दिल्ली चुनाव: जीते तो मोदी हारे तो बेदी?

0
28

kiran bedi,article on kiran bedi– निर्मल रानी –
70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा की चुनावी जंग एक दिलचस्प दौर से गुज़र रही है। बावजूद इसके कि केंद्र सहित देश के कई बड़े राज्यों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है। और आगे भी उत्तर प्रदेश,बिहार और बंगाल जैसे राज्यों में अपना परचम लहराने की जुगत में लगी हुई है। परंतु इस बीच दिल्ली विधानसभा का होने जा रहा चुनाव पार्टी के लिए गले की हड्डी बन चुका है। दिल्ली प्रदेश में हालंाकि भारतीय जनता पार्टी के कई वरिष्ठ नेता मौजूद हैं इसके बावजूद भारत की प्रथम महिला आईपीएस किरण बेदी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर बीजेपी ने यह प्रमाणित कर दिया है कि भाजपा में मुख्यमंत्री पद हेतु घोषित करने  योग्य कोई भी उपयुक्त नेता नहीं था। पार्टी को किरण बेदी को मुख्यमंत्री का दावेदार इसलिए घोषित करना पड़ा क्योंकि आम आदमी पार्टी ने प्रारंभ से ही अरविंद केजरीवाल को पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित कर रखा है।

दिल्ली की चुनावी जंग में कई दिलचस्प बातें देखी जा रही हैं। एक तो यह कि 15 वर्षों तक दिल्ली पर हुकूमत करने वाली कांग्रेस पार्टी जिसे 2013 के चुनाव में मात्र आठ सीटें प्राप्त हुई थी इस बार वही कांग्रेस 2013 के स्थान पर भी खड़ी नज़र नहीं आ रही है। गौरतलब है कि 2013 में भारतीय जनता पार्टी को 31सीटें प्राप्त हुई थीं जबकि आम आदमी पार्टी को 28 सीटें ही मिली थीं। इस प्रकार कांग्रेस से आठ सीटों का समर्थन लेकर आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में सरकार का गठन किया था। यह सरकार लोकपाल विधेयक पर कांग्रेस व बीजेपी का समर्थन न मिल पाने के कारण अरविंद केजरीवाल द्वारा त्यागपत्र दिए जाने की वजह से केवल 49 दिनों में ही गिर गई थी। इसी घटना के बाद कांग्रेस व भाजपा द्वारा अरविंद केजरीवाल को भगौड़ा मुख्यमंत्री साबित करने की कोशिश की गई। और दिल्ली की जनता को यह समझाने का प्रयास किया गया कि अपनी जि़म्मेदारियों को न निभा पाने के डर से केजरीवाल सरकार छोडक़र त्यागपत्र देकर भाग गए। उनके विरुद्ध यह दुष्प्रचार भी किया गया कि वे प्रधानमंत्री बनने की लालसा पाले हुए थे तभी उन्होंने दिल्ली की गद्दी छोडक़र वाराणसी से नरेंद्र मोदी के विरुद्धचुनाव लड़ा। 49 दिन में सरकार छोडक़र चले जाने तथा भगोड़ा कहलाए जाने के जवाब में ही इस बार आम आदमी पार्टी ने अपना प्रथम एवं प्रमुख नारा दिया है ‘पांच साल-केजरीवाल’।

उधर भारतीय जनतापार्टी में किरण बेदी को शामिल कर पार्टी ने नरेंद्र मोदी व अमित शाह के नेतृत्व में अपना वही चिरपरिचित खेल खेला है जो वह गुजरात से लेकर पूरे देश में खासतौर पर पिछले लोकसभा चुनावों में भी खेलती आ रही है। यानी अपने नेताओं व अपने कार्यकर्ताओं से अधिक भरोसा ‘विभीषणों’ पर करना। किरण बेदी हालांकि आम आदमी पार्टी में कभी भी नहीं रही परंतु सार्वजनिक चेहरे के रूप में उनकी पहचान निश्चित रूप से तभी हुई जब वे अन्ना हज़ारे के जनलोकपाल आंदोलन में उनकी सहयोगी के रूप में जंतर-मंतर के मंच पर नज़र आईं। और अरविंद केजरीवाल,मनीष सिसोदिया,शाजि़या इल्मी तथा दूसरे आंदोलनकारी नेताओं के साथ मिलकर जनलोकपाल आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। भारतीय जनता पार्टी ने किरण बेदी तथा शाजि़या इल्मी को अपने पाले में ले लिया तथा केजरीवाल के मुकाबले में इन नेताओं को इस्तेमाल करना अपनी चिरपरिचित रणनीति का हिस्सा समझा। परंतु किरण बेदी ने जिस प्रकार पार्टी की सदस्यता ग्रहण करते ही अपने स्वभाव व पेशे के अनुरूप अपनी कार्यशैली दिखानी शुरु की उससे पार्टी में खलबली मच गई। 16 जनवरी को किरण बेदी ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। और इसके अगले ही दिन उन्होंने पार्टी के दिल्ली के सातों सांसदों को अपने निवास पर चाय पार्टी के लिए आमंत्रित किया। उनका यह निमंत्रण मनोज तिवारी जैसे सांसद तथा जगदीश मुखी जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेता के गले नहीं उतरा। हर्षवर्धन जोकि केंद्रीय स्वास्थय मंत्री हैं उन्होंने हालंाकि किरण बेदी को फोन कर सूचित कर दिया था कि वे उनकी चाय पार्टी में अपनी व्यस्तताओं के चलते कुछ देरी से पहुंचेंगे। और वे वहां कुछ देरी से पहुंचे भी। परंतु किरण बेदी उनके पहुंचने से पहले ही अपने निवास से अन्यत्र चली गईं। ज़ाहिर है मेहमान का निमंत्रण पर पहुंचना और मेज़बान का मौजूद न होना यह एक सामान्य स्थिति नहीं कही जा सकती? वैसे भी किरण बेदी के ‘कॉशन’ बोलने जैसा संबोधन का तरीका,उनका लहजा,पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रहा है। किरण बेदी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने को लेकर भाजपा के अंदर काफी खलबली मची हुई है।

