कश्मीर से निदा नवाज़ की हिंदी कविताएँ

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 कविताएँ

1.   “जिससे प्यार हो”*

“जिससे प्यार हो
उसके साथ निकल जाना चाहिये ”*
सूर्योदय से पहले
बंकर-बस्ती से दूर
बहुत दूर
और पार करना कहिए
भावनाओं के दरिया पर बनाया गया
विश्वास का वह पुल
जिसको धर्म की दहलीज़ पर बैठे
देवतओं ने गिराये जाने का
दंड दिया हो
*
जिससे प्यार हो
“उसे हमेशा पुकारना चाहिये
एक छोटे से नाम से ”*
और उसके साथ रचनी चाहिये
एक सांझी कविता
अपने हाथों की रेखाओं को
देकर शब्दों का आकार
और खोजने चाहिये
आकाश पर
अपने भाग्य के तारे
अपनी इच्छा के ग्रह-पथ पर
डालने के लिए
*
जिससे प्यार हो
उसे पूजना चाहिए
दुर्गापूजा के दिन
वरदान में माँगना चाहिए
आँखों का एक पूरा आकाश
और समेटना चाहिए
अपने दामन में
एक-एक दमकता तारा
प्यार का
*
जिससे प्यार हो
उसके बालों में टांक देना चाहिए
वसंत में खिलने वाला
पहला फूल
और उसको मुनाना चाहिए
साँझ समय
पूर्णिमा की रात
शरीर की दहकती आग में उपजा
चनचल विचार
*
जिससे प्यार हो
उसके साथ ख़रीदनी चाहिए
एक नेया
और एक महासागर
और निकलना चाहिए ढूँढने
डूबे हुए सत्य की लाश
किसी बर्फानी तोदे के सीने में
*
जिससे प्यार हो
उसके साथ नाचना चाहिए
नंगे पांव
अमावस की रात
किसी दूर द्वीप में
तलवों के रक्तरंजित हिने तक
और देना चाहिए उसे उपहार
होंठों पर झिलमिलाता ,रस भरा
एक सलोना ,नमकीन चाँद .
*  पाकिस्तानी कवि अफ़्ज़ाल अहमद की दो पंक्तियाँ

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2.   मैं तो पहले ही कहता था

मैं तो पहले ही कहता था
पेड़ों पर बिजलियाँ मत गिराओ
परिंदे तो उड़ ही जाएंगे
किन्तु
तुम्हारे उपवन की सारी टहनियां
जल कर भस्म हो जाएंगी
जिन पर आने वाले समय की
सारी खुशबू
और कुछ परिंदों के जले हुए पर
विलाप करेंगे.
*
मैं तो पहले ही कहता था
नफ़रत करने के अधिकार को
अपने नियम में जगह मत दो
कि नफ़रतों की बाढ़
फैलते-फैलते
तुम्हारे आंगन तक भी पहुंच जाएगी
और तुम अपने ही बच्चों की
अंतिम हिचिकयाँ भी
न सुन पाओगे
*
मैं तो पहले ही कहता था
अपने चारों ओर
डर,तन्हाई और साम्प्रदायिकता की
कंटीली बाड़ मत बिछाओ
कि फिर विशवास और मानवता
इसको फलांगते हुए
रक्त-रक्त हो जाएगी
और तुम्हारे अंदर का मनुष्य
घुट-घुट कर
मर जाएगा.
*
मैं तो पहले ही कहता था
मेरी उंगलियाँ मत काटो
कि इनसे टपकने वाले
ख़ून की हर बूंद से
एक ऐसी कविता रच जाएगी
जो तुम्हारी सारी तलवारों को
कट के रख देगी
*
मैं तो पहले ही कहता था
प्रेम को शरीर का रूप मत दो
फिर भावनाओं की सभी
सुनहरी चिड़ियाँ उड़कर
उतनी दूर चली जाएंगी
कि तुम्हारे पास
न प्रेम की दहकती लपट रहेगी
और न ही
शरीर की धीमी आंच .

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3.   ख़्वाबों  के खंड़हर

इससे पहले कि
आने वाली पीढ़ी को
इस मौसम से
लगने लगे डर
हमें प्यार और भाईचारे के
कोमल धागों से
बुननी होगी एक ऐसी चादर
जिसको ओढ़ सकें भविष्य में
हमारे बच्चे
समय की ठण्ड और कड़ी धूप से
बचने के लिए

इससे पहले कि
जल कर राख हो जाए
हमारे दिल के कोने में बची
थोड़ी सी हरियाली भी
हमें एक साथ लड़ना होगा
यह युद
समय के दहकते
अंगारों के विरुद्ध

इससे पहले कि
बनाया जाए
हमारा एक-एक गाँव
कभी वन्दहामा*, बिजबिहरा,मड्डवा*
जलाई जाए हमारे साथ-साथ
सुहागनों के करवाचौथ पर
चाँद की प्रतीक्षा की इच्छा
मासूम बच्चों के माथे के तिलक
जनेऊ के तीन धागों में बंधा
देवताओं ,ऋषियों
और पितृों के ऋण का एहसास
और बनाए जाएं गोली का निशाना
ईद-नमाज़ में झुकने से पहले ही
हमारे बुज़ुर्गों के माथे
हमें बचानी होगी अपनी पहचान
दो बन्दूकों के बीच
मरने से पहले

