आत्महत्या करते किसान आत्ममुग्ध होते नेता

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kisan– निर्मल रानी –

कहने को तो हमारा देश कृषि प्रधान देश कहा जाता है। इस लिहाज़ से कम से कम देश के किसानों को तो पूरी तरह $खुशहाल व समृद्ध होना चाहिए। परंतु धरातलीय स्थिति इसके ठीक विपरीत है। जहां देश का ज़मींदार कहा जाने वाला बड़ा किसान भी विभिन्न कारणों से खेती-बाड़ी के पेशे से दु:खी है वहीं छोटे किसानों की तो और भी बुरी हालत है। बड़े किसान व ज़मींदार बिजली की बढ़ती $कीमतों,खाद व बीज के बढ़ते दामों,खेती के लिए समय पर मज़दूरों की पर्याप्त उपलब्धता न हो पाने तथा उनकी $फसल का उचित मूल्य न मिल पाने के कारण दु:खी हैं। इसके अतिरिक्त समय-समय पर उनकी ज़मीनों का बिना उनकी मरज़ी के भूमि अधिग्रहण किया जाना भी उनकी चिंता का एक बड़ा कारण है। वहीं छोटा व $गरीब किसान उपरोक्त समस्याओं के साथ-साथ सूखे व बाढ़ के अलावा कहीं बैंक तो कहीं साहूकार के $कजऱ् से परेशान हैं। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि आए दिन देश के लिए किसी न किसी राज्य से किसी अन्नदाता द्वारा दु:खी होकर आत्महत्या किए जाने के समाचार सुनाई देते हैं। पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम का तो यह कहना है कि जब तक देश के प्रत्येक नागरिक के चेहरे पर मुस्कान नहीं आती तब तक देश को विकसित राष्ट्र बनाए जाने के बारे में नहीं सोचा जा सकता। परंतु प्रत्येक नागरिक की तो बात ही क्या करना यहां तो हमारे देश का अन्नदाता भी आत्महत्या करने पर मजबूर है? आ$िखर ऐसा क्यों? ज़ाहिर है देश की स्वतंत्रता के 67 वर्षों बाद भी ं देश की नीतियों में,यहां की राजनैतिक व्यवस्था में, हमारे राजनेताओं की नीयत में कहीं न कहीं ज़रूर कोई खोट है जिसकी वजह से अमीर व्यक्ति तो और अमीर होता जा रहा है जबकि हमारे देश का किसान जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही ह्रड्डी है वह अपने खेती-बाड़ी के पेशे से दु:खी नज़र आ रहा है?

हमारी राजनीति की कितनी बड़ी त्रासदी है कि डि$फॉलटर कारपोरेट या उद्योगपति तो रिश्वत देकर,नेताओं को $खुश करके, दूसरी $कानूनी तिकड़मबाजि़यों के द्वारा,कंपनियों के नाम आदि बदल कर जितनी बार चाहें उतनी बार बड़े से बड़े बैंक से ऋण,ओवरड्रा$फ्ट आदि ले सकते हैं। परंतु कोई $गरीब किसान अगर बैंक का $कजऱ् नहीं उतार पाता तो $कानून का शिकंजा उसपर इतना कस दिया जाता है कि उसे अपनी ज़मीन औने-पौने दामों में बेचकर अपनी थोड़ी-बहुत ज़मीन से हाथ धोना पड़ता है। या फिर उसे आत्महत्या की राह अ$िख्तयार करनी पड़ती है। उधर बड़े किसान भी या तो अपने पेशे को बदलते दिखाई दे रहे हैं या फिर अपनी ज़मीनें बेच-बेच कर विदेशों में जाकर रहना व वहीं बसना पसंद करने लगे हैं। तमाम ज़मीदारों ने तो विदेशों में अपनी ज़मीन भी $खरीद ली है। देश में आए दिन कहीं न कहीं किसानों की समस्याओं को लेकर कोई न कोई किसान संगठन आंदोलन करते दिखाई देते हैं। इन्हीं प्रदर्शनकारी किसानों पर अक्सर पुलिसिया क़हर टूटने की भी $खबरंे आती रहती हैं। सवाल यह है कि देश की शासन व्यवस्था के कर्णधार समझे जाने वाले हमारे नेता आ$िखर देश की इस सबसे ज़रूरी व मूल समस्या को समझने व इसका समुचित हल निकाले जाने की ज़रूरत क्यों महसूस नहीं करते? ह$की$कत यह है कि नेताओं का ज़्यादातर ध्यान आत्ममुग्धता तथा आत्मपूजन कराने की ओर लगा रहता है। उदाहरण के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही ले लीजिए। इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा इनकी बाल्यकाल की व्यस्तताएं बताने की आवश्यकता नहीं। $खुशी की बात है कि कल चाय बेचने वाला कोई व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बन गया। परंतु एक $गरीब परिवार से आने वाले व्यक्ति को तो सर्वप्रथम $गरीबों का ही हितैषी होना चाहिए न कि उसका पूरा ध्यान अपने रंग-बिरंगे कपड़ों में लगा होना चाहिए? हमारे देश के $खासतौर पर मोदी के ही गुुजरात राज्य में किसान आत्महत्या कर रहे हों और वे स्वयं दस लाख की $कीमत का सूट पहनकर अमेरिकी राष्ट्रपति को अपनी झूठी शान दिखा रहे हों यह देश के किसानों व $गरीबों के साथ आ$िखर कहां का न्याय है?

