चौथी कहानी -: आक्सीजन मशीन

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लेखक  म्रदुल कपिल  कि कृति ” चीनी कितने चम्मच  ”  पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l

-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की चोथी  कहानी –

 ______आक्सीजन मशीन_______

MRADUL-KAPILmradul-kapilसायरन बजाती हुयी एम्बुलेंस गाजियाबाद  शहर के  रेंगते हुए ट्रैफिक को  चीरते हुए शहर के सबसे मंहगे अस्पताल की ओर भागती हुयी चली जा रही थी . एम्बुलेंस के बाहर  की दुनियां  ठीक वैसी ही चल रही थी जैसी की  हरदम चलती  है . और एम्बुलेंस के अंदर निधी की दुनियां हरपल  दूर होती  जा रही थी . वो रितेश के सीने को लगातार रगड़ रही थी ताकि रितेश की हर पल उखड़ रही सांसे कुछ पल रुक जाये .

 ठीक 17 मिनट बाद एम्बुलेसं अस्पताल के गेट पर थी . सफेद कपडे पहने कर्मचरियों ने हर पल बेजान हो रहे रितेश के जिस्म को स्टेचर पर डाला और एमरजेंसी की ओर भागे . और अगले 15 मिनट में ही रितेश एमरजेंसी से होता हुआ ICU वार्ड में वेंटिलेटर  पर लेटा था , ICU का दरवाजा बंद होने से पहले ही निधी को कैश काउंटर पर 65 हजार जमा करवाने के लिए बोला जा चुका था . निधी ने साथ में लाये रुपयों और क्रेडिट कार्ड की मदद से पैसे जमा किये . और  ICU के बंद दरवाजो के बाहर लगी बेंच पर बैठ कर यादो में खो गयी .

निधी अपने कालेज की सबसे से खूबसूरत लड़की थी , कालेज का शायद ही ऐसा कोई लड़का रहा हो जो निधी को देख कर आंहे  न भरता हो सिवाय रितेश के . रितेश कालेज का  सबसे मेघावी ,  सीधा  और  बिल्कुल समान्य घरो का निम्न जाती का लड़का .  निधी जो कालेज के हर लड़के की जान थी उसकी जान रितेश में जा बसी . दोनों एक दुसरे को बेंतहा प्यार कर बैठे.

कालेज खत्म हुआ . दोनों के घर वालो को इस बारे में पता लगा और फिर हंगामा बरप उठा . इतने बड़े घर की लडकी भला एक नीच जाती के गरीब लड़के से शादी करेगी  ..? निधी को घर में ही कैद कर लिया गया .

पर  वो प्यार ही क्या जिसे कैद किया जा सके ..? और एक रात उन्होंने ने अपनी जिंदगी की सुबह चुन ली . मध्य प्रदेश के एक छोटे से जिले को छोड़ कर वो रातो रात उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में जा बसे .  रितेश ने एक फर्म में अकाउंट हेड की नौकरी शुरू कर दी और निधी ने पड़ोस के स्कूल में पढाना .   जिंदगी में आभाव थे पर उनका अटूट प्यार हर कमी को ढक लेता था . निधि और रितेश की ये खुद की बनायी दुनियां  थी . जिसमे वो बहुत खुश थे . जिंदगी अपने रास्ते  पर चल निकली थी .

इधर कुछ दिनों से रितेश का वजन कुछ बढ़ सा गया था , शायद पूरे  दिन सीट पर बैठे रहने की वजह से  .  और हर पल न जाने कंहा की नीद रितेश को सताती रहती थी . निधी ने कई बार रितेश को जिम शुरू करने के लिए बोला था पर कभी वक्त तो कभी पैसे की कमी की वजह से टलता रहा .

