आयात निर्यात का अजीब खेल

0
20

– सुनील दत्ता  –

Funny game of import-exportआयात निर्यात का एक दिलचस्प उदाहरण देश के कुल निर्यात में पिछले 17 महीनों से कमोवेश लगातार कमी आ रही है | यह गिरावट और ज्यादा होती अगर भेड़ , बकरी ,भैस , मुर्गी तथा बैल आदि के निर्यात ( जीवित प्राणियों के रूप में निर्यात ) में 400% की वृद्दि नही होती मवेशिवो के निर्यात में सबसे ज्यादा वृद्दि भेड़ो के निर्यात में हुई है| 2014- 15 में 10 हजार डालर की भेड़ो का निर्यात 2015 – 16 में बढ़कर 205 करोड़ डालर पहुच गया | भेड़ो और फिर बकरियों का सबसे ज्यादा निर्यात खाड़ी देशो को और उससे भी सर्वाधिक निर्यात संयुक्त अमीरात को हुआ | मवेशियों के इस निर्यात से भी अधिक वृद्दि भारतीय छतरियो के निर्यात में हुई | पिछले एक साल में छतरियो के निर्यात में 900% की वृद्दि हुई है |  मूल्य  के रूप में 2.3 करोड़ डालर ( 150 करोड़ रूपये ) से अधिक मूल्य की छतरियो का निर्यात हुआ | छतरियो के इस निर्यात के साथ दिलचस्प विरोधाभास तथ्य है कि इस देश में छतरियो का घरेलू बाजार लगभग 5000 करोड़ रूपये का है और इस देशी बाजार में चीन की आयातित छतरियो का बोलबाला है |

यह स्थिति देश की छतरी उद्योग के देशी बाजार को घटाकर उसे महज अंतरराष्ट्रीय एवं अपेक्षाकृत छोटे बाजार पर निर्भर बना देने का द्योतक है | देश के टिकाऊ भरोसेमंद एवं आत्मनिर्भर बाजार को छोड़कर विदेश के अस्थायी एवं परनिर्भर बाजार को अपनाते जाने का द्योतक है | साथ ही यह देश में छतरी उद्योग के उत्पादन को मुख्यत: निर्यात के लिए उत्पादन के रूप में उसके विकास विस्तार को सीमित कर देने की  साजिश है | चीन से सालो साल से उपभोक्ता सामानों के बढ़ते आयात ने इस देश में वहा के मालो सामानों के बाजार को तो बढ़ा दिया है |

देश में खिलौनों से लेकर छतरियो आदि के देशी उत्पादन व बाजार को घटा दिया है | देश के आम उपभोक्ताओं को भी चीनी सामानों पर निर्भर बना दिया है | चीन भी इस देश की बड़ी कम्पनियों के पूजी निवेश को छुट तभी देता है या कोई कूटनीतिक समझौता तभी करता है जब उसे मालो , सामानों के बाजार  को इस देश में बढाने की छुट मिलती है |

भारत और चीन की कुटनीतिक दोस्ती के पीछे भारतीय कम्पनियों का चीन से सुविधापूर्ण निवेश के लिए तथा चीन में उत्पादित मालो सामानों के इस देश में बढ़ते बाजार के लिए होता रहा आर्थिक समझौता ही प्रमुख रहा है | हालाकि उसके परिणाम स्वरूप देश के अपने लघु उत्पादक संकटग्रस्त होते रहे है | इन क्षेत्रो के उत्पादक अपना रोजी रोजगार छोड़ने के लिए विवश है | विदेशीपूजी तकनीक के अंधाधुंध आयात के साथ विदेशी मालो मशीनों और अब आम उपभोक्ता सामानों का भी अंधाधुंध आयात बढ़ता रहा है बढ़ते आयात के चलते ( और निर्यात के घटते के चलते ) विदेशी देनदारी का बोझ भी कमोवेश निरंतर बढ़ रहा है | इसके वावजूद अंतर्रराष्ट्रीय पूजी तकनीक व निवेश का लाभ उठाती देश की धनाढ्य कम्पनिया सरकारों के जरिये विदेशी आयात को अंधाधुंध बढ़ावा दे रही है | देशी उत्पादन व बाजार को हतोत्साहित करती है |

दरअसल देश की जरुरतो के अनुसार उत्पादन व बाजार को किसी हद तक नियंत्रित व संचालित करने का काम भी पिछले 20 सालो से लगातार और नीतिगत रूप से छोड़ा जाता रहा है | विदेशी मालो सामानों के देश में आयात पर लगे मात्रात्मक प्रतिबन्ध को 1997 से घोषित रूप से हटाया जाता रहा है | इन्ही नीतियों की घोषणाओं और उनके बढ़ते क्रियान्वयन के फलस्वरूप आम उपभोक्ता सामानों से देश का घरेलू उत्पादन प्रभावित होता रहा है इसके साथ ही घरेलू उत्पाद संकट में है | इस काम को देश की सभी सरकारों आयातकों निर्यातको द्वारा संचालित किया जाता रहा है |

