भ्रम व दोहरेपन के बीच फिर कोरोना की दहशत

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–  निर्मल रानी   –

 
स्वास्थ्य वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना की तीसरी लहर विश्वव्यापी स्तर पर आ चुकी है। अमेरिका जैसे साधन व सुविधा संपन्न देश में एक ही दिन में दस लाख से अधिक के दर से कोरोना के नये मामले सामने आने लगे हैं। इसके विश्वव्यापी प्रसार को नियंत्रित करने हेतु पूरे विश्व की अब तक हज़ारों उड़ानें स्थगित की जा चुकी हैं। भारत में भी कोरोना व ओमीक्रोन के तेज़ी से बढ़ते प्रभाव के मद्देनज़र आवश्यकतानुसार राज्य स्तर पर अलग अलग तरह के फ़ैसले लिये जा रहे हैं। भारत में गत एक सप्ताह में लगभग तीन गुना तेज़ी से संक्रमण फैल रहा है। सरकार व प्रशासन द्वारा एक बार फिर जनता को कोरोना गाईड लाइंस का सख़्ती से पालन करने की चेतावनी दी जा रही है। इनमें वही दो गज़ की दूरी-मास्क है ज़रूरी का सबसे अधिक पाठ पढ़ाया जा रहा है। कई जगहों से तो यह ख़बरें कोरोना की प्रथम व द्वितीय लहर में भी आई थीं और फिर आने लगी हैं कि मास्क न लगाने पर आम लोगों से जुर्माना वसूला जा रहा है। परन्तु मास्क लगाने अथवा न लगाने को लेकर अभी भी आम लोगों में भ्रम बना हुआ है। तमाम लोग मास्क लगाने में असहज महसूस करते हैं। ख़ासकर सांस फूलने व दमा जैसे मर्ज़ के लोगों के लिये तो मास्क लगा पाना बिल्कुल ही संभव नहीं हो पाता। तमाम स्वस्थ लोग भी मास्क लगाने की थ्योरी को पचा नहीं पाते। यहाँ तक कि डॉक्टर्स का भी एक वर्ग ऐसा है जो मास्क लगाकर कोरोना से बचाव करने जैसी थ्योरी से सहमत नहीं है। उनका मानना है कि मास्क लगाने वाला व्यक्ति साँस द्वारा अपनी ही छोड़ी गयी कार्बन डाई ऑक्साइड का 30 से 40 प्रतिशत भाग सांस लेने के साथ वापस खींच लेता है।
                                                             तो क्या यही वजह है कि हमारे देश में प्रायः प्रधानमंत्री सहित अनेक ‘आदर्श पुरुष ‘ बिना मास्क लगाये बड़े से बड़े आयोजन की शोभा बढ़ाते देखे जा सकते हैं ? पिछले दिनों शिव सेना के सांसद संजय राऊत नासिक के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में जब बिना मास्क लगाये दिखाई दिये तो मीडिया ने उनसे मास्क न लगाने की वजह पूछी। उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि ‘मैं पी एम मोदी को फ़ॉलो करता हूँ।’ राऊत ने यह भी कहा कि पी एम दूसरों से तो मास्क लगाने को कहते हैं परन्तु वे स्वयं मास्क नहीं लगाते। इस भ्रमपूर्ण स्थिति में यहाँ यह सवाल ज़रूरी है कि जब एक सांसद प्रधानमंत्री का हवाला देकर अपने मास्क न पहनने को न्यायोचित बताता हो ऐसे में केवल आम जनता को ही मास्क लगाने के लिये  बाध्य करना यहाँ तक कि मास्क न लगाने वालों से जुर्माना तक वसूल करना भ्रम के साथ साथ साथ सरकार व प्रशासन की दोहरेपन की नीति का परिणाम है या नहीं ? इसी प्रकार देश में बड़े बड़े धार्मिक सामजिक व राजनैतिक आयोजन हो रहे हैं। समुदाय विशेष तथा गाँधी को गरियाने वाले कार्यक्रमों को शायद ‘अति आवश्यक ‘ समझकर आयोजित किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश,पंजाब,उत्तराखंड,गोवा व मणिपुर जैसे चुनावी राज्यों में संभवतः दस जनवरी तक चुनाव की तारीख़ भी घोषित हो जायेगी। निश्चित रूप से चुनाव तिथि घोषित होने के बाद इन राज्यों में चुनावी गहमागहमी और अधिक बढ़ जाएगी।
                                                   इसीलिये जनता भ्रमित भी है और सरकार के दोहरेपन को भी देख व समझ रही है।जब विभिन्न राज्यों में कहीं रात का कर्फ़्यू लग चुका है तो कहीं वीकेन्ड कर्फ़्यू लग चुका है कहीं मॉल,शॉपिंग कॉम्प्लेक्स,बाज़ार जिम,पार्क आदि या तो बंद करवा दिए गये हैं या कहीं आंशिक रूप से बंद कराये जा रहे हैं, बच्चों की पढ़ाई व परीक्षाओं पर फिर ख़तरा मंडराने लगा है,गोवा व महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में स्कूल कॉलेज बंद कर दिये गये हैं। देश में 15 से 18 वर्ष के किशोरों का टीकाकरण शुरू हो चुका है। चुनाव आयोग चुनावी राज्यों में चुनाव पूर्व शत प्रतिशत टीकाकरण सुनिश्चित कराने के लिये प्रयासरत तो ज़रूर है। परन्तु ख़बरें यह भी हैं कि वैक्सीन की दोनों ख़ुराक अथवा एक ख़ुराक लगवाने वाले कई लोग कोरोना की ज़द में भी आ चुके और ओमीक्रॉन से भी प्रभावित हो चुके हैं । इसलिये टीकाकरण कोरोना का संपूर्ण कवच है,इस बात को लेकर भी संदेह व भ्रम बरक़रार है। इन हालात में चुनावी रैलियों,भीड़ भाड़ व सरगर्मियों को कैसे न्यायोचित व तर्क सांगत ठहराया जा सकता है ? हालांकि चुनाव आयोग के अनुसार सभी राजनैतिक दल चुनाव कराना चाहते हैं, परन्तु क्या जनता को राजनैतिक दलों की ‘मंशा की भेंट’ चढ़ाया जा सकता है ?
 
                                                    प्रधानमंत्री इन दिनों चुनावी राज्यों का धुंआधार दौरा कर रहे हैं। चुनाव तिथि घोषित होने से पूर्व केंद्र व राज्य सरकारें जनता को ‘चुनावी वर्ष’ के तोहफ़ों से नवाज़ रही हैं। क्या कांग्रेस क्या समाजवादी तो क्या आम आदमी पार्टी सभी का ध्यान इसी ओर है कि किस तरह अपनी सभाओं रैलियों व जुलूसों में अधिक से अधिक लोगों की शिरकत सुनिश्चित कर मीडिया के द्वारा जनता को अपना बढ़ता जनाधार दिखाया जा सके। इस तरह के राजनैतिक आयोजनों पर कोई रोक टोक नहीं है। न समय सीमा,न कर्फ़्यू न मास्क न सोशल डिस्टेंसिंग,न सिनेटाइज़र। गोया सारे क़ायदे क़ानून सख़्तियाँ व प्रतिबंध सिर्फ़ आम जनता के लिये हैं नेताओं के लिये हरगिज़ नहीं ?देश में इसी भ्रम व दोहरेपन के बीच फिर एक बार फिर कोरोना की दहशत मंडराने लगी है।

परिचय:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -: E-mail : nirmalrani@gmail.com

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