आज अचानक  से रितेश ऑफिस में  बेहोश हो गए .  ऑफिस  वाले रितेश को पास के डाक्टर के पास ले गए और डाक्टर ने रितेश को शहर के सबसे बड़े साँस के डाक्टर J S कक्कड़ के पास रिफर किया . डाक्टर कक्कड़ ने बताया की रितेश के शरीर में कार्बन डाई     ऑक्साइड बहुत बढ़ जाने और BP बहुत  बढ़ जाने की वजह से वो साँस नही ले पा रहा है और शरीर में आक्सीजन की मात्रा  बहुत   कम हो गयी . और उसे तुरंत वैंटिलेटर की जरूरत बताते हुए  अपने अंडर में शहर के नामचीन  में भर्ती करने के लिए बोला .निधी को कुछ  समझ आता इस से  पहले ही रितेश ICU में था और डाक्टर कक्कड़ बंद दरवाजे के पीछे उसकी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे .

दिन बीतने लगे 1 ,2 , 3, 4… ‘ रितेश की जान डाक्टरों ने बचा ली थी और वैंटिलेटर हटा लिया गया था पर आक्सीजन मशीन अब भी लगी हुयी थी  , रितेश के शरीर में आक्सीजन की मात्रा के साथ साथ अस्पताल का बिल भी बढ़ता जा रहा था . रोज लाखो रुपय का बिल बन रहा था  .  रिश्तेदारों ने तो पहले से ही साथ छोड़ दिया था और अब ऑफिस के दोस्तों ने भी अस्पताल आना बंद दिया था .  निधी ने  अपनी दोनों की सारी जमा पूंजी से लेकर जेवर तक अस्पताल और दवाइयों के बिल भरने में लगा दिया था .

निधी  ने थके हुए कदमो से आगे बढ़ते हुए डाक्टर कक्कड़ के चैम्बर के शीशे का दरवाजा खोला ,शनदार मेज के पीछे शानदार कुर्सी पर डाक्टर कक्कड़ विराजमान थे और उनके बगल में टाई लगाये एक युवक बैठा था .

निधि सालीनता से  डाक्टर कक्कड़ के सामने लगी कुर्सी पर बैठ गयी और     बोली “ सर , मै  आपके पेशंट रितेश की पत्नी हूँ और जनना चाहती हूँ की उन्हें अभी कितने दिन अस्पताल में रहना होगा …? “
डाक्टर कक्कड़ “ ठीक हो रहा है ,पर समय लगेगा .”

निधी कुछ पल खामोश रही और फिर बोली “ सर , हमारे पास अब रुपय खत्म हो गए है अब ज्यादा दिन हम अफोर्ड नही कर पायेगे “
डाक्टर कक्कड़ कुछ पल खामोश रहे , उनके बगल में बैठे युवक ने डाक्टर कक्कड़ के कान में कुछ बोला और कक्कड़ के चेहरे पर  एक हल्की  सी मुस्कान दौड़ गयी .
डाक्टर कक्कड़ अपनी आँखों में चमक लाते हुए बोले “ देखिये निधी जी मरीज  अभी पूरी  तरह से सही नही हुआ और उसे कम से कम एक सप्ताह और हास्पिटल में रखने की जरूरत है”  डाक्टर कक्कड़ एक पल के लिए साँस लेने को  रुके और निधी को घूरते हुए बोले “ मै आपके हालात समझ रहा हूँ , मै रितेश को आज डिस्चार्ज कर देता हूँ कुछ दवाई है जो लिख देता हूँ , अगले हफ्ते ला कर दिखा लेना और हां एक आक्सीजन मशीन ले लीजये उसका अभी लगा रहना जरूरी है , उस मशीन के बिना रितेश का बचना मुश्किल  है “

