स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत एवं दिव्य भारत के लिए संपूर्णानंद प्रकृति की ओर आ अब लौट चलें : डॉ डीपी शर्मा 

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आई एन वी सी न्यूज़
नई दिल्ली ,

यूं तो कहते हैं कि जीवन और जीवन का आनंद, दोनों ही  अस्थाई एवं प्रकृति के अधीन हैं। हजारों वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने गीता में प्रकृति की हर चीज को नश्वर माना है और हिरेक्लिटस एफेसश ने भी इस तथ्य एवं सत्य को 475 ईसा पूर्व दोहराया और कहा कि ‘दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है सिर्फ परिवर्तन के सिवाय” अर्थात इस ब्रह्मांड में सिर्फ परिवर्तन ही स्थाई है।

यह संपूर्ण शाश्वत सत्य सब को पता है परंतु हम इसे दरकिनार कर जिंदगी की जद्दोजहद और प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते जा रहे हैं।
प्रकृति के हर प्राणी एवं तत्व का एक उद्भव यानी “आदि बिंदु” एवं “अंत बिंदु” निर्धारित होता है परंतु इन दोनों के बीच का जीवन काल यदि सुव्यवस्थित ना हो तो जीवन अपने संपूर्णानंद, परमानंद या संपूर्ण सुख से वंचित होकर इसी प्रकृति में विलीन हो जाता है।
आइए क्यों ना हम जीवन को एक परियोजना के रूप में व्यवस्थित एवं संरक्षित करें। जीवन के संपूर्ण सुख यानी लौकिक एवं पारलौकिक सुख की यथार्थ अनुभूति के लिए प्राकृतिक विधा या प्राकृतिक चिकित्सा या भारतीय जीवन पद्धति के प्राचीनतम नुस्खों की विरासत को नवीन नुस्खों की यथार्थता के साथ पुनः डिजाइन कर हर मनुष्य के जीवन को सुखमय बनाया जाए।
जब मैं अरावली पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में बसे “लोहागढ़ फोर्ट रिसौर्ट परिसर” मैं पहुंचा तो बरबस ही मेरे मुंह से निकल गया यही तो है प्राकृतिक स्वच्छता, स्वस्थता एवं दिव्यता का केंद्र जिसकी मुझे तलाश थी। इसको यदि प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत मिशन का एक अनूठा मॉडल जिसे स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत एवं दिव्य भारत की तपस्थली कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
शर्मा ने यहां पंचकर्म एवं भक्तापैथी की चिकित्सा पद्धति से अपना इलाज कराया। उन्होंने लोहागढ़ परिसर में बने शीश महल एवं नेचुरोपैथी के केंद्र पर होने वाली शोध के बारे में भी जाना और बताया कि यदि हमने आयुर्वेद के प्राचीनतम ज्ञान को पुनर्स्थापित कर लिया तो हम देश के अंदर यथेष्ट आरोग्य की अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं।
 
डॉ शर्मा ने सूखे कचरे, इलेक्ट्रॉनिक कचरे एवं गीले कचरे के लिए अलग-अलग कंटेनर की व्यवस्था पर भी संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि लोहागढ़ स्वच्छ भारत मिशन के साथ सामंजस्य स्थापित कर चल रहा है और सभी देश के होटलों एवं रिसोर्ट को इसी तरह के स्वच्छ भारत मिशन की गाइडलाइन को पालन करते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
जीवन के संपूर्ण विकास, आनंद और स्थापन के लिए वाह्य प्रकृति की स्वच्छता स्वच्छता, स्वस्थता एवं दिव्यता उतनी ही जरूरी है जितनी कि आंतरिक।

उक्त विचार हैं स्वच्छ भारत मिशन के प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत नेशनल ब्रांड एंबेसडर डॉ डीपी शर्मा के जो पोस्ट पोलियो पैरालिसिस से प्रभावित हैं अपने इलाज के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के लिए इस सेंटर पर आए थे। डॉ शर्मा ने कहा कि भारती आयुर्वेद दुनिया के  चिकित्सा जगत के लिए एक ऐसी विधा है जो मनुष्य की हर बीमारी को दबाने के बजाय समूल नष्ट कर शरीर को आरोग्य प्रदान करने के लिए अत्यंत ही प्रभावी है परंतु जरुरत है इसको पुनः स्थापित कर जन जन तक पहुंचाने की।

यूनाइटेड नेशंस की आईएलओ के अंतर्राष्ट्रीय सूचना तकनीकी परामर्शक डॉ शर्मा आजकल भारत भ्रमण पर हैं और देश के हर शहर में जाकर स्वच्छ भारत की जमीनी स्थिति को जानने की कोशिश कर रहे हैं ताकि इसके वैश्विक प्रभाव और भारतीय लाभकारी पहलुओं को समन्वित रूप से जनता के बीच लोकप्रिय बनाया जा सके।
डॉ शर्मा ने कहा कि प्रतिदिन एक मनुष्य सैकड़ों तरीके के रसायन भोजन के रूप में उदरस्थ करता है और उसके साथ ही प्रकृति के पेट में भी यही रसायन बिना किसी वैज्ञानिक सोच एवं प्रकृति प्रेम की अवधारणा के अनियंत्रित रूप से छोड़े जा रहे हैं। इसी का कारण है कि प्रतिकृति के जलाशय एवं मिट्टी अपने प्राकृतिक स्वरूप से बिलग बदलते जा रहे हैं और नवीन वायरस एवं बैक्टीरिया को जन्म दे रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जिनमें कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी एवं लैड नामक टॉक्सिक मैटेरियल पाए जाते हैं, प्रकृति की मिट्टी एवं जलाशयों को कैंसर युक्त बना रहे हैं । उन्होंने वैश्विक शोध पत्रों का हवाला देते हुए कहा यदि समय रहते इन टॉक्सिक पदार्थों को नियंत्रित नहीं किया गया तो एक वक्त ऐसा आएगा कि प्रकृति की कोख, मिट्टी एवं जल सब अपनी मूल प्रकृति को छोड़कर दूसरे प्रदूषित गर्त में चले जाएंगे। आज स्वच्छ भारत मिशन की मूल भावना को अपने जीवन में उतारने की महती आवश्यकता है ताकि हमारा जीवन प्राकृतिक जीवन के साथ संबंध स्थापित कर आगे बढ़ सके और ‘सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामया’ की मूल भावना को सन्स्थापित किया जा सके।
डॉ शर्मा ने लोहागढ़ के संस्थापक   एवं संपूर्ण सुखमय जीवन के लिए  अनेकों चिकित्सा पद्धतियों को नवीन रूप देने के लिए शोध करने वाले भगत सिंह से भी संवाद स्थापित कर यह सुझाव दिया कि वे अफॉर्डेबिल प्राकृतिक शोध केंद्र बनाने की और आगे बढ़ें, ताकि इसका फायदा जन-जन को मिल सके और वे अपने जीवन को संपूर्ण सुख के आनंद के साथ व्यतीत कर सकें।

 

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