लेखक म्रदुल कपिल कि कृति ” चीनी कितने चम्मच ” पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l
-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की ग्यारहवीं कहानी –
____तेरी आँखों के दरिया का____
” तेरी आँखों के दरिया का , उतरना भी जरुरी था ”
किसी अपने के पसंदीदा गाने के बोल सुन कर राज के उलझन भरे चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान आ गयी ऱाज बीते 07 मिनट से शहर की एक व्यस्त रेलवे क्रांसिंग पर फंसा हुआ था , बार बार क्लाइंट की कॉल आ रही थी और बॉस भी नाराज थे , इस मीटिंग के पीछे वो अपनी सबसे खास दोस्त से चाहते भी नही मिल पाया था , और उसे बड़ी मुश्किल शाम को मिलने के लिए मना पाया था , आज की शाम उसके लिए बहुत खास जो होने वाली थी ,
तभी राज से थोड़ी दूर में एक चमचमाती कार आ कर रुकी , जिस में बज रहे तेज आवाज के गाने के बोल राज के कानो से टकराये , न चाहते हुए भी राज कि निगाहे कार के खुले शीशे के अंदर चली गयी , कार की ड्राविंग शीट पर एक स्मार्ट सा युवक था , और उसके बगल में … वही उसकी खास दोस्त थी , दोनों दुनिया से बेखबर एक दूसरे में खोये हुए थे
.” मगर फिर आरज़ूओं का बिखरना भी जरुरी था ”
राज के सामने रेलवे लाइन से ट्रेन ने गुजरना शुरू कर दिया था , और राज एक साल पुरानी यादो में वापस जा रहा था , वो राज जैसे साधारण से लड़के की ज़िंदगी में आई असाधरण सी लड़की थी , जिसकी वजह से राज के बेरंग सपनो में हजारो रंग भर गए थे , बला की खूबसूरत थी वो राज से कही अधिक , लेकिन राज को हरदम यही लगा की प्यार में खूबसूरती के क्या मायने ? यादो में खोये राज के कानो में अभी गाने के बोल पड रहे थे
“बताओ याद है तुमको वह जब दिल को चुराया था ,चुराई चीज़ को तुमने खुदा का घर बनाया था ” .
पीछे एक साल में राज हर रत उसकी नींद सोया था और हर दिन उसके लिए जगा था ,पहले कुछ समय तक सब ठीक था लेकिन फिर राज को उसकी नई नई शिकायतों का सामना करना पड़ा , उसे राज के साथ मोटरसाइकिल पर कंही जाना पसंद नही था , शहर में इतनी धुल जो थी , अब उसे राज का ठेले पर खाना , किसी से पैसे के लिए मोल तोल करना , कुछ भी नही अच्छा लगता था , राज के रहने का ढंग उसे अपने स्तर का नही लगता ,उसे तलाश थी किसी अपने स्तर वाले की और जंहा स्तर की बात हो वंहा प्यार जैसा शब्द कहा टिक पाता , लेकिन राज को हरदम यही लगता रहा की सब ठीक हो जायेगा ,
” मगर अब याद आता है वह बातें थी महज़ बातें “
एक साल में उसने अपने रिश्ते को कोई नाम नही दिया था , राज ने दिवाली के के अपने बोनस से बचा कर आज शाम के लिए शहर के सबसे बड़े रेस्त्रां में दोनों के लिए एक टेबल बुक की थी , जँहा वो दोनों के रिश्ते को एक नाम देना चाहता था ,
ट्रेन गुजर चुकी थी , और बहुत कुछ टूट चूका था , राज के कानों में अभी भी गाने की लाइने पड़ रही थी
“वहीँ है सूरतें अपनी , वहीँ मैं हूँ वहीँ तुम हो
मगर खोया हुआ हूँ मैं , मगर तुम भी कहीं गम हो “
बहुत से अरमान , सपने और ख्वाहिशो को राज के दिल में हरदम के लिए बंद कर के रेलवे लाइन का फाटक खुल गया था …, आगे बढ़ती कार में से आती गाने की आखरी लाइने हँवा घुल रही थी
” तेरे दिल के निकाले हम कहाँ भटके , कहाँ पहुंचे
मगर भटके तोह याद आया भटकना भी ज़रूरी था
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म्रदुल कपिल
लेखक व् विचारक
18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया . ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी हाऊसिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l
पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो , वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती जिंदगी का .