रितेश को आज हॉस्पिटल से छुट्टी मिल जाएगी , सुन कर निधी ने चैन की साँस ली और बोली  “ आपका बहुत बहुत शुक्रिया सर , मै मशीन ले लेती हूँ . पर मशीन कंहा और कितने  तक की मिलेगी ? “
डाक्टर कक्कड़ ने बिना निधी से आंखे मिलाये हुए अपने पास बैठे युवक की तरफ इशारा करते हुए बोला “ वैसे बाजार में तो मशीन 2 लाख तक आएगी , ये अमित है डायरेक्ट कम्पनी से ये ये आपको 1.50 दिला देंगे  . “
“ ..1 .5 लाख .??? “ निधी अपने हालात जानती थी इस वक्त उसके पास 15 हजार रुपय भी नही थे .  अमित ने निधी की तरफ अपना विजटिंग कार्ड बढ़ाया और बोला “ पहले आप अपनी पति को डिस्चार्ज करवा लीजिये फिर हम बात करते है . निधी ने कार्ड लेते हुए हां में सर हिलाया .

 कुछ घंटो बाद निधी , अमित के ऑफिस में थी , और अमित लगतार अपनी प्यासी सी नजरो से निधी को घूरे जा रहा था ,

“ अच्छा ! तो आप चाहती है की मै आपको मशीन दे दूँ ..! और आप उसका पेमेंट हम कुछ महीनों में करेगी .? अमित ने अपने हाँथ में थामे  पेन को घूमाते हुए निधी से पूछा .

“ जी ‘ निधी ने घुटी सी आवाज में कंहा .

अमित मुस्कुराया और बोला “ मैडम इस से हमे क्या फायदा ..? मुझे अपना पैसा लगाना पड़ेगा ,कम्पनी से मोहलत लेनी होगी , बदले में  हमे क्या मिलेगा ..?

“ आप मेरे भाई जैसे है , आपका ये एहसान हम हरदम याद रखेगे , मेरा सुहाग बच  जायेगा . “ निधी ने विनती करते हुए बोला

अमित जोर  से हंसा और बोला “ निधी जी ! ये भाई की राखी किसी और को बंधियेगा . हम यंहा परोपकार करने के लिए नही बैठे है , मेरी बात ध्यान  से सुनिए ‘मेरी बीवी गाँव में रहती है ‘ और मुझे उसकी बहुत कमी खलती है , अगर आपको अपने पति की जान की परवाह है तो आपको वो कमी पूरी करनी होगी . जब तक पूरे पैसे न अदा हो जाये  हफ्ते में 1 बार 2  घंटे मेरे जिस्म की जरूरते पूरी करनी होगी , वैसे भी अब  आपका पति कुछ दिनों तक आपको भी मजा  नही दे पायेगा “ कह कर अमित एक कुटिल मुस्कान मुस्कुरा उठा .

अमित के इन शब्दों ने निधी के तन बदन में आग लगा  थी , उसका बस चलता तो अपने हांथो से अमित का गला घोट देती . पर अचानक से उसकी आँखों के सामने आक्सीजन मशीन के सहारे जिंदा रितेश का अश्क घूम गया . और अपनी बेबसी पर निधी की आँखों से आंसुओं की धार बह निकली .

अमित की आँखों में हवस की चमक बढती जा रही थी , उसने निधि के सामने पेन कागज बढ़ते हुए कहा “ इस में अपना पता लिख दो , मशीन लग जाएगी और कल सुबह  11 बजे आ जाना , और हां 11 से  1 मिनट ज्यादा हुआ तो मै मशीन खुलवा लूँगा और तुम्हारा  पति बिना साँस लिए मर जायेगा “

रात के 12 बजने वाले थे निधि की आँखों से नीद कोसो दूर थी , वो  कमरे में लेटे रितेश को और उसके चेहरे पर लगी आक्सीजन मशीन के मास्क को देख रही थी . उसे याद रहा था रितेश को जरा भी बर्दास्त  नही था की कोई उसे आंख तक उठा कर देखे , वो सुबह कैसे अपने आपको किसी और को सौप सकती थी ? उसके बाद क्या वो कभी रितेश का सामना कर पायेगी ? और कभी अपनी आत्मा के बोझ को हटा पायेगी ? रितेश के अलावा वो किसी गैर पुरुष की परछायी के बारे में भी नही सोच सकती थी , वो कैसे खुद को किसी और के हवाले कर सकती थी ?