भाजपा में शामिल होते वक्त स्वयं किरण बेदी के हवाले से भी यह बयान आया था कि यदि पार्टी उन्हें अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध नई दिल्ली सीट से चुनाव मैदान मेंं उतारेगी तो उन्हें यह चुनौती स्वीकार होगी। भाजपा के कई नेता भी यही चाहते थे कि जिस मकसद से ‘विभीषण’ के रूप मे किरण बेदी को पार्टी ने चुनाव में अपना मुख्य चेहरा बनाया है उसके लिहाज़ से इन्हें केजरीवाल के ही विरुद्ध नई दिल्ली सीट से चुनाव मैदान में उतारा जाना चाहिए। परंतु किरण बेदी ने केजरीवाल का सामना करने के बजाए भाजपा के लिए सुरक्षित समझी जाने वाली कृष्णा नगर सीट से चुनाव लडऩे में ही अपने राजनैतिक कैरियर की भलाई समझी। सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी किरण बेदी को दिल्ली का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने से खुश नहीं है। परंतु प्राप्त समाचारों के अनुसार मोदी-शाह कंपनी ने संघ को यह कहकर मना लिया है कि चूंकि दिल्ली की जंग जीतना बहुत ज़रूरी है इसलिए पार्टी को ऐसा करना पड़ा। हालांकि खबरें यह भी आ रही हैं कि जिस प्रकार आम आदमी पार्टी ने पूरे देश में फैले अपने सक्रिय नेताओं व कार्यकर्ताओं को दिल्ली की जंग में शामिल होने के लिए दिल्ली बुला लिया है उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी पूरे देश के अपने सैकड़ों प्रमुख रणनीतिकारों को दिल्ली बुला चुका है। इसलिए इसमें कोई शक नहीं कि सात फरवरी को दिल्ली में होने जा रही आईपीएस बनाम आईआरएस की जंग बेहद रोमांचक होगी।

किरण बेदी को गत् 19 जनवरी को जब भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया उस समय अरविंद केजरीवाल द्वारा किरण बेदी को ट्वीट कर बधाई दी गई। साथ ही केजरीवाल ने उन्हें सार्वजनकि रूप से बहस करने की भी चुनौती दी। परंतु किरण बेदी ने यह कहकर डिबेट करने से अपना दामन बचाने की कोशिश की यह काम करने का समय है बहस करने का नहीं। जबकि कांग्रेस नेता अजय माकन ने केजरीवाल द्वारा दी गई बहस की चुनौती का स्वागत किया और वे स्वयं इसके लिए तैयार भी हुए। किरण बेदी के इस प्रकार के बहस से पीछे हटने पर मीडिया में किरण बेदी के उस 2012 के टवीट को सार्वजनिक किया जा रहा है जिसमें उन्होंने एनसीपीनेता पी संगमा को तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को तथा सोनिया गांधी व नितिन गडकरी को सार्वजनिक रूप से बहस किए जाने की चुनौती दिए जाने का पुरज़ोर समर्थन किया था। ज़ाहिर है जनता यह जानना चाह रही है कि 2012 में सार्वजनिक बहस की चुनौती का समर्थन करने वाली किरण बेदी आज खुद केजरीवाल की चुनौती का सामना करने से पीेछे क्यों हट रही है? ज़ाहिर है किरण बेदी का बहस का स्वीकार न करना उनकी कमज़ोरी का ही परिचायक है और अरविंद केजरीवाल इस मुद्दे पर किरण बेदी से बढ़त बनाते दिखाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि इसी प्रकार अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव से पूर्व नरेंद्र मोदी को भी खुले मंच पर बहस किए जाने की चुनौती दी थी। परंतु मोदी ने उसकी अनसुनी कर दी थी।

बहरहाल किरण बेदी को भाजपा ने अपनी पार्टी का मुख्य चेहा बनाकर इसी रणनीति के साथ मैदान में उतारा है कि यदि पार्टी दिल्ली में बहुमत की सरकार बनाने में सफल होती है तो जीत का सेहरा पहले की तरह मोदी के सिर पर बांधा जाएगा। और यदि पार्टी को पराजय का मुंह देखना पड़ता है तो हार का ठीकरा किरण बेदी के सिर पर फोड़ा जाएगा। इसी उठापटक के वातावरण के बीच अरविंद केजरीवाल द्वारा लगभग सात किलोमीटर लंबा रोड शो कर यह साबित करने की कोशिश की गई है कि आम आदमी पार्टी के पास भले ही कारपोरेट घरानों का समर्थन न हो पर दिल्ली की मध्यम वर्गीय,गरीब तथा झुग्गी-झोंपड़ी की जनता यहां तक कि देश में ईमानदार शासन व्यवस्था की कल्पना करने वाले युवा वर्ग का समर्थन केजरीवाल के साथ हैं।

nirmal-rani-invc-news-invc-articlewriter-nirmal-rani-aricle-written-by-nirmal-rani11परिचय :-
निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क : –Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City134002 Haryana
email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here