रस्सी तो जल गयी मगर ऐंठन नहीं गयी

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– तनवीर जाफ़री –                                                                  

स्वतंत्र भारत के इतिहास में चले  सबसे बड़े व संयुक्त किसान आंदोलन ने आख़िरकार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घुटने टेकने के लिये मजबूर कर ही दिया। देश का एक बड़ा ‘भोंपू वर्ग ‘ जो बहुमत की मोदी सरकार तथा इसपर पड़ रही पूंजीपतियों की गहरी छाया,साथ साथ प्रधानमंत्री के सख़्त स्वभाव पर विश्वास किये बैठा था वह ज़रूर इस मुग़ालते में था कि तीनों कृषि क़ानून वापस नहीं होने वाले। परन्तु इसी देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी था जिसे देश के किसानों की ताक़त पर पूरा भरोसा था,वह जानता था कि किसान, सरकार से अपनी मांगे पूरी करवाये बिना दिल्ली की सरहदों से ‘घर वापसी ‘ करने वाले नहीं हैं। और आख़िरकार जीत देश की अन्नदाताओं की ही हुई। एक वर्ष तक चले इस आंदोलन में तीनों कृषि क़ानूनों की वापसी के बावजूद किसान अब फ़सल के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी,तथा आंदोलन के दौरान उपजी अनेक परिस्थितिजन्य मांगों को लेकर अभी भी ‘दिल्ली द्वार ‘ पर डटे हुये हैं। तीनों कृषि क़ानूनों पर सरकार के पीछे खिसकने के बाद अब किसानों का मानना है कि यदि इसी झटके में उनकी तीनों कृषि क़ानूनों की वापसी के अतिरिक्त न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी व अन्य मांगें पूरी हो गयीं तो निकट भविष्य में उन्हें कोई नया आंदोलन छेड़ने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी।
                                                                 तरह तरह के आरोप-प्रत्यारोप व लांछन झेलने व आंदोलन के दौरान किसानों के कष्ट उठाने की पराकाष्ठा के दौर से गुज़रने वाले आंदोलन का हालांकि अभी अंत नहीं हुआ है। परन्तु तीनों कृषि क़ानूनों की वापसी तक का सफ़र भी अच्छा नहीं रहा। यहाँ तक कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पर्व के दिन देश को संबोधित करते हुये जिन शब्दावली व वाक्यों का प्रयोग किया वे भी यही संकेत दे रहे थे कि ‘क़ानून तो अच्छा था परन्तु कुछ किसानों को समझाया नहीं जा सका’। उदाहरण के तौर पर प्रधानमंत्री के संबोधन के इन अंशों को ही देखिये – ‘किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी महाअभियान में देश में तीन कृषि क़ानून लाए गए थे। मक़सद ये था कि देश के किसानों को, ख़ासकर छोटे किसानों को, और ताक़त मिले, उन्हें अपनी उपज की सही क़ीमत और उपज बेचने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा विकल्प मिले। बरसों से ये मांग देश के किसान, देश के कृषि विशेषज्ञ, देश के कृषि अर्थशास्‍त्री, देश के किसान संगठन लगातार कर रहे थे। पहले भी कई सरकारों ने इस पर मंथन भी किया था। इस बार भी संसद में चर्चा हुई, मंथन हुआ और ये क़ानून लाए गए। देश के कोने-कोने में कोटि-कोटि किसानों ने, अनेक किसान संगठनों ने, इसका स्वागत किया, समर्थन किया। मैं आज उन सभी का बहुत-बहुत आभारी हूं, धन्‍यवाद करना चाहता हूं।’
                                                           प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि -‘हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, ख़ासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव ग़रीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्यनिष्ठा से, किसानों के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये क़ानून लेकर आई थी। लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए हैं। भले ही किसानों का एक वर्ग ही विरोध कर रहा था, लेकिन फिर भी ये हमारे लिए महत्‍वपूर्ण था। कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि क़ानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास भी किया। हम पूरी विनम्रता से, खुले मन से उन्‍हें समझाते रहे। अनेक माध्‍यमों से व्‍यक्तिगत और सामूहिक बातचीत भी लगातार होती रही। हमने किसानों की बातों को, उनके तर्क को समझने में भी कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं छोड़ी। मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए सच्‍चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्‍या में ही कोई कमी रही होगी जिसके कारण दिए के प्रकाश जैसा सत्‍य ख़ुद किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए। आज गुरु नानक देव जी का पवित्र प्रकाश पर्व है। ये समय किसी को भी दोष देने का नहीं है। आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने का, ‘रिपील ‘ करने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि क़ानूनों को ‘रिपील ‘ करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे’।
                                                         प्रधानमंत्री के इस संबोधन के बाद अब बारी थी उस चाटुकार मीडिया तथा काले कृषि क़ानून  समर्थकों की। इस वर्ग को प्रधानमंत्री की क़ानून वापसी की घोषणा में भी ‘प्रधानमंत्री का मास्टर स्ट्रोक ‘ दिखाई देने लगा। इस फ़ैसले को उत्तर प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों से जोड़कर देखा जाने लगा। परन्तु प्रधानमंत्री के संबोधन में कृषि क़ानूनों की वकालत करने के साथ ही इन्हें वापस लेने की घोषणा भी करना,यह स्थिति सरकार व किसानों के मध्य ऐसे अविश्वासपूर्ण हालात को जन्म दे गयी जो पहले कभी नहीं देखे गये। जब प्रधानमंत्री जी फ़रमाते हैं कि -‘इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए हैं ‘ उस समय उन्हें यह भी याद रखना चाहिये कि वे इतनी पवित्र ,पूर्ण रूप से शुद्ध तथा किसानों के हित की बात केवल किसानों को ही नहीं बल्कि मेघालय के राज्यपाल सतपाल मलिक को भी नहीं समझा सके? वे अपनी बात अपनी ही पार्टी के सांसद वरुण गांधी व वीरेंद्र सिंह जैसे कई नेताओं को भी नहीं समझा सके ?
                                                         प्रधानमंत्री भले ही इसे ‘थोड़े से किसानों’ और ‘किसानों के छोटे से वर्ग’ का आंदोलन जैसे शब्दों का प्रयोग कर इस आंदोलन की व्यापकता को संकुचित करने का प्रयास क्यों न करें परन्तु वास्तव में यह किसान आंदोलन की व्यापकता,दृढ़ता व उनके संकल्पों की ही जीत थी जिसने सरकार को घुटने टेकने के लिये मजबूर कर दिया। अन्यथा यह आंदोलन अभी और भी व्यापक व तीव्र हो सकता था। क्योंकि यह राजनैतिक दलों द्वारा बुलाई गयी ‘भाड़े की भीड़’ पर आधारित आंदोलन नहीं बल्कि देश के समर्पित ‘अन्नदाताओं ‘ का आंदोलन था और यह शक्ति उन्हीं आनंदताओं की जीत है। जो लोग सरकार के फ़ैसले में ‘मास्टर-स्ट्रोक’ जैसा कुछ देख रहे हैं उनकी स्थिति दरअसल -‘रस्सी तो जल गयी मगर ऐंठन नहीं गयी’ जैसी ही है।
 

About the Author 

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social  activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

                                                                                                   

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