 पर बिना मशीन के तो रितेश घूट घूट कर मर जायेगा , और  अमित की बात मन लेने से वो घूट घूट के मार जाएगी . अचानक से निधी ने एक फैसला  लिया और मोबाईल पर एक नम्बर मिलाने लगी .

अमित जब जगा ओ देखा सुबह के 10.25 हो रहे है , रात में निधी के जिस्म के ख्यालो में डूबा वो देर तक शराब भी डूबा रहा था . इस लिए उठने में देर हो गयी थी . वो जल्दी से तैयार हो कर निधी का इंतिजार करने लगा . एक एक पल काटना अमित के लिए भारी था . वो जनता था निधी को उसकी मजबूरी ले आएगी .

ठीक 11 बजे काल बेल बजी , अमित ने जल्दी से दरवाजा खोला , सामने काली जींस और सफेद टॉप में निधी खड़ी थी , अमित को अपने सारे सपने पूरे होते लगे . उसने अपने होंठो पर जीभ फिराते हुए कंहा “ हाय मेरी जान ! क्या ….” अमित का वाक्य पूरा होने से पहले ही निधी का एक एक जोरदार तमाचा अमित के गाल पर पड़ा . हकबकाया  सा अमित कुछ समझ पाता उस से पहले ही दूसरा , तीसरा ….. तमाचे लगातार अमित के गा्ल पर पड़ते चले गए .और फिर निधी ने अमित की आँखों में आंखे  डालते हुए कंहा “ बहुत मजा आता है न किसी की मजबूरी का फायदा उठाने में ? किसी मजूबर की इज्जत से खेलने में ? “

“ आखिर .. हुआ क्या है ? हकलाता हुआ  सिर्फ यही बोल सका .

निधी गुस्से में फुफकारती हुयी बोली “  कल रात मैंने अपने स्कूल के डाक्टर त्यागी को बुलाया और उन्हें रितेश को  और  सारी मेडिकल  रिपोर्टे दिखाई . और तब उन्होंने बताया की रितेश को तो कुछ हुआ ही नही था सिर्फ हाई ब्लडप्रेशर और गर्मी की वजह से उसे चक्कर आ गया था . मुझ से ये भूल हुयी की मै तुम लोगो के जाल के चक्कर में फंस कर किसी और डाक्टर से सलाह तक न ले पायी , जिसकी वजह से मै आज तुम्हारे बिस्तर तक पहुंचने वाली थी . मैंने तुम्हारे , डाक्टर कक्कड़ और अस्पताल के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी है और सारी मिडिया को भी खबर कर दी  है ,”
अमित ने चौक कर देखा तो कई सारे प्रेस फोटोग्राफर अपनी फोटो खीचते पाया .

तभी निधी वापस अमित की तरफ पलटी  और बोली “ Mr . अमित मेरे पति को  तुम्हारी
“ आक्सीजन मशीन “ की कोई जरूरत नही है “निधी ने  अपने साथ लायी मशीन को लात मारते हुए अमित मुंह पर थूंक दिया .

लूटा-पीटा सा अमित दूर जाती निधी  को देखने के  साथ साथ कल आये  डाक्टर कक्कड़ का sms पढ़ रहा था जिसमे लिखा था “ अमित   तुम्हारे कहने पर बिना जरूरत के तुम्हारी मशीन लिख तो दी  है ,  पर मजे लेने के चक्कर में मेरा कमीशन भूल मत जाना . पिछले बार की तरफ इस बार की  पेमेंट में देर नही होनी   चाहिए .

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mradul-kapilपरिचय – :

म्रदुल कपिल

लेखक व् विचारक

18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब  दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां  देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया .  ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी  हाऊसिंग  कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और  अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l

पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया  है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक  के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची  ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का  सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो ,  वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक  आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार  भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको  अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका  हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी  डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती  जिंदगी का .

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