एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षण व् दिनेश गुप्ता की अन्य 5 कविताएँ

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कविताएँ

कैसे चंद लफ्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ

शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैं
उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं
विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की झंकार लिखूँ मैं
कैसे चंद लफ्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………..

उसकी देह का श्रृंगार लिखूँ या अपनी हथेली का अंगार लिखूँ मैं
साँसों का थमना लिखूँ या धड़कन की रफ़्तार लिखूँ मैं
जिस्मों का मिलना लिखूँ या रूहों की पुकार लिखूँ मैं
कैसे चंद लफ्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………..

उसके अधरों का चुंबन लिखूँ या अपने होठों का कंपन लिखूँ मैं
जुदाई का आलम लिखूँ या मदहोशी में तन मन लिखूँ मैं
बेताबी, बेचैनी, बेकरारी, बेखुदी, बेहोशी, ख़ामोशी
कैसे चंद लफ्ज़ों में इस दिल की सारी तड़पन लिखूँ मैं

इज़हार लिखूँ, इकरार लिखूँ, एतबार लिखूँ, इनकार लिखूँ मैं
कुछ नए अर्थों में पीर पुरानी हर बार लिखूँ मैं………
इस दिल का उस दिल पर, उस दिल का किस दिल पर
कैसे चंद लफ्ज़ों में सारा अधिकार लिखूँ मैं………..

2. )    दीया  अंतिम  आस  का [ एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षण ]

दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का
वक्त नहीं अब, हास परिहास उपहास का
कदम बढाकर मंजिल छु लुं, हाथ उठाकर आसमाँ
पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का

बस एक बार उठ जाऊं, उठकर संभल जाऊं
दोनों हाथ उठाकर, फिर एक बार तिरंगा लहराऊं
दुआ अंतिम रब से, कण अंतिम अहसास का
कतरा अंतिम लहू का, क्षण अंतिम श्वास का

बस एक बुंद लहू की भरदे मेरी शिराओं मे
लहरा दूँ  तिरंगा मे इन हवाओं मे
फहरा दूँ विजय पताका चारों दिशाओ मे
महकती रहे वतन की मिटटी, गुँजती रहे गुँज जीत की
सदियों तक इन फिजाओं मे

सपना अंतिम आँखों मे, ज़स्बा अंतिम साँसों मे
शब्द अंतिम होठों पर, कर्ज अंतिम रगों पर
बुंद आखरी पानी की, इंतज़ार बरसात का
पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का

अँधेरा गहरा, शोर मंद
साँसें चंद, होसलां बुलंद,
रगों मे तुफ़ान, जस्बों मे उफान
आँखों मे ऊँचाई, सपनो मे उड़ान
दो कदम पर मंजिल, हर मोड़ पर कातिल
दो साँसें उधार दे, कर लु मे सब कुछ हासिल

जस्बा अंतिम सरफरोशी का, लम्हा अंतिम गर्मजोशी का
सपना अंतिम आँखों मे, ज़र्रा अंतिम साँसों मे
तपिश आखरी अगन की, इंतज़ार बरसात का
पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का

फिर एक बार जनम लेकर इस धरा पर आऊं
सरफरोशी मे फिर एक बार फ़ना हो जाऊं
गिरने लगूँ तो थाम लेना, टूटने लगूँ तो बांध लेना
मिट्टी वतन की भाल पर लगाऊं
मे एक बार फिर तिरंगा लहराऊं

दुआ अंतिम रब से, कण अंतिम अहसास का
कतरा अंतिम लहू का, क्षण अंतिम श्वास का !

3.)               ज़िन्दगी क्या होती है

सबकी राहों मे नहीं होती है चादर फूलों की
किसी की तक़दीर होती है डगर शुलों की
ज़िन्दगी क्या होती है जरा उनसे पुछो
जिनके घर रोज जंग होती है भूख और उसूलों की

सबको नहीं मिलता जीवन मे खुशियों का संसार
हालाँकि सबकी आँखों मे होता है सपनो का अंबार
ज़िन्दगी क्या होती है जरा उनसे पुछो
ज़हाँ हर रोज जाता है  होंसला बेबसी से हार

सबके दिल मे होता है आसमाँ छुने का अरमान
पर कहीं हर घडी हर पल लुटता है आत्मसम्मान
क्या होती है घुटन जरा उस परिंदे से पुछो
कैद है जिसकी पिंजरे मे हर एक उड़ान

कहीं हर पल उठती और पूरी होती एक नयी फरमाइश
कहीं हर पल आँसुओं मे धुलती हर एक ख्वाइश
ज़िन्दगी क्या होती है जरा उनसे पुछो
जहाँ हर रोज होती है वजूद की आजमाइश

सुना था वक्त के साथ सब कुछ बदलता  है
कहीं भी उगता हो सूरज, जिनके यहाँ रोज ढलता है
धरती के उस टुकड़े से पुछो क्या होती है जलन
जहाँ बादल हर रोज गरजता है मगर कभी नहीं बरसता है

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4. ) क्यों लिखता है श्रृंगार  का ये कवि शब्दों से अंगार

जब शीश कटता है सीमा पर मेरे देश के जवान का
लहू उबलता है जब पूरे हिंदुस्तान का……………..
मेरी भी रगों का तब खून खोलता है……………….
कतरा कतरा मेरे जिस्म का तब शब्द बनकर बोलता है…

जब अमन का ख्वाब आँखों में, आँसुओं में गल जाता है
जब कोई हाथ मिलाकर फिर हमको छल जाता है……..
जिस्म मेरा तब ऊपर से नीचे तल जल जाता है………
मेरे अंतर का सारा आक्रोश तब शब्दों में ढल जाता है….