इतना ही नहीं बल्कि कोशांबी में उनकी मूर्ति की पूजा की जा रही है। गुजरात के राजकोट में 60 लाख रुपये की लागत से उनके नाम का मंदिर बनाया गया जिसमें उनकी मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा किए जाने की योजना बनाई गई। यह तो भला हो अरविंद केजरीवाल का जिसने दिल्ली में मोदी को वह ऐतिहासिक शिकस्त दी कि इन्होंने अपने चाटुकारों को अपनी मूर्ति राजकोट के मंदिर से हटाने का निर्देश दे दिया। यदि दिल्ली न हारे होते तो वहां भी ‘मोदी भगवान’ की पूजा शुरु हो गई होती? आप गुजरात में मुख्यमंत्री रहे हैं। पार्टी व शासन पर आपका नियंत्रण रहा है। क्या आपको यह पता नहीं था कि आपके नाम का व आपकी मूर्ति को स्थापित करने हेतु वहां कोई मंदिर बनाया जा रहा है? परंतु दिल्ली हारने के बाद मोदी जी ने उसमें भी राजनीति करते हुए यह ‘बोलवचन’ दिया कि मंदिर में लगने वाला पैसा स्वच्छ भारत मिशन में लगाया जाए? गोया यहां भी झूठी लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास, वह भी दिल्ली में हार का मुंह देखने की वजह से? यदि मोदी जी देश के $खासतौर पर अपने राज्य के किसानों के प्रति इतनी ही कुशलता प्रदर्शित करते दिखाई देते तो शायद गुजरात का किसान आत्महत्या करने के लिए विवश नहीं होता? उन्हें यह बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए कि राज्य के मतदाताओं ने उन्हें 26 में से सभी 26 सीटों पर विजयश्री दिलवाई है। इसलिए नहीं कि गुजरात का अन्नदाता किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो।

आत्ममुग्धता तथा आत्मपूजन कराने का शौ$क केवल नरेंद्र मोदी को ही नहीं है बल्कि अधिकांश राजनैतिक दलों के बड़े नेताओं को यह रोग तो है ही साथ-साथ उनके इस शौ$क में चाटुकार लोग और भी अधिक इज़ा$फा कर देते हैं। चुनावों के दौरान अक्सर सुनने को मिलता है कि कभी सोनिया गांधी को देवी के रूप में उनके चमचों ने पोस्टर में प्रदर्शित किया। कभी वसुंधरा राजे को देवी बना दिया गया। कभी लालू प्रसाद यादव की शान में उनके समर्थक लालू चालीसा लिखते दिखाई देते हैं। हद तो यह है कि मायावती स्वयं अपने भक्तों से यह कहती सुनाई दीं कि मंदिरों में अन्य देवियों की पूजा करने के बजाए मुझे साक्षात जि़ंदा देवी समझो और जो कुछ मंदिरों में चढ़ाते हो वह मुझपर चढ़ाया करो। उनके यह ‘बहूमुल्य बोल’ उस समय के हैं जब वे उत्तर प्रदेश की ता$कतवर मुख्यमंत्री थीं। परंतु ताज़ा राजनैतिक हालात यह हैं कि जिस जनता से वे चढ़ावे की उम्मीद करती थीं उसी जनता ने उनकी हैसियत अब इतनी कम कर दी है कि चुनाव आयोग उनकी बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता को समाप्त करने पर विचार कर रहा है। क्या मायावती ने दलित समाज को जो सपने दिखाए थे वह पूरे हुए? केवल उत्तर प्रदेश का ही दलित समाज क्या उनके शासनकाल में आर्थिक या शैक्षिक रूप से संपन्न हो सका? हां इतना ज़रूर है कि उन्होंने अपने राज में लखनऊ व नोएडा में दलित स्मारकों के नाम पर अधिक से अधिक भूमि का अधिग्रहण  कर उसपर अरबों रुपये ज़रूर $खर्च कर दिये। यही पैसा अगर दलित समाज के उत्थान में लगा होता तो निश्चित रूप से लाखों दलित परिवार आत्मनिर्भर हो गए होते? परंतु उन्हे भी आत्ममुग्धता तथा आत्मपूजन करने व कराने का शौक़ सवार रहता है न कि उन लोगों के कल्याण की चिंता, जिनके उत्पीडऩ की दुहाई देते हुए वे सत्ता तक पहुंचती हैं। वह स्वयं भी व्यक्गित् रूप से का$फी संपन्न व धनाढ्य हो चुकी हैं। यदि विकीलीक्स की रिपोर्ट को सही मानें तो मैडम की जूतियां व चप्पलें लेने के लिए उनका विशेष स्टेट प्लेन $खासतौर पर मुंबई जाया करता था।

