वीणा पाण्डेय की पाँच कविताएँ

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वीणा  पाण्डेय की पाँच कविताएँ 

1.वसुंधरा

सच है
एक सर्वविदित सच
कि आसमां झुकता है
वसुंधरा  की आेर।

जानता है कि
सामर्थवान नहीं वह
जो धार सके धरती की तरह
अपने पर सबकुछ
अनवरत सदियों सदियों तक
फिर भी,मिथ्या गर्व का भाव लिये
तथाकथित आदर्शों की अकड़ में
विराजता है उच्चतम ऊँचाइयों पर
बाँहें फैलाये
वसुंधरा की अोर

जानती है जमीन
आसमां के स्वार्थ और खोखले पाैरूष को
फिर भी मुस्कुराती है हर पल
धरित्री के आदर्शों की मर्याद-रक्षा में
और बनी रहती है औरत- – – – –
एक मुकम्मल औरत
सोचो- – – – –
क्या होगा तब
जब सहनशीलता और
विवशताअों को धत्ता बता
चल पड़ेगी वसुंधरा
अपने अस्तित्त्व की ऊँचाइयों की तरफ
ऊँचा- – – – -और ऊँचा- – – – – – – ।
आसमां से भी ऊँचा- – – – – –
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2.अर्धांगनी

जाग उठा मेरा स्वाभिमान
चोटिल हो कर,
हमेशा रहा है
मुझे अपने दर्द का गुमान
पर,कभी सोचा तुमने
कि मेरी पराजय में
हार है तम्हारी भी
तुम्हारी खुद की-अपनी भी
क्योंकि,
आधा “तुम” हीं तो “मैं” हूँ
आखिर अर्धांगनी हूँ तुम्हारी !!
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3.कर तू सदा कमाल

मुस्काते जो नित्य जगत में,
फूल     वही    कहलाते ।
मिटा सके  जो अन्धकार को,
दीप    स्वयं     बन   जाते।

आँसू  के   मोती     संजोते,
पलकों     स्वपन     सजाते।
नैनों   को  परिभाषित   करते,
तनिक    नहीं      उलझाते।

पीड़ा   सोती   जहाँ  पे  जाकर,
दर्द     सुकूँ      पा    जाता।
हृदय   विशाल  बहुत  होता है,
कभी      नहीं     घबड़ाता ।

मेंहदी  जिसने  भी  बाँटी  है,
खुद     हो   जाते   लाल।
जीवन  तेरा  धन्य तभी  है,
कर     तू     सदा   कमाल ।।
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 4.उड़ान

मैने पूजा की
अचर्ना की,और
भगवान प्रसन्न हुए।
बोले,
वत्सला,कुछ माँगों।
अविलम्ब,मैंने मांग लिया
मुझे पंख चाहिए
भगवान तथास्तु बोल कर
तत्काल अन्तर्धान हो गए

मैने खुशी से सब को
बातें अपनी बतलायी
सबने मुझे मूर्ख समझा
और मेरी खिल्ली उड़ायी।
नासमझ!
मुझे हीं बुला लिया होता।
धन-वैभव का समान माँग लिया होता!
सब की सुन रही थी
और मन हीं मन
इन प्रश्नों का जाल बुन रही थी।

कब करेगा ये समाज
मेरे आन्तरिक गुणों का मूल्यांकन ?
नारी हूं मैं ।
आकाश दिख रहा है
विस्तार देख लेंगें
अब पंख मिल गये हैं
उड़ान भर  लेंगें !!!!!!!!
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5.नये व्यक्तित्व का आकार

कहा तो था
अपने आप से
वादा भी किया था
वापिस नही लौटेगें
देखेगें भी नही
पीछे मड़कर
पर कहाँ चलता है जीवन
इतनी सहजता से !
क्या ही अच्छा होता कि,
अनुभूतियों को उमड़ने देते
उन्मुक्त,
बीती यादों को पाथेय बनने देते
शायद,
इसी से मुर्त्त खड़ा हो पाता
मेरे नये व्यक्तित्व का आकार !!
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veena pandey ,writer veena pandey ,poem of veena pandeyपरिचय – :
वीणा  पाण्डेय
कवियित्री व् लेखिका

शिक्षा- स्नातक(साहित्य अलंकार)

अभिरुचि-   लेखन, अध्ययन

पता  – :    72, न्यू  बारीडिह ,  जमशेदपुर-  831017

सम्पर्क-    9031380994

  ई-मेल –   binu1247@gmail.com

3 COMMENTS

  1. मेरी लेखनी को प्रोत्साहित करने हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

  2. अभिव्यंजनात्मक काव्यों की प्रत्येक धारा को स्पर्श करती हुई कवितायेँ .काव्य दर्शन और तीक्ष्ण बने साभार वीणा जी

    • आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक धन्यवाद।

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