अफगानिस्तान में नर्क जैसे हालात- इस पर भी पश्चिमी देश हैं खामोश

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काबुल एयरपोर्ट के बाहर हजारों लोगों की भीड़ जमा है. अनुमान है कि 10 लाख लोग अफगानिस्तान से निकलना चाहते हैं, लेकिन बुधवार (25 अगस्त) शाम तक 82 हजार 300 लोगों को ही वहां से निकाला जा सका है. इनमें भी ज्यादातर लोग वो हैं, जो विदेशी नागरिक हैं या जिनके पास किसी ना किसी देश का वीजा है.

अफगानिस्तान   के आम लोग नर्क जैसी स्थिति में एयरपोर्ट के बाहर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. इनमें से कई लोगों ने एयरपोर्ट में घुसने के लिए गंदे नाले से जाने की कोशिश की. एयरपोर्ट के इस हिस्से में किसी भी व्यक्ति के लिए 10 मिनट भी खड़े रहना मुश्किल है, लेकिन ये लोग गंदे नाले में पिछले कई दिनों से खड़े हुए हैं.

इन लोगों का दर्द और बेबसी यहीं तक सीमित नहीं है. बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनके पास अब पीने का पानी और खाने के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं. एयरपोर्ट के बाहर जो पानी मिल भी रहा है, वो इतना महंगा है कि कई लोग इसे खरीदने के बारे में सोच भी नहीं सकते. काबुल एयरपोर्ट के बाहर पानी की एक बोतल की कीमत 40 डॉलर यानी लगभग 3 हजार रुपये तक है, जबकि एक प्लेट चावल के लिए लोगों को 100 डॉलर यानी साढ़े सात हजार रुपये देने पड़ रहे हैं. सोचिए, काबुल एयरपोर्ट के बाहर इन्तज़ार करना भी कितनी बड़ी चुनौती है. बड़ी बात ये है कि ये पानी और खाना भी उन्हीं लोगों को मिल पा रहा है, जिनके पास यूएस डॉलर हैं.

अफगानिस्तान की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब भी काबुल एयरपोर्ट   के बाहर 50 हजार से ज्यादा लोग जमा हो सकते हैं. इसकी वजह से वहां इतना भयानक जाम लगा हुआ है कि एयरपोर्ट तक पहुंचना भी एक युद्ध जीतने जैसा है. बड़ी बात ये है कि हजारों लोगों की इस भीड़ में किसी को भी कोरोना वायरस का डर नहीं है. डर सिर्फ तालिबान का है. अफगानिस्तान में अब भी कोरोना के लगभग 45 हजार सक्रिय मामले हैं. बुधवार को भी वहां कोरोना के 77 नए मामले मिले. हालांकि ये संख्या ज्यादा भी हो सकती है. क्योंकि जब से तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया है, तब से वहां कोरोना के सही मामले रिपोर्ट नहीं हो रहे हैं.

इसे विडम्बना ही कहेंगे कि जिस बीमारी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरी दुनिया के लिए महामारी घोषित किया है, उसके अफगानिस्तान में 70 नए मामले आने पर कोई लॉकडाउन नहीं लगता, लेकिन न्यूजीलैंड में एक दिन में केवल 42 नए मामले मिलने पर पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया जाता है. इससे पता चलता है कि कोविड की बीमारी भी उन देशों और लोगों के लिए है, जिनके पास लग्जरी है. यहां एक और प्वाइंट ये है कि जो पश्चिमी देश दुनियाभर के देशों को लोकतंत्र और मानव अधिकारों के लिए सर्टिफिकेट बांटते फिरते हैं, वो आज अपने लोगों को बाहर निकालने के लिए अफगानिस्तान की मेडिकल सप्लाई रोक कर बैठे हैं. वो भी तब, जब डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि अगले एक हफ्ते में अफगानिस्तान में मेडिकल सप्लाई खत्म हो जाएगी.
काबुल एयरपोर्ट   के इर्द गिर्द घुमती ये वो कहानियां हैं, जो बहुत कुछ कहती हैं, लेकिन पश्चिमी देश इन पर खामोश हैं. आज हमने इस पर आपके लिए एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है, जो अफगान संकट पर आपको सही और सटीक जानकारी देगी. इसलिए इस रिपोर्ट को देखिए और ज्यादा से ज्यादा शेयर भी कीजिए. plc

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