जब राजनीती होती है कटे हुए सर पर, बहते हुए लहू पर
और हाथ पकड़ कर जब कोई सर पर चढ़ जाता है……….
अगले ही पल जब कोई जवान फिर दुश्मन से अड़ जाता है
श्रृंगार का ये कवि शब्दों से अंगार गड़ जाता है………..

जब दुश्मन का ओछापन नसों में जहर घोलता है
जब सब्र की नब्ज़ को कोई हद तक टटोलता है…….
जब सियासत बेशर्म और निकम्मी हो जाती है
और पड़ोसी सर पर चड़कर बोलता है……….
ठंडी पड़ी शिराओं का तब खून खोलता है……
कतरा कतरा मेरे लहू का शब्द बनकर बोलता है..

5.) जो कुछ भी था दरमियाँ

तेरे सुर्ख होंठो की नरमियाँ याद है
तेरी सर्द आहों की गरमियाँ याद है
कुछ भी तो नहीं भूले हम आज भी
जो कुछ भी था दरमियाँ याद है….

याद है बिन तेरे वो शहर का सूनापन
संग तेरे वो गाँव की गलियाँ याद है
याद है वो महकता हुआ गुलशन
वो खिलती हुई कलियाँ याद है..

याद है तेरी आँखों की वो मस्तियाँ
तेरी जुल्फों की वो बदलियाँ याद है
कुछ भी तो नहीं भूले हम आज भी
जो कुछ भी था दरमियाँ याद है….

याद है कल वो बीता हुआ
वो हारी हुई बाज़ी, पल वो जीता हुआ
संग तेरे लम्हों का यूँ गुजरना याद है
याद है बिन तेरे मौसम वो रीता हुआ !

6.) हमारी लाड़ली लाई बहार (Save Girl Child )

खिल उठी कलियाँ, चहक उठा आँगन
रोशन हुई गलियाँ, महक उठा गुलशन
रोम-रोम गदगद हुआ, आनंदित हुआ तन-मन
मौसम में छाई बहार, चली कुछ ऐसी बयार
रब ने हमारी सुन ली पुकार
हमारी लाड़ली लाई बहार

उसके चेहरे का नूर, मेरे माथे का गुरुर
उसके होठों की मुस्कान, मेरे दिल का सुरूर
उसकी मासूम सी बोली, कानों में रस घोलती
उसके पैरों की खनक, मेरे चेहरे की चमक
उसके आँखों के आँसू, जैसे रिमझिम फुहार
रब ने हमारी सुन ली पुकार
हमारी लाड़ली लाई बहार

मगर उसकी मासूम आँखें अक्सर
मुझसे एक सवाल करती है
मैं बेटी हूँ, हाँ मैं बेटी हूँ
तो क्यों दुनिया इसपे इतना बवाल करती है
बस एक यही बात मेरे मन में जहर घोलती
जब दुनिया बेटी को बेटे से तोलती
पूछती है उसकी मासूम सी निगाहें सवाल यही हर बार

मैं बेटी हूँ, हाँ मैं बेटी हूँ
तो क्या दे सकोगे मुझको मेरे अधिकार
मौसम में छाई बहार, चली कुछ ऐसी बयार
रब ने हमारी सुन ली पुकार
हमारी लाड़ली लाई बहार

शायरी
6.) मेरी आँखों में मुहब्बत के मंज़र है

मेरी आँखों में मुहब्बत के जो मंज़र है
तुम्हारी ही चाहतों के समंदर है
में हर रोज चाहता हूँ कि तुझसे ये कह दूँ मगर
लबो तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है

मेरे दिल में तस्वीर हे तेरी, निगाहों में तेरा ही चेहरा है,
नशा आँखों में मुहब्बत का, वफ़ा का रंग ये कितना सुनहरा है,
दिल की कश्ती कैसे निकले अब चाहत के भंवर से
समंदर इतना गहरा है, किनारों पर भी पहरा है

वो हर रोज मुझसे मिलती है, मैं हर बार नहीं कह पाता
जो दिल में इतना प्यार भरा है, लबो पर क्यों नहीं आता
हम भी कभी नहीं करते थे प्यार-मुहब्बत के किस्सों पर यकीं,
मगर जब दिल को छू जाये कोई एक बार, फिर कोई और नहीं भाता

