तु दुनिया में सबसे अधिक बलात्कार,सामूहिक बलात्कार और मासूम व नाबालिग़ बच्चियों से बलात्कार व उनकी हत्याओं की घटनायें भी इसी ‘भारत महान ‘ में घटित होती हैं। बिहार,झारखण्ड,छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश व ओड़ीसा जैसे राज्य जहां ग़रीबी और अशिक्षा अधिक है वहां तो महिलाओं को नीचा दिखाने,उनसे किसी बात का बदला लेने,कुछ नहीं तो अनपढ़ पुरुषों द्वारा समाज में अपना दबदबा दिखाने या रुतबा जमाने के लिये किसी भी महिला को डायन अथवा चुड़ैल बता दिया जाता है। कभी कभी तो परिवार के लोग ही महिला का मकान ज़मीन का हिस्सा हड़पने के लिए भी उसे डायन बता देते हैं। और किसी महिला को एक बार डायन घोषित करने के बाद उसपर चाहे जितना ज़ुल्म समाज ढाये कोई उस ग़रीब महिला के पक्ष में नहीं खड़ा होता। डायन घोषित की गयी महिला को कभी रस्सियों से तो कभी किसी खूंटे या चारपाई में बाँध दिया जाता है तो कभी किसी पेड़ या खंबे से। उसे मारा पीटा जाता है और भूखा भी रखा जाता है। कई बार तो उसके बच्चों को भी चुड़ैल घोषित महिला के साथ ही तिरस्कृत किया जाता है।
                                            झारखण्ड की छुटनी देवी भी उन्हीं महिलाओं में एक थी जिसे वर्ष 2015 में उसके गांव के कलंकी पुरुषों ने डायन घोषित कर दिया था। उस समय छूटनी देवी का आठ महीने का बच्चा भी था। फिर भी गांव के लोगों को उसपर तरस न आया। बताया जाता है कि छुटनी देवी महतो के घर के साथ वाले किसी कथित स्वयंभू दबंग के घर में कोई बीमार पड़ गया। उन लोगों को शक हुआ कि उसकी पड़ोसन छूटनी देवी ने ही कोई झाड़ फूँक की है जिसके परिणाम स्वरूप ही उनके  घर का सदस्य बीमार पड़ा है।बस फिर क्या था ?छूटनी देवी पर तो मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। गांव के पुरुषों की पंचायत हुई और उसे गांव से बाहर निकालने का ‘तालिबानी फ़रमान’ जारी कर दिया गया। वह अपने आठ महीने के बच्चे को लेकर गांव के बाहर एक पेड़ के नीचे रहने लगी। फिर ओझा के कहने पर छुटनी को मानव मल मूत्र खिलाने की कोशिश की गयी।उसके मना रने पर उसपर मैला फेंका गया। वह  न्याय के लिये दर दर भटकती रही परन्तु कहीं से उसे कोई मदद न मिली।
                                              फिर छुटनी देवी ने संकल्प किया कि यह समस्या केवल उसी की नहीं बल्कि रोज़ाना सैकड़ों महिलाओं के साथ यही ज़ुल्म और अन्याय होता है। और फिर छुटनी महतो ने इस प्रकार की पीड़ित महिलाओं को संगठित करना शुरू किया। आज छूटनी देवी चड़ैल और भूतनी बताकर पीड़ित की जाने वाली महिलाओं की एक सशक्त आवाज़ बन चुकी हैं। केवल झारखण्ड ही नहीं बल्कि देश के किसी भी राज्य की उस पीड़ित महिला की वह एक मुखर आवाज़ हैं जिसे भूतनी बताकर तिरस्कृत या अपमानित किया जाता है। छुटनी महतो अब तक इस प्रकार की दो सौ से भी अधिक पीड़ित महिलाओं को उनपर लगे ‘भूतनी’ या ‘चुड़ैल’ अथवा ‘डायन’ के टैग से मुक्ति दिला चुकी हैं। आज वे बाक़ायदा अपना ‘डायन पुनर्वास केंद्र’ संचालित कर रही हैं।
                                                 परन्तु दुःख का विषय है कि आज़ादी के 75 वर्ष के बाद भी अभी तक हमारे ‘गौरवमयी ‘ देश से इस पाखण्ड पूर्ण कुप्रथा का अंत नहीं हो सका ? पुरुष प्रधान समाज में भूतनी ,चुड़ैल या डायन का कोई पुरुष संस्करण नहीं पाया जाता। यह भी कितने कमाल की बात है। ठीक उसी तरह जैसे पुरुषों ने सभी गलियां, गन्दी से गन्दी गलियां सब केवल महिलाओं की और संकेत करने वाली गढ़ी हैं। निश्चित रूप से  महिलाओं के लिए भूतनी ,चुड़ैल या डायन की संकल्पना पुरुषों की उसी दूषित सोच की उपज है। इस कलंक रुपी समस्या के निवारण के लिये जहाँ उस परिवार के पुरुषों को भी मुखर होने की ज़रुरत है जिसके परिवार की महिला इसतरह की साज़िश का शिकार होती है। वहीं सरकार को भी इस कुप्रथा के विरुद्ध सख़्त क़ानून बनाने और दोषी लोगों तथा मात्र अपनी रोज़ी रोटी के लिये अन्धविश्वास फैलाने वाले ओझा-तांत्रिक आदि के विरुद्ध भी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिये।
 

परिचय:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -: E-mail : nirmalrani@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

                                                                                                   

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here