देश में छतरियो का उत्पादन और उसका घटता देशी बाजार तो मात्र एक उदाहरण है | हाँ देश के निर्यात में महीनों से चल रही गिरावट के साथ मवेशियों एवं छतरियो के निर्यात में भरी वृद्दि इस बात का सबूत पेश करती है की यहाँ के बड़े औद्योगिक कम्पनियो के उत्पादों का विदेशी बाजार में मांग नही है या है तो बहुत कम है |

यही कारण है की विदेशो को किये जाने वाले निर्यात में सूती ऊनी कपड़ो छतरियो तथा चावल चीनी चाय गोश्त मसाले सब्जी फल एवं जानवरों को खिलाने वाली खली आदि ही प्रमुख है | तेज आधुनिक विकास से पहले यानी 25 – 30 साल पहले भी इस देश के निर्यात में यही वस्तुए प्रमुखता से शामिल थी | जाहिर सी बात है वैश्वीकरणवादी निजीकरणवादी एवं उदारीकरणवादी नीतियों को लागू किये जाने के प्रचारित तीव्र विकास ने देश के निर्यात में किसी अन्य प्रमुख आधुनिक उत्पादन की मान और उसके देशी उत्पादन में बढ़ोतरी तो नही की पर देश के उस उत्पादन को क्षति जरुर पहुचाई जिस पर देश के घरेलू उत्पादक – खासकर लघु एवं कुटीर उद्योगों के उत्पादक टिके हुए थे |

_________________

आयात निर्यात का अजीब खेलपरिचय:-

सुनील दत्ता

स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

वर्तमान में कार्य — थियेटर , लोक कला और प्रतिरोध की संस्कृति ‘अवाम का सिनेमा ‘ लघु वृत्त चित्र पर  कार्य जारी है

कार्य 1985 से 1992 तक दैनिक जनमोर्चा में स्वतंत्र भारत , द पाइनियर , द टाइम्स आफ इंडिया , राष्ट्रीय सहारा में फोटो पत्रकारिता व इसके साथ ही 1993 से साप्ताहिक अमरदीप के लिए जिला संबाददाता के रूप में कार्य दैनिक जागरण में फोटो पत्रकार के रूप में बीस वर्षो तक कार्य अमरउजाला में तीन वर्षो तक कार्य किया |

एवार्ड – समानन्तर नाट्य संस्था द्वारा 1982 — 1990 में गोरखपुर परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक द्वारा पुलिस वेलफेयर एवार्ड ,1994 में गवर्नर एवार्ड महामहिम राज्यपाल मोती लाल बोरा द्वारा राहुल स्मृति चिन्ह 1994 में राहुल जन पीठ द्वारा राहुल एवार्ड 1994 में अमरदीप द्वारा बेस्ट पत्रकारिता के लिए एवार्ड 1995 में उत्तर प्रदेश प्रोग्रेसिव एसोसियशन द्वारा बलदेव एवार्ड स्वामी विवेकानन्द संस्थान द्वारा 1996 में स्वामी
विवेकानन्द एवार्ड
1998 में संस्कार भारती द्वारा रंगमंच के क्षेत्र में सम्मान व एवार्ड
1999 में किसान मेला गोरखपुर में बेस्ट फोटो कवरेज के लिए चौधरी चरण सिंह एवार्ड
2002 ; 2003 . 2005 आजमगढ़ महोत्सव में एवार्ड
2012- 2013 में सूत्रधार संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
2013 में बलिया में संकल्प संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन, देवभूमि खटीमा (उत्तराखण्ड) में 19 अक्टूबर, 2014 को “ब्लॉगरत्न” से सम्मानित।

प्रदर्शनी – 1982 में ग्रुप शो नेहरु हाल आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो चन्द्र भवन आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो नेहरु हल 1990 एकल प्रदर्शनी नेहरु हाल 1990 एकल प्रदर्शनी बनारस हिन्दू विश्व विधालय के फाइन आर्ट्स गैलरी में 1992 एकल प्रदर्शनी इलाहबाद संग्रहालय के बौद्द थंका आर्ट गैलरी 1992 राष्ट्रीय स्तर उत्तर – मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र द्वारा आयोजित प्रदर्शनी डा देश पांडये आर्ट गैलरी नागपुर महाराष्ट्र 1994 में अन्तराष्ट्रीय चित्रकार फ्रेंक वेस्ली के आगमन पर चन्द्र भवन में एकल प्रदर्शनी 1995 में एकल प्रदर्शनी हरिऔध कलाभवन आजमगढ़।

___________________________________________

* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here