मेरी उम्मीद का सागर कुछ यू छुटा है
की जेसे हर जर्रे-जर्रे ने हमको लुटा है
कश्तियाँ सारी डूब गयी साहिलो तक आते आते
होसला जो बचा था तुफानो में, किनारों पर आकर टुटा है

मेरी आँखों में अब भी मुहब्बत की वो ही कहानी हे
दिल के सागर में लहरें उम्मीद की, धडकनों में चाहत की रवानी हे
में हर पल तुझे भूलना चाहता हूँ, मगर मालूम है मुझको
तुम्हारी याद तो हर साँस में आनी हे, तुम्हारी याद तो हर साँस में आनी हे

बढे ही खूबसूरत चेहरे हैँ,
लगता है इनमें राज बहुत गहरे हैँ
इश्क तो करना मगर किसी की चाह मत रखना
जुल्फों के बादल हैँ ये, कब एक जगह ठहरे हैँ  |

खोल दे पंख मेरे कहता है परिंदा, अभी और उड़ान बाकी है
ज़मीं नहीं है मंजिल मेरी, अभी पूरा आसमान बाकी है
लहरों की ख़ामोशी को समंदर की बेबसी मत समझ ऐ नादाँ
जितनी गहराई अन्दर है, बाहर उतना तूफान बाकी है….

जो मिल जाये मुहब्बत तो हर रंग सुनहरा है
जो ना मिल पाए तो ग़मों का सागर ये गहरा है
आँखों में मेरी है जिसका अक्स, दिल से कितना दूर वो शख्स
रौशनी कैसे आये हमारे घर तो अँधेरों का पहरा है….

मन तेरा मंदिर है, तन तेरा मधुशाला
आँखें तेरी मदिरालय, होंठ भरे रस का प्याला
लबों पर ख़ामोशी, यौवन में मदहोशी
कैसे सुध में रहे फिर बेसुध होकर पीने वाला

किसी की ख़ूबसूरत आँखों में नमीं छोड़ आया हूँ
ख़्वाबों के आसमाँ में हकीकत की ज़मीं छोड़ आया हूँ
मुहब्बत नहीं है कम हाथों में अंगारे रखने से
लगता है इश्क में फिर कुछ कमी छोड़ आया हूँ

तेरे होंठो की मुस्कुराहट खिलती कलियों सी है
तेरे बदन की लिखावट सँकरी गलियों सी है
चंद्रमा है रूप तेरा, मन तेरा दर्पण है
तेरी हर एक अदा पर क्षण-क्षण, कण-कण जीवन समर्पण है….

बिखरे हुए सुरों को समेटकर एक नया साज लिख जाऊँगा
गूँजती रहेगी सदियों तक फिज़ाओं में, एक रोज़ वो आवाज़ लिख जाऊँगा
लिखता हूँ गीत मुहब्बत के मगर करता हूँ ये वादा
लहू की हर एक बूँद से एक दिन इन्कलाब लिख जाऊँगा !

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dinesh-gupta,-poet-dinesh-gपरिचय – :

दिनेश गुप्ता

लेखक ,कवि व् सॉफ्टवेर इंजीनियर

पेशे से सॉफ्टवेर इंजीनियर ,3 किताबों का लेखक और कई संयुक्त किताबों का सह लेखक , कई कवि सम्मेलनों में शिरकत

साहित्यिक उपलब्धियाँ
हाल ही में प्रमुख आईटी कंपनी इनफ़ोसिस ने “यंग अचीवर अवार्ड ” से नवाजा  l एक प्रमुख पत्रिका इ-बुक्स इंडिया ने सोशल मीडिया पर 21 प्रमुख प्रभावशाली कवियों में चुना l  कविताएँ, लेख, पुस्तक-समीक्षा, और साक्षात्कार देश-विदेश की लगभग 1000 पत्रिकाओं में प्रकाशित ,  किताब “कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूं” पर लेख  देश के प्रमुख 200 अख़बारों में छप चुके हैं जिनमें सभी बड़े अख़बार जैसे “दैनिक भास्कर”, “नव-भारत”  “जागरण”, “अमर-उजाला” , “राज एक्सप्रेस”, “ज़ी न्यूज़”, “वेबदुनिया”,  “द टेलीग्राफ” सम्मीलित l कवितायेँ देश-विदेश की लगभग 1000 पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है l मुझे प्रमुख पत्रिका iUemag ने 10 प्रमुख रचनात्मतक व्यक्तियों में चुना है | रेडियो पर भी मेरे साक्षात्कार प्रकाशित हुए हैं | कई राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय कविता प्रतियोगिताओं में मेरी कवितायेँ चुनी जा चुकी है  | बॉलीवुड में गीत लिखने के लिए में मेरी प्रोफाइल चयनित हुई है जिन पर चर्चा चल रही है | सोशल मीडिया पर मुझसे कई प्रसंशक जुड़े हैं |

संपर्क – : dinesh.gupta28@gmail.com , 91-9923700323

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