जब गुजरात में नरेंद्र मोदी का मंदिर बनाए जाने का समाचार सु$िर्खयों में आया तो उनके घोर प्रतिद्वंद्वी उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री आज़म $खां भी भला कहां पीछे रहने वाले थे। आनन-फ़ानन में उन्होंने भी अपने नेता जी को $खुश करने के लिए यह वक्तव्य दे डाला कि मुलायम सिंह यादव का भी मंदिर बनाया जाना चाहिए। हालांकि इस्लाम धर्म में मूर्ति पूजा किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके बावजूद आज़म$खां द्वारा मुलायम सिंह का मंदिर बनाने व उसकी पूजा कराने की बात कहना अपने-आप में किसी चुटुकले से कम नहीं है। परंतु उन्होंने ऐसा कहा। इसकी दो ही वजह हो सकती हैं। या तो उन्होंने नरेंद्र मोदी की पूजा करने वालों को यह संदेश दिया कि वास्तविक भगवान मोदी नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव है। या फिर अपने नेता को $खुश करने के लिए उन्होंने ऐसा किया। हालांकि आज़म $खां स्वभावतया $खुशामदपरस्त प्रवृति के नेता प्रतीत नहीं होते। परंतु उसके बावजूद उनके द्वारा मुलायम सिंह की मूर्ति की पूजा करने की हिमायत करना यह सोचने के लिए ज़रूर मजबूर करता है कि उन्हें भी किसी बुराई या $गलत काम का उसी भाषा में जवाब देने अथवा उसका अनुसरण करने के बजाए अपनी इस उर्जा का इसतेमाल $गरीबों व किसानों के हितों में व उनके कल्याण में करना चाहिए। यही आज़म $खां जहां एक बार अपनी बेश$कीमती भैंसों के गुम हो जाने तथा भैंसों की गुमशुदगी के प्रति प्रशासन की बेचैनी व मुस्तैदी को लेकर सु$िखर्यों में आ चुके हैं वहीं उन्होंने मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन अपने शहर रामपुर में जिस भव्यता के साथ मनाया उसे लेकर भी इनकी का$फी आलोचना हो चुकी है। हमारे देश के नेताओं को ऐसी ढोंगबाजि़यों से $कतई बाज़ आना चाहिए और अपना पूरा ध्यान $गरीबों व किसानों के आर्थिक व शैक्षिक विकास पर देना चाहिए। जिस देश का किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो उस देश के नेता अपनी मूर्तियां गढ़वाएं,स्वयं को देवी-देवता कहलाने का दंभ भरें,बहूमुल्य पोशाकें पहनें या अपने नाम के मंदिर बनवाकर अपनी मूर्ति की पूजा करवाते फिरें ऐसे नेता भारतीय राजनीति में राजनेता कहे जाने योग्य तो ेहरगिज़ नहीं कहे जा सकते।
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nirmal-rani-invc-news-invc-articlewriter-nirmal-rani-aricle-written-by-nirmal-rani12परिचय : –
निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क : –Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13
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