डॉ. विवेक सिंह ‘बैरागी’ की पाँच कविताएँ

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 पाँच कविताएँ

1.

शब्द ‘नारी’
तुम सृष्टि हो
प्रेम, स्नेह की उत्पत्ति हो
शक्ति का पुंज तुम्ही हो
तुम्ही मखमली ओस हो
कच्ची मिट्टी सी ठोस हो
जीवन की ओट हो
एक कहानी के
कई किरदार लिए
मन की परतों के नीचे
भीतर के गलियारों में
सपनों से बनी
सूरज सा व्यक्तिव लिए
बिखरी हुई इस धरा में
कण कण में विस्तार लिए
शब्द हो या अभिभाव सतत
झूल रही आधारशिला सी
परिभाषा की परिधि में……..’बैरागी’

2.

एक अपराध
अतृप्त सपने का
या टूटे हुए विश्वास का
या शायद
एक शब्द वहां भी
हर आह के स्वभाव में
मेरे दर्द के भाव में
ठंडे चाँद पर
निम्नलिखित
अदृश्य अम्लीय स्याही के साथ
भरने मेरे दिल में
मन की मूक लहर….बैरागी’

3.

कई सुर
अंदर ही अंदर
शंखनाद करते हैं कई बार
एक सुर
छलक कर गिर पड़ता है
धरातल पर
बिखरता नहीं
बेसुरा नहीं होता फिर भी
कितनी ही बार
सुर को
अंतस में डूबाने की साजिश भी हुई
फिर भी उस सुर की तरह
इस सुर का साथ
बार-बार मिला
सुर बदला नहीं……’बैरागी’

4.

समय की दरार
कमजोर प्रतिबिंबित
घटनाओं की गूँज
नई शुरुआत
सुनसान या निर्वासित?
समय से जमे हुए
मैं तो मैं था
मेरे लिए
शायद सबसे अच्छा
सब भूलकर
और फिर से शुरू हो
जीवन का स्वर
कुछ करने को गगनभेदी….’बैरागी’

5.

अपने आप में संलग्न
चारदीवारी में
किसी कुछ के लिए
अप्रत्याशित
मन में संजोए
आँसू के साथ
हर दिन
खोए स्वप्नदर्शी
मेरे सपने
जो एक अरसे से
परिचय के गठबंधन में बंधे रहे
अधूरे रह गए
उन्हें कविता में खोजता हूँ
कुछ नए रंग पूरने को
ज़िन्दगी के लिए
एक मुक़म्मल तस्वीर जरुरी है…..’बैरागी’

______________

drvivek-singh-bairagiपरिचय – :

डॉ. विवेक सिंह ‘बैरागी’

शिक्षक, लेखक व् कवि

डॉ. विवेक सिंह ‘बैरागी’ पेशे से : शिक्षक, स्वतंत्र लेखक, कवि और वेब विश्लेषक हूँ। कवितायेँ लिखना, समसामयिक लेखन, हमेशा कुछ नया करते रहना, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर लिखना, मानव सह-अस्तित्व के लिए कार्य करना। कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं मेरा प्रयास, मेरा लक्ष्य इन मुद्दों को अभिव्यक्ति देना है। कविता है कवि की आहट उसके जिंदा रहने की सुगबुगाहट उसके सपने उसके आँसू उसकी उम्मीदें उसके जीने के शाब्दिक मायने …लेखन और कविता मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं। प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में नियमित लेख एवं कविताएं प्रकाशित | इसके अतिरिक्त ऑनलाइन पत्रिका बागेश्वरी में नियमित कविताएं और क्षणिकाएं प्रकाशित होती रही है। ऑनलाइन वेब पोर्टल होप मैगजीन और INVC International News And Views Corporation पर भी मेरी कविताओं को स्थान मिलता रहा है। साथ ही काव्य संग्रह सरगम tuned और साहित्यिक पत्रिका विश्वगाथा में मेरी कविताएं प्रकाशित हुई है। बस इसी बहुरंगी जिन्दगी की कुछ रंगों को समेटे टूटे फूटे शब्दों में लिखता हूँ ….

संपर्क सूत्र: – :  

मोबाइल : +919259001002/ 9258008008 , ई. मेल : vivek.views@gmail.com

1 COMMENT

  1. जिंदगी को एक अलग नज़रिये से देखते लगते है विवेक ! मन की बात को सहज रूप से मगर दृढ़ता से रखते है !
    जहाँ एक और प्रश्नचिन्ह लगे नज़र आते है उनकी कवितायों में वंही मन का, स्तिथियों का अंतर्द्वंद भी झलकता दीखता है मुझे ! पाजिटिविटी उनकी रचनायों को अलग स्ट्रेंथ प्रदान करती नजर आती है ! कम शब्दों में सटीक बात कह जाते है वंही विषय पर कितनी पकड़ है , उनकी रचना “नारी” इसका ज्वलन्त उदाहरण है !मेरी शुभकामनाएं !!

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