इससे पहले कि
छीन लिए जाएं हमसे
नींद की फटी पुरानी
चादर के साथ साथ
ख्वाबों के खंड़हर भी
छोड़ना होगा हमें अपराध
चुप रह कर ज़ुल्म सहने का
और बन जाना होगा
एक पुकार
तेज़ तलवार सी

नहीं कर सकते यदि हम उह सब
तो इससे पहले कि
आख़री हिचकी लेकर मर जाए
हमारा अंतर्मन सदैव के लिए
घोषणा करनी चाहिए हमें
अपनी मौत की
सरे संसार के समक्ष
और दर्ज़ करना चाहिए
अपना नाम
कायरों की पुस्तक के
पहले पन्ने पर .
·         वन्दहामा-कश्मीर घाटी का वः गाँव जहां उग्रवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों का क़तलि-ए-आम किया गया .
·         बिजबिहरा,मड्डवा –कश्मीर और जम्मू के दो गाँव जहां फ़ौजियों ने आम लोगों और नमाज़ियों पर फायरिंग करके बहुत से लोगों को मारा.

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4.   चीते ,चील और चूहे की दोस्ती

चूहे कभी भी निकल सकते हैं
अपनी बिलों से
चीते कभी भी घुस सकते हैं
बस्तियों में
चील कभी भी मंडरा सकते हैं
शहर पर
और यह शहर
तुम्हारे भीतर का
एक विचार भी हो सकता है
तुम्हारी आँखों में पनपा
एक सपना भी हो सकता है
तुम्हारे मस्तिष्क में उपजा
एक सुंदर सा तर्क भी ही सकता है
और यह शहर
तुम्हारे दिल का वह
रोशन कोना भी हो सकता है
जहाँ जलते हैं विश्वास के दीप
चीते चील और चूहे की दोस्ती
बहुत पुरानी है
एक चीर-फाड़ करता है
दूसरा कुतरता है
भाईचारे का आंचल
और तीसरा नोचता है
मानवता का शरीर
राजकुमार का सपना
चीते के पंजे में कैद हुआ
चूहे ने उसके पंख कुतरने शुरू किये
चील ने उसको नोचना आरंभ किया
मैं राजकुमार के सपने को
इनसे छुड़ाऊंगा
मैं बेनिकाब करूंगा
चीते,चूहे और चील की यह दोस्ती

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Nida-Nawazwriter-Nida-Nawaz-poet-Nida-Nawaz-dr-Nida-Nawaz-story-written-by-Nida-Nawaz-Nida-Nawaz-from-jammu-and-kashmirपरिचय – :

निदा नवाज़

पत्रकारिता , लेखक , शायर व्  कवि
शिक्षा :- एम.ए.मनोविज्ञान ,हिंदी ,उर्दू ,पत्रकारिता,एम.एड.

प्रकाशन :-
अक्षर अक्षर रक्त भरा”-1997, “बर्फ़ और आग”-2015 -हिंदी कविता संग्रह. “सिसकियाँ लेता स्वर्ग”-2015-हिंदी डायरी.साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित“उजला राजमार्ग” में शामिल कश्मीरी कविताओं का हिंदी अनुवाद-स्वास्थ्य मंत्रालय,भारत सरकार की 35 पुस्तिकाओं का अंग्रेजी से हिंदी,उर्दू और कश्मीरी में अनुवाद.विज्ञान प्रसार, विज्ञान मंत्रालय की रेडियो विज्ञान डाक्यूमेंट्रीज़ का निरंतर पिछले पांच वर्षों से कश्मीरी अनुवाद.आकाशवाणी श्रीनगर केंद्र के सम्पादकीय कार्यक्रम”आज की बात” का पिछले २७ वर्षों से लेखन .

पुरस्कार :-
केन्द्रीय हिंदी निदेशालय ,भारत सरकार द्वारा हिंदीतर भाषी हिंदी लेखक राष्ट्रीय पुरस्कार ,*हिंदी साहत्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा साहित्य प्रभाकर ,*मैथलीशरण गुप्त सम्मान ,*भाषा संगम,इलाहबाद(उ०प्र०)एवं हिंदी कश्मीरी संगम (कश्मीर)द्वारा युग कवि दीनानाथ नादिम साहित्य सम्मान और ल्लद्यद साहित्य सम्मान .*शिक्षा मंत्रालय जे.के.सरकार का राज्यपाल की ओर से राज्य पुरस्कार .

संपर्क :-

निदा नवाज़ ,एक्सचेंज,एक्सचेंज कोलोनी ,पुलवामा -102301
फोन :- 09797831595
e.mail :- nidanawazbhat@gmail.com , nidanawaz27@yahoo.com

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